नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को आदेश दिया कि ज्ञानवापी मस्जिद मामले की सुनवाई वाराणसी में जिला न्यायपालिका के सबसे सीनियर जज द्वारा ही की जानी चाहिए. अदालत ने यह फैसला सुनाते हुए कहा कि ‘हमारे लिए शांति और ‘समाज के दो समुदायों के बीच भाईचारा बनाए रखना सबसे ऊपर है.’
न्यायमूर्ति डी.वाई. चंद्रचूड़ ने सिविल जज, सीनियर डिवीजन, वाराणसी को आगे की सुनवाई के लिए मामले से जुड़ी फाइलों को वाराणसी के जिला जज की अदालत में स्थानांतरित करने का निर्देश दिया है. अदालत ने कहा कि ‘मामले में शामिल मुद्दों की जटिलता’ और ‘उनकी संवेदनशीलता’ को देखते हुए ‘उत्तर प्रदेश उच्च न्यायिक सेवा के सीनियर और अनुभवी न्यायिक अधिकारी’ द्वारा मुकदमे की सुनवाई की जरूरत है.
तीन सदस्यीय पीठ अंजुमन इंतेजामिया मस्जिद प्रबंधन कमेटी- ज्ञानवापी मस्जिद की कमेटी- द्वारा दायर एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी. यह याचिका इलाहाबाद उच्च न्यायालय के 21 अप्रैल 2022 के उस आदेश को चुनौती देते हुए दायर की गई थी, जिसने मस्जिद का सर्वे करने के लिए एडवोकेट कमिश्नर नियुक्त करने के वाराणसी के सिविल जज के अगस्त 2021 के फैसले को रद्द करने से इनकार कर दिया था.
सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि मुकदमे में सभी कानूनी और सहायक कार्यवाही जिला न्यायाधीश की अदालत को संबोधित की जाएगी. पीठ में जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस पी.एस. नरसिम्हा ने स्पष्ट किया कि उनका आदेश मामले की सुनवाई करते आ रहे सिविल जज पर सवाल नहीं उठा रहा है. हालांकि सुनवाई के दौरान पीठ ने टिप्पणी की कि वह ‘समाज में संतुलन बनाए रखने’ के लिए चिंतित है.
सिविल जज (सीनियर डिवीजन) रवि कुमार दिवाकर ने पांच महिलाओं द्वारा दायर एक मुकदमे पर आदेश जारी किया था. इन महिलाओं ने इस आधार पर मस्जिद के अंदर प्रार्थना करने के अधिकार का दावा किया है कि वहां देवी मां श्रृंगार गौरी और अन्य हिंदू देवताओं की मूर्तियां हैं.
उन्होंने 16 मई को मस्जिद के अंदर उस हिस्से को सील करने का भी निर्देश दिया, जहां एक शिवलिंग पाए जाने का दावा किया गया है. यह आदेश अधिवक्ता आयुक्त द्वारा अपनी रिपोर्ट अदालत में प्रस्तुत करने के बाद याचिकाकर्ताओं की एक याचिका पर आया है.
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‘मस्जिद की याचिका पर प्राथमिकता से निर्णय ले’
सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि जिला जज मस्जिद प्रबंधन समिति की ओर से दायर उस अर्जी पर प्राथमिकता के आधार पर फैसला करेंगे, जिसमें उन्होंने मुकदमे की सुनवाई पर सवाल उठाया है.
मस्जिद कमेटी का कहना है कि इस तरह की याचिका स्वीकार नहीं होनी चाहिए क्योंकि धर्म स्थल कानून 1991 के मुताबिक किसी धार्मिक स्थल का स्वरूप जैसा 15 अगस्त 1947 में था, वैसा ही रहेगा.
हालांकि, इस अर्जी पर फैसला लेने से पहले ट्रायल जज ने मस्जिद का सर्वे करने के लिए एक स्थानीय कमिश्नर को नियुक्त किया था.
शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जब तक जिला न्यायाधीश याचिका पर कोई फैसला नहीं करते हैं तब तक शिवलिंग की सुरक्षा का 17 मई का आदेश बरकरार रहेगा.
इस अंतरिम आदेश में अदालत ने कहा कि क्षेत्र की सुरक्षा के लिए किए गए उपाय मुसलमानों के नमाज अदा करने और अन्य धार्मिक अनुष्ठान करने के अधिकार में बाधा नहीं डालेंगे.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जिला जज द्वारा अपना फैसला सुनाए जाने तक 17 मई वाला अंतरिम आदेश आठ सप्ताह तक लागू रहेगा. इसका मुख्य उद्देश्य दोनों पक्षों को उच्च न्यायालयों में जिला न्यायाधीश के आदेश के खिलाफ अपील करने का समय देना है.
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‘संतुलन की भावना’
शुक्रवार की सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट को बताया गया कि भारी पुलिस बल की वजह से वजू खाना में जाना मुश्किल हो गया है. वजू खाना एक तालाब जैसी संरचना है जिसमें नमाज पढ़ने से पहले इस पानी के पास बैठकर सभी लोग मान्यता के मुताबिक अपने हाथ और पैर धोते हैं. इसके दोनों तरफ नल लगे होते हैं.
इसी वजू खाना में कथित तौर पर एक शिवलिंग मिला था.
अदालत ने तब जिला मजिस्ट्रेट को पक्षों के साथ बातचीत करने और वजू (पैर धोने) के लिए पर्याप्त व्यवस्था के लिए कहा.
न्यायाधीशों ने दोनों पक्षों से कहा कि उनका यह आदेश शांति बनाए रखने के लिए है.
‘हमें संतुलन बनाए रखने की जरूरत है. संतुलन और भाईचारे की भावना बनी रहनी चाहिए. हम एक संदेश देना चाहते हैं ताकि एकता का माहौल बना रहे.’ अदालत ने मुस्लिम पक्ष का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील को आश्वस्त करते हुए कहा कि शीर्ष अदालत ‘ट्रायल कोर्ट को आपे से बाहर जाने की अनुमति नहीं देगी.’
बेंच ने कहा, ‘यथास्थिति बनाए रखें और देखते हैं कि इसे कैसे सुलझाया जाता है. अंतरिम आदेश सही समाधान नहीं हैं और ये जटिल स्थितियां हैं’. पीठ ने कहा कि वह मस्जिद प्रबंधन की अपील को लंबित रखेगी और जुलाई के दूसरे सप्ताह में इस पर सुनवाई करेगी.
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‘आवश्यक प्रक्रियाओं का पालन करने में विफल’
अदालत ने कहा कि शीर्ष अदालत में मामला जाने से ये ‘दोनों पक्ष शांत रहेंगे और यह एक हीलिंग टच की तरह काम करेगा.’ उन्होंने आगे कहा, ‘हम देश में संतुलन की भावना को बनाए रखने के लिए एक संयुक्त मिशन पर हैं.’
यह टिप्पणी तब आई जब मस्जिद प्रबंधन समिति की ओर से पेश हुए वरिष्ठ वकील हुजेफा अहमदी ने ट्रायल कोर्ट पर ‘आवश्यक प्रक्रियाओं का पालन करने में विफल’ होने का आरोप लगाया और कहा कि अपने मुवक्किल की याचिका पर फैसला देने से पहले सर्वे का निर्देश दे दिया गया. उन्होंने कहा कि अपने आदेशों के जरिए कोर्ट मस्जिद की यथास्थिति को बदलने की कोशिश कर रहा है जो 500 से ज्यादा सालों से चली आ रही है और 1991 के अधिनियम के तहत संरक्षित है.
अहमदी ने तर्क दिया कि ट्रायल कोर्ट के सभी आदेश 1991 के कानून के साथ-साथ अयोध्या मामले में 2019 के फैसले के खिलाफ थे, जिसमें अधिनियम ने सभी धर्मों और धर्मनिरपेक्षता की समानता को बरकरार रखा, जो संविधान की मूल संरचना का हिस्सा हैं.
हिंदू पक्षों की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता सी.एस. वैद्यनाथन ने तकनीकी रूप से दलील दी कि प्रबंधन समिति द्वारा दायर अपील के कोई मायने नहीं है क्योंकि यह तीन निचली अदालत के आदेशों के खिलाफ थी जिनका अब तक पालन किया जा चुका है.
उन्होंने आगे तर्क दिया कि मुस्लिम पक्ष की याचिका संरचना के धार्मिक चरित्र को बदलने का प्रयास करती है, जिसे 1991 के कानून के तहत अनुमति नहीं दी जाती है, अदालत को पहले इस जगह के धार्मिक चरित्र का निर्धारण करना होगा. वैद्यनाथन ने आगे कहा कि यह पता लगाने के लिए कि जगह का धार्मिक चरित्र क्या था, अदालत को एडवोकेट कमिश्नर की रिपोर्ट पर विचार करना होगा.
वाराणसी में एक अदालत द्वारा नियुक्त एक पुनर्गठित आयोग ने ज्ञानवापी मस्जिद परिसर का अपना वीडियोग्राफिक सर्वे पूरा किया और 19 मई को अपनी रिपोर्ट पेश की. आयोग का पुनर्गठन तब किया गया था जब वाराणसी की अदालत ने सर्वे के पहले प्रभारी अधिवक्ता आयुक्त अजय कुमार मिश्रा को इस आरोप में हटा दिया था कि उन्होंने मीडिया में खबरें लीक की हैं. पुनर्गठित आयोग ने 14, 15 और 16 को अपना सर्वे किया था.
पीठ ने वैद्यनाथन की दलीलों पर कोई निर्देश जारी नहीं करने को प्राथमिकता दी और कहा कि यह जिला न्यायाधीश के विवेक पर छोड़ देना चाहिए कि वह कैसे इस मामले को आगे बढ़ाना चाहते हैं.
पीठ में सबसे मुखर रहने वाले जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा, ‘इसी वजह से हमें लगता है कि न्यायपालिका के क्षेत्र में 20 साल से ज्यादा का अनुभव वाले एक सीनियर द्वारा इस मामले की सुनवाई की जानी चाहिए. हम राज्य सहित सभी पक्षों, सभी हितों की रक्षा करने की व्यवस्था चाहते हैं, ताकि लॉ एंड ऑर्डर की समस्या पैदा न हो.’
उन्होंने कहा कि मामले की सुनवाई के लिए एक सीनियर न्यायाधीश को मामला ट्रांसफर करने का उसका आदेश किसी भी तरह से जूनियर जज को सवालों के घेरे में लाने का प्रयास नहीं है.
पीठ ने कहा, ‘यह मामला जटिल व संवेदनशील है, ऐसे में हमें लगता है कि इसकी सुनवाई एक सीनियर जज द्वारा की जानी चाहिए.’
हालांकि कोर्ट ने अहमदी की इस चिंता को स्वीकार किया कि कमिश्नर की रिपोर्ट के लीक होने से सांप्रदायिक असामंजस्य की स्थिति पैदा हो गई.
पीठ ने कहा, ‘आयोग की रिपोर्ट लीक नहीं होनी चाहिए थी और केवल न्यायाधीश के समक्ष इसे पेश किया जाना चाहिए. मीडिया में लीक बंद होनी चाहिए. रिपोर्ट कोर्ट में जमा करनी थी और कोर्ट को इसे खोलना चाहिए था.’
अहमदी ने शिकायत की कि ट्रायल जज के आदेश का इस्तेमाल न केवल ज्ञानवापी मस्जिद बल्कि देश भर की अन्य मस्जिदों के संबंध में भी किया जा रहा है.
उन्होंने अदालत से कहा, ‘यह शरारती तत्वों की हरकत है जो सांप्रदायिक सौहार्द बिगाड़ना चाहते हैं और यह 1991 के धार्मिक स्थल कानून के खिलाफ है.’
अहमदी ने तर्क दिया, ‘ट्रायल कोर्ट द्वारा पारित सभी आदेशों से समाज में गलत फायदा उठाया जा सकता है. इसे सिर्फ एक मामले के नजरिए से न देखें. इसका असर अन्य मस्जिदों पर भी पड़ेगा. इस नैरेटिव ने सांप्रदायिक सौहार्द बिगाड़ दिया है.’
हालांकि, न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने अहमदी को यह कहकर शांत करने की कोशिश की कि केवल किसी स्थान के धार्मिक चरित्र का पता लगाने से 1991 के कानून का उल्लंघन नहीं हो सकता है. इसके बाद न्यायाधीश ने यह स्पष्ट किया कि कैसे भारत में धार्मिक स्थलों की हाइब्रिड प्रकृति किसी से भी अंजान नहीं है.
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