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Sunday, 24 November, 2024
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राजकोषीय घाटे को पाटने के लिए पीएसयू बेचना अल्पकालिक समाधान है : अभिजीत बनर्जी

दिप्रिंट के कार्यक्रम 'ऑफ द कफ़' में नोबेल विजेता अर्थशास्त्री अभिजीत बनर्जी ने भारतीय अर्थव्यवस्था, मोदी सरकार की कमियां और व्यक्तिगत राजनीति के बारे में बात की.

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नई दिल्ली: नोबेल पुरस्कार विजेता अभिजीत बनर्जी ने दिप्रिंट से बातचीत में कहा, ‘राजकोषीय घाटे को पाटने के लिए सरकारी क्षेत्र की सार्वजनिक कंपनियों की सरकारी हिस्सेदारी बेचना कम समय के लिए एक अच्छा विचार हो सकता है, लेकिन, यह दीर्घकालिक समाधान नहीं है.’

दिप्रिंट के एडिटर-इन-चीफ शेखर गुप्ता और बिज़नेस स्टैंडर्ड के चेयरमैन टीएन नायनन से बातचीत में अभिजीत बनर्जी ने कहा, ‘पीएसयू को बेचना वैसा नहीं है जैसे राजकोषीय घाटे की समस्या को हल किया जाता है.’

उन्होंने कहा, ‘पीएसयू को बेचना ऐसा है कि एक चीज़ को दूसरे के साथ बदल दिया गया हो. यह लंबे समय का हल नहीं है. आज हम इसे बेच सकते हैं लेकिन कल में यह हमारे पास नहीं होंगे.’

नोबेल पुरस्कार विजेता का यह बयान उस समय आया है जब नरेंद्र मोदी सरकार पीएसयू में अपने हिस्से को बेचने पर विचार कर रही है. सरकार राजकोषीय घाटे को पाटने के लिए ऐसे कदमों पर विचार कर रही है.

महंगाई और कर्ज़माफी

भारतीय अर्थव्यवस्था की दशा पर लंबी बातचीत में बनर्जी ने ग्रामीण संकट के लिए आक्रामक मुद्रास्फीति लक्ष्यीकरण को ज़िम्मेदार ठहराया.

उन्होंने कहा, ‘कम मुद्रास्फीति रखने की प्रतिबद्धता ने सरकार को समर्थन मूल्य पर ला दिया और इसके फलस्वरूप कृषि आय में कमी आई है. इस तरह की कठोर प्रतिबद्धता हमें नहीं करनी चाहिए क्योंकि यह हमारे डीएनए में नहीं है.’


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भारतीय रिज़र्व बैंक की मौद्रिक नीति समिति के लिए मुद्रास्फीति लक्ष्यीकरण कानून कहता है कि भारत की मुद्रास्फीति लगभग 4 प्रतिशत पर बनी रहे.

बनर्जी ने कर्ज़माफी की काफी आलोचना की. उन्होंने कहा, ‘जब आपके पास लोगों तक पैसे पहुंचाने की मशीनरी न हो तब ऐसे काम किए जाते हैं. इसकी वजह से काफी परेशानियां हो रही है.’

बनर्जी ने मोदी सरकार के आयुष्मान भारत योजना को एक बड़ी चुनौती बताया है. उन्होंने कहा, ‘आयुष्मान भारत का विचार मुझे पसंद आया. जब लोग स्वास्थ्य देखभाल के लिए बहुत अधिक भुगतान करते हैं, तो वे अपनी संपत्ति को बेचने के लिए मजबूर हो जाते हैं. हालांकि इसमें धोखाधड़ी (योजना में) की बहुत बड़ी संभावना है और इसे ठीक करने की ज़रूरत है.’

मोदी सरकार की चूक

कार्यक्रम में बनर्जी ने पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की तारीफ की और उन्हें शानदार अर्थशास्त्री बताया. बनर्जी मोदी सरकार के कोर्पोरेट टैक्स में कटौती करने के फैसले के आलोचक हैं.

ऐसा लगता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को कॉर्पोरेट क्षेत्र में मुझसे अधिक विश्वास है. मोदी सरकार द्वारा हाल ही में किए गए कर में कटौती का मतलब है कि मोदी प्रशासन में किसी का मानना ​​है कि आपको ग्रोथ हासिल करने के लिए कॉरपोरेट सेक्टर को बहुत पैसा देने की ज़रूरत है.

पिछले महीने मोदी सरकार ने कोर्पोरेट टैक्स को 34 प्रतिशत से घटाकर 25 प्रतिशत कर दिया था.

बनर्जी ने कहा कि देश में निवेश का ज्यादातर हिस्सा घरेलू मांग से प्रेरित है और भारत वियतनाम जैसे देशों के साथ ज्यादा प्रतिस्पर्धा नहीं कर पा रहा है.

उन्होंने कहा, ‘प्रत्यक्ष कर निश्चित रूप से अप्रत्यक्ष करों की तुलना में कल्याणकारी निधि देने का एक बेहतर तरीका है. आमतौर पर इसे सभी व्यक्तियों पर समान दरों पर लागू करने के लिए प्रतिगामी माना जाता है.’

विनिर्माण मंदी के बारे में बोलते हुए बनर्जी ने कहा कि भारत को चीनी परिधान उद्योग में बदलाव का फायदा उठाने में काफी देर हो गई है.


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बांग्लादेश और वियतनाम इस क्षेत्र में कदम रख रहे थे. हमारे पास आकार प्रतिबंध थे. यह एक महान विनिर्माण मेक या ब्रेक का अवसर था. हमने इसका फायदा नहीं उठाया.

ऐसे समय में जब अर्थव्यवस्था धीमी है बनर्जी ने अधिक खर्च करने की आवश्यकता पर प्रकाश डाला. बनर्जी ने कहा कि नोटबंदी के बाद केंद्रीय सतर्कता आयोग की आशंकाओं के बारे में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में निर्णय लेने की क्षमता जम गई है. उन्होंने कहा कि बैंकरों ने ‘सदाबहार ऋणों’ के आसान तरीके का विकल्प चुना है.

व्यक्तिगत राजनीति और मोदी के लिए व्यंजन बनाने पर

भारत में हुई शिक्षा पर बोलते हुए बनर्जी ने बताया कि कैसे जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में पढ़ते हुए वो असली भारत से रूबरू हुए.

कोलकाता के प्रेसीडेंसी कॉलेज में, कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं था जो उच्च जाति का बंगाली न हो. लेकिन जेएनयू में, मैंने असली भारत का सामना किया. इसने मुझे सिखाया कि भारत असल में क्या है.

अपनी राजनीति पर बनर्जी कहते हैं कि वो अपने को वेलफेयर लेफ्ट और उदारवादी मानते हैं.

अमेरिका और भारत में मतदान की अपनी प्राथमिकताओं के बारे में पूछे जाने पर बनर्जी ने कहा, मैं कहूंगा कि मैं वाम लोकतांत्रिक हूं. एलिज़ाबेथ वारेन अभी मेरी खास पसंद है.


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उन्होंने कहा, ‘भारतीय राजनीति में, मैं वामपंथी-केंद्र का हूं. उन्होंने अपने पसंदीदा राजनीतिक समूह का खुलासा नहीं किया.  इस साल के आम चुनावों में, बनर्जी ने प्रस्तावित न्याय कार्यक्रम को लेकर कांग्रेस को अपने घोषणापत्र पर सलाह दी थी.

यह पूछे जाने पर कि क्या वह पीएम मोदी के लिए खाना बनाएंगे, यदि वे बोस्टन में उनसे मिलने जाते हैं, तो बनर्जी, जो एमआईटी में प्रोफेसर हैं, ने कहा कि वह बंगाली व्यंजन बनाएंगे जिसे ‘विडोस व्यंजन’ कहा जाता है. यह  शाकाहारी व्यंजन होते हैं जिसमें प्याज और लहसुन का इस्तेमाल नहीं किया जाता है.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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