scorecardresearch
Saturday, 20 April, 2024
होमदेशअपराधपुलिस बोली- ‘पाकिस्तानी आतंकी के सिम’, CCTV से हैदरपोरा में मारे गए दो लोगों का टेरर लिंक साबित हुआ

पुलिस बोली- ‘पाकिस्तानी आतंकी के सिम’, CCTV से हैदरपोरा में मारे गए दो लोगों का टेरर लिंक साबित हुआ

पुलिस ने 15 नवंबर को हैदरपोरा में मारे गए संदिग्ध पाकिस्तानी आतंकी के पास से कथित तौर पर एक सिम कार्ड बरामद किया है जो लश्कर के एक कथित ऑपरेटिव के पिता के नाम पर रजिस्टर्ड था.

Text Size:

नई दिल्ली: विवादों के घेरे में आई 15 नवंबर को हैदरापोरा में हुई मुठभेड़ में ढेर संदिग्ध पाकिस्तानी आतंकी बिलाल भाई उर्फ हैदर के मोबाइल फोन से बरामद सिम कार्डों में से एक लश्कर-ए-तैयबा के कथित ओवरग्राउंड वर्कर (सूत्र या सहयोगी) आमिर—जो उसी मुठभेड़ में मारा गया था—के पिता अब्दुल लतीफ मागरे के नाम से रजिस्टर्ड है. एक पुलिस सूत्र ने दिप्रिंट को यह जानकारी दी है.

सूत्र ने कहा, आमिर मागरे को अपने पिता के नाम से जुड़े यूपीआई खाते में ‘संदिग्ध स्रोतों’ से पैसा भी मिला है.

सूत्र ने कहा, ‘यह इस बात को साबित करता है कि आमिर विदेशी आतंकी की मदद कर रहा था. उसने आतंकी के लिए सिम कार्ड की व्यवस्था की थी.’ सूत्र के मुताबिक, ‘हत्या के बाद बिलाल भाई की जेब से जो मोबाइल बरामद हुआ था, उसमें दो सिम कार्ड थे. एक आमिर के पिता के नाम पर और एक आमिर के नाम पर रजिस्टर्ड है. उस सिम (पिता के) से जुड़ा एक यूपीआई अकाउंट भी है जिसमें आमिर को धन मिल रहा था.’

अब्दुल लतीफ मागरे जल शक्ति विभाग में एक सहायक लाइनमैन हैं, जिन्हें 2012 में एक आतंकवादी को मार गिराने के लिए जम्मू-कश्मीर प्रशासन की तरफ से बहादुरी का पुरस्कार दिया गया था. उनका कहना है कि उनका बेटा बेगुनाह है.

हैदरापोरा मुठभेड़ में मारे गए चार लोगों में बिलाल और आमिर शामिल थे. दो अन्य की पहचान अल्ताफ अहमद भट्ट और मुदस्सिर गुल के रूप में हुई है. भट्ट की पहचान एक व्यवसायी के रूप में की गई है, लेकिन पुलिस ने यह दावा किया है कि उनके पास चैट और कॉल रिकॉर्ड जैसे ‘पर्याप्त डिजिटल सबूत’ हैं, जो यह बताते हैं कि गुल ‘आतंकी का सहयोगी था…और उसे पनाह देने के साथ उसकी मदद कर रहा था.’

अच्छी पत्रकारिता मायने रखती है, संकटकाल में तो और भी अधिक

दिप्रिंट आपके लिए ले कर आता है कहानियां जो आपको पढ़नी चाहिए, वो भी वहां से जहां वे हो रही हैं

हम इसे तभी जारी रख सकते हैं अगर आप हमारी रिपोर्टिंग, लेखन और तस्वीरों के लिए हमारा सहयोग करें.

अभी सब्सक्राइब करें

पुलिस के मुताबिक, यह मुठभेड़ ‘एक निजी इमारत में व्यापार के लिए किराए पर लिए गए एक अवैध कॉल सेंटर में आतंकवादियों की मौजूदगी के बारे में विशिष्ट इनपुट’ के आधार पर हुई. माना जाता है कि यह इमारत अल्ताफ अहमद भट्ट के स्वामित्व वाली थी और गुल ने इसे किराये पर ले रखा था.

पुलिस ने कहा, दोनों नागरिक, ‘इमारत में चल रहा संदिग्ध कॉल सेंटर’—जहां आतंकवादी काम कर रहे थे—दिखाने के लिए ‘तलाशी दस्ते’ के साथ गए थे और ‘क्रॉसफायरिंग’ की चपेट में आकर मारे गए.


यह भी पढ़ें: कश्मीर एनकाउंटर पीड़ितों को अपने मृतक को दफनाने के लिए कैसे करनी पड़ी 76 घंटे तक जद्दोजहद


70 किमी दूर हंदवाड़ा में

इस मामले में विवाद तब बढ़ा जब पुलिस ने चारों शवों को अपने कब्जे में लेकर 70 किमी दूर हंदवाड़ा में आतंकियों के लिए बने एक कब्रिस्तान में दफना दिया.

पूरे कश्मीर में विरोध प्रदर्शनों के बाद पुलिस को परिजनों द्वारा उचित तरह से दफनाने के लिए गुल और अहमद भट्ट के शवों को गुरुवार को निकालने पर मजबूर होना पड़ा. हालांकि, आमिर के शव को नहीं लौटाया गया. परिवार के सामने कथित तौर पर यह पेशकश की गई कि आखिरी बार उसका चेहरा दिखाने के लिए आंशिक रूप से खुदाई की जा सकती है, लेकिन उन्होंने इसे खारिज कर दिया.

ऊपर उद्धृत पुलिस सूत्र ने दिप्रिंट से कहा कि बिलाल और आमिर के बीच लिंक साबित करने के लिए उनके पास इमारत के अंदर का सीसीटीवी फुटेज हैं. सूत्र ने बताया कि कैमरे से मिली क्लिप में आमिर को बिलाल के लिए बिस्तर बनाते और उसके साथ खाना खाते देखा जा सकता है.

सूत्र ने बताया कि हैदरापोरा एनकाउंटर से ठीक एक दिन पहले बिलाल ने नवा कदल इलाके में एक पुलिसकर्मी पर फायरिंग की थी, लेकिन मौके से फरार होने में सफल रहा था.

सूत्र ने कहा, ‘हमने सीसीटीवी फुटेज हासिल की है जिसमें दोनों को स्पष्ट तौर पर देखा जा सकता है. आमिर कई हफ्तों से बिलाल के साथ था. पूरे सीसीटीवी फुटेज से हमें यह पता लगाने में मदद मिलेगी कि बिलाल यहां कितने आमिर के साथ दिन रहा. सीसीटीवी फुटेज यह दिखाने के लिए पर्याप्त है कि कैसे मुदस्सिर न सिर्फ बिलाल को पनाह दे रहा था बल्कि उसकी मदद भी कर रहा था.’

‘पाकिस्तानी आतंकी शार्पशूटर था’

पुलिस को शक है कि बिलाल पिछले 6 महीने से श्रीनगर में था. जम्मू-कश्मीर पुलिस के सूत्र ने कहा कि ऐसा माना जा रहा है कि वह दो साल पहले बांदीपोरा सेक्टर से गुरेज के रास्ते भारत में घुसा था और करीब डेढ़ साल तक उत्तरी कश्मीर में रहा. सूत्र ने बताया कि श्रीनगर पहुंचने पर वह आमिर के संपर्क में आया.

बिलाल कथित तौर पर एक ‘शार्पशूटर’ था और ‘पिस्टल फायरिंग’ पर उसकी अच्छी पकड़ थी.

सूत्र ने कहा, मुठभेड़ के दिन बिलाल एक कमरे के अंदर था, और जब वह 9 एमएम की पिस्टल से अंधाधुंध फायरिंग करते हुए बाहर आया तो मारा गया.

सूत्र ने जोड़ा, ‘पिस्तौल पर उसकी बहुत अच्छी पकड़ थी. जांच में यह भी पता चला है कि वह ऑनलाइन पिस्टल फायरिंग में बहुत सारे हाइब्रिड आतंकियों (बिना पुलिस रिकॉर्ड वाले आतंकियों) को प्रशिक्षण भी दे रहा था. यह प्रशिक्षण फिजिकली नहीं नहीं, बल्कि ऑनलाइन दिया गया था.’

सूत्र ने दावा किया कि बिलाल की पहचान नवा कदल फायरिंग के संदिग्ध के रूप में की गई क्योंकि उसने 15 नवंबर को वही जैकेट और जूते पहन रखे थे.

सूत्र ने कहा, ‘इसी ने हमें यह पहचानने में मदद की कि वो वही व्यक्ति था जिसने 14 नवंबर को हमारे पुलिसकर्मी पर गोलियां चलाई थीं. वह पुलिस पर फायरिंग के बाद एक गली में भाग गया था. हमारे पास उस गली के सीसीटीवी फुटेज भी हैं, जिसमें वह हाथ में पिस्तौल लिए, वही हुडी जैकेट पहने और सफेद लाइन वाले जूते पहने दिखाई दे रहा है.’

सूत्र ने कहा कि गुल ने ही बिलाल को मौके से भागने में मदद की थी. सूत्र ने आरोप लगाया कि आमिर और मुदस्सिर के बीच बातचीत हो रही है, जिसमें वह कहते हैं, ‘बिलाल भाई को बाहर निकालना है.’

सूत्र ने बताया, ‘बिलाल के मौके से भागने के बाद, वह मुदस्सिर की हैदरापोरा स्थित इमारत में गया और हमारे पास सीसीटीवी फुटेज है जिसमें आमिर एक कमरे में बिलाल के साथ दिखाई दे रहा है.’

‘कॉल सेंटर—टीआरएफ का एक संदिग्ध ठिकाना’

सूत्र ने कहा कि पुलिस को संदेह है कि लश्कर की एक शाखा दि रेजिस्टेंस फ्रंट (टीआरएफ) को इस कॉल सेंटर से संचालित किया जा रहा था, जिसे डॉ. मुदस्सिर गुल चला रहे थे.

सूत्र ने बताया कि घाटी में होने वाले आतंकी हमलों की जिम्मेदारी लेने के लिए जारी होने वाले पर्चे यहीं डिजाइन किए जा रहे थे.

मुठभेड़ के बाद पुलिस ने एक बयान में कहा था कि उन्होंने यहां बने छह केबिन में से इतनी ही संख्या में कंप्यूटर जब्त किए हैं. ये कंप्यूटर वीओआईपी (वॉयस-ओवर-इंटरनेट-प्रोटोकॉल) सक्षम थे और बरामद की गई सामग्री में विभिन्न विदेशी नंबरों के रिकॉर्ड के अलावा अल्फा, बीटा, गामा कोड वाली डायरी शामिल थीं.

पुलिस सूत्र ने कहा कि कॉल सेंटर के लिए जरूरी अनुमतियां हासिल नहीं की गई थीं लेकिन यहां पर कर्मचारी थे.

सूत्र ने कहा, ‘कॉल सेंटर किसी पंजीकृत कंपनी से जुड़ा नहीं था, न ही उसके कर्मचारियों का स्थानीय पुलिस से सत्यापन ही कराया गया था. कोई नहीं जानता कि वह क्या करते थे और इस तरह यह संदिग्ध हो जाता है. इसमें कुछ कर्मचारी थे और हम उनसे पूछताछ करेंगे. जब्त किए गए सभी उपकरणों को दिल्ली की एफएसएल लैब भेज दिया गया है और उनकी रिपोर्ट का इंतजार किया जा रहा है.’

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


यह भी पढ़ें: चश्मदीदों ने बताया- हैदरपोरा मुठभेड़ में मारा गया नागरिक अक्सर CRPF जवानों के साथ चाय पीता नजर आता था


 

share & View comments