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Thursday, 25 April, 2024
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‘हिंसा को भड़काए’ बिना ‘बंद’ आतंकी गतिविधि नहीं, क्यों NIA कोर्ट ने गोगोई को UAPA से किया बरी

अखिल गोगोई के खिलाफ आरोप थे कि उन्होंने सीएए के पारित होने को बहाने के रूप में इस्तेमाल करते हुए कानून द्वारा स्थापित सरकार के प्रति घृणा और असंतोष भड़काने की साजिश रची थी.

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नई दिल्ली: गुवाहाटी में एनआईए की विशेष अदालत ने गुरुवार को रायजोर दल के प्रमुख अखिल गोगोई को बरी करते हुए कहा, ‘हिंसा के लिए उकसाए बिना अस्थायी नाकेबंदी करना या इसमें हिस्सा लेना आतंकवाद विरोधी कानून यूएपीए के तहत आतंकवादी कृत्य नहीं है.

शिवसागर से विधायक अखिल गोगोई, दिसंबर 2019 में राज्य में नागरिकता (संशोधन) अधिनियम के खिलाफ हिंसक आंदोलन में कथित भूमिका के लिए गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम के तहत आरोपों का सामना कर रहे थे.

विशेष न्यायाधीश प्रांजल दास ने यह भी कहा कि साधारण बंद, शटडाउन जैसे विरोध प्रदर्शनों के विरुद्ध अगर हिंसा भड़काने का सबूत नहीं तो इसे ‘भारत की आर्थिक सुरक्षा के लिए खतरा’, नहीं माना जाएगा, जिसे यूएपीए के तहत एक आतंकी अधिनियम के रूप में भी वर्गीकृत किया गया है.

न्यायाधीश ने कहा कि अभिव्यक्ति का बहुत गंभीर अर्थ है, लेकिन गोगोई के खिलाफ अभियोजन सामग्री उसके खिलाफ यह अपराध स्थापित नहीं करती है.

जज ने कहा कि पुलिस के इस आरोप का समर्थन करने के लिए कोई सबूत नहीं है कि विवादास्पद नागरिकता कानून का विरोध करने की आड़ में गोगोई ने कथित तौर पर कानून द्वारा स्थापित सरकार के प्रति घृणा और असंतोष भड़काने की साजिश रची थी और आपसी बैर को बढ़ावा दिया था.

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अदालत ने कहा कि विरोध प्रदर्शनों में गोगोई के इंटरसेप्ट किए गए वॉइस कॉल और भाषण से यह संकेत नहीं मिला कि ‘बंद’ के परिणामस्वरूप हुई कथित हिंसा में उनकी संलिप्तता है. अदालत ने कहा, ‘बल्कि इससे पता चला कि गोगोई ने प्रतिभागियों को शांतिपूर्वक विरोध करने का आह्वान किया.’

देशद्रोह की भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 124 पर केदार नाथ मामले में निर्धारित सिद्धांतों को लागू करते हुए न्यायाधीश ने इस दंड उपबंध के तहत गोगोई को बरी कर दिया. उन्होंने कहा कि सीएए के खिलाफ किए गए विरोध प्रदर्शनों के दौरान कथित बर्बरता और संपत्ति के नुकसान के लिए उन्हें व्यक्तिगत रूप से या अप्रत्यक्ष रूप से जोड़ने वाले सामग्री की कमी थी.

केस से संबंधित तीन लोगों को बरी करते हुए आदेश में कहा गया, ‘लोकतंत्र में विरोध प्रदर्शन के रूप में कई बार नाकेबंदी करते हुए भी देखा जाता है. इससे कई बार नागरिकों को असुविधा का भी सामना करना पड़ता है. लेकिन, यह संदेहास्पद है कि क्या अस्थायी अवधि के लिए बिना हिंसा को भड़काए इस तरह की नाकेबंदी, यूएपीए की धारा 15 के अन्तर्गत आंतकवादी गतिविधि में गिना जाएगा. मेरे विचार से कानून की ऐसी मंशा नहीं है.’

 

दूसरा मामला जिसमें न्यायाधीश ने गोगोई को बरी किया

सीएए से जुड़ा यह दूसरा मामला है, जिसमें एनआईए कोर्ट ने गोगोई के बरी किया है. 22 जून को न्यायाधीश ने प्रथम दृष्टया गोगोई के खिलाफ आरोप लगाने वाले चबुआ जिले में दर्ज मामले में ट्रायल को आगे बढ़ाने के लिए पर्याप्त सबूत नहीं पाए. दिसंबर 2019 में अपनी गिरफ्तारी के बाद से वे गुरुवार को बाहर आए.

आमतौर पर बरी तब किया जाता है जब न्यायाधीश को प्रथम दृष्टया यह पता चलता है कि पुलिस किसी आरोपी के खिलाफ उस पर लगाए गए आरोप को सिद्ध करने के लिए पर्याप्त सामग्री नहीं जुटा पाई है और आरोपों को साबित करने के लिए ट्रायल के लिए भेज दिया है.

अपने गुरुवार के आदेश में, न्यायाधीश ने बरी किए जाने के मामलों में उच्चतम न्यायालय द्वारा प्रतिपादित कानून का हवाला दिया और कहा कि आरोप के चरण में एक न्यायाधीश केवल सबूतों को जांचने के लिए है कि आगे बढ़ने के लिए पर्याप्त आधार है या नहीं.

उन्होंने कहा, ‘अगर दो विचार संभव हैं और उनमें से एक संदेह को बढ़ाता है तो ट्रायल जज के पास आरोपी को बरी करने का अधिकार होगा.’


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गोगोई के खिलाफ आरोप

अखिल गोगोई के खिलाफ आरोप थे कि उन्होंने सीएए के पारित होने को बहाने के रूप में इस्तेमाल करते हुए कानून द्वारा स्थापित सरकार के प्रति घृणा और असंतोष भड़काने की साजिश रची थी.

यह एफआईआर 13 दिसंबर 2019 को एक सब इंस्पेक्टर के आदेश पर दर्ज की गई थी. शिकायत के मुताबिक, पुलिस अधिकारी को इनपुट मिला था कि गोगोई ने चुपके से अपने संगठन कृषक मुक्ति संग्राम समिति (केएमएस) का क्रांतिकारी कम्युनिस्ट सेंटर में विलय कर दिया था और बाद में उसका विलय प्रतिबंधित सीपीआई (माओवादी) में विलय कर दिया गया. बाद में यह मामला एनआईए को ट्रांसफर कर दिया गया.

जांच के दौरान 76 लोगों को अभियोजन पक्ष के गवाहों के रूप में सूचीबद्ध किया गया है, जिनमें से दो संरक्षित गवाहों सहित 19 के बयान दर्ज किए गए.

गोगोई के वकीलों ने उनके भाषण की ओर अदालत का ध्यान आकृष्ट करते हुए कहा कि इससे केवल उनकी बेगुनाही झलकती है, क्योंकि उन्होंने लोगों से हिंसा का सहारा न लेने की अपील की थी.

यह तर्क दिया गया था कि यूएपीए के तहत अपराध का आरोप लगाने के लिए यह जरूरी है कि कानून में जिन इरादों के साथ कोई कृत्य किए जाने का जिक्र है उन्हें खुलकर किया गया हो.


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आतंक के आरोप को साबित करने के लिए ऐसे इरादे का होना जरूरी

अदालत ने कहा कि यूएपीए की धारा 15 के तहत किसी कृत्य को आतंकी करार दिए जाने के लिए अपेक्षित इरादे का होना जरूरी है. इसके लिए साबित करने की जरूरत है कि कोई कृत्य भारत की एकता, अखंडता, सुरक्षा या संप्रभुता को खतरा पैदा करने या आतंक पैदा करने अथवा भारत या किसी अन्य देश में लोगों या किसी भी वर्ग के लोगों में आतंक पैदा करने या आंतक पैदा करने की मंशा के इरादे से किया गया है.

गोगोई के भाषणों की सामग्री पुलिस के द्वारा पेश किए गए गवाहों के गैर प्रमाणित बयानों पर भारी पड़े जिसकी वजह से अदालत उन्हें क्लीन चिट दे दी.

अदालत ने कहा, ‘रिकॉर्ड में उपलब्ध उनके भाषणों से, श्री अखिल गोगोई (ए-1) के ऊपर किसी भी प्रकार से हिंसा भड़काने का आरोप नहीं लगाया जा सकता है. विभिन्न संगठनों के नेतृत्व में इस तरह के आंदोलनों के कारण उक्त सीएए विरोध के दौरान हुई बर्बरता और संपत्ति को नुकसान के साथ ए-1 को जोड़ने के लिए भी कोई सामग्री मौजूद नहीं है.’

एनआईए द्वारा बताए गए गोगोई के एक भाषण में उन्होंने असम से प्राकृतिक संसाधनों की ढुलाई रोकने की बात कही थी. इस पर अदालत ने कहा, ‘ऐसा कोई भी सामग्री मौजूद नहीं है जिससे यह पता चलता हो कि उनके भाषण की वजह से देश के इस हिस्से से बाकी हिस्से के लिए प्राकृतिक संसाधनों में कोई रुकावट आई.

अदालत ने यह भी कहा कि अकेले एक बयान का इस्तेमाल आतंकवाद का आरोप लगाने के लिए नहीं किया जा सकता.

अदालत ने कहा, ‘ए-1 के बारे में कुछ गवाहों द्वारा नाकेबंदी और ‘बंद’ के बारे में बताए जाने से यह नहीं कहा जा सकता कि प्रथम दृष्टया इससे संकेत मिलता है कि यह भारत की आर्थिक सुरक्षा को खतरा पैदा करने के इरादे से किया गया था, ताकि आतंकवादी कृत्य को अंजाम दिया जा सके. यह आरोप तय करने के उद्देश्य से प्रथम दृष्टया सही कसौटी नहीं होगी.

यहां तक कि यदि उनके विरुद्ध कुछ गवाहों के बयान सीधे-सीधे स्वीकार किए जाते हैं, तो भी हिंसा के लिए किसी भी प्रकार के उकसाने और उनके भाषण में शांति की अपील की को देखते हुए यह नहीं कहा जा सकता है कि प्रथम दृष्टया उनकी बात को स्वीकार करने का मामला है.

अदालत ने यह भी पाया कि गोगोई ने गवाहों के साथ टेलीफोन पर बातचीत में कभी भी आवश्यक आपूर्ति को रोकने, बाजार या राष्ट्रीय राजमार्ग को बंद करने की बात नहीं की.


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