scorecardresearch
Sunday, 19 May, 2024
होमदेश‘गांव गोद लेने वाले सांसद की सदस्यता खत्म होने के बाद’, कैसा है हाल? मायावती और माल पंचायत की कहानी

‘गांव गोद लेने वाले सांसद की सदस्यता खत्म होने के बाद’, कैसा है हाल? मायावती और माल पंचायत की कहानी

मायावती द्वारा गोद लिए गए यूपी के गांव का भाग्य ‘मूल’ सांसद के संसद छोड़ने के बाद आदर्श ग्राम योजना की स्थिरता पर सवाल उठाता है.

Text Size:

मलिहाबाद: आशुतोष चौरसिया को कुछ हफ्ते पहले यह जानकर हैरानी हुई कि बहुजन समाज पार्टी (बसपा) की प्रमुख मायावती ने एक दशक पहले लखनऊ की मलिहाबाद तहसील में माल ग्राम पंचायत को “गोद” लिया था. पांच गांवों को कवर करने वाली ग्राम पंचायत के प्रधान होने के नाते, उन्होंने फैक्ट-चैक मिशन पर जाने का बीड़ा उठाया.

उन्होंने दिप्रिंट को बताया, “मुझे यह पुष्टि करने के लिए कुछ कॉल करनी पड़ी कि क्या यह सच में वही ग्राम पंचायत है जिसे गोद लिया गया.”

मायावती के राज्यसभा से इस्तीफा देने के चार साल बाद 2021 में प्रधान चुने गए चौरसिया का दावा है कि केंद्र सरकार की सांसद आदर्श ग्राम विकास योजना (एसएजीवाई) के तहत अपनाए गए कदमों का बहुत कम असर हुआ. इससे न तो कोई खास सुधार हुआ और न ही कोई स्थायी बदलाव आया.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा 2014 में शुरू की गई SAGY के तहत, प्रत्येक सांसद से मार्च 2019 तक तीन ग्राम पंचायतों और 2024 तक अतिरिक्त पांच ग्राम पंचायतों का विकास करने की अपेक्षा की गई थी, जिसमें सांसद स्थानीय क्षेत्र विकास योजना (MPLADS) सहित विभिन्न केंद्रीय और राज्य कार्यक्रमों से एकत्रित संसाधनों का उपयोग किया गया था. इसका उद्देश्य प्रत्येक पंचायत को दूसरों के लिए एक मॉडल में तब्दील करना था, जिससे दीर्घकालिक विकास और सामाजिक परिवर्तन का एक अच्छा चक्र बन सके.

लेकिन माल ग्राम पंचायत में खराब स्वच्छता और बुनियादी ढांचे की कमी पुरानी समस्या बनी हुई है. गांव की कच्ची सड़कों पर कूड़े के ढेर लगे रहते हैं, जबकि खुली नालियां और जमा पानी मच्छरों के प्रकोप को साल भर स्वास्थ्य के लिए खतरा बना देते हैं.

अच्छी पत्रकारिता मायने रखती है, संकटकाल में तो और भी अधिक

दिप्रिंट आपके लिए ले कर आता है कहानियां जो आपको पढ़नी चाहिए, वो भी वहां से जहां वे हो रही हैं

हम इसे तभी जारी रख सकते हैं अगर आप हमारी रिपोर्टिंग, लेखन और तस्वीरों के लिए हमारा सहयोग करें.

अभी सब्सक्राइब करें

A garbage dump outside Madarsa Ghausia Nooriya in Mall Gram Panchayat Muslim Tola | Praveen Jain | ThePrint
माल ग्राम पंचायत मुस्लिम टोला में मदरसा गौसिया नूरिया के बाहर कूड़े का ढेर | फोटो: प्रवीण जैन/दिप्रिंट

इस ग्राम पंचायत की स्थिति एसएजीवाई की दीर्घकालिक स्थिरता पर भी सवाल उठाती है, खासकर उन गांवों के लिए जब उनके गोद लेने वाले सांसद इस्तीफा दे देते हैं या उनका कार्यकाल समाप्त हो जाता है.

लखनऊ में जिला ग्रामीण विकास प्राधिकरण के अधिकारियों ने पुष्टि की कि 2014 से 2017 के बीच, जब मायावती राज्यसभा सांसद थीं, उन्होंने अपने MPLADS फंड का कुछ हिस्सा माल ग्राम पंचायत को दिया.

चौरसिया ने कहा, “गोद लेने के तुरंत बाद, आंबेडकर टोला (जो मुख्य रूप से दलितों का इलाका है) में एक सड़क बनाई गई और इंटरलॉकिंग का काम भी किया गया.” उन्होंने जिला अधिकारियों के साथ मायावती द्वारा किए गए कई बदलावों की भी पुष्टि की. इसके अलावा, गांव की कुछ सड़कों को पक्का किया गया और कुछ बिजली की लाइनें और ट्रांसफार्मर लगाए गए.

चौरसिया ने दावा किया, “लेकिन तब से कोई काम नहीं हुआ.”

मायावती ने 2017 में राज्यसभा से इस्तीफा दे दिया था और फिलहाल वे सांसद नहीं हैं.

मूल SAGY दिशानिर्देश उन स्थितियों के लिए प्रावधान नहीं करते हैं जहां सांसद संसद का सदस्य नहीं रह जाता है. अगर योजना के तहत लक्ष्य हासिल नहीं किए जाते हैं तो यह कार्रवाई का कोई तरीका भी निर्दिष्ट नहीं करता है. हालांकि, पिछले साल ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा जारी एक गाइडलाइन उन मामलों के लिए कुछ स्पष्टीकरण प्रदान करती है, जहां सांसद किसी विशेष ग्राम पंचायत में काम जारी रखने में असमर्थ या अनिच्छुक हैं.

परामर्श में कहा गया है कि यदि ग्राम विकास योजना (वीडीपी) के तहत काम पहले ही शुरू हो चुका है, तो गांव एसएजीवाई के अंतर्गत रहेगा और राज्य सरकार इसे लागू करने के लिए बाध्य है. मंत्रालय के सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया कि यह सलाह तब भी लागू होती है जब कोई सांसद सेवानिवृत्त हो जाता है या सांसद नहीं रहता है.

इसका मतलब है कि माल ग्राम पंचायत अभी भी तकनीकी रूप से SAGY के तहत ‘गोद ली गई’ है, लेकिन ग्रामीणों के लिए इसका कोई खास मतलब नहीं है. उनका कहना है कि उन्हें पहले कभी गांव गोद लेने के कार्यक्रम से कोई बड़ा लाभ नहीं मिला.


यह भी पढ़ें: राहुल Vs स्मृति ईरानी: एक के ‘आदर्श ग्राम’ ने उनका पुतला फूंका, तो दूसरे को मिलीं CSR फंड से बनी सड़कें


‘काश बहनजी एक बार आ जातीं…’

मलिहाबाद में स्थित, जो अपने सुगंधित दशहरी आमों के लिए प्रसिद्ध है, माल ग्राम पंचायत के अंतर्गत पांच गांव आते हैं — भंवर, माल, नारू, विधिश्यामा और गगन बरौली. 2015 में SAGY के तहत किए गए बेसलाइन सर्वे के अनुसार, ग्राम पंचायत में 1,513 घर हैं, जिनमें से 41 प्रतिशत दलित समुदाय के हैं.

इस योजना के तहत, ग्राम पंचायतों को “समग्र विकास की ओर ले जाने वाली प्रक्रियाओं” के माध्यम से कई बदलावों से गुज़रना होता है. इसमें स्थानीय शासन निकायों की मदद से “पर्यावरण निर्माण और सामाजिक लामबंदी” के माध्यम से नियोजन चरण की “अगुआई” करने वाले सांसद शामिल हैं.

माल गांव के आंबेडकर टोला के निवासी 26-वर्षीय दिनेश कुमार ने याद करते हुए कहा, “मुझे बहुत गर्व था कि मेरा गांव पूरे भारत में एकमात्र ऐसा गांव था जिसे मायावती ने गोद लिया था.” जब बसपा नेता ने SAGY के तहत ग्राम पंचायत को चुना था, तब उनकी उम्र सिर्फ 15 साल थी.

26-वर्षीय दिनेश कुमार, माल ग्राम पंचायत के आंबेडकर टोले में डॉ. आंबेडकर की मूर्ति के सामने खड़े हुए | फोटो: प्रवीण जैन/दिप्रिंट

हालांकि, यह उत्साह जल्दी ही खत्म हो गया. ग्रामीणों का दावा है कि मायावती, जिन्हें प्यार से “बहनजी” कहा जाता है, कभी नहीं आईं.

आंबेडकर टोले में बीआर आंबेडकर की मूर्ति के सामने दोस्तों के साथ बैठे हुए 45-वर्षीय ओम प्रकाश ने कहा, “उन्होंने गांव की देखभाल की, लेकिन वे यहां नहीं आ सकीं. शुरुआत में काम पूरा हो गया था, लेकिन वे इसे देखने के लिए गांव नहीं आईं.”

ओम प्रकाश की आवाज़ में एक उदासी थी. उन्होंने कहा, “हम चाहते थे कि बहनजी एक बार आएं. जिस भी गांव में वे पहुंचती हैं, वहां ऐसा लगता है मानो सोना बरसने लगा है. लोग हर काम जल्दी से जल्दी निपटाने के लिए इधर-उधर भागते हैं. हमने सोचा था कि अगर बहनजी एक बार गांव में आ जाएं, तो गांव पूरी तरह से जगमगा उठेगा.”

लाइट और पक्की गलियों जैसे कुछ शुरुआती सुधारों के बावजूद, मौजूदा हकीकत SAGY द्वारा परिकल्पित “आदर्श” से बहुत दूर है. खुले नाले, ओवरफ्लो होते कूड़े के ढेर और सीमित आजीविका के अवसर सभी पांच गांवों को परेशान करते हैं.

Garbage dumped outside a school at Ambedkar Tola | Praveen Jain | ThePrint
आंबेडकर टोला में एक स्कूल के बाहर कूड़े का ढेर | फोटो: प्रवीण जैन/दिप्रिंट

क्षेत्र के ब्लॉक विकास कार्यालय के एक अधिकारी के अनुसार, केवल 50 प्रतिशत नालियों को ही ढका गया है, जिससे गांवों में मच्छरों का प्रकोप बना हुआ है.

41-वर्षीया गीता देवी, जो 22 साल से विधीश्याम गांव में रह रही हैं,ने कहा, “ये नाले बीमारियों को जन्म देते हैं. यहां सफाई नहीं होती और फिर, अगर हमारे बच्चे बीमार हो जाते हैं, तो हमें उन्हें लेकर अस्पतालों और दवाखानों के चक्कर लगाने पड़ते हैं.”

आंबेडकर टोला के एक अन्य निवासी चुन्नी लाल ने कहा कि पानी एक और समस्या है. उन्होंने दावा किया कि गांव में पानी की टंकी तो है, लेकिन सभी घरों में पानी की आपूर्ति नहीं हो पाती है, क्योंकि पाइपलाइनें या तो अधूरी हैं या कई जगहों पर उनकी मरम्मत किया जाना बाकी है.

ओम प्रकाश ने कहा, “उस समय जो भी काम हुआ था, वो भी खत्म हो रहा है. मरम्मत तो हुई है, लेकिन कोई नया काम नहीं हुआ है.”

Geeta Devi points out open sewers in Vidhishyama village | Praveen Jain | ThePrint
गीता देवी विधिश्यामा गांव में खुले सीवर की ओर इशारा करती हुईं | फोटो: प्रवीण जैन/दिप्रिंट

यह भी पढ़ें: सोलर लाइट, सड़कें, आंगनबाड़ी- HPCL से लेकर रिलायंस तक, मोदी के आदर्श गांवों को CSR के तहत मिला खूब पैसा


‘मूल’ सांसद को खोना

अगस्त 2017 में, राज्यसभा की सदस्यता समाप्त होने के नौ महीने पहले, मायावती ने यह दावा करते हुए सदन से इस्तीफा दे दिया कि उन्हें दलितों के खिलाफ अत्याचार पर बोलने से रोका जा रहा है. इस सियासी ड्रामे के बीच माल ग्राम पंचायत की स्थिति अधर में लटक गई.

तो, उस गोद लिए गए गांव का क्या होगा जो अपने ‘मूल’ सांसद को खो देता है?

इसका जवाब देने के लिए ग्रामीण विकास मंत्रालय के सूत्रों ने पिछले साल अगस्त में सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को जारी की गई एक सलाह का हवाला दिया. इसमें विस्तृत जानकारी दी गई थी कि सांसद SAGY के तहत चयनित ग्राम पंचायत में क्या बदलाव कर सकते हैं, जिसमें उसी संसदीय क्षेत्र या राज्य में किसी अन्य ग्राम पंचायत को बदलना भी शामिल है. मंत्रालय के सूत्रों के अनुसार, यही सलाह तब भी लागू होती है जब कोई सांसद पद छोड़ता है.

माल ग्राम पंचायत के आंबेडकर टोला के निवासी | फोटो: प्रवीण जैन/दिप्रिंट

गाइडलाइन में तीन परिदृश्य बताए गए हैं. पहला, अगर कोई ग्राम विकास योजना (वीडीपी) तैयार या स्वीकृत नहीं हुई है, तो सांसद राज्य सरकार के माध्यम से मंत्रालय से कारणों के साथ बदलाव के लिए कह सकता है.

दूसरा, अगर वीडीपी को मंजूरी मिल गई है, लेकिन कोई परियोजना शुरू नहीं हुई है, तो राज्य सरकार मंत्रालय को कार्रवाई की सिफारिश करती है.

तीसरा, अगर वीडीपी को मंजूरी मिल गई है और कुछ काम शुरू हो गया है या पूरा हो गया है, तो ग्राम पंचायत की स्थिति में कोई बदलाव नहीं किया जा सकता. फिर राज्य को लंबित परियोजनाओं को पूरा करने या व्यवहार्यता या वैध कठिनाइयों के आधार पर वीडीपी को समायोजित करने की सलाह दी जाती है.

माल ग्राम पंचायत तीसरी श्रेणी में आती है, क्योंकि एक बेसलाइन सर्वे किया गया था और एक वीडीपी तैयार की गई थी. दिप्रिंट द्वारा देखी गई एक अदिनांकित वीडीपी रिपोर्ट में स्वास्थ्य देखभाल, हैंडपंप नवीनीकरण, जल निकासी, सौर प्रकाश व्यवस्था और ग्रामीण विद्युतीकरण में सभी लंबित विकास परियोजनाओं को “पूर्ण” के रूप में सूचीबद्ध किया गया है.

माल ग्राम पंचायत के विधिश्यामा गांव में हैंडपंप से पानी पीते बच्चे | फोटो: प्रवीण जैन/दिप्रिंट

हालांकि, एसएजीवाई दिशा-निर्देश “परियोजना के बाद स्थिरता” के बारे में भी बात करते हैं — यह दर्शाता है कि एक गांव को “आदर्श” बनाना एक बार के उपायों की सीरीज़ के बारे में नहीं है.

इसके लिए दस्तावेज़ में पांच बिंदु सूचीबद्ध किए गए हैं.

सबसे पहले, इसमें कहा गया है कि “सांसद के निरंतर नेतृत्व और मार्गदर्शन” के माध्यम से स्थिरता हासिल की जाएगी. दूसरे, यह ग्राम पंचायत और समुदाय को “स्वामित्व और नेतृत्व” के लिए जिम्मेदार ठहराता है, जिसमें कार्यक्रम के तहत बनाई गई संपत्तियों को बनाए रखने के लिए स्पष्ट भूमिकाएं सौंपी गई हैं. तीसरे, सीवरेज और जलापूर्ति प्रणालियों जैसी बड़ी संपत्तियों के लिए निजी क्षेत्र की भागीदारी को प्रोत्साहित किया जाता है. चौथा, इसमें कहा गया है कि स्व-सहायता समूहों को वर्मीकम्पोस्ट सिस्टम, पोषण केंद्र और लाइब्रेरी जैसी छोटी संपत्तियों को बनाए रखने में मदद करनी चाहिए और, अंत में, दिशा-निर्देशों में वीडीपी के तहत परियोजनाओं को मंजूरी दिए जाने पर संचालन और रखरखाव के लिए स्पष्ट विभागीय जिम्मेदारियाँ निर्धारित करने की आवश्यकता होती है.

स्थिरता अध्याय के अंत में स्वामी विवेकानंद का एक उद्धरण है: “उठो, जागो और तब तक मत रुको जब तक लक्ष्य प्राप्त न हो जाए.” हालांकि, दिशा-निर्देश उन गांवों के लिए नहीं हैं जहां लक्ष्य प्राप्त नहीं होते हैं और सांसद इस्तीफा दे देते हैं या पद छोड़ देते हैं.


यह भी पढ़ें: ‘इज्जत घर’ से लेकर ATM तक—मोदी के गोद लिए गांवों में थोड़े उतार-चढ़ाव, लेकिन 21वीं सदी के भारत की झलक


‘तुरंत किए गए सुधारों पर ज़िंदा रहना’

सांसद आदर्श ग्राम विकास योजना अगर महत्वाकांक्षी नहीं है तो कुछ भी नहीं है, इसकी वेबसाइट पर कई ऊंचे लक्ष्य सूचीबद्ध हैं. इनमें बेहतर बुनियादी सुविधाओं, उच्च उत्पादकता और बेहतर आजीविका के माध्यम से आबादी के सभी वर्गों के लिए जीवन स्तर में सुधार करना शामिल है. इस योजना का उद्देश्य अधिक रोज़गार के अवसर पैदा करना और संकटपूर्ण प्रवासन को कम करना भी है.

हालांकि, माल ग्राम पंचायत के निवासी अक्सर अपनी ज़रूरतों को पूरा करने के लिए संघर्ष करते हैं. वो उत्तर प्रदेश के आम क्षेत्र के मध्य में हैं, लेकिन खेती की मौसमी प्रकृति उन्हें आय के वैकल्पिक स्रोतों की तलाश करने के लिए मजबूर करती है.

एक बीडीओ अधिकारी ने बताया कि माल ग्राम पंचायत में महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) के तहत 756 कार्डधारक हैं.

मलिहाबाद में मनरेगा ने आय का एक और प्रमुख स्रोत पेश किया. 2019 तक, छोटी नर्सरी चलाने वाले लोग कार्यक्रम के माध्यम से अपने पौधे बेच सकते थे. ओम प्रकाश के अनुसार, इस प्रावधान से विशेष रूप से वंचित समुदायों को लाभ हुआ.

Om Prakash asks for more employment opportunities in the Mall Gram Panchayat | Praveen Jain | ThePrint
निवासी ओम प्रकाश ने माल ग्राम पंचायत में रोजगार के अवसरों की कमी पर चर्चा की | फोटो: प्रवीण जैन/दिप्रिंट

उन्होंने बताया कि ऐसा इसलिए था क्योंकि “सुवर्ण समाज” (उच्च जाति) के पास बड़ी ज़मीन थी, अधिकांश ग्रामीणों के पास केवल छोटे भूखंड थे जिनमें वे अमरूद, आम और अन्य फल उगाते थे.

लेकिन यह व्यवस्था तब लड़खड़ा गई जब यह अनिवार्य किया गया कि मनरेगा के तहत सभी रोपण सामग्री सरकारी नर्सरी या सरकार द्वारा अनुमोदित निजी नर्सरी से खरीदी जाएगी. यह नियम 2019-20 के वार्षिक मनरेगा परिपत्र में स्थापित किया गया था और तब से वहीं है. 2018-19 तक, स्वयं सहायता समूह या व्यक्ति भी मनरेगा के तहत नर्सरी का काम कर सकते थे.

ओम प्रकाश ने कहा, “इससे कई ग्रामीण नर्सरियां बेकार हो गई हैं”.

रोजगार के अवसरों की कमी के कारण लोगों का गांव से पलायन हो गया है.

ओम प्रकाश ने कहा, “हम कारोबार और नौकरियां चाहते हैं. यहां के लोग जुगाड़ के सहारे जी रहे हैं. हमें (प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना के तहत) मुफ्त अनाज मत दीजिए. हम रोज़गार और बेहतर शिक्षा चाहते हैं.” उनके आसपास के ग्रामीणों ने सहमति में सिर हिलाया.

इसके बावजूद, माल में लोग ग्राम पंचायत में हुई कुछ प्रगति के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को श्रेय देते हैं. एक योजना जिसे वे महत्व देते हैं वो है जल जीवन मिशन, जिसका उद्देश्य घरेलू नल के माध्यम से पीने योग्य पानी उपलब्ध कराना है.

Mall gram panchayat pradhan Ashutosh Chaurasia at his saree shop in Mall village | Praveen Jain | ThePrint
माल ग्राम पंचायत प्रधान आशुतोष चौरसिया माल गांव में अपनी साड़ी की दुकान पर | फोटो: प्रवीण जैन/दिप्रिंट

चौरसिया ने कहा, “जल जीवन मिशन के तहत अब कई लोगों को पानी मिल रहा है. लोग अन्य (केंद्र और राज्य) योजनाओं से भी लाभान्वित हो रहे हैं.” चौरसिया की साड़ी की दुकान में प्रवेश करने वाले एक ग्राहक ने अच्छे उपाय के लिए कहा: “मोदी के शासन में हर कोई खुश है”.

हालांकि, आंबेडकर टोले में लोग अधिक निंदनीय दृष्टिकोण रखते हैं, जबकि देवेन कुमार स्वीकार करते हैं कि मायावती ने ग्राम पंचायत के लिए बहुत कम काम किया, वे विकास की कमी के लिए केंद्र और राज्य में ‘डबल इंजन’ भाजपा सरकारों को दोषी मानते हैं.

उन्होंने कहा, “(कुछ करने की) शक्ति सीएम योगी में है.”

लेकिन ओम प्रकाश अपनी उम्मीदें कम रखे हुए हैं. उनके लिए सरकारी योजनाएं केवल कागज़ों पर मौजूद हैं और चाहे सत्ता में कोई भी हो, राज्य के इस कोने में चीज़ें शायद ही कभी बदलती हैं.

उन्होंने कहा, “हमने कई सरकारों को आते और जाते देखा है. वे कुछ काम करते हैं, लेकिन हर किसी का अपना एजेंडा और अपनी धुरी होती है. गांव तो जस का तस है.”

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


यह भी पढ़ें: मगरमच्छों से भरी नदी, जंगल, नदारद फोन नेटवर्क, भारत-नेपाल सीमा पर यूपी के गांवों का कैसा है हाल


 

share & View comments