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Sunday, 22 December, 2024
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‘सिस्टम’ फेल होने पर अच्छे भारतीय आगे आते हैं, कोविड में कैसे ये IPS कर रहे हजारों लोगों की मदद

जब भी कोई आवश्यकता होती है तो लोग ट्वीट करते हैं या अपनी जरूरतों और अनुरोधों को सीधे आईपीएस अरुण बोथरा या इंडिया केयर्स के ट्विटर अकाउंट पर भेजते हैं.

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नई दिल्ली: आठ महीने की गर्भवती 29 वर्षीय प्रियंका इस महीने की शुरुआत में गंभीर कोविड संक्रमण से जूझ रही थी. मरीज का SPO2, 78 तक पहुंच गया था और ये नीचे गिर रहा था लेकिन परिवार को ऑक्सीजन सिलेंडर नहीं मिल रहा था. एक स्वैच्छिक नागरिक-संचालित संस्था इंडिया केयर्स ने हस्तक्षेप किया और केवल दो घंटे में 60 लीटर सिलेंडर की व्यवस्था हो गयी.

संगठन के साथ काम करने वाले कोलकाता के शशांक कंडोई कहते हैं, ‘दो लोगों की जान बचाने की संतुष्टि बहुत थी. ऐसी कई कहानियां हैं जो हमें कठिनाइयों का सामना करने के बावजूद कड़ी मेहनत करने में मदद करती है.’

पिछले एक महीने में इंडिया केयर्स ने ऐसे कई लोगों को दवाएं, ऑक्सीजन सिलेंडर, प्लाज्मा और अन्य आवश्यक आपूर्ति में मदद की है.

आईपीएस अधिकारी अरुण बोथरा ने पिछले साल लॉकडाउन के दौरान ट्विटर के माध्यम से जो पहल की, वह अब लगभग 4000 स्वयंसेवकों की एक मजबूत राष्ट्रव्यापी टीम में बदल चुकी है. दिप्रिंट से बात करते हुए बोथरा ने कहा कि पिछले साल लॉकडाउन के दौरान मांगें बहुत अलग थीं. हम राशन की आपूर्ति कर रहे थे, संकट में प्रवासी श्रमिकों की मदद कर रहे थे लेकिन इस बार यह ऑक्सीजन बेड, महत्वपूर्ण दवाओं और प्लाज्मा में बदल गयी हैं.

आईपीएस बोथरा ने गुरुवार को ट्वीट किया था कि अगर किसी को देश के किसी भी हिस्से से महत्वपूर्ण दवाएं लाने अथवा पहुंचाने की जरूरत है, तो वे उन्हें मुफ्त परिवहन के लिए ट्विटर पर संदेश भेज सकते हैं.

इंडिया केयर्स के लिए परिवहन अनुरोधों को देखने वाले शशांक कंडोई ने कहा कि उन्होंने पिछले महीने 19 अप्रैल से अब तक देश भर में 93 गंभीर रोगियों को आवश्यक दवाएं वितरित की हैं.

शशांक ने कहा, ‘कुछ मामले ऐसे भी थे जहां मरीज इतने गंभीर थे कि कुछ ही समय में दवा की व्यवस्था करने के बावजूद उन्हें बचाया नहीं जा सका. लेकिन कुछ अच्छे अनुभव भी हुए हैं.’


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पिछले साल शुरू हुई थी पहल

आईपीएस अधिकारी अरुण बोथरा ने कहा कि यह पूरी तरह से अनियोजित था. दिप्रिंट से उन्होंने कहा, ‘कुछ लोग पिछले साल ट्विटर पर मदद के लिए मेरे पास पहुंचे, जबकि कई लोगों ने भी मदद करने के लिए स्वेच्छा से पेशकश की. यह व्यवस्थित रूप से अपने आप विकसित हुआ और देश भर के विभिन्न व्यवसायों के कई लोग एक साथ आए.’

जब भी कोई आवश्यकता होती है तो लोग ट्वीट करते हैं या अपनी जरूरतों और अनुरोधों को सीधे आईपीएस अरुण बोथरा या इंडिया केयर्स के ट्विटर अकाउंट पर भेजते हैं. कोर ग्रुप, जिसमें अन्य अधिकारी भी शामिल हैं, प्रासंगिक स्रोतों और विभिन्न स्वयंसेवी टीमों तक इन अनुरोधों को पहुंचाते हैं.

मानस नायक, जो इस संस्था की मार्केटिंग में मदद कर रहे हैं, ने दिप्रिंट को बताया कि जिस दिन आईपीएस बोथरा ने ट्वीट किया कि वह मदद करना चाहते हैं, उन्हें 18,000 मैसेज मिले, इनमें से 12,000 उन लोगों से थे जो मदद करने को तैयार थे.

संगठन ने जब ट्विटर पर लोगों से प्लाज्मा डोनेशन को लेकर अपील की तो कुछ ही घंटों में 900 लोग आगे आए जो या तो प्लाज्मा या ब्लड डोनेट करने को तैयार थे.

हाल ही में इंडिया केयर्स द्वारा कोविड मरीजों को होम आइसोलेशन में जोड़ने के लिए एक हेल्थ हेल्पलाइन भी शुरू की गई थी. हल्के लक्षणों वाले मामलों में मदद करने के लिए देश भर के विभिन्न डॉक्टर फोन पर हर रोज एक घंटे के लिए मरीजों की शंकाओं का समाधान करने के लिए आगे आये.

नायक के मुताबिक प्लेटफॉर्म के जरिए पिछले साल से अब तक करीब 15,000 लोगों की मदद की जा चुकी है.


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कोई दान नहीं मांगा जाता

संगठन के ट्विटर बायो में कहा गया है कि वे किसी भी तरह का दान स्वीकार नहीं करते हैं. आईपीएस बोथरा ने दिप्रिंट को बताया कि यह पहल लोगों की सद्भावना और जरूरतमंद लोगों की मदद करने की उदारता भरे रवैये की वजह से चल रही है.

उन्होंने कहा, ‘हमारी कूरियर कंपनी ब्लू डार्ट के साथ साझेदारी है जो कोई पैसा नहीं लेती है. सेवकों के नेटवर्क के माध्यम से दवाओं को सड़क या हवाई मार्ग से ले जाया जाता है और एयरलाइन इसके लिए कोई पैसा नहीं लेती है.’

बोथरा ने कहा, ‘ओडिशा में एक और पहल शुरू की गई, जहां जरूरतमंद कोविड मरीजों को मुफ्त भोजन उपलब्ध कराया जा रहा है, जिसे एक गैर सरकारी संगठन प्रायोजित कर रहा है. इसलिए हमें वास्तव में पैसे की जरूरत नहीं है, जब लोग मदद के लिए खुद ही आगे आ रहे हैं.’

उन्होंने कहा कि सोशल मीडिया पर हमारी अच्छी पहुंच है, हम इसे बढ़ाते हैं और लोगों की मदद के लिए मौजूदा संसाधनों का उपयोग करते हैं.

आईपीएस बोथरा ने कहा कि युवाओं और बुजुर्गों सहित टीम लोगों की जरूरतों को पूरा करने के लिए चौबीसों घंटे काम करती है. उन्होंने कहा, ‘कुछ युवा स्वयंसेवक काम करते हैं और सुबह 3-4 बजे तक एसओएस कॉल में लगे रहते हैं. इनमें से कई नौकरी पेशा युवा हैं.’

शशांक कंडोई ने दिप्रिंट को बताया, ‘मैं अपनी नौकरी के साथ-साथ स्वयंसेवी कार्य का प्रबंधन कर रहा हूं. परिवार मेरे लिए चिंतित है क्योंकि मैं उन्हें कोई समय नहीं दे पा रहा हूं लेकिन अभी के लिए मुझे लगता है कि स्थिति बेहतर होने तक जितना हो सके मदद करना मेरी प्राथमिकता है.’

नायक ने हंसते हुए दिप्रिंट को बताया, ‘स्वयंसेवक इस पहल के नायक हैं. हमारे स्वयंसेवकों में से एक सविता ने अकेले दिल्ली और मुंबई में 1200 प्लाज्मा अनुरोधों का प्रबंधन किया. अब हम उन्हें प्लाज्मा ही बुलाने लगे हैं.’

टीम अब ग्रामीण क्षेत्रों से बढ़ती मांगों पर ध्यान केंद्रित कर रही है और उत्तर प्रदेश और बिहार के अंदरूनी इलाकों में कंसन्ट्रेटर और दवाएं भेज रही है.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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