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Sunday, 1 December, 2024
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40 टेक्नीशियन, स्क्रू जैक और भक्ति में डूबे लोग- पुरी रथ यात्रा चलती रहे यह रेलवे कैसे सुनिश्चित करता है

साल 1964 से ईस्ट कोस्ट रेलवे का मैकेनिकल डिपार्टमेंट जगन्नाथ रथ यात्रा के पारंपरिक रूप से निर्मित 3 लकड़ी के रथों को एक सीधी रेखा में चलाने और इसकी पोजिशनिंग में शामिल रहा है.

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पुरी: भारतीय रेलवे को भारत की जीवन रेखा के रूप में जाना जाता है, जो कथित तौर पर प्रतिदिन 1.3 करोड़ से अधिक यात्रियों को अपने गंतव्य तक पहुंचाती है, लेकिन ओडिशा की लोकप्रिय जगन्नाथ रथ यात्रा उत्सव के दौरान रथों के सुचारू रूप से संचालित करने में इसकी दशकों पुरानी भूमिका के बारे में बहुत कम लोग जानते हैं.

मैकेनिकल डिपार्टमेंट और ईस्ट कोस्ट रेलवे के कर्मचारी 1964 से, विशेष स्क्रू जैक के उपयोग के माध्यम से यात्रा के तीन रथों को यात्रा मार्ग पर लाइन में लगाने और पोजिशनिंग करने में शामिल रहे हैं.

ईस्ट कोस्ट रेलवे के अधिकारियों के अनुसार, लगभग 40 लोगों की एक टीम तीन रथों को लाइन में खींचने और उनके रास्ते से किसी भी बाधा को दूर करने के लिए उपकरणों के साथ यात्रा में शामिल होती है. वे निरीक्षण, संरेखण, स्थिति और रथों के बीच उचित अंतर बनाए रखने के लिए भी जिम्मेदार होते हैं.

भारतीय रेलवे के कार्यकारी संचालन प्रबंधक आदित्य सेठी ने दिप्रिंट को बताया, ‘लकड़ी के रथों में अंतर स्टीयरिंग (पहियों या पटरियों पर वाहन को उन्मुख / चलाने की विधि) जैसी आधुनिक विशेषताएं नहीं होती हैं. हम ट्रैवर्सिंग स्क्रू जैक का उपयोग करते हैं जो रथों को लाइन में खींचने के लिए लगभग 40 लोगों द्वारा नियंत्रित किया जाता है,’ 

उन्होंने कहा, ‘इन रथों को पीछे हटने से रोकना हमारी जिम्मेदारी है.’

रेलवे की 40 सदस्यीय टीम में तकनीशियन, एक मैकेनिकल इंजीनियर, एक सीनियर सेक्शन इंजीनियर और दो सहायक सेक्शन इंजीनियर शामिल हैं.

ईस्ट कोस्ट रेलवे में सीनियर सेक्शन इंजीनियर रवींद्रनाथ पाणिग्रही ने कहा कि वह 1987 से इस काम को कर रहे हैं और इसके लिए काफी समर्पित हैं.

उन्होंने दिप्रिंट को बताया कि यात्रा के 11 दिनों के दौरान, 40 सदस्यीय टीम पूरी तरह से शाकाहारी भोजन पर रहती है और ‘स्क्रू जैक तैयार करने और रथों को सीधा करने के लिए रणनीति तैयार करने के लिए एक महीने पहले से तैयारी करती है’.

वह कहते हैं, ‘हर साल यह काम होना है. भगवान हमें कभी नहीं छोड़ते. यह एक मुश्किल काम है लेकिन जब कोई भगवान का काम कर रहा होता है तो कुछ भी मुश्किल नहीं लगता.’

पाणिग्रही के अनुसार, जगन्नाथ यात्रा के लिए रेलवे द्वारा यह सेवा 1964 में स्वेच्छा से पेश की गई थी, जब एक रेलकर्मी के सामने एक घटना घटी थी. उस वक्त रथ एक बिजली के खंभे से उलझ गया था.

‘सामंजस्यपूर्ण’ कार्य

ईस्ट कोस्ट रेलवे के अधिकारियों ने कहा कि यात्रा में उपयोग किए जाने वाले रथ अभी भी पारंपरिक तरीके से ही बनाए जाते हैं. साधारण लकड़ी से बने इस रथ में उस प्रणाली की कमी होती है जो उसे सीधे जाने में मदद कर सके. यही वह जगह है जहां रेलवे का यांत्रिक विभाग मदद के लिए कदम उठाता है. 

अधिकारियों ने कहा कि सभी स्क्रू जैक को एक रथ के नीचे अलग-अलग जगहों पर रखा जाता है और रथों को उठाने और स्थानांतरित करने के लिए एक साथ संचालित किया जाता है.

प्रक्रिया की व्याख्या करते हुए, सेठी ने जगन्नाथ रथ का उदाहरण दिया, जिसमें 16 पहिए और आठ धुरी (घूर्णन पहियों के लिए केंद्रीय शाफ्ट) हैं.

सेठी कहते हैं, ‘स्क्रू जैक को पहिये के नीचे नहीं बल्कि धुरी के नीचे रखा जाता है और इस प्रकार, 16 पहियों को जमीन से दो इंच ऊपर उठा दिया जाता है. एक धुरी है जिसे एक शाफ़्ट (यांत्रिक उपकरण) द्वारा बदला जाता है जिसका काम यह होता है कि रथ सही दिशा में जा रहा है या नहीं. चूंकि पहिए उस बिंदु पर जमीन को नहीं छू रहे हैं, इसलिए रथ खींचने के दौरान कोई घर्षण नहीं होता है.’

रेलवे के अधिकारियों ने बताया कि काम के लिए 40 सदस्यीय टीम के बीच समन्वय और संतुलन की आवश्यकता होती है, जिसके बिना रथों को अलग-अलग दिशाओं में खींचने वाले लोगों के लिए ‘गंभीर परिणाम’ हो सकते हैं.

एक अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया, ‘यह ‘सामंजस्यपूर्ण’ काम विशेष रूप से तब काम आता है जब एक्सल या व्हील में कोई खराबी हो, जिसमें तत्काल सुधार की आवश्यकता होती है.’

अधिकारी ने कहा, ‘इस तरह के मुद्दे आम हैं जब यात्रा के दौरान कठिन आवाजाही होती है, जैसे कि गुंडिचा मंदिर से 180 डिग्री आगे बढ़ना होता है.’

जगन्नाथ यात्रा देश में धार्मिक महत्व रखती है और हर साल लाखों पर्यटक इस यात्रा में शामिल होने आते हैं. यात्रा इस साल 20 जून से शुरू होगी और रेलवे के अधिकारियों का कहना है कि यात्रा को लेकर 75 फीसदी तैयारियां हो चुकी हैं.

यात्रा के दौरान भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा को पुरी के जगन्नाथ मंदिर से गुंडिचा मंदिर तक सजे हुए रथों में खींचा जाता है, और फिर वापस जगन्नाथ मंदिर लाया जाता है.

(संपादन: ऋषभ राज)

(इस ख़बर को अंग्रेज़ी में पढ़नें के लिए यहां क्लिक करें)


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