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Wednesday, 8 May, 2024
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पुणे आश्रम की जमीन बेचने को लेकर ओशो के अनुयायियों और ट्रस्टीज के बीच खींचतान और बढ़ी

शिष्यों का आरोप है कि ओशो इंटरनेशनल फाउंडेशन प्रबंधन ‘मुनाफे’ के लिए पुणे स्थित आश्रम की दो एकड़ जमीन बेचने की कोशिश में जुटा है. मामला फिलहाल कोर्ट में है.

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मुंबई: ओशो के तमाम अनुयायी और ओशो इंटरनेशनल फाउंडेशन (ओआईएफ) के ट्रस्टी पुणे के कोरेगांव पार्क स्थित ओशो आश्रम के अंदर करीब दो एकड़ जमीन की प्रस्तावित बिक्री को लेकर आमने-सामने हैं.

ओशो, या रजनीश आंदोलन के शिष्यों का आरोप है कि प्रबंधन ‘मुनाफे’ के लिए जमीन बेचने की कोशिश कर रहा है. इस पर अपना विरोध दर्ज कराने के लिए मंगलवार को मुंबई के वर्ली इलाके स्थित चैरिटी कमिश्नर के कार्यालय के बाहर 300 से 500 के बीच संख्या में शिष्यों की भीड़ जमा हो गई.

ओशो के एक अनुयायी स्वामी गोपाल भारती ने कहा, ‘हम अपने आश्रम की भूमि की प्रस्तावित बिक्री को लेकर विरोध जताने के लिए यहां आए हैं, और चैरिटी कमिश्नर उस भूमि की फिर से बोली लगाने का आदेश दे रहे हैं. हम किसी भी कीमत पर जमीन नहीं बिकने देंगे.’

पुणे स्थित आश्रम यानी ओशो मेडिटेशन सेंटर पर आंशिक मालिकाना हक रखने वाले ओआईएफ ने 2020 में वित्तीय संकट का हवाला देकर इस भूखंड को बेचने का प्रस्ताव दिया था.

जो भूखंड बेचने की कोशिश की जा रही है, वो रजनीश आंदोलन के विवादास्पद संस्थापक ओशो की समाधि के पास आश्रम के बाशो क्षेत्र में है, और इसमें एक स्विमिंग पूल और एक टेनिस कोर्ट शामिल हैं.

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दिप्रिंट ने ईमेल के जरिये ओशो प्रबंधन से संपर्क साधा लेकिन यह रिपोर्ट प्रकाशित किए जाने के समय तक कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली. जवाब आने पर स्टोरी को अपडेट किया जाएगा.


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दो साल पहले शुरू हुई बिक्री की कोशिश

भूमि के लिए पहली बोली की प्रक्रिया एक पंजीकृत धर्मार्थ ट्रस्ट ओआईएफ ने 2020 में शुरू की थी. बोली के लिए तीन दावेदार सामने आए और यह बोली राजीव बजाज ने जीती जिन्होंने 107 करोड़ रुपये की पेशकश की थी. ओआईएफ ने 50 करोड़ की अग्रिम राशि लेकर भूखंड की बिक्री के लिए बजाज के साथ एक एमओयू पर हस्ताक्षर किए.

2021 के शुरू में जब ओशो के शिष्यों को इस सबके बारे में पता चला, तो उन्होंने भूखंड बिक्री का विरोध करना शुरू कर दिया. उनमें से कुछ ने बोली के खिलाफ दखल के लिए चैरिटी कमिश्नर के कार्यालय में आवेदन दिया.

2022 में उन्होंने ज्वाइंट चैरिटी कमिश्नर, मुंबई के खिलाफ बांबे हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया, जब दो भूखंडों की बिक्री के लिए नए सिरे से बोली लगाने की प्रक्रिया शुरू की गई.

शिष्यों का कहना है कि चैरिटी कमिश्नर ने ‘इस तथ्य पर विचार किए बिना कि वित्तीय नुकसान केवल एक बहाना (ओआईएफ की तरफ से) भर है और वित्तीय ऑडिट नहीं कराया गया है’ फिर से बोली की प्रक्रिया को मंजूरी दे दी थी.

एक शिष्य ने दिप्रिंट को बताया, ‘हमने वित्तीय ऑडिट के लिए हाई कोर्ट में एक और मामला दायर किया है, और इस पर अंतिम आदेश आना अभी बाकी है.’

उन्होंने आगे यह आरोप भी लगाया कि ‘यह पता लगाए बिना ही कि ट्रस्ट की तरफ से भूखंड के किसी भी हिस्से को बेचने की जरूरत है भी या नहीं, फिर से बोली लगाने का आदेश दे दिया गया’, और वह भी तब जबकि ‘पहली बोली प्रक्रिया पर सुनवाई अभी चल ही रही थी.’

ओशो के अनुयायी इस मामले को लेकर मुंबई, पुणे और दिल्ली में पांच बार विरोध-प्रदर्शन भी कर चुके हैं.

पिछले महीने दोबारा बोली लगाने का आदेश जारी करने वाले ज्वाइंट चैरिटी कमिश्नर ने फिलहाल यह प्रक्रिया 23 नवंबर तक टाल दी है, जबकि बिक्री पर रोक की अपील को लेकर बांबे हाई कोर्ट में विचाराधीन मामले में सुनवाई 17 नवंबर को होगी.


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‘ओशो मूवमेंट को खत्म करने की कोशिश’

ओशो 20वीं शताब्दी के एक विवादास्पद गुरु और ‘गॉडमैन’ थे जिन्होंने एक नए आध्यात्मिक आंदोलन की स्थापना की और अरबपतियों और मशहूर हस्तियों को अपना शिष्य बनाने में कामयाब रहे. 1990 में उनकी मृत्यु हो गई.

मुंबई से लगभग 120 किमी दूर स्थित ओशो आश्रम एक मेडिटेशन रिसॉर्ट है और इसकी वेबसाइट के अनुसार, यह दुनिया के ऐसे सबसे बड़े रिसॉर्ट में से एक है. इसके विभिन्न कार्यक्रमों में हिस्सा लेने के लिए दुनियाभर से ओशो के अनुयायी यहां आते हैं. आश्रम का दर्शन ओशो की इस धारणा पर केंद्रित है कि ध्यान को उत्सव के साथ जोड़ना चाहिए.

हालांकि, पिछले कई सालों से ओआईएफ पर धन की हेराफेरी करने और ओशो की वसीयत में फर्जीवाड़े के आरोप लगते रहे हैं.

शिष्य स्वामी गोपाल भारती ने कहा, ‘भूखंड बेचने का आधिकारिक कारण कोविड काल के दौरान करीब तीन करोड़ रुपये के वित्तीय नुकसान को बताया जा रहा है. लेकिन यह सच नहीं है. हम आर्थिक रूप से मजबूत हैं.’

भारती ने कहा, ‘ओशो की किताबें हमेशा टॉप 10 बेस्टसेलर रही हैं. पिछले 30 सालों में किताबों की बिक्री और ऑडियो-वीडियो डाउनलोड से मिलने वाली रॉयल्टी आश्चर्यजनक रही है. वो सारा पैसा कहां गया जो ओआईएफ को आश्रम का एक अभिन्न हिस्सा बेचने पर मजबूर होना पड़ रहा है, जिसमें ओशो की समाधि भी है?’

शिष्यों का कहना है कि यह सब, ‘पूरे ‘ओशो आंदोलन’ को धीरे-धीरे बंद करने की कोशिश का हिस्सा है’ और यह साबित करने के प्रयास किए जा रहे हैं कि आश्रम बस केवल एक रिसॉर्ट है, पूजनीय या पवित्र स्थल नहीं.

उन्होंने आरोप लगाया कि समाधि क्षेत्र सहित पूरे आश्रम से ओशो की तस्वीरें हटा दी गई हैं और पूरे परिसर में एक ही मूर्ति लगा दी गई है.

एक अन्य अनुयायी आरती राजदान ने कहा, ‘समाधि हमारे लिए केवल एक भूखंड नहीं है. यह एक साधना स्थल है. यह एक तीर्थस्थल की तरह है जहां हजारों भक्त खुद में बदलाव लाने के लिए आते हैं और अपने लिए मेडिटेशन स्पेस तैयार करते हैं. और ट्रस्टी इसे बेचना चाहते हैं!’

(अनुवाद: रावी द्विवेदी)

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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