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Thursday, 25 April, 2024
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CAA-विरोधी प्रदर्शनों में अखिल गोगोई का भाषण कोई UAPA अपराध नहीं बल्कि राजनीतिक बयान: NIA कोर्ट

NIA जज का कहना था, कि न तो संपत्ति नष्ट करने के लिए उकसाया गया, ना ही सरकारी अधिकारियों के काम में बाधा डाली गई, इसलिए गोगोई की गतिविधियों को, UAPA के तहत दंडनीय नहीं माना जा सकता.

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नई दिल्ली: 2019 में असम के चबुआ में एक नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए)-विरोधी रैली में, किसान नेता अखिल गोगोई का भाषण एक तीखा राजनीतिक बयान रहा होगा, लेकिन वो ग़ैर-कानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) के तहत आनेवाला अपराध नहीं था, ये कहते हुए एक स्पेशल राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) कोर्ट ने, शिवसागर विधायक को अपराधिक आरोपों से बरी कर दिया.

अपने आदेश में, एनआईए जज प्रांजल दास ने कहा, कि न तो संपत्ति नष्ट करने के लिए ‘उकसाया’ गया, ना ही सरकारी अधिकारियों के काम में बाधा डाली गई, इसलिए गोगोई की गतिविधियों को, UAPA के तहत दंडनीय नहीं माना जा सकता

जज ने कहा कि पृथम दृष्टया, इस बात के पर्याप्त सबूत नहीं थे, कि गोगोई पर दंडात्मक प्रावधानों के तहत मुक़दमा चलाया जाए.

मंगलवार को दिए अपने 58 पन्नों के आदेश में दास ने कहा, ‘मेरी सुचारित राय ये है कि ए-1(अभियुक्त गोगोई) के भूल-चूक के कामों को, जिनका सामग्री से पता चलता है, पृथम दृष्टया आतंकी गतिविधि नहीं माना जा सकता, जिसे भारत की एकता, अखंडता, संप्रभुता, और सुरक्षा को ख़तरा पहुंचाने के लिए अंजाम दिया गया. ना ही वो कोई आतंकी कार्य था, जो लोगों में दहशत फैलाने के इरादे से किया गया’.

कोर्ट ने पिछले हफ्ते के दिल्ली उच्च न्यायालय के, उस विवादास्पद फैसले का हवाला दिया, जिसमें दिल्ली दंगों के मामले में, तीन छात्र कार्यकर्त्ताओं को ज़मानत दे दी गई. हालांकि वो फैसला कोर्ट के लिए बाध्यकारी नहीं था, लेकिन एनआईए कोर्ट ने कहा, कि UAPA के तहत आतंकी गतिविधि के विश्लेषण और परिभाषा के लिए, उसने एचसी का सहारा लिया.

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कोर्ट ने ज़हूर वत्तल केस में, सुप्रीम कोर्ट के फैसले का भी उल्लेख किया , और कहा कि यूएपीए के अंतर्गत आरोप तय करने के लिए, पृथम दृष्टया साक्ष्यों की मौजूदगी की संतुष्टि, उससे अधिक होनी चाहिए, जो सामान्य क़ानून के तहत, ज़मानत पर फैसला करते समय होती है.

जज ने तीन और लोगों को भी बरी कर दिया, जो गोगोई जैसे ही आरोपों का सामना कर रहे थे, लेकिन कोर्ट ने उनमें से एक के खिलाफ, कथित रूप से दंगाई भीड़ का हिस्सा होने के कारण, आरोप तय कर दिए.

CAA-विरोधी प्रदर्शन से जुड़े पहले केस में राहत

CAA-विरोधी अलग अलग प्रदर्शनों में, गोगोई की तथाकथित हिस्सेदारी के लिए, उनके खिलाफ दायर किए गए 15 मामलों में, ये पहला केस है जिसमें उन्हें क्लीन चिट मिली है. जहां चबुआ समेत दो मामले, एनआईए को स्थानांतरित कर दिए गए, वहीं बाक़ी मामले स्थानीय पुलिस के पास हैं.

गोगोई के वकील शांतनु बोरठाकुर ने दिप्रिंट को बताया, कि असम पुलिस ने प्रदर्शनों के सिलसिले में, विधायक के खिलाफ 15 अपराधिक मामले दर्ज किए थे. इन 15 में से छह मामले यूएपीए की धाराओं के तहत थे, और दो केस एनआईए के हवाले कर दिए गए थे. अब गोगोई को दो एनआईए मामलों में से, एक में बरी किया गया है.

बोरठाकुर ने कहा, ‘जहां तक चबुआ केस का सवाल है, वो अब ख़त्म हो गया है. दूसरे एनएईए केस का ट्रायल अभी लंबित है, और हमें उम्मीद है कि वो भी जल्द ख़त्म हो जाएगा. अन्य मामलों में, जो स्थानीय पुलिस के पास लंबित हैं, लगता है अभी भी जांच चल रही है, चूंकि गोगोई को अभी तक इन मामलों में, कोर्ट में पेश होने के समन जारी नहीं हुए हैं’.

वकील ने आगे कहा कि गोगोई जेल में ही रहेंगे, चूंकि उन्हें लंबित एनआईए केस में ज़मानत नहीं मिली थी. उन्होंने कहा, ‘अन्यथा, बाक़ी 14 मामलों में वो ज़मानत पर हैं. इनमें चबुआ केस भी शामिल है, जिसमें गुवाहाटी उच्च न्यायालय ने पिछले साल कहा था, कि गोगोई के खिलाफ, आतंकी गतिविधि का कोई मामला नहीं बनता’.


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वाद और प्रतिवाद

गोगोई के खिलाफ मुक़दमा तब दर्ज हुआ, जब उन्हें 12 दिसंबर 2019 को दिब्रूगढ़ ज़िले के चबुआ में, एक सीएए-विरोधी प्रदर्शन में भाषण देने के लिए गिरफ्तार किया गया.

शुरू में एक सब-इंस्पेक्टर की ओर से, आईपीसी की धाराओं के तहत एफआईआर दर्ज की गई, जिसने आरोप लगाया कि गोगोई ने, भीड़ को हिंसा के लिए उकसाया, जिसके नतीजे में एक पुलिस अधिकारी घायल हुआ. बाद में, उसमें यूएपीए आरोप जोड़ दिए गए, और केंद्रीय गृह मंत्रालय के आदेश पर, 9 अप्रैल 2020 को एनआईए ने, इस केस की जांच अपने हाथ में ले ली.

एनआईए ने 26 जून 2020 को, गोगोई समेत चार अभियुक्तों के खिलाफ, आरोप पत्र दायर कर दिया.

गोगोई पर भीड़ को हिंसा के लिए उकसाने का आरोप लगाया गया, जिसके नतीजे में ‘एक पुलिस अधिकारी गंभीर रूप से घायल हुआ, और संपत्ति तथा वाहनों को क्षति पहुंची’. आरोप लगाया गया कि विरोध प्रदर्शन के बाद, इलाक़े में आर्थिक नाकेबंदी की गई थी.

गवाहों के बयानात, जिनमें कई पुलिसकर्मी थे, गोगोई के भाषण, और मोबाइल पर अन्य प्रतिभागियों के साथ हुई, उनकी बातचीत की प्रतिलिपियों को, सुबूतों के तौर पर पेश किया गया.

बचाव में, गोगोई के वकील ने दावा किया, कि प्रतिलिपियों में किसी साज़िश का पता नहीं चलता, गवाहों के बयान रिकॉर्ड किए सुबूतों से मेल नहीं खाते, और सुबूतों से किसी आतंकी अपराध का मामला नहीं बनता.


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कोर्ट ने कहा- कुछ गवाहों के अतिश्योक्तिपूर्ण बयान भाषण की सामग्री से मेल नहीं खाते

कुछ गवाहों के इस दावे के बाद, कि गोगोई ने भीड़ के सामने एक भड़काऊ भाषण दिया, जिसके बाद वो हिंसक हो गई, कोर्ट ने उनकी भाषण सामग्री का अध्ययन किया, ताकि उसे दो सुबूतों के साथ मिलाकर देखा जा सके.

कोर्ट का विचार था कि हो सकता है, कि सीएए के मुद्दे पर भाषण का लहजा और आशय आक्रामक रहा हो, लेकिन भाषण ने हिंसा को नहीं भड़काया, सार्वजनिक संपत्ति के नुक़सान के लिए नहीं उकसाया, या सरकारी अधिकारियों को बाधित नहीं किया. कोर्ट ने गोगोई के पथराव कर रही हिंसक भीड़ की अगुवाई, और उनके भाषण को लेकर, कुछ गवाहों के बयानात में विरोधाभास को भी नोट किया.

कोर्ट का मानना था कि अगर भाषण में, हिंसा को भड़काने वाली बात नहीं थी, तो फिर गोगोई पर अपराधी दायित्व थोपने के लिए, उनके भड़काऊ भाषण देने, और उसके नतीजे में हुई हिंसा को लेकर, सिर्फ कुछ गवाहों के बयानात पर, भरोसा नहीं किया जा सकता.

कोर्ट ने कहा, ‘बड़े जनसमूहों में, जहां विवादास्पद मुद्दों पर भाषण दिए जाते हैं, ऐसा संभव हो सकता है कि भीड़ उत्तेजित हो जाए, और उसमें से कुछ अनियंत्रित तत्व, स्थिति का अनुचित फायदा उठाकर, अस्वीकार्य व्यवहार कर सकते हैं’.

कोर्ट ने आगे कहा कि ज़्यादा से ज़्यादा, गोगोई की नैतिक ज़िम्मेदारी ये बनती थी, कि उन तत्वों को रोकें, जिन्होंने बंद के बाद तोड़-फोड़ शुरू कर दी थी.


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(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

 

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