scorecardresearch
Thursday, 26 December, 2024
होमदेशयेल यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने सूअरों के मरने के कुछ घंटे बाद फिर से धड़काया उनका दिल

येल यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने सूअरों के मरने के कुछ घंटे बाद फिर से धड़काया उनका दिल

इस अध्ययन के लेखक मौत को एक संकीर्ण रूप से परिभाषित समय सीमा के भीतर होने वाली तात्कालिक प्रक्रिया के बजाय एक कई चरणों में संपन्न होने वाली प्रक्रिया के रूप में निर्धारित करने में सक्षम रहे. इसके निष्कर्ष बुधवार को विज्ञान पत्रिका 'नेचर' में प्रकाशित किये गए.

Text Size:

बेंगलुरु: येल यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने एक कस्टम डिवाइस (विशेष रूप से बनाये गए उपकरण) का उपयोग करते हुए करीब एक घंटे तक मृत पड़े सूअरों की कुछ मृत कोशिकाओं और ऊतकों को पुनर्जीवित कर दिखाया. सूअरों को फिर से होश नहीं आया और उनकी मस्तिष्क की गतिविधि को हतोत्साहित करने के लिए इन्हें बेहोश (एनेस्थेटाइज) कर दिया गया था, लेकिन उनके दिल फिर धड़कने लगे और कई अंगों में कोशिकाएं फिर से काम करने लगीं.

मृत्यु के प्रारंभिक चरणों में अंग के फिर से काम करने का यह शोध प्रत्यारोपण के लिए मानव अंगों की कम आपूर्ति वाली समस्या को हल करने की दिशा में एक आशाजनक परिणाम है, क्योंकि अक्सर पंजीकृत अंगदानकर्ताओं के मामले में भी मृत्यु के बाद अंग बहुत जल्दी खराब हो जाते हैं.

इस प्रक्रिया को ऑर्गनएक्स नामक एक सोल्युशन (घोल) के साथ किया गया था जिसमें रक्त, कोशिका मृत्यु को रोकने वाली दवाएं, तंत्रिका अवरोधक (मस्तिष्क गतिविधि को रोकने के लिए), और पोषक तत्व शामिल थे, और इसे सूअरों के शरीर में डाला गया था.

इस सोल्युशन ने रिगर मोर्टिस – या ऑक्सीजन की कमी होने पर अंगों और कोशिकाओं का सख्त होना- की प्रकिया को रोका जो कि सभी मृत स्तनधारियों के शरीर में देखी जाती है. इस सोल्युशन को एक कस्टम डिवाइस के द्वारा सूअरों के शरीर में डाला गया था.

इसके विपरीत, परीक्षण में शामिल अन्यसूअरों, जिनका एक मानक एक्स्ट्राकोर्पोरियल मेम्ब्रेन ऑक्सीजनेशन या एकमो मशीन के साथ इलाज करते हुए उनके शरीर के माध्यम से रक्त पंप किया गया, के अंग कठोर हो गए और उनकी रक्त वाहिकाएं सिमट कर नष्ट हो गईं.

इस परीक्षण के निष्कर्ष बुधवार को विज्ञान पत्रिका ‘नेचर’ में में प्रकाशित किए गए थे.


यह भी पढ़ें: नस्लीय भेदभाव को अच्छे से समझते थे पैगम्बर मोहम्मद, इसलिए इसे खत्म करने की पूरी कोशिश की


मौत के मुंह से वापस लाना

जैविक रूप से मृत्यु तब होती है जब मानव (या स्तनधारी) में ऑक्सीजन कोशिकाओं तक नहीं पहुंच पाता है. हालांकि, इन मृत कोशिकाओं में ऑक्सीजन की आपूर्ति बहाल करने से भी कोशिकाओं और ऊतकों पर दबाव पड़ता हैं उन्हें नुकसान होता है. इसे रिऑक्सिजेनेशन इंजरी कहा जाता है, जिसके परिणामस्वरूप कोशिकाओं में रासायनिक असंतुलन होता है और सूजन आ जाती है.

लेकिन शोधकर्ताओं का कहना है अंगों की कुछ व्यवहार्य कोशिकाओं को मर चुकी कोशिकाओं से अलग कर बाहर निकला जा सकता है और फिर उन्हें प्रयोगशाला में कल्चर किया है. यह दर्शाता है कि कुछ कोशिकाएं और ऊतक इस्किमिक डैमेज (ऑक्सीजन की हानि से होने वाली क्षति) से बचे रहते हैं.

अब मृत सूअरों में कोशिकाओं और ऊतकों को पुनर्जीवित करने वाले वैज्ञानिकों में से ही कुछ तीन साल पहले यह बात प्रदर्शित करने में सक्षम रहे थे, जब उन्होंने ब्रेनएक्स नामक एक इन्फुसिन (सम्मिश्रण) विकसित किया था, जो कथित तौर पर मृत्यु के चार घंटे बाद मस्तिष्क की उत्तकीय गतिविधियों (सेलुलर फंक्शन्स) को सफलतापूर्वक बहाल कर सकता था.

ताजा अध्ययन में, शोधकर्ताओं ने पूरे सुअर के शरीर में प्रयोगात्मक रूप से रेस्टोरेटिव सोल्युशन का विस्तार करने का प्रयास किया जो शरीर के तापमान (वार्म इस्किमिया) पर संरक्षित था.

ऑक्सीजन से वंचित रक्त वाहिकाओं और ऊतकों में कृत्रिम या संक्रमित रक्त को प्रसारित करने की प्रक्रिया को रीपरफ्यूजन कहा जाता है. एक स्तनपायी प्राणी के दिल की धड़कन के रुकने के 20 मिनट के भीतर ही इस प्रोसीजर को करने प्रयास किया जा सकता है.

शोधकर्ताओं ने कहा कि इस प्रयोग में इस्तेमाल किए गए सूअरों में वार्म इस्केमिक रीपरफ्यूजन को मृत्यु के एक घंटे बाद शुरू करते हुए छह घंटे तक किया गया और इसके परिणामस्वरूप अभूतपूर्व सफलता मिली.

सूअरों के दिल धड़कने लगे और शरीर में परिसंचरण (सर्कुलेशन) फिर से बहाल हो गया. गुर्दे, यकृत और यहां तक कि मस्तिष्क जैसे अंगों में भी कई सेलुलर फंक्शन्स को फिर बहाल कर दिया गया था. सूअरों के दिलों की धड़कन रोककर मारे जाने से पहले उनको एनेस्थीसिया दिया गया था, और तंत्रिका अवरोधकों (नर्व ब्लॉकर्स) ने सूअरों के जागने, उनके होश में आने या दर्द महसूस करने से रोक दिया था. इसने उन्हें एक तरह से मानसिक रूप से मृत (ब्रेन डेड) रखा था और जब उनका शरीर सिर्फ आंशिक रूप से कार्य कर रहा था तो उन्हें कोई भी पीड़ा नहीं हुई थी.

ऑर्गनएक्स के पूरे शरीर में पहुंचाये जाने ने भी नियमित एकमो की तुलना में छोटी रक्त वाहिकाओं के माध्यम से एक बढ़ा हुआ रक्त प्रवाह उत्पन्न किया.

लेखकों ने अपने पेपर में एक विचित्र बात देखने की भी बात की है – जब फ्लोरोस्कोपिक इमेजिंग (शरीर के माध्यम से ट्रैकिंग) के लिए मृत सूअरों की धमनियों में एक विशिष्ट कंट्रास्ट (डाई) इंजेक्ट किया गया था, तो जानवरों ने अपने सिर, गर्दन और धड़ को हिलाया और उन्हें झटका दिया. एकमो द्वारा इलाज किये जा रहे जानवरों में ऐसा नहीं देखा गया था, और कई जोड़ों और मांसपेशियों में हुई इस अजीब प्रतिक्रिया के सही-सही कारण पता नहीं लगा जा सकें हैं.

शोधकर्ता यह समझने में सक्षम नहीं थे कि सूअर की मस्तिष्कमेरु प्रणाली (सेरेब्रस्पिनल सिस्टम) में इस तरह की गतिविधियों के लिए संकेत कहां से उत्पन्न हुआ, लेकिन इससे पता चला कि जानवर अभी भी मोटर फकंशन्स या चालान सम्बन्धी गतिविधि के लिए सक्षम थे.

इस प्रयोग के निहितार्थ

इस अध्ययन के लेखक मौत को एक संकीर्ण रूप से परिभाषित समय सीमा के भीतर होने वाली तात्कालिक प्रक्रिया के बजाय एक कई चरणों में संपन्न होने वाली प्रक्रिया के रूप में निर्धारित करने में सक्षम रहे. उन्होंने एक सुअर में कई अंगों का एक व्यापक एकल-कोशकीय जीनोमिक विश्लेषण (सिंगल-सेल जीनोमिक एनालिसिस) भी विकसित किया और यह जान पाए कि सेलुलर रिपेयर प्रोसेस (ऊतकों के मरम्मत की प्रक्रियाएं) कैसे होती हैं, और यह इससे मृत्यु और रीपरफ्यूजन से सम्बन्घित भविष्य के अध्ययन के लिए एक विशिष्ट संसाधन का निर्माण भी हुआ.

लेखकों ने अपने पेपर में लिखा है, ‘ऑर्गेनएक्स तकनीक का यह अनुप्रयोग दर्शाता है कि उत्तकीय मृत्यु को रोका जा सकता है, और लंबे समय तक वार्म इस्किमिया की स्थिति के बाद भी, उनकी अवस्था को आणविक और उत्तकीय स्तरों पर फिर से ठीक होने की ओर ले जाया जा सकता है.’

इस अध्ययन से असंबद्ध वैज्ञानिकों ने भी इस प्रयोग का चिकित्सा विज्ञान में एक क्रांतिकारी कदम के रूप में स्वागत किया है, और इसे ‘दिमाग हिला देने वाला’ कहा है. अन्य बातों के अलावा, यह प्रयोग चाहे आंशिक रूप से ही सही पर मृत्यु के पूर्ण और पूरी तरह से अपरिवर्तनीय होने की परिभाषा पर भी सवाल उठता है.

ऑर्गनएक्स के साथ किया गया यह प्रयोग, जिसे येल यूनिवर्सिटी पेटेंट कराने की कोशिश कर रही है, मनुष्यों पर लागू होने के लिए तैयार होने से अभी बहुत दूर है. ऐसी प्रक्रिया अभी भी अपने प्रारंभिक चरण में है, और पुनर्जीवित करने के प्रभाव और अवधि अभी तक अज्ञात हैं. यह भी अज्ञात है कि एक स्तनपायी के मस्तिष्क पर इसका क्या प्रभाव पड़ता है और पूरे शरीर के रीपरफ्यूजन के बाद मस्तिष्क की गतिविधियों को कितनी अच्छी तरह बहाल किया जा सकता है.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


यह भी पढ़ें: क्रेच सुविधा, सप्ताह में 40 घंटे काम- नर्सों के काम करने की स्थितियां कैसे सुधारना चाहती है मोदी सरकार


share & View comments