नयी दिल्ली, 19 दिसंबर (भाषा) राज्यसभा सदस्य कपिल सिब्बल ने शुक्रवार को दावा किया कि संसद की प्रासंगिकता ‘‘धीरे-धीरे कम हो रही है’’ क्योंकि सत्ता में बैठे लोगों को इसकी ज्यादा परवाह नहीं है और वे सिर्फ उन मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करते हैं जो मौजूदा समय के लिए अप्रासंगिक हैं।
वरिष्ठ अधिवक्ता ने यह भी कहा कि यह प्रवृत्ति लोकतंत्र के लिए ‘‘बेहद खतरनाक’’ है क्योंकि संसद में वास्तविक मुद्दों पर चर्चा नहीं की जाती है।
निर्दलीय सांसद ने संवाददाताओं से कहा, ‘‘मुझे लगता है कि हमारी संसद की प्रासंगिकता धीरे-धीरे कम हो रही है। अब कम बैठकें होती हैं और लोग सोचते हैं कि वहां कुछ नहीं होता है। यह लोकतंत्र के लिए बेहद खतरनाक है, क्योंकि वास्तविक मुद्दों पर चर्चा नहीं की जाती है। इसके बजाय, ऐसे विषय उठाए जाते हैं जो आज के समय के लिए अप्रासंगिक हैं।’
उन्होंने इस बात का उल्लेख्र किया कि शीतकालीन सत्र एक से 19 दिसंबर तक आयोजित किया गया था, जिसके दौरान 15 बैठकें हुईं।
पूर्व केंद्रीय मंत्री ने कहा, ‘‘जब हम पहले संसद में थे, तो शीतकालीन सत्र 20 नवंबर को शुरू होता था। 2017 में 13 बैठकें हुईं, 2022 में 13 बैठकें हुईं, 2023 में 14 बैठकें हुईं। अगर यही जारी रहा तो जो चर्चा होनी चाहिए वह नहीं हो सकेगी। ऐसा लगता है कि सत्ता में बैठे लोगों को संसद की ज्यादा परवाह नहीं है।’’
सिब्बल ने कहा कि विपक्ष एक दिसंबर को मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) पर चर्चा चाहता है क्योंकि एसआईआर आज देश में सबसे बड़ा मुद्दा है, लेकिन सरकार ने शर्त रख दिया कि पहले वंदे मातरम् पर चर्चा होगी।
उन्होंने दावा कि संसद की प्रासंगिकता धीरे-धीरे कम हो रही है।
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