scorecardresearch
Saturday, 11 May, 2024
होमदेशSC पहुंची सियासी खींचतान, 6 भाजपा नेताओं ने तृणमूल पर फर्ज़ी FIR दर्ज कराने का लगाया आरोप

SC पहुंची सियासी खींचतान, 6 भाजपा नेताओं ने तृणमूल पर फर्ज़ी FIR दर्ज कराने का लगाया आरोप

बीजेपी नेताओं ने अपनी याचिका में अनुरोध किया कि उनके मामले किसी स्वतंत्र जांच एजेंसी को सौंप दिए जाएं जिसके बाद शीर्ष अदालत ने नोटिस जारी कर दिए.

Text Size:

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को पश्चिम बंगाल पुलिस पर पांच प्रदेश बीजेपी नेताओं के खिलाफ ज़बरदस्ती की कार्रवाई पर रोक लगा दी जिनका आरोप है कि उनके खिलाफ झूठे मुकदमें दर्ज किए गए हैं जिससे कि उन्हें राज्य में राजनीतिक सभाएं करने से रोका जा सके, जहां अगले वर्ष चुनाव होने हैं.

जस्टिस संजय किशन कॉल की अगुवाई वाली बेंच ने राज्य पुलिस से कहा कि वो अरुण सिंह, कैलाश विजयवर्गीय, पवन सिंह, सौरव सिंह और मुकुल रॉय के खिलाफ कोई कार्रवाई न करे. साथ ही कोर्ट ने सभी मामलों को किसी ‘स्वतंत्र जांच एजेंसी’ को सौंपने की उनकी याचिका पर नोटिस जारी कर दिए.

सभी ने आरोप लगाया है कि ये मामले उनके तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) छोड़कर बीजेपी में शामिल होने के बाद दायर किए गए थे.

फरियादियों ने अपनी अलग-अलग याचिकाओं में निवेदन किया कि ऐसा उन्हें बड़े पैमाने पर भीड़ जुटाने या राज्य सरकार के ‘निंदनीय, अपमानजनक और हानिकारक फैसलों/नीतियों और गतिविधियों के खिलाफ’ एक मज़बूत विपक्ष तैयार करने से रोकने कि लिए किया गया है.

लेकिन बेंच ने इसी तरह की राहत छठे बीजेपी नेता और पार्टी प्रवक्ता कबीर शंकर बोस को नहीं दी. उनके मामले में कोर्ट ने वो रिपोर्ट मांगी है जो केंद्रीय गृह मंत्रालय ने टीएमसी कार्यकर्ताओं और केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल (सीआईसीएफ) के स्पेशल सिक्योरिटी ग्रुप के बीच हुई, जो कथित हाथापाई के बाद तैयार की थी.

अच्छी पत्रकारिता मायने रखती है, संकटकाल में तो और भी अधिक

दिप्रिंट आपके लिए ले कर आता है कहानियां जो आपको पढ़नी चाहिए, वो भी वहां से जहां वे हो रही हैं

हम इसे तभी जारी रख सकते हैं अगर आप हमारी रिपोर्टिंग, लेखन और तस्वीरों के लिए हमारा सहयोग करें.

अभी सब्सक्राइब करें

अदालत ने कहा कि इस रिपोर्ट को बंद लिफाफे में पेश किया जाना है और उसने केस की अगली सुनवाई जनवरी में तय कर दी.

अर्जुन सिंह के अनुसार, उनके खिलाफ 64 आपराधिक मामले दर्ज हैं जबकि उनके बेटे पवन पर 9 केस हैं और उनके भतीजे सौरव के खिलाफ 12 मामले लंबित हैं.

सिंह बैरकपुर लोकसभा सीट से सिटिंग सांसद हैं और पिछले आम चुनावों में बीजेपी की टिकट पर जीत हासिल करने से पहले, वो भातपुरा सीट से चार बार टीएमसी विधायक रहे हैं. वर्तमान में वो बीजेपी की पश्चिम बंगाल इकाई के 12 उपाध्यक्षों में से एक हैं.

एक और उपाध्यक्ष विजयवर्गीय के खिलाफ पांच केस हैं. सुनवाई के दौरान उनके वकील प्रशांत कुमार ने कहा कि टीएमसी छोड़ने के बाद उनके मुवक्किल अचानक एक अपराधी बन गए थे.

कुमार ने बेंच से कहा, ‘ये केस सिर्फ उन्हें पश्चिम बंगाल में घुसने से रोकने की मंशा से दर्ज किए गए हैं’.

रॉय के सामने भी 17 अपराधिक मामले हैं.


यह भी पढ़ें: राम मंदिर निर्माण के लिए मकर संक्रांति से शुरू होगा संपर्क अभियान: चंपत राय


बीजेपी नेताओं का दावा- राज्य हमारे खिलाफ काम कर रहा है, मामले राजनीति से प्रेरित

सिंह ने, जो कोर्ट के समक्ष मुख्य याचिकाकर्ता हैं, मार्च 2019 में उनके टीएमसी छोड़ने के फौरन बाद, उनके खिलाफ राजनीति से प्रेरित मामले दर्ज करने के लिए राज्य सरकार की आलोचना की. उन्होंने आरोप लगाया कि किसी प्रारंभिक जांच के बिना राज्य पुलिस ने उनके खिलाफ चौंसठ आपराधिक मामले ठोंक दिए.

सिंह ने अपनी याचिका में कहा कि उनके पार्टी छोड़ने के फौरन बाद इतने सारे मामलों का शुरू किया जाना, एक जीता जागता उदाहरण है कि राजनीतिक बदले की कार्रवाई को आगे बढ़ाने के लिए सरकारी मशीनरी और न्याय प्रशासन प्रणाली का किस तरह दुरुपयोग किया जा रहा है.

पुलिस ने एक ही काम के लिए उनपर कई मुकदमे दर्ज किए थे. सिंह ने कोलकाता हाईकोर्ट को भी शिकायत की कि उनकी याचिका पर ठीक से सुनवाई नहीं हो रही है जिसमें उन्होंने अपने खिलाफ दर्ज एक एफआईआर को रद्द किए जाने की गुज़ारिश की थी.

सिंह ने पुलिस पर पक्षपात का भी आरोप लगाया कि उनके और उनके बेटे पर कथित तौर पर टीएमसी सदस्यों की ओर से देसी बम से हमले के बाद उनकी शिकायत पर एफआईआर दर्ज नहीं की गई. सिंह की याचिका में कहा गया कि बीजेपी नेता को मजबूर होकर चीफ जुडीशियल मजिस्ट्रेट का दरवाज़ा खटखटाना पड़ा.

सिंह ने निवेदन किया, ‘जिस तरह से राज्य की मशीनरी, एक उद्देश्य के साथ फरियादी के पीछे लगी हुई है, एक के बाद एक और बिना कानूनी प्रक्रिया के उसकी आज़ादी पर बंदिशें लगा रही है, उससे राज्य की मशीनरी का खौफनाक और प्रतिशोधी रवैया स्पष्ट तौर पर साबित हो जाएगा जिसे इस माननीय अदालत द्वारा सख्ती से रोकने की ज़रूरत है’.

उनके वकील सीनियर एडवोकेट मुकुल रोहतगी ने इस केस की तुलना एक और राजनेता, भारती घोष के केस से की, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने दखल देते हुए सुनिश्चित किया था कि उन्हें गिरफ्तार न किया जाए.

छठे बीजेपी नेता बोस की याचिका में, उन्होंने राज्य अधिकारियों पर आरोप लगाया है कि उन्हें ‘जानबूझकर और इरादतन’, करीब चार घंटों तक एक कोविड आइसोलेशन वॉर्ड में दूसरे कोविड मरीज़ों के साथ रखा गया जो उनके मुताबिक भारत के संविधान की धारा 21 के तहत दिए गए जीने के अधिकार का घोर उल्लंघन था.

राज्य सरकार मिल जुलकर प्रयास कर रही है कि ‘आगामी विधानसभा चुनावों से पहले पुलिसकर्मियों की मदद से जो उनके सीधे नियंत्रण में होते हैं, विपक्षी बीजेपी के सदस्यों के खिलाफ फर्ज़ी मामले दर्ज कर विपक्ष की आवाज़ दबा दी जाए’.

बोस ने, जिनकी शादी टीएमसी नेता कल्याण बनर्जी की बेटी से हुई थी, आरोप लगाया कि उनका उत्पीड़न तब शुरू हुआ जब उन्होंने तलाक के लिए अर्ज़ी दी.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


यह भी पढ़ें: नए कृषि कानून रातों-रात नहीं आये हैं, MSP प्रणाली जारी रहेगी: नरेंद्र मोदी


 

share & View comments