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Thursday, 9 May, 2024
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नेपाल पीएम ओली अपनी अलोकप्रियता से ‘ध्यान हटाने’ के लिए तनाव पैदा कर रहे हैं: भारत

पीएम ओली ने नेपाल में जिस तरह से कोरोना संकट को संभाला है, उसको लेकर उनकी कड़ी आलोचना हो रही है और उनके नेतृत्व को उनकी नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी के भीतर चुनौती दी गई है.

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नई दिल्ली: भारत का मानना ​​है कि नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने अपनी खुद की अलोकप्रियता और अपनी पार्टी के अंदर की मुसीबतों से ‘ध्यान हटाने’ के लिए भारत के साथ सीमा मुद्दों पर अनुचित तनाव बढ़ा रहे हैं.

एक अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, ‘पीएम ओली ने,खासकर महामारी के बीच, भारत जैसे पड़ोसी मित्र देश के खिलाफ ऐसा कड़ा रुख अख्तियार किया है, इस बात का संकेत है कि उनकी नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी देश में प्रतिद्वंद्वी गुटों और विपक्षी दलों के कड़े विरोध का सामना कर रही है.’

अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया, ‘उन्होंने (पीएम ओली) ने अचानक राष्ट्रवादी दिखने के लिए इसका इस्तेमाल किया है, जो अपनी अलोकप्रियता और पार्टी के अंदर की मुसीबतों से ध्यान हटाने के उनके उद्देश्य को पूरा कर रहा हैं.’

काठमांडू और भारत के बीच तनाव ने बुधवार को एक नाटकीय मोड़ ले लिया जब भारत ने कहा कि वह ‘क्षेत्रीय दावों के कृत्रिम विस्तार’ को स्वीकार नहीं करेगा, और नेपाली नेतृत्व से सीमा मुद्दों को हल करने के लिए राजनयिक बातचीत के लिए ‘सकारात्मक माहौल बनाने’ का आग्रह किया.

भारत मंगलवार को नेपाल द्वारा जारी एक नए राजनीतिक मानचित्र पर प्रतिक्रिया दे रहा था, जिसमें उसके क्षेत्र के भीतर लिम्पियाधुरा, लिपुलेख और कालापानी के विवादित क्षेत्रों को दिखाया गया था.

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अनुभवी राजनयिक और नेपाल में पूर्व भारतीय राजदूत, राकेश सूद ने दिप्रिंट को बताया कि भारत और नेपाल के बीच सीमा विवाद दो दशक से भी अधिक समय से है.

उन्होंने कहा, ‘प्रधानमंत्रियों के स्तर पर इस बात पर सहमति हुई कि मामले को सुलझाने के लिए एक राजनीतिक-स्तर के प्रस्ताव की आवश्यकता थी, जो नहीं हुआ.’

‘सड़क (कैलाश मानसरोवर के लिए नई सड़क) 10 से अधिक वर्षों से निर्माणाधीन थी और यह समझा जाता था कि भारत सड़क का उपयोग करेगा. भारत ने 1950 के दशक से लिपुलेख दर्रा के पास अपनी उपस्थिति बनाए रखा है। ‘हमारी सीमा एक खुली सीमा और लोगों का मूवमेंट फ्री है. इसलिए, इन मुद्दों हल का एक-दूसरे के हितों को ध्यान में रखते हुए संवेदनशीलता से किया जाता है, न कि बयानबाजी के द्वारा, जो समझौता और समझ की गुंजाइश ख़त्म कर देता है.

नेपाल में ओली की आलोचना

कोरोना संकट से निपटने के तरीके के लिए प्रधानमंत्री ओली को नेपाल में कड़ी आलोचना का सामना करना पड़ रहा है. कोरोनोवायरस संकट के लिए चीन से चिकित्सा उपकरणों और अन्य उपकरणों की खरीद को लेकर उनके कुछ मंत्रियों के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप लगे हैं.

सूत्र ने कहा, ओली पर अपनी पार्टी पर पकड़ खोने का भी आरोप लगाया गया है, जबकि पुष्प कमल दहल “प्रचंड” जैसे नेताओं ने अपना प्रभाव बढ़ाया है. सत्ता पक्ष अब वस्तुतः दो खेमों में बंट गया है.

ओली भी पिछले कुछ महीनों से नेतृत्व संकट का सामना कर रहे हैं. पिछले महीने और उसके बाद मई में काठमांडू में चीनी राजदूत होउ यान्की ने दहल के साथ-साथ पार्टी के एक अन्य वरिष्ठ नेता माधव नेपाल से मुलाकात की थी और दोनों पूर्व प्रधानमंत्री हैं.

इस बीच, नेपाल में विपक्षी दलों में से एक – राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी (आरपीपी) – नए विवादास्पद मानचित्र पर सत्ता पक्ष के  समर्थन में खुलकर सामने आई है.

आरपीपी के अध्यक्ष कमल थापा ने गुरुवार को ट्वीट्स की एक श्रृंखला में कहा, ‘हम इस मुद्दे को अचानक नहीं उठा रहे हैं या किसी के उकसाने से नहीं उठा रहे हैं. नेपाल 6 दशकों से सभी स्तरों पर अतिक्रमण के इस मुद्दे को उठा रहा है. हम इस मुद्दे को द्विपक्षीय वार्ता से हल करने के लिए सहमत हैं.’

‘लेकिन, द्विपक्षीय समझ के बावजूद भारत ने हाल ही में नेपाल के क्षेत्र को कवर करने वाला एक नया नक्शा जारी किया और चीन को जोड़ने वाले इस क्षेत्र में निर्मित सड़क का उद्घाटन किया. इसलिए हम अपनी राष्ट्रीय अखंडता की रक्षा के लिए पहल करने के लिए मजबूर हैं. कृपया नेपाल को दोषी ठहराना बंद करें.

 

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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