छपरा (बिहार): छपरा के सदर अस्पताल में भर्ती राजू शर्मा गुरुवार को बिस्तर पर पड़े कराह रहे थे. उनके पेट में भयंकर दर्द है और आंखों में भी जलन हो रही है. इस सबकी वजह के बारे में सोचकर उनका कलेजा कांप जाता है.
वो एक प्लास्टिक पाउच था जिसमें भरी शराब पीकर उनका यह हश्र हुआ है.
राजू ने कराहते हुए बताया, ‘मैंने मंगलवार को शराब पी थी. जब मैं बाजार गया तो मेरे दोस्त मुन्ना ने मुझे थोड़ी-सी शराब पिलाई थी.’ लखनऊ में बढ़ई का काम करने वाले राजू छुट्टी लेकर बिहार के हुसैनपुर स्थित अपने घर आए हैं. उन्होंने बहुत ही अफसोस के साथ कहा, ‘हमें पता नहीं था कि ऐसा कुछ होगा.’
उन्होंने बताया कि शराब पीने के बाद मुन्ना भी बीमार हो गया.
सरकारी अनुमानों के मुताबिक, बिहार में मंगलवार को जहरीली शराब की ताजा घटना के कारण सारण जिले के छपरा में 28 लोगों की मौत हो गई थी, हालांकि स्थानीय स्तर पर लोगों का अनुमान है कि मरने वालों का आंकड़ा 42 तक हो सकता है.
गौरतलब है कि 2016 में नीतीश कुमार सरकार ने बिहार में शराबबंदी लागू की थी, इसके बावजूद राज्य में पिछले कुछ वर्षों में जहरीली शराब से मौतों की कई घटनाएं हो चुकी हैं.
सदर अस्पताल में स्वास्थ्यकर्मी विजय गुप्ता ने बताया, ‘ज्यादातर लोगों ने शराब पीने के बाद पेट दर्द की शिकायत की. कई लोगों को दिखाई देना बंद हो गया और उनके शरीर में कंपन होने लगा. उपचार के बाद उसमें से कई लोगों को काफी आराम मिला है. हम फिलहाल उन्हें अपनी निगरानी में रखेंगे.’
उन्होंने बताया कि इस अस्पताल से तीन लोगों को पटना रेफर किया गया है. आठ मरीज उनकी देखरेख में हैं, जिन्हें पेट में दर्द और धुंधला दिखाई देने की दिक्कत के बाद भर्ती कराया गया है.
मंगलवार की इस त्रासदी ने जहां बिहार में शराबबंदी और उस पर अमल के तरीके को लेकर नए सिरे से राजनीतिक बहस छेड़ दी है, वहीं पीड़ितों को मिलने वाले इलाज की गुणवत्ता को लेकर भी आरोप लगाए जा रहे हैं.
भाजपा विधायक विजय कुमार सिन्हा ने दिप्रिंट को बताया, ‘सदर अस्पताल की हालत दयनीय है, जहरीली शराब के सेवन से तो लोगों की मौत हुई ही है, अस्पताल की लापरवाही भी कम नहीं रही है.’
सरकार ने अब तक दो लोगों को निलंबित कर दिया है, जिसमें सबसे अधिक प्रभावित गांवों में से एक मशरक के एक स्टेशन हाउस ऑफिसर (एसएचओ) रितेश मिश्रा शामिल हैं. मामले की जांच के लिए एक विशेष जांच दल भी गठित किया गया है.
राजू शर्मा के बगल वाले बेड और एक और पीड़ित दिलीप मांझी लेटे थे. उनकी पत्नी उर्मिला देवी, बहन रीना देवी और भाभी प्रभावती देवी ठंड से बचने के लिए कसकर शाल लपेटे हुए उसी बिस्तर के किनारे पर बैठी हैं.
महिलाएं नीतीश कुमार के शराबबंदी के फैसले की सबसे बड़ी समर्थक रही हैं और इसी वजह से उन्हें जदयू का एक बड़ा वोट बैंक माना जाता है.
35 वर्षीय रीना देवी ने दिप्रिंट से कहा, ‘सब मर जाएंगे लेकिन यह शराब नहीं छूटेगी. हम आंगनबाड़ी में जाकर शिकायत करते हैं कि शराब फ्री में कैसे मिल रही है, वे कहते हैं कि कुछ करना है तो हम खुद करें, न तो सरकार सुधरेगी और न ही लोग.’ रीना देवी ने पुलिस की मिलीभगत से अवैध शराब की आपूर्ति का आरोप भी लगाया.
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नीतीश बनाम भाजपा
जहरीली शराब त्रासदी ने बिहार में राजनीतिक स्तर पर आरोप-प्रत्यारोप का दौर भी शुरू कर दिया है.
जहरीली शराब कांड को लेकर बुधवार को बिहार विधानसभा में भाजपा विधायकों की तरफ से सियासी हमला किए जाने से भड़के नीतीश कुमार ने पीड़ितों को ‘शराबी’ तक कह डाला.
भाजपा नेता सुशील कुमार मोदी ने इस पर बिहार के मुख्यमंत्री से माफी मांगने की मांग की और साथ ही कहा है कि शराबबंदी शुरू होने के बाद से ऐसी ही घटनाओं में 1,000 से अधिक लोग मारे जा चुके हैं और छह लाख से अधिक लोगों को गिरफ्तार किया गया है.
हालांकि भाजपा सार्वजनिक तौर पर शराबबंदी का समर्थन करती है, लेकिन उसने प्रतिबंध पर ठीक तरह से अमल न होने को लेकर नीतीश कुमार की आलोचना की है. पूर्व केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने भी मृतकों के बारे में आपत्तिजनक भाषा के इस्तेमाल को लेकर नीतीश की निंदा की है.
वहीं, बिहार के सीएम ने अधिकारियों को निर्देश दिया है कि त्रासदी के शिकार गरीब लोगों को शराब पीने के आरोप में गिरफ्तार न किया जाए. साथ ही मृतकों के परिवारों को 1-1 लाख रुपये का मुआवजा देने की भी घोषणा की है.
नीतीश ने लोगों से जहरीली शराब के प्रति सचेत रहने की अपील करते हुए कहा, ‘अगर कोई शराब पिएगा तो वह मर सकता है. उदाहरण हमारे सामने है.’ बिहार के सीएम ने इन आरोपों को खारिज कर दिया कि जहरीली शराबकांड शराबबंदी के नतीजा हैं. और कहा कि शराबबंदी से पहले भी लोग जहरीली शराब पीकर मर रहे थे.
विपक्ष में रहते हुए शराबबंदी को लेकर मुख्यमंत्री की आलोचना करते रहे बिहार के डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव ने नीतीश के रुख से सहमति जताई. उन्होंने शराबबंदी कानून पर अमल को लेकर आलोचना करने के लिए भाजपा पर निशाना भी साधा.
यादव ने कहा, ‘बिहार में सालों भाजपा सत्ता में भागीदार रही, इसके लिए उसने खुद क्या किया, यह भी बताए.’
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‘प्लास्टिस पाउच में उपलब्ध है’
5 अप्रैल 2016 को पेश बिहार मद्यनिषेध और उत्पाद शुल्क अधिनियम, 2016 को नीतीश कुमार के राज्य में चौथी बार मुख्यमंत्री चुने जाने के छह महीने के भीतर ही लागू कर दिया गया था, इसके साथ ही पूरे राज्य में शराबबंदी लागू हो गई थी.
हालांकि, प्रतिबंध का जमीनी स्तर पर बहुत कम असर दिखा. जैसा दिप्रिंट ने पूर्व में बताया था कि राज्य में जब्त शराब की बोतलों की संख्या किसी को भी चौंका देने वाली है—राज्य आबकारी विभाग के आंकड़ों से पता चलता है कि अकेले अगस्त में राज्य ने 3.7 लाख लीटर शराब जब्त की गई थी.
इसके अलावा, शराबबंदी नीति कई अन्य विवादों से भी घिरी रही है—उनमें प्रमुख यह है कि कानून ने राज्य की न्यायिक प्रक्रिया को बाधित कर दिया है.
सदर अस्पताल में एक बेड पर लेटे अखिलेश राम अपने फोन पर हिंदी फिल्म देख रहे हैं. शराब त्रासदी के एक और शिकार अखिलेश ने बताया कि उनके गांव मणि सिरसिया में शराब पाउच में आसानी से मिल जाती है.
एक पाउच की कीमत 50 रुपए होती है.
47 वर्षीय अखिलेश ने कहा, ‘गांव में शराब बेचने वाला शख्स भी शराब पीकर मर गया. उनके परिवार के भी तीन लोगों की मौत हो गई है.’
अखिलेश के परिजनों के मुताबिक, सिर्फ एक फोन कॉल पर शराब घर मंगाई जा सकती है और प्रशासन ने इस पर आंखें मूंद रखी हैं. उसके एक रिश्तेदार ने आरोप लगाया कि अवैध शराब की इस आपूर्ति में प्रशासन भी शामिल है.
इस बीच, मांझी की भाभी, 50 वर्षीय प्रभावती देवी हादसे से सदमे की स्थिति में हैं.
उन्होंने कहा, ‘मैंने अपने सामने तीन लाशें देखी हैं. वो नजारा याद करके मेरा दिल कांप जाता है.’
उनके बगल में ही बैठी रीना देवी, जिनका जिक्र ऊपर किया गया है, ने कहा कि वह अब किसी को वोट नहीं देंगी.
रीना देवी ने काफी गुस्से में कहा, ‘प्रतिबंध आखिर है कहां? क्या शराब वाकई बंद हो गई है? पुरुष अवैध ढंग से शराब खरीद लेते हैं और फिर उसे पीकर मर जाते हैं. बच्चे भूखे मर रहे हैं लेकिन पुरुषों के पास शराब पीने के पैसे हैं.’
(संपादनः हिना फ़ातिमा । अनुवादः रावी द्विवेदी)
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