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Monday, 4 November, 2024
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कोरोना लॉकडाउन में राशन के संकट से जूझ रहा है पाकिस्तानी रिफ्यूजी परिवार, डेंगू-चिकनगुनिया का भी सता रहा है डर

राजधानी के ‘मजनू का टीला’ के पास झुग्गी बस्ती में 140 परिवार रहते हैं. इनमें से दो हिंदुस्तानी और बाक़ी के पाकिस्तान से आए रिफ्यूजियों का परिवार है. लॉकडाउन का दूसरा चरण समाप्त होने से पहले इनमें से ज़्यादातर के पास राशन ख़त्म हो रहा है.

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नई दिल्ली: कोरोना महामारी के बीच गरीबों की बड़ी समस्या है भूख. केंद्र सरकार भले ही गरीबों को पांच किलो चावल, गेहूं और एक किलो दाल देने की बात कह रही है लेकिन देश में हजारों लाखों की संख्या में ऐसे गरीब हैं जिनके पास राशन नहीं पहुंच रहा है क्योंकि उनके पास राशन कार्ड नहीं हैं.

हालांकि सरकार ने इस विपत्ती के दौर में बिना राशन कार्ड वालों को भी राशन देने की बात कही है लेकिन राजधानी दिल्ली के मजनू का टीला के पास पाकिस्तानी रिफ्यूजियों की एक बस्ती के लोग चौतरफा चिंता से गुजर रहे हैं. कोरोना महामारी संकट के बीच पाकिस्तानी रिफ्यूजी बस्ती के प्रधान सोना कहते हैं, ‘भूखा पेट तो समस्या है ही, उससे बड़ी समस्या बिजली का न होना और चारों तरफ गंदगी का पसरा होना है.’

उन्होंने कहा, ‘पानी तो आ जाता है. बिजली नहीं आती. केंद्र से लेकर दिल्ली सरकार तक से मिलने पर भी बिजली के मामले का कोई हल नहीं हुआ.’

हालांकि, सोना ये भी बता रहे हैं कि सरकार के लोग या फिर एनजीओ वाले राशन बांट गए हैं जो अब खत्म होने को है. वहीं दिप्रिंट की टीम जब वहां के लोगों का हाल-चाल ले रही थी तभी इनकी सुध लेने पहुंचे दिल्ली सरकार के दो अधिकारी भी पहुंते थे. दिप्रिंट टीम की उनसे मौक़े पर मुलाक़ात हुई.


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दोनों ही ने किसी सवाल जवाब देने से मना करते हुए कहा कि किसी को झुग्गी में जाने की इजाज़त नहीं है. इलाके के विधायक प्रह्लाद साहनी ने इसकी पुष्टी की कि उन्होंने यहां एक एसडीएम और एक अन्य अधिकारी को भेजा था.

साहनी ने दिप्रिंट से बातचीत में दावा किया कि उन्होंने इनके लिए पास के गुरुद्वारे में भोजन की व्यवस्था की है. लेकिन ये लोग वहां खाने नहीं जाना चाहते. इसी के लिए इन्हें एसडीएम ने भी मनाया लेकिन ये लोग नहीं माने. बिजली के मामले पर उन्होंने कहा, ‘ये लोग जहां रह रहे हैं वो जगह इन्हें अधिकृत रूप से नहीं दी गई. ऐसे में इन्हें बिजली देना काफ़ी मुश्किल है.’

सोना को भय है कि झुग्गी के लोगों पर कोरोना के साथ-साथ डेंगू और चिकनगुनिया जैसी बीमारियों का भी साया मंडरा रहा है. वो बताते हैं कि यहां मच्छरों का भारी प्रकोप है, यहां के लोगों को कोरोना से ख़तरा तो है ही, इस झुग्गी में रहने वाले बूढ़े बच्चों से लेकर गर्भवती महिलाओं तक पर अन्य बीमारियों की मार भी पड़ सकती है.

 

आपसी सहमति से झुग्गी के पाकिस्तानी रिफ्यूजियों ने सोना दास को अपना प्रधान चुना है. पाक के सिंध प्रांत से 2011 में सोना भारत आए थे और तब से यहीं रह रहे हैं. उनके जैसे काफ़ी सारे लोग 2011 से अब तक यहां आकर बसे हैं.

राजधानी के ‘मजनू का टीला’ के पास एक झुग्गी बस्ती है जिसमें 140 परिवार रहते हैं. इनमें से दो हिंदुस्तानी और बाक़ी के पाकिस्तान से आए रिफ्यूजियों का परिवार है. लॉकडाउन का दूसरा चरण समाप्त होने से पहले इनमें से ज़्यादातर के पास राशन ख़त्म हो रहा है.

एक रिपोर्ट के मुताबिक इस झुग्गी में पहले भी इसी दौरान लोग चिकनगुनिया के शिकार हो चुके हैं. यहां के निवासियों को इस बात का भी डर है कि अगर कोई बड़ी बीमारी फ़ैल जाती है या कोरोना किसी को हो जाता है तो भय से हॉस्पिटल वाले इनका इलाज नहीं करेंगे.

इस बस्ती में दो भारतीय परिवार हैं. 36 वर्षीय श्रीपाल मध्य प्रदेश के छत्तरपुर के रहने वाले हैं उनके साथ उनकी पत्नी अनिता और दो बेटे रहते है. श्रीपाल को लॉकडाउन के पहले चरण की शुरुआत में कोई राशन दे गया था. उन्हें नहीं पता ये सरकारी लोग थे या एनजीओ वाले.

उन्होंने कहा, ‘जो राशन मिला था वो ख़त्म होने को है. तीन मई तक तो ज़िंदा रह लेंगे लेकिन अगर लॉकडाउन बढ़ता है तो भूखे मर जाएंगे.’ उन्होंने कहा कि सरकार अनाज नहीं दे सकती तो गांव भेज दे. गांव जाने की मांग को मज़बूती देने के लिए वो सीएम शिवराज के बयान का हवाला देते हैं जिसमें उन्होंने कहा है कि राज्य को लोग अगर वापस आना चाहें तो वापस आ सकते हैं.

राहत की बात ये है कि 3 मई को लॉकडाउन के समाप्त होने या बढ़ने के सस्पेंस के बीच गृह मंत्रालय ने कुछ शर्तों के साथ प्रवासी मज़दूरों और छात्रों को उनके घर जाने की अनुमति दे दी है. ये फ़ैसला श्रीपाल समेत उत्तर प्रदेश और बिहार के कई लोगों के लिए बेहद राहत भरा है. क्योंकि दिल्ली में झुग्गी झोपड़ी वाले इलाकों में खाने से लेकर सफ़ाई तक बड़ी समस्या बन गई है. कोरोना संक्रमण भी बहुत तेजी से फैल रहा है.

इस झुग्गी में 140 परिवार की बस्ती में 12 सार्वजनिक शौचालय हैं और इनमें सफ़ाई की हालत ऐसी है जिसे देखकर हैज़ा हो जाए. इसी के बग़ल में श्रीपाल की झुग्गी है जिसमें उनका नन्हा बेटा अजय उनके साथ बैठा था. परिवार को दिल्ली पुलिस ने चार मास्क दिए थे लेकिन अब सिर्फ़ एक इस्तेमाल लायक़ बचा है.


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पापा ने जो मास्क पहना था वो अब अजय ने पहन लिया. दिल्ली के सरकारी स्कूल में पढ़ने वाले अजय से जब कोरोना वायरस के बारे में पूछा तो उसने कहा, ‘ये हमारे दिल में घुस जाता है. फिर उसको खा लेता है और मर जाता है.’ अजय के स्कूल में कंप्यूटर की पढ़ाई नहीं होती और इस झुग्गी के ज़्यादातर लोगों को कंप्यूटर या इंटरनेट चलाना नहीं आता.

ऐसे में दिल्ली सरकार ने बिना राशन कार्ड वालों को जो ऑनलाइन आवेदन करने पर राशन देने को कहा है उसका फ़ायदा वो मुट्ठी भर लोग उठा पा रहे हैं जो पढ़े-लिखे हैं और जिन्हें इंटरनेट चलाना आता है. ऐसे में मुश्किल से कोई ऐसा है जो इनकी सुध लेने वाला है.

डेंगू और चिकनगुनिया जैसी बीमारियों का उन्होंने कोई साफ़ जवाब नहीं दिया. देश और दुनिया की तमाम सरकारों की तरह इन्हें भी मुख्य तौर से कोरोना की ही चिंता सता रही है. इनकी ऐसी चिंता के बीच इस झुग्गी के रिफ्यूजियों के पास दो तीन दिन का राशन बचा है.

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