नई दिल्ली: ‘कृपया इसके पीछे कोई अन्य कारण न तलाशें, मैं बतौर वैज्ञानिक और एक प्रोफेशनल के रूप में निवेदन करता हूं. हमें अपने संस्थानों का सम्मान करना चाहिए, दुनिया की हम पर नजरें टिकी हैं…मैं हाथ जोड़कर विनती करता हूं कि ये विवाद यहीं पर खत्म करें. यह एक वैज्ञानिक निर्णय है, सुविधा के लिए लिया गया फैसला नहीं.’
नीति आयोग में सदस्य (स्वास्थ्य) डॉ. वी.के. पॉल ने पिछले हफ्ते भारत के फैसले का बचाव करते हुए यह भावुक दलील दी थी, जिसमें कोविड-19 वैक्सीन कोविशील्ड की दो खुराक के बीच के अंतर को छह-आठ सप्ताह के मुकाबले बढ़ाकर 12 से 16 सप्ताह कर दिया गया था. यह अपील उस दिन की गई जब ब्रिटेन ने भारत केंद्रित सार्स कोव-2 वैरिएंट को कारण बताते हुए वैक्सीन की खुराक में अंतर घटाने का फैसला किया था.
अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में बाल रोग प्रोफेसर और महामारी के मुकाबले के लिए मोदी सरकार की सहायता करने वाले कम से कम पांच टास्क फोर्स या अधिकार प्राप्त समूहों के सदस्य/अध्यक्ष/या सह-अध्यक्ष डॉ. पॉल पिछले कुछ हफ्तों से भारत की कोविड-19 स्थिति पर सप्ताह में तीन बार होने वाली ब्रीफिंग का चेहरा बने हुए हैं.
यद्यपि डॉ. पॉल महामारी की शुरुआत के समय से ब्रीफिंग में शामिल वक्ताओं में रहे हैं, लेकिन उनका प्रमुख वक्ता के रूप में उभरना एक हालिया घटनाक्रम है.
यह बदलाव ऐसे समय पर दिखा है जब केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव राजेश भूषण, जो पहले इन ब्रीफिंग की अगुवाई करते थे, खुद वायरस की चपेट में आ गए और दूसरी तरफ, देश में कोविड की स्थिति बद से बदतर होने के बीच सरकार से तमाम कड़े सवाल पूछे जाने लगे.
एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, ‘वह सबसे विश्वसनीय आवाजों में से एक हैं, उनके बताने की शैली इसकी प्रामाणिकता को दर्शाती है. वह आक्रामक नहीं है, लेकिन वह शांति और गरिमापूर्ण तरीके से अपनी बात को पुरजोर ढंग से रखते हैं. साथ ही वह हमेशा इस सरकार को सलाह देने वाले सबसे महत्वपूर्ण लोगों में से एक रहे हैं.’
बात चाहे ‘आशावादी’—डॉ. पॉल के अपने शब्दों में—अनुमान की हो कि वैक्सीन की कमी से जूझ रहे भारत में जुलाई और दिसंबर 2021 के बीच 216 करोड़ खुराक उपलब्ध होंगी या फिर इस दावे की कि दूसरी लहर के बारे में चेतावनी न केवल सरकारी मंच (कोविड-19 ब्रीफिंग) बल्कि खुद प्रधानमंत्री की तरफ से भी जारी की गई थी, या फिर दिल्ली सरकार और केंद्र के बीच राजधानी में टीकों की उपलब्धता को लेकर जारी राजनीतिक टकराव के बीच कई मौकों पर आलोचनाओं को विराम देने के लिए बेबाकी से जवाब देना, डॉ. पॉल भारत सरकार की मजबूत आवाज के तौर पर उभरे हैं.
संयुक्त सचिव लव अग्रवाल, जो महामारी के शुरुआती दिनों में कभी इन ब्रीफिंग में मोर्चा संभाला करते थे, अब अन्य सवालों का जवाब देते हैं जबकि पॉल विवादास्पद मसलों को संभालते हैं.
डॉ. पॉल सरकार में सबसे प्रमुख टेक्नोक्रेट हैं. वह कोविड-19 के लिए वैक्सीन एडमिनिस्ट्रेशन पर राष्ट्रीय विशेषज्ञ समूह के साथ-साथ वैक्सीन डेवलपमेंट पर टास्क फोर्स और आईसीएमआर की कोविड-19 टास्क फोर्स के भी सह-अध्यक्ष हैं. वह चिकित्सा बुनियादी ढांचे और कोविड प्रबंधन योजना पर अधिकार प्राप्त समूह के अध्यक्ष हैं और लॉजिस्टिक पर गृह सचिव अजय भल्ला की अध्यक्षता वाले एक अन्य अधिकार प्राप्त समूह के सदस्य भी हैं.
नेशनल इंस्टीट्यूशन फॉर ट्रांसफॉर्मिंग इंडिया, नीति आयोग के सदस्य के तौर पर वह स्वास्थ्य, पोषण और एचआरडी इकाई का नेतृत्व संभालते हैं, उन्होंने आयुष्मान भारत-पीएमजेएवाई, आयुष्मान भारत स्वास्थ्य एवं कल्याण केंद्र योजना और पोषण अभियान तैयार करने में भी अहम भूमिका निभाई है.
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भद्र और मृदुभाषी छवि ही है पहचान
देश के प्रमुख चिकित्सा संस्थान में सालों एक शिक्षक और डॉक्टर के तौर पर काम करते हुए उन्होंने खुद को लो-प्रोफाइल ही बनाए रखा और मृदुभाषी डॉ. पॉल सार्वजनिक स्वास्थ्य संचार में बहुत ज्यादा रुचि रखते हैं.
पूरी महामारी के दौरान ब्रीफिंग के बाद वह बेहद धैर्य के साथ इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के लिए सार्वजनिक अपील रिकॉर्ड करते हैं—पहले ये मास्क के बारे में होती थी और अब यह टीकाकरण और कोविड के मद्देनजर उपयुक्त व्यवहार अपनाने की जरूरत पर होती है.
वह 1985 से एम्स फैकल्टी का हिस्सा हैं और एक दशक से अधिक समय तक बाल रोग विभाग के प्रमुख रहे हैं. विज्ञान की जटिलताओं को आसान भाषा में सार्वजनिक स्वास्थ्य संचार से जोड़ने की उनकी क्षमता ने उनकी स्थिति को और मजबूत बना रखा है.
हालांकि, कुछ अवसरों पर उन पर इसके अतिसरलीकरण या गलत ढंग जानकारी देने के आरोप भी लगे हैं.
ऐसा ही एक मौका अप्रैल 2020 में आया था जब उन्होंने एक स्लाइड दिखाई, जिससे लगता था कि भारत में कोविड-19 केस की संख्या 16 मई तक गिरकर शून्य हो जाएगी. इस टिप्पणी के लिए उनकी काफी आलोचना हुई लेकिन डॉ. पॉल ने इस बयान के लिए माफी मांगी. यही बात शायद उन्हें अन्य आईएएस अधिकारियों और राजनेताओं से अलग एक अपवाद बनाती है. उन्होंने टिप्पणी के बाबत कहा कि उनका इरादा इस तरह का कोई भ्रम कायम करने का नहीं था.
एक बार एम्स निदेशक की दौड़ में रहे
यद्यपि डॉ. पॉल भारत में कोविड संबंधी वैज्ञानिक जानकारियां नीतियों और राजनीति जैसी आसान भाषा में देने वाले एक नए चेहरे के तौर पर उभरे हैं, उनके साथ सुर्खियों में रहने वाले दो अन्य टेक्नोक्रेट एम्स निदेशक डॉ. रणदीप गुलेरिया और आईसीएमआर महानिदेशक डॉ. बलराम भार्गव हैं.
तीनों मूल रूप से एम्स से जुड़े हैं और लेकिन इनके बीच समानता का एक अन्य दिलचस्प पहलू भी है. 2017 में जब यह पद खाली हुआ तो तीनों का नाम एम्स निदेशक पद के लिए शॉर्टलिस्ट हुआ था और एक समय तो डॉ. पॉल इस दौड़ में सबसे आगे माने जा रहे थे. हालांकि, आखिरी समय तक पर्दे के पीछे चली गतिविधियों के बाद अंतत: डॉ गुलेरिया ने यह पदभार संभाल लिया.
हालांकि, उसी वर्ष उत्तर प्रदेश चुनावों के तुरंत बाद डॉ. पॉल सदस्य (स्वास्थ्य) नीति आयोग बनाए गए, और कुछ ही समय बाद जब डॉ सौम्या स्वामीनाथन विश्व स्वास्थ्य संगठन में डिप्टी डीजी बनने जिनेवा चली गईं तो डॉ. भार्गव ने भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद की कमान संभाल ली.
अपने पूर्ववर्ती स्वरूप योजना आयोग में जहां ज्यादातर स्वास्थ्य विशेषज्ञों को सलाहकार का पद मिलता था, डॉ. पॉल अपने पूरे अधिकारों के साथ पहले पूर्ण सदस्य बने. उन्होंने 2018 से 2020 तक दो साल भारतीय चिकित्सा परिषद के सुपरसेशन में बोर्ड ऑफ गवर्नर्स के अध्यक्ष के रूप में भी कार्य किया.
नीति आयोग की वेबसाइट पर डॉ. पॉल की प्रोफाइल बताती है, ‘इस कार्यकाल के दौरान ग्रेजुएट और पोस्ट ग्रेजुएट मेडिकल सीटों में रिकॉर्ड इजाफा हुआ, और टेलीमेडिसिन गाइडलाइन, जिला निवास योजना और बड़ी संख्या में अन्य सुधारों की शुरुआत हुई.’
यूपीए के कार्यकाल के दौरान, डॉ पॉल 2011 में भारत के तत्कालीन योजना आयोग की तरफ से गठित उच्चस्तरीय विशेषज्ञ समूह (एचएलईजी) के सदस्य रहे जिसने भारत के सार्वभौमिक स्वास्थ्य सुविधा की तरफ बढ़ने की रूपरेखा तय करने की जिम्मेदारी निभाई.
डॉ. पॉल का करियर एकदम शानदार रहा है, निस्संदेह महामारी उनकी अब तक की सबसे बड़ी चुनौती रही है. और इसका असर भी साफ नजर आने लगा है. वर्ष के अंत तक 216 करोड़ टीके उपलब्ध होने के उनके वादे पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए एक सहयोगी ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, ‘डॉ. पॉल की मई मध्य में स्लाइड वाला सरप्राइज देना जारी है. मुझे पिछले साल मई की स्लाइड याद आ रही है जिसमें दिखाया गया था कि मामले एकदम खत्म होने के कगार पर होंगे.’
इस पर सवाल उठाने का कारण भी है. भारत सरकार ने पिछले महीने सुप्रीम कोर्ट को एक हलफनामे में बताया था कि जुलाई तक सरकार को कोविशील्ड, कोवैक्सीन और स्पूतनिक वी का उत्पादन एक साथ मिलाकर 12.2 करोड़ खुराक प्रति माह मिलने की उम्मीद है. अगर इस दर को सही माने तो अगले छह महीनों यानी दिसंबर तक 75 करोड़ से कम ही खुराक तैयार होने की संभावना है.
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