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Friday, 10 May, 2024
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‘हौसला अभी टूटा नहीं’- ‘रेप’ मामले में लिंगायत स्वामी के खिलाफ खड़े NGO के लिए विवाद कोई नई बात नहीं

मैसूरु स्थित एनजीओ ओडानदी ने प्रभावशाली मुरुगा मठ प्रमुख के खिलाफ रेप की शिकायत दर्ज कराने में दो नाबालिगों की मदद की थी. इसके बाद से ही इसे लगातार ‘मौत की धमकियों’ का सामना करना पड़ रहा है. बहरहाल, यह संगठन पूरी मजबूती से शिकायतकर्ताओं के साथ खड़ा है.

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मैसूरु: मैसूरु स्थित एनजीओ ओडानदी सेवा संस्थान ने पिछले महीने जबसे दो किशोरियों की एक मठ के प्रमुख के खिलाफ रेप की शिकायत दर्ज कराने में मदद की है, उसे समर्थन के साथ-साथ जबरदस्त विरोध का सामना भी करना पड़ रहा है.

उक्त मामला किसी भी तरह से सामान्य नहीं है. मुख्य आरोपी आध्यात्मिक लिंगायत नेता शिवमूर्ति मुरुगा शरणारू चित्रदुर्ग स्थित एक संपन्न और राजनीतिक रूप से प्रभावशाली मुरुगा मठ के पुजारी हैं.

उनके कई अनुयायियों का दावा है कि दो लड़कियों की तरफ से उन पर लगाए गए बलात्कार के आरोपों के पीछे दरअसल उन्हें बदनाम करने की साजिश है. यौन हिंसा और मानव तस्करी पीड़ितों के मददगार एक गैर-सरकारी संगठन ओडानदी के पास जाने से पहले दोनों शिकायतकर्ता मठ की तरफ से संचालित एक अनाथालय में ही रहती थी.

इसके बाद से करीब तीन दशक पुराना यह एनजीओ विवादों के घेरे में है. कुछ मठ समर्थकों ने न केवल शिवमूर्ति के खिलाफ साजिश रचने का आरोप लगाया है, बल्कि यह भी कहा है कि इस सबके पीछे ‘हिंदू धर्म’ को कमजोर करने के लिए सक्रिय ‘धर्मांतरण रैकेट’ का हाथ है.

यह पहली बार नहीं है कि ओडानदी को अपने काम के लिए नाराजगी या आलोचनाओं का सामना करना पड़ रहा है, लेकिन इस बार ‘जान से मार देने की धमकियों’ के कारण इसके डायरेक्टर के.वी. स्टैनली और एम.एल. परशुराम को ‘सुरक्षा कारणों से गनमैन मुहैया कराने’ की मांग को लेकर मैसुरु के पुलिस कमिश्नर को एक पत्र लिखना पड़ा है.

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बहरहाल, ये कथित धमकियां ओडानदी और अन्य समान विचारधारा वाले संगठनों को बलात्कार की शिकायत करने वाली किशोरियों के साथ खड़े होने से नहीं रोक पाई हैं.

10 सितंबर को राज्य के विभिन्न संगठनों (ओडानदी सहित) से जुड़े कम से कम 4,000 लोग किशोरियों के साथ अपनी एकजुटता दर्शाने के लिए चित्रदुर्ग की सड़कों पर उतर आए थे.

10 सितंबर को चित्रदुर्ग में रेप शिकायतकर्ता के समर्थन में निकाली गई रैली | फोटो: विशेष प्रबंध

दिप्रिंट ने पिछले शुक्रवार को जब मैसूरु के बाहरी इलाके में स्थित ओडानदी के ऑफिस का दौरा किया तो डायरेक्टर स्टैनली और परशुराम (उर्फ परशु) ने माना कि वे इस समय काफी दबाव से गुजर रहे हैं. लेकिन साथ ही कहा कि वे इस सबसे झुकने वाले नहीं हैं.

स्टैनली ने कहा, ‘हम यह बात अच्छी तरह जानने-समझने के बाद ही इस क्षेत्र में आए हैं कि हमारे जीवन में क्या हो सकता है. बेशक, बहुत सी चीजों ने हमें चौंकाया है लेकिन हमारा हौसला नहीं तोड़ पाई हैं.’ परशु ने भी उनकी राय से पूरी तरह सहमति जताई.

आइए एक नजर डालें कि संगठन पिछले कुछ सालों में कानून प्रवर्तन एजेंसियों के साथ कैसे काम कर रहा है और शिवमूर्ति मुरुगा शरणारू मामले में इसकी क्या भूमिका है.


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ओडानदी आखिर करता क्या है?

मैसूरु में सामाजिक कार्यकर्ता जब ओडानदी (कन्नड़ में इसका मतलब साथी होता है) के बारे में बात करते हैं, तो वे आमतौर पर एक ही सांस में सह-संस्थापकों का उल्लेख करते हैं— स्टैनली-परशु. ऐसे में बहुत से लोग यह भी सोचते हैं कि शायद स्टैनली-परशु एक ही व्यक्ति का नाम है. इस गलतफहमी के लिए उन्हें माफ किया जा सकता है क्योंकि ये दोनों ही लोग पिछले 30 सालों से अधिक समय से एक साथ काम कर रहे हैं.

सैकड़ों फाइलों के ढेर के बीच सजे दफ्तर में चल रहा ओडानदी संगठन 1989 से लिंग आधारित हिंसा और मानव तस्करी की शिकार महिलाओं और बच्चों की सहायता और पुनर्वास के काम में सक्रिय है.

पेशे से पत्रकार, स्टैनली और परशुराम ने कहा कि वे व्यापक साक्षरता कार्यक्रम के लिए जिला समन्वयक के रूप में काम कर रहे थे, जब उन्होंने महसूस किया कि यौनकर्मियों को सरकार की कई सामाजिक पहल का लाभ नहीं मिल पाता है. उन्होंने कहा कि तभी उन्होंने अपनी नौकरी छोड़ दी और महिलाओं और लड़कियों के लिए बेहतर अवसर तलाशने के उद्देश्य के साथ ओडानदी की शुरुआत की.

ओडानदी के सह-संस्थापक और निदेशक केवी स्टैनली (दाएं) और एमएल परशुराम (बाएं) | फोटो: विशेष प्रबंध

आज, ओडानदी अनाथ लड़के-लड़कियों को रहने और पढ़ाई की सुविधा भी प्रदान करता है, जिसमें प्राथमिक स्कूल के छात्रों से लेकर स्नातकोत्तर कोर्स में नामांकन कराने वाले युवा वयस्क तक शामिल हैं. एनजीओ के दफ्तर आज नीदरलैंड, स्वीडन, यूके, कनाडा और अमेरिका में भी हैं.

कर्नाटक में ओडानदी पीड़ितों की सहायता और जमीनी स्तर पर काम करने के लिए जाना जाता है. स्टैनली के मुताबिक, अपने मजबूत नेटवर्क के माध्यम से एनजीओ ने ‘कम से कम 13,000 महिलाओं’ को मानव तस्करों के चंगुल से छुड़ाने में मदद की है.

इसने मैसूरु यूनिवर्सिटी से लेकर कर्नाटक में राज्य सरकार द्वारा संचालित तमाम शैक्षणिक संस्थानों में देवदासियों के बच्चों और यौन हिंसा के शिकार लोगों के लिए एक फीसदी सीटें आरक्षित कराने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी.


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पुलिस के काम में भी कर रहा मदद

ओडानदी ने अपनी तमाम क्षमताओं के साथ पुलिस के काम में मदद भी करता है, जिसमें गोपनीय सूचनाएं देने से लेकर पीड़ितों को मामले दर्ज करने में मदद करना तक शामिल है.

स्टैनली ने बताया कि पिछले साल ओडानदी की तरफ से मिली एक गुप्त सूचना के बाद ही पुलिस ने एक लॉज पर छापा मारा जो कि तुमकुर में सेक्स वर्क के लिए इस्तेमाल किया जा रहा था. वहां, उन्होंने एक गुप्त सुरंग का पता लगाया जिसे कथित तौर पर पुलिस छापे के दौरान ग्राहकों को छिपाने के लिए इस्तेमाल किया जाता था.

स्टैनली ने बताया, उसी साल ओडानदी ने मैसूरु पुलिस को मैसूरु के पास हुनसुर में मानव तस्करी नेटवर्क का पता लगाने में मदद की. दो लोगों को गिरफ्तार किया गया और दो महिलाओं को बचा लिया गया.

2010 से 2015 के बीच मैसूरु में अपनी सेवा देने वाले रिटायर्ड पुलिस उपायुक्त (डीसीपी) बसवराज मालागट्टी ने दिप्रिंट को बताया कि वह ‘पूरी सत्यनिष्ठा’ के साथ काम करने को लेकर ओडानदी से काफी प्रभावित थे.

उन्होंने बताया, ‘मैंने चार दशकों तक पुलिस विभाग में अपने करियर के दौरान 12 जिलों में काम किया है. मुझे अभी तक ओडानदी के खिलाफ एक भी शिकायत नहीं मिली है. उनका एक सराहनीय ट्रैक रिकॉर्ड है. मैसूरु में अपनी तैनाती के दौरान, मैंने उनके कार्यालय का दौरा किया और वहां केवल अच्छे काम ही होते देखे.’

यह पूछे जाने पर कि क्या ओडानदी संदिग्ध अपराधियों के खिलाफ सबूत इकट्ठा करके अपनी हद को पार नहीं कर रहा, उन्होंने कहा, ‘इस तरह का कोई विवरण सार्वजनिक किए जाने के स्थिति में ही उसे व्यक्तिगत अधिकारों का उल्लंघन कहा जा सकता है. अन्यथा, कोई भी नागरिक अवैध गतिविधियों या उत्पीड़न पर अपने दावों को प्रमाणित करने के लिए साक्ष्य जुटा सकता है. मीडिया भी इन्वेस्टिगेटिव रिपोर्ट करता है और इसे पूरी तरह सामान्य माना जाता है और यह उनके कामकाज की सीमा के दायरे में ही आता है.’

सालों से ओडानदी के कामकाज पर नजर रखने वाले बेंगलुरु के स्वतंत्र पत्रकार चूडी शिवराम ने ऐसा ही एक उदाहरण सामने रखा.

उन्होंने बताया, ‘मुझे एक विशेष हाई-प्रोफाइल मामला याद है जिसमें (एनजीओ) निदेशकों को (राजनेताओं के खिलाफ) सबूत जुटाने के कारण बुरी तरह परेशान किया गया था.’

शिवराम ने बताया, ‘इससे (स्टैनली और परशु) को बहुत परेशानी हुई. उनके परिवारों ने भी काफी कुछ झेला क्योंकि पुलिस देर रात उनके दरवाजे पर दस्तक देती थी. यह उनके लिए कभी आसान नहीं रहा. लेकिन वे मजबूती के साथ आगे बढ़ते रहे. वे जिस तरह का काम करते हैं वह दुर्लभ और जोखिम से भरा है लेकिन मैंने उन्हें कभी पीछे हटते नहीं देखा.’

लेकिन शायद सबसे हाई-प्रोफाइल मामला जिसमें संगठन अब तक शामिल रहा है, वह मुरुगा मठ में कथित यौन शोषण का ही है.

चित्रदुर्ग स्थित मुरुगा मठ | फोटो: विशेष प्रबंध

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मुरुगा मठ विवाद

26 अगस्त को मैसूरु पुलिस ने शिवमूर्ति मुरुगा शरणारू के खिलाफ जनवरी 2019 से जून 2022 के बीच मठ में दो लड़कियों के साथ कथित तौर पर बलात्कार करने का मामला दर्ज किया.

15 और 16 साल की उम्र के दोनों शिकायतकर्ता मठ छोड़कर मैसूरु पहुंच गई थी, जहां उन्होंने मदद के लिए ओडानदी से संपर्क किया.

उसके बाद, ओडानदी ने मामले के बारे में बाल कल्याण समिति (सीडब्ल्यूसी) को जानकारी दी और फिर पुलिस में शिकायत दर्ज कराई. इसके आधार पर, पुलिस ने शिवमूर्ति और उनके कथित साथियों के खिलाफ यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण (पोक्सो) अधिनियम की धाराओं के साथ-साथ भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 376 (बलात्कार) के तहत एफआईआर दर्ज की.

स्टैनली ने दिप्रिंट को बताया, ‘लड़कियों ने यहां आकर अपने उत्पीड़न की जानकारी दी थी. हम पोक्सो कानून के तहत उन्हें 24 घंटे के भीतर बाल कल्याण समिति के समक्ष पेश करने को बाध्य हैं. और हमने बस यही किया.’

मामला जल्दी ही कर्नाटक में एक बड़े विवाद में बदल गया, जहां बड़ी संख्या में अनुयायियों के कारण लिंगायत मठ काफी प्रभाव रखता है.

Chief pontiff of Murugha Math Shivamurthy Murugha Sharanarubeing | ANI file image
आध्यात्मिक लिंगायत नेता शिवमूर्ति मुरुगा शरणारू | फोटो: एएनआई

कुछ लोगों का मानना है कि यह मामला मठ में शिवमूर्ति के एक कथित प्रतिद्वंद्वी की तरफ से रचा गया था और एनजीओ किसी तरह इस ‘साजिश’ का हिस्सा बन गया. वहीं, कुछ मठ समर्थकों का आरोप है कि ओडानदी एक ‘हिंदू विरोधी’ संगठन है जो समुदाय को बांटना चाहता है.

स्टैनली और परशु के मुताबिक, उन्हें धमकी भरे और अपमानजनक फोन आए हैं और नतीजतन कुछ स्टाफ मेंबर ने नौकरी भी छोड़ दी है.

परशु ने कहा, ‘हमारे दो स्टाफ मेंबर दबाव के कारण इस्तीफा दे चुके हैं. हम समझते हैं कि वे किस दौर से गुजर रहे हैं. लेकिन कोई बात नहीं, हम इस मामले में पीड़ित बच्चियों के साथ खड़े रहेंगे. हमने पुलिस आयुक्त को (सुरक्षा के लिए) एक पत्र सौंपा है लेकिन अभी तक उस पर कुछ भी नहीं हुआ है.’

इस संबंध में टिप्पणी के लिए जब दिप्रिंट ने मैसूरु के पुलिस आयुक्त के आधिकारिक नंबर पर संपर्क करने की कोशिश की, तो कॉल पर कोई जवाब नहीं मिला. प्रतिक्रिया मिलने पर इस रिपोर्ट को अपडेट किया जाएगा.


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‘और भी पीड़ित हो सकते हैं’

ओडानदी के दोनों सह-संस्थापकों का स्पष्ट कहना है कि संगठन का एकमात्र उद्देश्य उन लोगों के कल्याण के लिए काम करना है जो मदद के लिए संपर्क करते हैं, चाहे विवाद किसी भी तरह का क्यों न हो.

परशु ने कहा, ‘यह मायने नहीं रखता कि वे हमारे पास कैसे आए या कहीं इसके पीछे कोई बड़ी साजिश तो नहीं है. हम केवल शोषित लड़कियों और महिलाओं के भविष्य की रक्षा पर फोकस कर रहे हैं. हम यह सुनिश्चित करने की कोशिश करते हैं कि जो भी व्यक्ति हमसे मदद मांगने या देखभाल की उम्मीद के साथ आता है, उसे जीवन में बेहतर मौका मिले.’

स्टैनली और परशु ने स्पष्ट किया कि वे मामले को और ज्यादा जोरशोर से उठाने का इरादा रखते हैं और उन्होंने राष्ट्रीय और राज्य की विभिन्न एजेंसियों को इसकी जांच के लिए लिखा है क्योंकि उन्हें संदेह है कि ‘अपराध की भयावहता’ अभी पूरी तरह से सामने नहीं आ पाई है.

स्टैनली ने कहा, ‘हालांकि, हमारे पास कुछ सबूत हैं लेकिन हमने इस मामले की व्यापक स्तर पर जांच के लिए राष्ट्रीय और राज्य की विभिन्न एजेंसियों को लिखा है क्योंकि जहां तक हमारी जानकारी में आया है, इस मामले में और भी पीड़ित हो सकती हैं.’

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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