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Friday, 3 May, 2024
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बिहार लौट रहे प्रवासी मजदूरों को झेलना पड़ रहा है सामाजिक बहिष्कार- ‘कोई उनके पास नहीं जाना चाहता’

बिहार में कोविड-19 के मद्देनज़र न केवल बाहर के राज्यों से वापस लौट रहे मजदूर बल्कि मरीजों का इलाज कर रहे डॉक्टर भी सामाजिक बहिष्कार का सामना कर रहे हैं.

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पटना: बिहार अपने उस मोड़ पर है जहां दिल्ली समेत अन्य दूसरे शहरों से वापस अपने घर की तरफ लौटते दिहाड़ी मजदूरों और कामगरों को सामाजिक बहिष्कार का सामना करना पड़ रहा है.

यहां तक कोरोनावायरस संदिग्थ व्यक्ति के बारे में प्रशासन को बताने वालों को भी निशाना बनाया जा रहा है.

सोमवार को 25 वर्षीय बबलू कुमार को सीतामढ़ी में लिंच कर मार दिया गया. उनका दोष सिर्फ इतना था कि उन्होंने देश में कोरोनावायरस से सबसे ज्यादा प्रभावित प्रदेश महाराष्ट्र से गांव वापस आए लोगों के बारे में स्थानीय कोरोनावायरस मदद केंद्र को जानकारी दी थी.

प्रशासन से बबलू ने इन लोगों के बारे में जानकारी साझा की जो महाराष्ट्र से आए थे. जब 24 मार्च को इन लोगों की जांच की गई तो ये सभी संक्रमित नहीं पाए गए.

हालांकि इनके परिवार बबलू से काफी गुस्सा थे. सोमवार को जब बबलू अपने चाचा के घर जाने के रास्ते में था तब इन लोगों ने उसपर हमला कर दिया.

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रुन्नी सायदपुर पुलिस थाने के इंचार्ज देवेंद्र प्रसाद सिंह ने दिप्रिंट को बताया, ‘बबलू के परिवार वालों की तरफ से रपट लिखाई गई है और हम इसकी जांच कर रहे हैं. हमने इस मसले से संबंधित दो भाइयों को गिरफ्तार किया है.’

‘बाहर से आने वाले लोग एचआईवी जैसे कलंक का सामना कर रहे हैं’

बिहार सरकार ने उन लोगों के घरों की दीवारों पर पोस्टर चस्पा कर दिए हैं जिनके घर के सदस्य को क्वारेंटाइन किया गया है. इससे उनके भीतर लोगों के बीच कलंक लगने का डर पैदा हो गया है.

इंडियन डॉक्टर्स फॉर पीस एंड डेवलेपमेंट के सचिव और चिकित्सक डॉ शकील ने स्वास्थ्य विभाग के मुख्य सचिव और राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग को लिखी एक चिट्ठी में कहा कि राज्य सरकार को क्वारेंटाइन किए गए लोगों के घरों पर पोस्टर लगाकर कोविड-19 से संक्रमित मरीज़ों को कलंकित करना बंद करना चाहिए.


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उन्होंने कहा कि ये न केवल संवैधानिक तौर पर मिले निजता के अधिकार का उल्लंघन करता है बल्कि कलंकित भी करता है.

सोमवार को लिखे पत्र में उन्होंने कहा, ‘पड़ोसियों द्वारा की जा रही निगरानी और सामाजिक असतर्कता कोविड-19 से संक्रमित मरीजों तक पहुंचने में बाधा पहुंचाएगी. सावधानीपूर्वक तौर पर क्वारेंटाइन करना जरूरी है लेकिन अपमानित कर के नहीं.’

दिप्रिंट से बात करते हुए उन्होंने कहा, ‘बाहर के राज्यों से आ रहे लोग उसी तरह के सामाजिक कलंक का सामना कर रहे हैं जैसा कि एचआईवी के मरीज करते हैं.’

‘पिछले 24 घंटों में 50,000 मजदूर बिहार आए’

सामाजिक बहिष्कार के शिकार हो रहे प्रवासी मजदूरों के बीच हताशा और गुस्से का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि सोमवार को जहानाबाद जिले में एक सरकारी दल पर पथराव किया गया, क्योंकि वह दिल्ली से आए कुछ मजदूरों का कोविड-19 परीक्षण करने के लिए आये थे.

इन मज़दूरों का सामाजिक बहिष्कार केवल एक जिले तक ही सीमित नहीं है- यह पूरे राज्य भर में है.

अररिया जिले के भरगवा गांव के जिला परिषद सदस्य राकेश झा ने कहा, ‘यहां आने वाले प्रवासी मजदूरों को सामाजिक बहिष्कार का सामना करना पड़ रहा है. कोई भी उनके पास नहीं जाना चाहता है और यहां किसी भी परीक्षण की कोई गुंजाइश नहीं है. होली के दौरान दिल्ली से आने वाले एक ग्रामीण की खांसी और सर्दी से पीड़ित होने के बाद मृत्यु हो गई और उसे दफना दिया गया. इस बात ने गांव में खलबली मचा दी और मुझे ज़िला अधिकारियों को यह जांच करने के लिए सूचित करना पड़ा कि क्या उसकी मृत्यु कोरोनोवायरस से हुई.

अररिया जिला सीमांचल क्षेत्र में आता है, जिसमें प्रवासी मजदूरों की बड़ी आबादी है. देशव्यापी लॉकडाउन के बावजूद अपने मूल गांवों में लौटने वाले बिहारी प्रवासियों की संख्या बहुत बड़ी है. मंगलवार को जारी मुख्य सचिव दीपक कुमार के बयान के अनुसार, पिछले 24 घंटों में 50,000 प्रवासी मजदूरों ने बिहार में प्रवेश किया है.


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उन्होंने कहा कि सरकार की चुनौती केवल उन्हें राहत, भोजन और आश्रय प्रदान करना नहीं है. हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि लौटने वाले प्रवासी मजदूरों को कम से कम 14 दिनों के लिए अलग रखा जाए. उन्होंने यह भी बताया कि सीमावर्ती इलाकों से लौट रहे मजदूरों की जांच की जा रही है.

यहां तक कि डॉक्टरों को भी सामाजिक लांछन से नहीं बख्शा जा रहा

केवल प्रवासी मजदूर ही नहीं, यहां तक कि डॉक्टर भी कोविड-19 के रोगियों के इलाज के लिए सामाजिक लांछन की शिकायत कर रहे हैं.

एनएमसीएच में मरीजों का इलाज कर रहे एक डॉक्टर ने कहा, ‘कई डॉक्टरों को सामाजिक बहिष्कार का सामना करना पड़ रहा है. जिस दिन एनएमसीएच (नालंदा मेडिकल कॉलेज अस्पताल) को कोरोनोवायरस उपचार के लिए एक केंद्र के रूप में घोषित किया गया था, मुझे अपनी कार को उस अपार्टमेंट से बाहर रखने के लिए कहा गया जहां मैं रहता हूं. आमतौर पर मेरे पड़ोसी जो मेरे साथ बातचीत करते थे और मुझे डॉक्टर साहब कहकर संबोधित करते थे, अब जब मैं गुजरता हूं तो वे दरवाजा बंद कर देते हैं.’

‘मोदी, नीतीश कुमार के बयान इसके लिए जिम्मेदार’

सामाजिक लांछन के आरोपों पर प्रतिक्रिया देते हुए राजद के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष शिवानंद तिवारी ने कहा कि बिहारी प्रवासी मजदूरों के प्रति द्वेषभाव प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के बयानों के कारण है.

तिवारी ने कहा, ‘पीएम मोदी की 21 दिन की देशव्यापी लॉकडाउन घोषणा की भाषा लोगों के बीच डर पैदा करने के लिए जिम्मेदार है. यहां तक कि सीएम नीतीश कुमार ने उत्तर प्रदेश के सीएम आदित्यनाथ द्वारा बिहार की सीमा तक प्रवासी बिहारियों को ले जाने के आदेश का खुले तौर पर विरोध करके भय को और बढ़ा दिया और घोषणा की कि उनके आगमन से बिहार में कोरोनोवायरस के मामलों में वृद्धि हो सकती है.’

‘उन्होंने (नीतीश कुमार) बाद में यह कहकर यू-टर्न ले लिया कि प्रवासियों को उनके पैतृक गांवों में पहुंचाया जाएगा. लेकिन नुकसान हो चुका है और स्थानीय ग्रामीण अक्सर डर के कारण बाहर से आने वाले बिहारियों का बहिष्कार कर रहे हैं.’


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तिवारी के अनुसार, यह परेशानी पैदा कर रहा है क्योंकि यह मुद्दा जाति और यहां तक कि सांप्रदायिक संघर्ष का कारण बन सकता है. उन्होंने कहा कि केंद्र और राज्य दोनों ही स्थिति को अधिक संवेदनशील तरीके से संभाल सकते थे.

हालांकि, भाजपा ने कहा कि सरकार प्रवासी मजदूरों की देखभाल कर रही है.

पार्टी प्रवक्ता रजनी रंजन पटेल ने कहा, ‘सरकार ने 14 दिनों के लिए बाहर से आने वाले बिहारियों को क्वारेंटाइन करने के लिए सरकारी भवनों का उपयोग करने के लिए मुखिया (ग्राम प्रधानों) को कहा है. उनका ध्यान रखने के लिए ये कदम उठाए जा रहे हैं.’

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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