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Friday, 3 May, 2024
होमदेशयुद्ध से लेकर हरित क्रांति और आपातकाल तक, राष्ट्रीय अभिलेखागार में इनसे जुड़े कोई दस्तावेज मौजूद नहीं

युद्ध से लेकर हरित क्रांति और आपातकाल तक, राष्ट्रीय अभिलेखागार में इनसे जुड़े कोई दस्तावेज मौजूद नहीं

महानिदेशक चंदन सिन्हा के मुताबिक, दशकों से कई मंत्रालय भारत के राष्ट्रीय अभिलेखागार को रिकॉर्ड नहीं भेज रहे हैं. इससे स्कॉलर्स के साथ-साथ आम जनता का भी नुकसान है.

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नई दिल्ली: चंदन सिन्हा ने लुटियंस दिल्ली के कई सरकारी मंत्रालयों को सालभर में कम से कम 151 पत्र लिखे हैं. इसमें केंद्र सरकार के प्रत्येक मंत्रालय और विभाग के प्रत्येक सचिव को लिखा गया एक-एक पत्र भी शामिल है. वह भारत के रिकॉर्ड कीपर हैं और मंत्रालयों को अपने रिकॉर्ड भारत के राष्ट्रीय अभिलेखागार (एनएआई) को भेजने के लिए याद दिलाना उनका काम है.

भारत के समकालीन इतिहास के संरक्षण के प्रति सम्मान की कमी से वह काफी निराश हैं. उनके मुताबिक, कम से कम आठ मंत्रालयों ने अपना कोई रिकॉर्ड कभी भी अभिलेखागार को नहीं भेजा है.

वह कंधे उचकाते हुए कहते हैं. ‘दुर्भाग्य से, रिकॉर्ड उनके लिए एक बड़ी प्राथमिकता नहीं है.’

सिन्हा ने तीन साल पहले भारत के राष्ट्रीय अभिलेखागार (एनएआई) के महानिदेशक के रूप में पदभार संभाला था. फिलहाल वह 25 साल से ज्यादा पुराने हर महत्वपूर्ण सार्वजनिक दस्तावेज़ के रिकॉर्ड और उनकी देखरेख के प्रभारी हैं.

इस महीने प्रशासनिक सुधार और लोक शिकायत विभाग की तरफ से सुशासन पर एक कार्यशाला आयोजित की गई थी. इसमें सिन्हा ने बताया कि अभिलेखागार में आधुनिक भारत की महत्वपूर्ण घटनाओं, जैसे 1962, 1965 और 1971 के युद्धों से जुड़े दस्तावेज नहीं हैं. फाइलों से आपातकाल और हरित क्रांति वाला दौर भी गायब हैं.

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सिन्हा ने दिप्रिंट को बताया, ‘मैं सिर्फ एक बात पर जोर देना चाहता हूं कि हर किसी को पता होना चाहिए कि हम क्या थे. हमें रिकॉर्ड बनाने और उन्हें सहेज कर रखने को लेकर और अधिक गंभीर हो जाना चाहिए.’

NAI के इर्द-गिर्द होने वाली अधिकांश बातचीत सेंट्रल विस्टा पुनर्विकास परियोजना और इससे अभिलेखागार को होने वाले खतरे के बारे में रही है. दुनिया भर के सैकड़ों इतिहासकारों ने अभिलेखागार के भविष्य पर चिंता व्यक्त करते हुए एनएआई को खुले पत्र लिखे हैं. लेकिन आमतौर पर जिस चीज की अनदेखी की जाती है, वह एक ऐसी गहरी समस्या है जिस पर हम ध्यान नहीं देते हैं. और वो ये है कि मंत्रालय खुद अपने दस्तावेज एनएआई को नहीं भेज रहे हैं.

उपभोक्ता मामलों, खाद्य और सार्वजनिक वितरण, महिला एवं बाल विकास, ग्रामीण विकास, पंचायती राज, इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी, पर्यटन, इस्पात, सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालयों से कोई रिकॉर्ड एनएआई को नहीं मिले हैं.

संसदीय कार्य, नागरिक उड्डयन और कपड़ा जैसे अन्य मंत्रालयों ने 1970 के दशक के मध्य से रिकॉर्ड नहीं भेजे हैं. पेट्रोलियम और गैस मंत्रालय ने 1960 के दशक के मध्य से और भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद ने 1950 के दशक की शुरुआत से यानी हरित क्रांति शुरू होने से एक दशक पहले से रिकॉर्ड नहीं जमा कराए हैं.

एनएआई में शोध करने के लिए विदेश से आए एक स्कॉलर ने कहा, ‘यह सोर्स मैटेरियल के न होने की समस्या नहीं है, बल्कि यह स्रोतों के उपलब्ध न होने की समस्या है. और यह किसी विषय में गहन अध्ययन की ओर जाने वाले रास्तों को बंद कर देता है.’ उन्होंने आगे बताया, ‘कोई अन्य राष्ट्रीय अभिलेखागार ऐसा नहीं है. यह न सिर्फ स्कॉलर्स के लिए एक बड़ा नुकसान है, बल्कि  यह जनता के लिए भी एक बड़ी क्षति है.

रिकॉर्ड रखने वालों की दुविधा

हर कोई जो भी इस ऐतिहासिक अभिलेखागार में इतिहास के कुछ पन्ने खंगालने या जानकारी पाने के लिए आता है, उसे यहां की दिक्कतें पता हैं. एनएआई की स्थानांतरण सूची और मांग दस्तावेजों के सूचकांक पाने के लिए कितनी मेहनत करनी पड़ती है, वह अच्छे से जानते है.

जब आप किसी फाइल की मांग करें और बदले में आपको ‘NT’ यानी नोट ट्रांसफर की पर्ची पकड़ा दी जाए, तो यह सचमुच कितना परेशान करने वाला होता होगा.

ये वे फाइलें हैं जो तकनीकी रूप से सार्वजनिक रिकॉर्ड में मौजूद हैं, लेकिन रिकॉर्ड बनाने वाली एजेंसी से एनएआई को स्थानांतरित नहीं की गई हैं. स्कॉलर्स की शिकायत है कि उन्होंने इस बारे में सोचना शुरू कर दिया है कि अभिलेखागार में क्या उपलब्ध और सुलभ है और  इसके आधार पर क्या शोध किया जा सकता है.

1993 का सार्वजनिक रिकॉर्ड अधिनियम के मुताबिक, केंद्रीय मंत्रालयों और विभागों को 25 साल से ज्यादा पुराने रिकॉर्ड को NAI को स्थानांतरित कर देने चाहिए. क्लासिफाइड रिकॉर्ड (दस्तावेज जिन्हें टॉप सीक्रेट, सीक्रेट और कॉन्फिडेंशियल के तौर पर मार्क किया जाता है) एनएआई को नहीं भेजे जाते हैं. यह क्रिएटिंग एजेंसी है जो तय करती है कि कोई दस्तावेज़ वर्गीकृत है या नहीं.

हालांकि, मुद्दा यह है कि कई क्रिएटिंग एजेंसियां अपना काम सही ढंग से नहीं कर रही हैं और न ही अपने स्वयं के रिकॉर्ड रूम का रखरखाव कर रही हैं. अब दस्तावेजों का एक विशाल बैकलॉग है जो अभी तक अभिलेखागार में नहीं भेजा गया है.

23 दिसंबर को कार्यशाला में सिन्हा ने बताया कि एनएआई को 36 मंत्रालयों और विभागों सहित सिर्फ 64 एजेंसियों का रिकॉर्ड मिला है. जबकि मंत्रालयों और विभागों की कुल संख्या 151 है.

ऐसे कम से कम 90 मंत्रालय और विभाग भी हैं जो 25 साल से अधिक पुराने हैं, जिनके रिकॉर्ड तकनीकी रूप से नियमित रूप से एनएआई को भेजे जाने चाहिए.

सिन्हा के मुताबिक, रक्षा मंत्रालय ने इस साल 1960 तक की 20,000 फाइल ट्रांसफर की हैं. हालांकि, इसने आजादी से लेकर 2022 की शुरुआत तक सिर्फ 476 फाइलें ही भेजी थीं. रक्षा मंत्रालय ने अभी तक टेक्स्ट मैसेज के जरिए दिप्रिंट द्वारा भेजे गए सवालों का जवाब नहीं दिया है. अगर वहां से कोई प्रतिक्रिया मिलती है, तो यह रिपोर्ट अपडेट कर दी जाएगी.

सिन्हा ने कहा कि जहां एनएआई को ऐसे मंत्रालयों से रिकॉर्ड प्राप्त होते हैं, वे कभी-कभी एक ही मंत्रालय के भीतर विभिन्न विंगों से होते हैं.

उन्होंने कहा, ‘तो यह एक अधूरी तस्वीर है.’


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रिकॉर्ड रखने की प्रक्रिया

पारदर्शी रिकॉर्ड आधुनिक, लोकतांत्रिक भारत को समझने की कुंजी हैं. इतिहासकार नारायणी बसु द इंडियन एक्सप्रेस में लिखती हैं ‘एक देश का विकास सिर्फ रक्तपात, विरोध और भड़काऊ सार्वजनिक भाषणों में नहीं होता है. यह इसके दिल यानी  कागजी कार्रवाई में छिपा होता है’.

कागजों से भरी अलमारियों, बेतरतीब फाइलें और हर जगह धूल से अटे दस्तावेजों का ढेर सरकारी कार्यालयों की पहचान हो सकती है. लेकिन वास्तव में इन दस्तावेजों को छांटने और संसाधित करने के लिए एक प्रणाली है.

क्रिएटिंग एजेंसी के पास एक रिकॉर्ड रूम और एक रिकॉर्ड अधिकारी होता है. वही कमरे का प्रभारी होता है. अभिलेख अधिकारी अभिलेखों की व्यवस्था, रखरखाव और संरक्षण के लिए जिम्मेदार है. एक अपडेट रिटेंशन शेड्यूल निर्धारित करता है कि कोई दस्तावेज कितने समय तक उपयोगी रहेगा.  क्रिएटिंग एजेंसी आमतौर पर कम महत्वपूर्ण दस्तावेजों के साथ काम करती है, जबकि 25 वर्ष से अधिक पुराने दस्तावेजों को एनएआई के पास भेज दिया जाता है.

फिर, एनएआई की एक टीम इन कागजातों का मूल्यांकन और मूल्यांकन करने के लिए रिकॉर्ड रूम का दौरा करती है. उपयोगी मानी जाने वाली किसी भी चीज़ को कीप के लिए ‘के’ के रूप में चिह्नित किया जाता है, जबकि बाकी सभी चीज़ों को डेस्ट्रॉय करने के लिए ‘डी’ के रूप में चिह्नित किया जाता है. इसके बाद दस्तावेजों को एनएआई को स्थानांतरित किया जाता है.

एनएआई अभिलेख अधिकारियों के लिए नियमित रूप से प्रशिक्षण कार्यशालाएं भी आयोजित करता है. कुछ एजेंसियां जो हाल ही में एनएआई के पास मदद के लिए पहुंची हैं, उनमें राष्ट्रपति सचिवालय, भारतीय फिल्म प्रभाग और इस्पात मंत्रालय शामिल हैं. सिन्हा ने कहा, ‘हम हर समय मंत्रालयों की मदद करने के लिए हैं. हम उनके रिकॉर्ड अधिकारियों को प्रशिक्षित करते हैं, उनके कार्यालयों का दौरा करते हैं, देखते हैं कि क्या उन्हें कोई संदेह है.’

‘गोपनीयता की संस्कृति अलोकतांत्रिक’

इस तरह के ब्लाइंड स्पॉट यानी दस्तावेजों के न होने का मतलब है कि अगर कोई औपनिवेशिक शासन के बाद के भारत के विकास का इतिहास लिखना चाहता है, तो उसे काफी मशक्कत करनी होगी, खासकर अगर वह राष्ट्रीय अभिलेखागार के माध्यम से जानकारी पाना चाहता है.

अभिलेखागार के स्कॉलर्स का कहना है कि समकालीन भारत पर उपलब्ध दस्तावेजों की निराशाजनक कमी उनकी शोध प्रक्रिया को बाधित करती है और वे अक्सर नेहरू मेमोरियल संग्रहालय और पुस्तकालय जैसे निजी संग्रहों पर निर्भर रहते हैं. यह खासतौर पर भारतीय युद्ध या रक्षा मंत्रालय से संबंधित सामग्री के साथ पर शोध करने के मामले में बिल्कुल सही बैठती है.

विदेशों से आने वाले स्कॉलर्स भी अक्सर यहां तक आने और आवश्यक अनुमति प्राप्त करने के बाद भी ज्यादा कुछ खोज नहीं पाते हैं. वह सारा प्रयास, सिर्फ यह पता लगाने के लिए होता है कि वे जिस सामग्री की तलाश कर रहे हैं वह एनएआई में उपलब्ध है या नहीं है.

मुंबई में एस.पी. जैन इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट एंड रिसर्च (एसपीजेआईएमआर) में इतिहास के सहायक प्रोफेसर दिनयार पटेल ने कहा, ‘तथ्य यह है कि भारत में सार्वजनिक रिकॉर्ड की एक उचित प्रणाली का अभाव है, यह समझने में एक बड़ी बाधा है कि देश कैसे काम करता है.’

यूके और यूएस में अपने विदेशी समकक्षों की तुलना में एनएआई को ‘कम’ बताते हुए पटेल ने कहा कि भारत में अधिकांश कागजों को पाना मुश्किल है और उपयोगकर्ताओं की मदद के लिए यह डिजाइन नहीं किए गए हैं.

भारत की स्थिति के उलट अमेरिकी सरकार नियमित रूप से अवर्गीकृत सेंट्रल इंटेलिजेंस एजेंसी (CIA) के दस्तावेज़ जारी करती रहती है. उदाहरण के लिए, इस महीने की शुरुआत में, इसने पूर्व राष्ट्रपति जॉन एफ कैनेडी की हत्या पर 12,000 से अधिक फाइलें जारी की . यह अमेरिकी इतिहास में एक मौलिक लेकिन संवेदनशील मसला है.

पटेल ने एनएआई पर न्यूयॉर्क टाइम्स के लिए एक सीरीज भी लिखी है. उन्होंने कहा कि कोई भी निजी अभिलेखागार कभी भी भारत सरकार द्वारा बनाए गए दस्तावेजों का विकल्प नहीं हो सकता है.

उन्होंने कहा, ‘गोपनीयता की यह संस्कृति अलोकतांत्रिक है. जब तक सोर्स मैटेरियल को नौकरशाह अलमारियों में बंद रखे रहेंगे, तब तक हम देश का इतिहास ठीक से नहीं लिख सकते हैं.’

(अनुवाद: संघप्रिया मौर्या | संपादन: ऋषभ राज)

(इस ख़बर को अंग्रेज़ी में पढ़नें के लिए यहां क्लिक करें)


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