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Friday, 29 March, 2024
होमडिफेंसरक्षा में ‘आत्म-निर्भर’ बनने की दिशा में मोदी सरकार के लिए पहली चुनौती होंगे नौसैनिक हेलीकॉप्टर

रक्षा में ‘आत्म-निर्भर’ बनने की दिशा में मोदी सरकार के लिए पहली चुनौती होंगे नौसैनिक हेलीकॉप्टर

एचएएल इस कार्यक्रम में शामिल होना चाहता है, लेकिन नौसेना को, जो यूटिलिटी हेलीकॉप्टर्स के लिए हताश है, डर है कि इससे प्रोजेक्ट में देरी हो सकती है.

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नई दिल्ली: लगभग 3 बिलियन डॉलर का नौसेना यूटिलिटी हेलिकॉप्टर (एनयूएच) सौदा रक्षा क्षेत्र में नरेंद्र मोदी सरकार की नई ‘आत्मनिर्भर’ पहल की, पहली चुनौती बन सकता है.

ऐसा इसलिए है क्योंकि सरकारी उपक्रम हिंदुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) इस कार्यक्रम में शामिल होने के लिए दबाव डाल रहा है. इस पहल को सामरिक भागीदारी मॉडल के तहत आगे बढ़ाया जा रहा है, जिसके केंद्र में भारत के निजी उद्योग होंगे, जो विदेशी वेण्डर्स के साथ मिलकर निर्माण की ज़रूरतों को पूरा कर सकते हैं.

भारतीय नौसेना को चिंता है कि अगर एचएएल को इसमें शामिल किया गया, तो इस पूरे कार्यक्रम में देरी हो सकती है, हालांकि बेंगुलूरू स्थित फर्म इसे नहीं मानती. नौसेना 1960 के दशक के, अपने पुराने चेतक के बदले, एनयूएच लाना चाहती है.

एनएचयू का इस्तेमाल बहुत सारी भूमिकाओं में किया जाना है, जिनमें तलाश और बचाव, आकस्मिक निकासी, और टॉरपीडो ड्रॉप्स के अलावा, कम तीव्रता की समुद्री कार्रवाइयां शामिल हैं.

21,738 करोड़ रुपए में 111 हेलिकॉप्टर्स खरीदने की नौसेना की योजना के तहत, पिछले साल फरवरी में जारी रूचि की अभिव्यक्ति के लिए, आठ जवाब आए थे.

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उस समय एचएएल ने दो बिड्स दाख़िल किए थे, एक ख़ुद अपना, और दूसरा रशियन हेलिकॉप्टर्स के साथ साझेदारी में, जिसके तहत एक रूसी यूटिलिटी हेलिकॉप्टर, कामोव चॉपर का उत्पादन किया जाना था.


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नौसेने के अलावा दूसरे निजी पक्षों ने भी, एचएएल को शामिल किए जाने का विरोध किया है.

रक्षा मंत्रालय ने अभी उस फाइल को क्लियर नहीं किया है, जिसके बाद कुछ वेंडर्स के लिए प्रस्ताव का अनुरोध जारी किया जाएगा और मंत्रालय एचएएल को शामिल करने के प्रस्ताव पर, फिर से ग़ौर कर सकता है.

रक्षा सूत्रों ने बताया कि रक्षा अधिग्रहण परिषद (डीएसी) ने एचएएल के हिस्सा लेने पर पहले ही ग़ौर कर लिया था, जब उसने इस प्रोजेक्ट को सामरिक भागीदारी (एसपी) मॉडल के ज़रिए, आगे बढ़ाने का फैसला किया था.

एक सूत्र ने कहा, ‘2018 में डीएसी में आवश्यकता की स्वीकृति पर चर्चा में एचएएल को शामिल करने पर विचार, और फिर एसपी मॉडल के ज़रिए आगे बढ़ने का डीएसी का निर्देश, ये दर्शाता है कि एचएएल को शामिल नहीं करना है.’

एचएएल का दावा है कि उसके पास है टेक्नोलॉजी, लेकिन नौसेना और स्पष्टता चाहती है

दिप्रिंट से बात करते हुए एचएएल के कार्यकारी निदेशक (सीटीपी-आरडब्लू), विंग कमाण्डर (रिटायर्ड) उन्नी पिल्लई ने कहा, ‘एसपी मॉडल का सार ये है कि उस टेक्नोलॉजी को देश के अंदर लाया जाए, जे हमारे पास नहीं है.’

उन्होंने ये भी कहा कि अधिक भार उठाने के वर्ग में, प्रौद्योगिकी हस्तांतरण समझ में आता है, क्योंकि एचएएल अभी इसे डिज़ाइन करने में लगा है. उन्होंने आगे कहा, ‘लेकिन ऐसी चीज़ हासिल करने का कोई मतलब नहीं बनता, जो उसी भार वर्ग में है जिसमें एडवांस्ड लाइट हेलिकॉप्टर (एलएएच) है. नौसेना जिसे लाने का प्रयास कर रही है, वो 1970 का डिज़ाइन है.’

उनका तर्क था कि ‘एएलएच के प्रारूप के’ विदेशी चॉपर लगभग 10-15 करोड़ रुपए महंगे होंगे.

उन्होंने कहा, ‘और फिर होता ये है कि असली ख़र्च हर 5-7 साल पर आता है, जब एयरक्राफ्ट को अपग्रेड की ज़रूरत होती है और उसमें नए सिस्टम्स लगाने पड़ते हैं, और यही समय होता है जब विदेशी हमारा ख़ून चूसना शुरू करते हैं…हम उन्हें पैसा देते रहेंगे.’

सीनियर एचएएल अधिकारी ने कहा कि अगर हम आयात पर निर्भर रहे, तो ‘आत्म-निर्भरता कभी नहीं आएगी.’

‘अगर हमारे पास एक डिज़ाइन है और उसे किसी की ज़रूरत के हिसाब से दुरुस्त करना है, तो फिर दोनों पक्षों को साथ बैठने की ज़रूरत है. नौसेना ने एचएएल को कभी नहीं बताया कि उन्हें अस्ल में क्या चाहिए. शुरू में, 1990 के दशक में, वो सी-किंग (हेलिकॉप्टर) चाहते थे, जो 10 टन वर्ग में है. वो सारे उपकरण एक एएलएच में फिट कराना चाहते थे, जो 5.5 टन क्लास में है. ये मुमकिन नहीं है.’

उन्होंने कहा, ‘इसलिए अब उन्हें एक छोटा यूटिलिटी क्लास हेलिकॉप्टर चाहिए, जो 5 टन क्लास है. उस क्लास में हमारे पास कुछ है. उसे अनुकूल बनाने के लिए जो भी करना होगा, वो किया जाएगा.’

पिल्लई ने ज़ोर देकर कहा कि एचएएल के चॉपर्स नौसेना की ज़रूरतों पर पूरा उतरते हैं. नौसैनिक कार्रवाईयों की एक ज़रूरत, मुड़ने वाले ब्लेड्स के बारे में उन्होंने कहा कि एचएएल ने ब्लेड का विभाजन कर लिया है.

उन्होंने कहा, ‘वहां पर दो बोल्ट्स होते हैं. आप एक को निकाल दीजिए तो वो फोल्ड हो जाता है. हल्के यूटिलिटी हेलिकॉप्टर (एलयूएच) पर, फोल्ड होने में क़रीब 6 मिनट लगते हैं. एएलएच पर हम यही करने की कोशिश कर रहे हैं, जिसमें हम इसे उतने ही समय में कर लेंगे.’


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ये पूछे जाने पर कि अगर एचएएल तमाम ज़रूरतों को पूरा कर ले, तब भी डर है, कि वो समय पर डिलीवर नहीं कर पाएगा, उन्होंने पिछले पांच साल के प्रदर्शन का हवाला देते हुए कहा, कि इस सरकारी उपक्रम ने समय से पहले डिलीवर किया है.

उन्होंने कहा, ‘उदाहरण के तौर पर एएलएच में, सेना ने ऑर्डर दिया था, और हमने एक साल पहले ही डिलीवर कर दिया. हम समय से पहले डिलीवर करने में सक्षम हैं.’

नौसेना की एचएएल समस्या

रक्षा सूत्रों ने दिप्रिंट से कहा कि अगर एचएएल को शामिल किया गया, तो फिर निजी प्लेयर्स के लिए मैदान समान नहीं रहेगा, क्योंकि इसका इनफ्रास्ट्रक्चर पहले से ही सरकार द्वारा फंड किया हुआ है, जिसमें टेक्नोलॉजी हस्तांतरण और स्वदेशी अंश को क्रॉस सब्सीडी मिलती है.

रक्षा ख़रीद प्रक्रिया (डीपीपी) के प्रावधानों के तहत, एचएएल को इस स्टेज पर शामिल नहीं किया जा सकता, क्योंकि प्रक्रिया पहले ही शुरू हो चुकी है.

सूत्र ने समझाया, ‘अगर एचएएल को शामिल करना है तो डीपीपी में बदलाव करने होंगे और डीएसी द्वारा उनकी पुष्टि की जाएगी. इसके बाद मूल उपकरण निर्माताओं और एसपीज़ से रूचि अभिव्यक्ति के लिए ताज़ा अनुरोध किया जाएगा.
आज के दिन, नौसेना की ओर से भारतीय कम्पनियों को दिए गए कुल ऑर्डर्स का, एक बहुत ही छोटा प्रतिशत निजी कम्पनियों के पास है.

सरकारी आंकड़ों के अनुसार, 2014 से भारतीय कम्पनियों को दिए गए लगभग 95 प्रतिशत ऑर्डर, सार्वजनिक क्षेत्र के रक्षा, या दूसरे उपक्रमों को गए हैं. एचएएल के पास क़रीब 1 लाख करोड़ के ऑर्डर हैं, जिनमें हल्के लड़ाकू विमान शामिल हैं.

नौसैनिक सूत्रों ने कहा कि एचएएल को 1990 में ही, एक हेलिकॉप्टर बनाने के लिए नौसेना की ज़रूरतें बता दी गईं थीं, लेकिन आज तक वो हेलिकॉप्टर नौसेना की ज़रूरतें पूरी नहीं कर सकता.

एक दूसरे सूत्र ने समझाया, ‘ब्लेड फोल्ड करने की क्षमता विकसित करने में, एचएएल को दो साल और लगेंगे. इस स्टेज पर अगर एचएएल को शामिल किया गया, तो सारी प्रक्रिया थम जाएगी, क्योंकि अधिकार प्राप्त समिति एएलएच को, बतौर प्लेटफॉर्म क्लियर नहीं कर सकती, क्योंकि वो क्वालिटी की ज़रूरतों पर पूरा नहीं उतरता.’

सूत्र ने ये भी कहा कि डीएसी जैसी किसी उच्च बॉडी को, इस व्यवस्था पर सहमति देनी होगी.

सूत्र ने कहा, ‘लेकिन अगर ये सहमति हो भी गई, तो फिर दूसरे हेलिकॉप्टर्स भी मैदान में आ जाएंगे. पूरी प्रक्रिया को फिर से शुरू करना होगा, जिससे प्रोजेक्ट में देरी भी होगी, और एनयूएच की परिचालन कार्यक्षमता भी हल्की पड़ जाएगी.’

एयर वाइस मार्शल मनमोहन बहादुर (रिटा.) ने कहा, कि विचार किए जाने के लिए, सभी प्लेटफॉर्म्स को नौसेना की ज़रूरतों पर पूरा उतरना होता है. ऑटोमेटिक ब्लेड फोल्डिंग नौसैनिक हेलिकॉप्टर्स के लिए एक ज़रूरी आवश्यकता है, क्योंकि वो जहाज़ों के डेक से ऑपरेट करते हैं.

उन्होंने ये भी कहा, ‘ये भी है कि एचएएल की ऑर्डर बुक्स भरी हुई हैं. सामरिक भागीदारी का सारा विचार ये है कि भारत के निजी उधोग को आगे आकर, एक वैकल्पिक आर एण्ड डी (अनुसंधान और विकास) और मैन्युफेक्चरिंग लाइन के साथ, सेवाएं देने का मौक़ा दिया जाए. इससे वास्तविक स्वदेशीकरण भी आएगा, जो हर सरकार चाहती रही है.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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