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Sunday, 22 December, 2024
होमदेशज़रूरत या परेशानी? म्यांमार बॉर्डर पर बाड़बंदी करने के भारत के लिए क्या मायने हैं

ज़रूरत या परेशानी? म्यांमार बॉर्डर पर बाड़बंदी करने के भारत के लिए क्या मायने हैं

मोदी सरकार ने घोषणा की है कि वह म्यांमार के साथ भारत की सीमा पर बाड़ लगाएगी. विशेषज्ञ इस कदम पर बंटे हुए नज़र आते हैं. कुछ का कहना है कि यह 'एक्ट ईस्ट पॉलिसी' में सेंध लगा सकता है.

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नई दिल्ली: केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने मंगलवार को घोषणा की कि केंद्र पूरी 1643 किलोमीटर लंबी भारत-म्यांमार सीमा पर बाड़ लगाएगा, जिससे पूर्व में स्थित पड़ोसी देशों से मुक्त आवाजाही की व्यवस्था (एफएमआर) को समाप्त करने के लिए पिछले महीने की शुरुआत में घोषित उपायों को लागू करने की नई दिल्ली की मंशा की पुष्टि होती है.

हालांकि, कई आंतरिक सुरक्षा विश्लेषकों ने इस कदम का समर्थन किया है, लेकिन रणनीतिक और क्षेत्रीय दृष्टिकोण वाले अन्य लोग इस कदम पर सवाल उठाते हुए कहते हैं कि यह भारत की ‘एक्ट ईस्ट पॉलिसी’ के विपरीत है.

2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा घोषित, ‘एक्ट ईस्ट पॉलिसी’, 1991 में शुरु की गई आर्थिक पहल ‘लुक ईस्ट पॉलिसी’ का ही अगला रूप है. यह एशिया-प्रशांत में भारत के विस्तृत पड़ोस पर फोकस करता है और क्षेत्र में अपने सहयोगियों के साथ राजनीतिक, रणनीतिक और सांस्कृतिक जुड़ाव को शामिल करने के लिए नई दिल्ली के पिछले दृष्टिकोण का विस्तार किया है.

नीति का एक हिस्सा फ्री मूवमेंट रिजीम या एफएमआर है. 2018 में भारत और म्यांमार के बीच एक आपसी समझौते द्वारा स्थापित, यह व्यवस्था सीमा के दोनों ओर रहने वाली जनजातियों को बिना वीज़ा के दूसरे देश के अंदर 16 किमी तक यात्रा करने की अनुमति देती है.

म्यांमार में उथल-पुथल को कुछ लोग भारत की एक्ट ईस्ट पॉलिसी में सेंध के रूप में देखते हैं.

सीमाओं पर बाड़ लगाने के भारत सरकार के फैसले पर दिप्रिंट ने जिन विशेषज्ञों से संपर्क किया, उनके अलग-अलग विचार सामने आए हैं, जो नेपीडॉ के साथ नई दिल्ली के संबंधों की जटिल प्रकृति को और उजागर करता है.


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सीमा पर बाड़ लगाना एक ज़रूरत?

नई दिल्ली स्थित रिसर्च एंड इंफॉर्मेशन सिस्टम फॉर डेवलपिंग कंट्रीज (आरआईएस) के प्रोफेसर प्रबीर डे ने दिप्रिंट को बताया कि क्षेत्र में सीमा बाड़ बनाने की नीति नई नहीं है और यह कुछ समय से भारतीय नीति रही है.

डे ने कहा, “सीमा पर बाड़ का निर्माण, वास्तव में, हमारी (भारत की) एक्ट ईस्ट नीति को मजबूत करेगा, क्योंकि मुक्त व्यापार के फलने-फूलने के लिए एक सुरक्षित और संरक्षित सीमा आवश्यक है. अगर अर्थव्यवस्थाएं मजबूत हैं और बिना किसी सुरक्षा खतरे के अच्छा प्रदर्शन कर रही हैं, तो सीमाएं खत्म हो जाएंगी. चूंकि फिलहाल म्यांमार के मामले में ऐसा नहीं है, इसलिए बाड़ लगाना एक ज़रूरत है.”

हालांकि, म्यांमार में पूर्व भारतीय राजदूत गौतम मुखोपाध्याय ने कहा कि सीमा पर बाड़ लगाना एक “झूठी समस्या का निरर्थक समाधान” था.

उन्होंने दिप्रिंट को बताया कि म्यांमार द्वारा भारत के लिए उत्पन्न मुख्य सीमा पार खतरा म्यांमार में घाटी-आधारित और अन्य भारतीय विद्रोही समूहों की उपस्थिति है. “लेकिन वे कारण नहीं हैं कि सीमा पर बाड़ लगाने की शुरुआत क्यों की जा रही है. उन्हें कुकी-हमार-ज़ोमी जनजातियों द्वारा ‘अवैध प्रवास’ और ‘बाहरी आक्रामकता’ की झूठी कहानी के बहाने पेश किया जा रहा है.

पूर्व राजनयिक मणिपुर की स्थिति का जिक्र कर रहे थे, जहां पिछले साल 3 मई को घाटी स्थित गैर-आदिवासी समूह मेतैई और पहाड़ी स्थित कुकी जनजातियों के बीच जातीय हिंसा भड़क उठी थी.

मुखोपाध्याय ने कहा कि सीमा पर बाड़बंदी उन लोगों के बीच विभाजन करती है जिनके बीच रिश्तेदारी है  या जनजातीय आधार पर संबंध हैं, इसे खड़ा करने में भारी लागत आती है और जो हासिल करने का उनका इरादा है उसे रोकने के लिए शायद ही कभी काम करती है.

“भूमि अधिग्रहण और निर्माण के अलावा, उन्हें सर्विलांस, ​​निगरानी और गश्त में भारी निवेश की आवश्यकता होती है. 400 किमी से अधिक लंबी मणिपुर-म्यांमार सीमा पर आदिवासियों, नागाओं और कुकी ज़ो रहते हैं, जो बाड़ लगाने के विरोध में हैं. यह क्षेत्र पहाड़ी है, जंगल है और यहां भूस्खलन की संभावना है, और इसलिए निर्माण और रखरखाव मुश्किल है.

उनके अनुसार, बाड़बंदी से इस क्षेत्र में आदिवासी समुदायों के साथ और अधिक तनाव कायम हो जाएगा और लोगों के बीच सीमा पार संबंधों में “परेशानी का सबब” बनेगा.

उन्होंने कहा, “यह याद रखने योग्य है कि भारत के पूर्वोत्तर की कई सीमावर्ती जनजातियों ने भारत-म्यांमार सीमा रेखा को इस समझ के साथ स्वीकार किया कि एफएमआर पारंपरिक रिश्तेदारी और अन्य संबंधों को सुविधाजनक बनाएगा. बाड़ लगाने और एफएमआर पर इसके प्रभाव से, दोनों तरफ के अशांत आदिवासी समुदाय जो अपनी आदिवासी अखंडता से गहराई से जुड़े हुए हैं, मौजूदा सीमाओं पर सवाल उठा सकते हैं, जिससे क्रांतिकारी परिवर्तन के दौर में भारत और म्यांमार के बीच गंभीर समस्याएं पैदा हो सकती हैं.”

ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन (ओआरएफ) की जूनियर फेलो श्रीपर्णा बनर्जी का एफएमआर की शुरुआत के कारणों पर ऐसा ही विचार है. उन्होंने कहा, यह नीति “वीज़ा या अन्य दस्तावेज की आवश्यकता के बिना 16 किलोमीटर के दायरे में अप्रतिबंधित यात्रा की सुविधा प्रदान करती है.”

भारत की म्यांमार पहेली

1 फरवरी 2024 को 2021 में म्यांमार के शासकों द्वारा तख्तापलट के तीन साल पूरे हो गए. उसी दिन, विदेश मंत्रालय (एमईए) के प्रवक्ता रणधीर जयसवाल ने एक नियमित ब्रीफिंग के दौरान इस बात पर प्रकाश डाला कि म्यांमार की स्थिति का भारत पर “प्रत्यक्ष प्रभाव” है.

म्यांमार में आंतरिक सुरक्षा स्थिति को लेकर नई दिल्ली की बेचैनी तब और उजागर हुई जब विदेश मंत्रालय ने मंगलवार को भारतीयों के लिए रखाइन राज्य छोड़ने के लिए एक ट्रैवेल एडवाइज़री जारी किया, जहां रोहिंग्या मुस्लिम और रखाइन बौद्ध समुदायों के बीच सांप्रदायिक हिंसा चल रही है.

डे के लिए, म्यांमार में मौजूदा खुली सीमाओं के साथ चल रहे विद्रोह ने क्षेत्र में मादक पदार्थों की तस्करी, मानव तस्करी और हथियारों की तस्करी को पनपने में मदद की है. वह यह भी स्वीकार करते हैं कि जहां पूर्वोत्तर पूरे भारत के लिए दक्षिण पूर्व एशिया के ब्रिज के रूप में काम करता है, लेकिन “यह तब सबसे अच्छा काम कर सकता है जब क्षेत्र में कोई सुरक्षा समस्या न हो.”

हालांकि, मुखोपाध्याय बताते हैं कि एफएमआर और खुली सीमाएं म्यांमार के साथ जमीनी स्तर के संबंधों को बढ़ावा देने में संतोषजनक ढंग से काम कर रही थीं और पड़ोसी देश में मौजूदा संकट आने तक इसके दुरुपयोग के बारे में कोई गंभीर शिकायत नहीं थी.

लेकिन बनर्जी के अनुसार, एफएमआर पर पुनर्विचार से भारत की ‘एक्ट ईस्ट पॉलिसी’ पर कोई असर नहीं पड़ेगा और यह “विद्रोह, तस्करी और नशीली दवाओं के व्यापार की जटिल चुनौतियों” में निहित है.

उन्होंने यह भी बताया कि सीमा पर बाड़ लगाने का निर्णय सैन्य शासन के परामर्श से किया गया है और यह सत्ता में प्रशासन के साथ जुड़ने की भारत की दीर्घकालिक नीति के अनुरूप है.

ओआरएफ के जूनियर फेलो ने कहा, “यह व्यावहारिक दृष्टिकोण भारत को अपने सुरक्षा हितों की रक्षा करते हुए जटिल भू-राजनीतिक परिदृश्यों को नेविगेट करने की अनुमति देता है. संक्षेप में, सीमाओं पर बाड़ लगाने का निर्णय, जब भारत के ऐतिहासिक राजनयिक रुख के संदर्भ में देखा जाता है, तो स्थापित नीति मानदंडों से विचलन के बजाय निरंतरता को दर्शाता है.”

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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