नई दिल्ली: पोलावरम बांध परियोजना की फंडिंग को लेकर केंद्र और आंध्र प्रदेश सरकार के बीच लंबे समय से जारी गतिरोध आखिरकार कुछ सुलझता दिख रहा है. इसे आंध्र के मुख्यमंत्री वाईएस जगन मोहन रेड्डी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बीच पिछले एक साल के दौरान हुई कई बैठकों का नतीजा माना जा रहा है.
दिप्रिंट को मिली जानकारी के मुताबिक, पीएमओ के निर्देश के बाद वित्त मंत्रालय अग्रिम तदर्थ आवंटन के राज्य सरकार के अनुरोध पर विचार कर रहा है. गौरतलब है कि मुख्यमंत्री रेड्डी ने पीएम मोदी से आग्रह किया था कि अग्रिम तदर्थ आवंटन के तहत 7,278 करोड़ की राशि मुहैया कराई जाए ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि केंद्रीय कैबिनेट की तरफ से पोलावरम बांध पूरा करने के लिए आवश्यक बढ़ी राशि को मंजूरी दिए जाने तक धन की कमी के कारण परियोजना को रोकना न पड़े.
आंध्र प्रदेश के वरिष्ठ सरकारी अधिकारियों के साथ-साथ जल शक्ति मंत्रालय के अधिकारियों ने भी दिप्रिंट को बताया, ‘फंडिंग के मुद्दे पर केंद्रीय वित्त सचिव टी.वी. सोमनाथन ने दो बैठकें की हैं— एक जनवरी में और दूसरी अगस्त में. वित्त मंत्रालय आंध्र प्रदेश के सीएम के अनुरोध पर विचार कर रहा है और राज्य सरकार से परियोजना से संबंधित अतिरिक्त जानकारी मुहैया कराने को भी कहा गया है.’
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‘राज्य सरकार के अनुरोध पर किया जा रहा विचार’
पूर्व में केंद्र और आंध्र प्रदेश सरकार के बीच परियोजना की वास्तविक लागत को लेकर तनातनी चलती रही है. केंद्र ने 2013-14 के मूल्य स्तर पर परियोजना लागत की सीमा तय की थी, जो 20,398 करोड़ रुपये है. लेकिन राज्य चाहता था कि इस परियोजना की लागत को 2017-18 के मूल्य स्तर के आधार पर मंजूरी दी जाए, जो 55,548.87 करोड़ रुपये हो गई है. केंद्र 2017-18 के मूल्य स्तर के आधार पर लागत स्वीकारने पर सहमत नहीं था.
केंद्र के इस रुख को देखते हुए ही आंध्र प्रदेश के सीएम वाईएस जगन मोहन रेड्डी को अक्टूबर 2020 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक पत्र लिखा और कहा कि किसी भी अवास्तविक लागत अनुमान का नतीजा यह होगा कि परियोजना अधूरी ही रह जाएगी.
राज्य सरकार ने कहा है कि कम दर पर परियोजना को पूरा करना बेहद मुश्किल होगा क्योंकि 2014 के बाद से लागत कई गुना बढ़ गई है, जब इस बांध को राष्ट्रीय परियोजना घोषित किया गया था.
जल शक्ति मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया, ‘केंद्र और राज्य सरकार दोनों के स्तर पर एक तरह का गतिरोध बन गया था. लेकिन केंद्र, खासकर वित्त मंत्रालय अब राज्य के इस आग्रह पर विचार कर रहा है कि जलाशय का भंडारण स्तर 45.72 मीटर के पूर्ण जलाशय स्तर के मुकाबले 41.15 मीटर की ऊंचाई तक ही रखकर बांध को पूरा करने के लिए आवश्यक बढ़ी हुई लागत को मंजूरी दी जाए.’
अधिकारी ने बताया कि 41.15 मीटर तक भंडारण स्तर के लिए 29,946 परियोजना विस्थापित परिवारों (पीडीएफ) के पुनर्वास की जरूरत होगी, जबकि भंडारण स्तर 45.72 मीटर तक बढ़ाने पर यह आंकडा 93,000 हो जाएगा. इसके लिए लगभग 10,485 करोड़ रुपये की आवश्यकता होगी. साथ ही जोड़ा ‘केंद्र नहीं चाहता कि परियोजना अधूरी रहे.’
41.15 मीटर के भंडारण स्तर पर जलाशय की भंडारण क्षमता 120 टीएमसी होगी, जबकि 45.72 मीटर के पूर्ण जलाशय स्तर के साथ भंडारण क्षमता 194.6 टीएमसी (हजार मिलियन क्यूबिक फीट) पर पहुंच जाएगी.
केंद्रीय जल शक्ति सचिव पंकज कुमार और वित्त सचिव टीवी सोमनाथन के साथ बैठक के लिए आंध्र प्रदेश के सिंचाई सचिव शशि भूषण कुमार के नेतृत्व में राज्य के वरिष्ठ अधिकारियों की एक टीम बुधवार को तीन दिवसीय यात्रा पर दिल्ली पहुंची थी. आंध्र सरकार के वरिष्ठ अधिकारियों ने दिप्रिंट को बताया कि अन्य मामलों के अलावा उन्होंने मार्च 2023 तक कम से कम 7,278 करोड़ रुपये के तदर्थ आवंटन पर भी चर्चा की.
पोलावरम सिंचाई परियोजना के चीफ इंजीनियर सुधाकर बाबू बुर्री ने दिप्रिंट को बताया, ‘हमने जल शक्ति मंत्रालय और वित्त मंत्रालय की तरफ से मांगी गई हर अतिरिक्त जानकारी मुहैया करा दी है.’
आंध्र प्रदेश सरकार के एक दूसरे अधिकारी ने बताया कि राज्य से बांध के जलाशय की पूर्ण क्षमता की तुलना में पहले चरण पर आने वाली कुल लागत और उसके फायदों के बारे में पूरी जानकारी मांगी गई है. चरण-1 के तहत पोलावरम बांध पर जलाशय का भंडारण स्तर 41.15 मीटर (120 टीएमसी की भंडारण क्षमता के साथ) तक ले जाने का प्रस्ताव है, जबकि पूर्ण जलाशय का स्तर 45.72 मीटर (194.6 टीएमसी की भंडारण क्षमता के साथ) होगा.
जल शक्ति मंत्रालय ने मार्च 2023 तक धन की संभावित आवश्यकता का अनुमान लगाने के साथ-साथ 2019-20 में गोदावरी नदी में बाढ़ के कारण डायाफ्राम वॉल को पहुंचे नुकसान का विस्तृत आकलन करने को भी कहा है.
डायाफ्राम वॉल मुख्य बांध का एक प्रमुख हिस्सा होती है, जो बांध में किसी तरह के रिसाव को रोकने के लिए एक बैरियर के तौर पर काम करती है.
बहरहाल, आंध्र प्रदेश सरकार के अधिकारी मानते हैं कि सारी कवायद पूरी करने में काफी वक्त लगेगा. उनके मुताबिक, पूर्व में कई समयसीमा चूक चुकी यह परियोजना फिलहाल जल्दी पूरी होने के आसार नहीं दिखते. जून 2024 की संशोधित समयसीमा तय की गई है, लेकिन ऑफ-द-रिकॉर्ड बातचीत में अधिकारी मानते हैं कि परियोजना पूरी होने में इससे कहीं ज्यादा समय लगेगा.
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विवाद की क्या थी वजह
पोलावरम बहुउद्देशीय बांध को 2014 में एक राष्ट्रीय परियोजना घोषित किया गया, जिसका मतलब था कि केंद्र की ओर से राज्य सरकार इसका सारा काम कराएगी. और केंद्र को राज्य की तरफ से खर्च किए गए सारे पैसे का भुगतान करना था.
लेकिन फंडिंग एक विवादस्पद मुद्दा बना रहा. पहले, वित्त मंत्रालय 4,068.43 करोड़ रुपये के जल घटक को छोड़कर, परियोजना के सिर्फ सिंचाई घटक को वित्तपोषित कर रहा था और जल घटक की लागत वहन करना राज्य सरकार पर छोड़ दिया गया था.
काफी ना-नुकुर के बाद केंद्र सरकार अब परियोजना के सिंचाई और जल घटक दोनों का ही खर्च वहन करने के राज्य के प्रस्ताव पर सहमत हो गई.
पोलावरम परियोजना पर काम 2005 में शुरू हुआ था. 2005-06 के मूल्य स्तर के आधार पर उस समय परियोजना की लागत 10,151 करोड़ रुपये आंकी गई थी. लेकिन तबसे लेकर अब तक परियोजना की कई समयसीमा बीत चुकी हैं और लागत भी कई गुना बढ़ गई है. परियोजना को पूरा करने की नई समयसीमा जून 2024 निर्धारित की गई है.
(अनुवाद: रावी द्विवेदी | संपादन: कृष्ण मुरारी)
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