नई दिल्ली: भारत में अकसर कहा जाता है कि शादियां जन्म-जन्म के लिए होती हैं. और आंकड़े इसका समर्थन भी करते हैं: यूएन वीमन की विश्व की महिलाओं की उन्नति रिपोर्ट के मुताबिक़, भारत दुनिया में तलाक़ की सबसे कम दर वाले देशों में है. 2010 तक, 45-49 आयु वर्ग की केवल 1.1 प्रतिशत महिलाएं तलाक़शुदा थीं.
लेकिन, ये ज़रूरी नहीं है कि जो शादियां चल रही हैं वो ख़ुशी से चल रही हैं; बल्कि नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों के अनुसार, ऐसा लगता है कि हाल के वर्षों में, नाख़ुश शादियों में रह रहे ज़्यादातर लोग, तलाक़ को नहीं ख़ुदकुशी को चुन रहे हैं.
पिछले सप्ताह जारी एनसीआरबी रिपोर्ट,भारत में आकस्मिक मौतें एवं आत्महत्याएं के अनुसार, वैवाहिक समस्याओं के चलते 2016 से 2020 के बीच, 37,591 लोगों ने ख़ुदकुशी की- हर दिन औसतन क़रीब 20 लोग.
दिप्रिंट द्वारा विश्लेषण किए गए डेटा से पता चलता है, कि इनमें से तलाक़ की वजह से 2,688 लोगों (कुल संख्या क़रीब 7 प्रतिशत) ने अपनी जीवन लीला समाप्त की. इसका मतलब है कि तलाक़ के इतर कारणों से ख़ुदकुशी करने वाले लोगों की संख्या 13 गुना अधिक थी.
रिपोर्ट से ये भी पता चलता है, कि ‘शादी से जुड़े कारणों से’ ख़ुदकुशी करने वाले लोगों में, महिलाओं की संख्या पुरुषों से ज़्यादा थी.
यह भी पढ़ें: CRPF कर्मियों में आत्महत्या की घटनाएं 2016 से 55% बढ़ीं, सरकार ने ‘निजी समस्याओं’ को जिम्मेदार बताया
ख़ुदकुशी में क्यों हो जाता है शादियों का अंत
‘शादी से संबंधित आत्महत्याओं’ के अंतर्गत दिए गए कारणों का, बारीकी से विश्लेषण करने पर पता चलता है कि दहेज – एक ग़ैर-क़ानूनी प्रथा जिसमें दूल्हा पक्ष दुल्हन के परिवार से पैसे और दूसरी चीज़ों की मांग करता है- महिलाओं के बीच मौत का सबसे बड़ा कारण है, लेकिन शादी के विवाद (पति-पत्नी के बीच मतभेद) का न निपटना, कुल तालिका में दहेज को पीछे छोड़ देता है.
कुल मिलाकर, दहेज के कारण 10,282 आत्महत्याएं हुई हैं, जबकि शादी के विवाद का न निपटना, 10,584 मौतों का कारण बना.
दहेज के कारण औसतन हर साल 2,056 आत्महत्याएं हुई हैं, जबकि शादी के विवाद के न निपटने से होने वाली आत्महत्याओं का वार्षिक औसत 2,100 था.
विवाहेतर संबंधों के चलते हर साल 1,100 आत्महत्याएं हुईं, जिनकी पांच वर्षों में कुल संख्या 5,737 रही.
जैसा कि ऊपर उल्लेख किया गया है, तलाक आत्महत्या से हुई 2,600 मौतों का कारण रही है, जबकि बाक़ी को एनसीआरबी रिपोर्ट में ‘अन्य’ के वर्ग में रखा गया है, और उनके कारणों का विवरण नहीं दिया गया है.
सुप्रीम कोर्ट में वरिष्ठ अधिवक्ता गीता लूथरा ने दिप्रिंट को बताया, कि ख़ुदकुशी का सबसे बड़ा कारण डिप्रेशन है, जिसका ठीक से हिसाब नहीं रखा जाता.
उन्होंने कहा, ‘विवाह परामर्श की क्वालिटी भी अच्छे से विकसित नहीं हुई है. इसे इस सोचिए, अगर आप ख़राब शादी से मानसिक रूप से परेशान हैं, तो उसमें बने रहने से आपको हर दिन, चौबीसों घंटे तकलीफ में रहना होगा’.
उन्होंने आगे कहा, ‘लेकिन अगर आप ख़ुद को उस माहौल से अलग कर लें, और उस तकलीफ को घटाकर दिन में एक घंटा कर लें, या बिल्कुल ही ख़त्म कर लें, तो भावनात्मक रूप से आप कहीं बेहतर स्थिति में होंगे- जो एक कारण हो सकता है कि तलाक़शुदा लोगों में, ख़ुदकुशी की दर कम क्यों होती है’.
यह भी पढ़ें: अधिकतर सुसाइड हेल्पलाइन्स से कोई मदद नहीं मिलती, लोगों की ज़रूरत के समय वो काम नहीं आती
लैंगिक अंतर
हालांकि कुल आंकड़ों से लगता है कि शादी से जुड़े कारणों से, पुरुषों की अपेक्षा महिलाएं ज़्यादा मरती हैं, लेकिन ये आंकड़े इसलिए तिरछे हो जाते हैं, कि महिलाओं में दहेज से जुड़ी मौतों की घटनाएं कहीं अधिक होती हैं.
ऐसी कुल महिलाओं की संख्या, जिन्होंने शादी से जुड़े किसी भी कारण से ख़ुदकुशी की, 2016 और 2020 के बीच 21,570 थी, जबकि ऐसे पुरुषों की संख्या 16,021 थी.
पिछले पांच वर्षों में दहेज 9,385 महिलाओं की ख़ुदकुशी का कारण रहा है, जिसका मतलब है हर साल 1,877 या हर रोज़ पांच महिलाएं.
2020 में शादी से जुड़ी कुल 7,239 आत्महत्याओं में, क़रीब 2,018 (26 प्रतिशत) दहेज से जुड़े कारणों की वजह से थीं. इनमें 1,749 महिलाएं थीं, और 249 पुरुष थे. उससे पिछले साल दहेज से जुड़ी कुल मौतों की संख्या 3 प्रतिशत कम,1,956 थी.
इसके विपरीत, शादी से जुड़े आत्महत्या के दूसरे कारणों- मसलन तलाक़ या विवाहेतर संबंधों ने, महिलाओं के मुक़ाबले पुरुषों की जान ज़्यादा ली.
2020 में, दहेज ने 287 पुरुषों को ख़ुदकशी करने की ओर धकेला, जो ऐसी महिलाओं की संख्या- 264 से थोड़ा ज़्यादा है. विवाहेतर संबंधों के मामले में 724 पुरुषों ने ख़ुदकुशी की, जबकि महिलाओं की संख्या 636 या 14 प्रतिशत कम थी.
लूथरा के अनुसार, पुरुष काम या व्यवसाय से जुड़े तनावों या विफलताओं के चलते ख़ुदकुशी ज़्यादा करते हैं. तलाक़ और विवाहेतर संबंधों से शादी से जुड़े दूसरे मसले भी इज़्ज़त का सवाल बन जाते हैं, और इससे भी पुरुषों में ख़ुदकुशी की ज़्यादा संख्या को समझा जा सकता है.
उन्होंने कहा, ‘महिलाओं के लिए, मैं समझती हूं कि जो आर्थिक रूप से सुरक्षित हैं, वो तलाक़ को मर्दों की अपेक्षा बेहतर ढंग से संभाल लेती हैं… कुछ खोने का डर (सामाजिक या आर्थिक सुरक्षा के मामले में) बहुत ज़्यादा होता है’.
क्या काउंसलिंग से मदद मिलती है?
अगर तलाक़ से ख़ुदकुशी की संभावना कम हो जाती है. तो फिर इतने ज़्यादा लोग ख़राब शादियों में क्यों बने रहते हैं?
‘डर एक बहुत बड़ी वजह हो सकती है, क्योंकि इस तरीक़े से आपका दिमाग़ संभावित ख़तरों से आपको सुरक्षित रखता है. चीज़ें पेचीदा तब होती हैं जब आप डर से स्थिर हो जाते हैं, और कोई कार्रवाई नहीं कर पाते, या सही फैसले नहीं ले पाते,’ ये कहना था ऋचा होरा का, जो एक दिल्ली-स्थित संस्था मेतानोई की संस्थापक हैं, जो फैमिली काउंसलिंग करती है, जिसमें रिश्तों से लेकर शादी तक की काउंसलिंग शामिल है.
उन्होंने आगे कहा, ‘(लोग) कहते हैं कि वो बच्चों की वजह से शादी में बने रहना चाहते हैं; वो ख़ुद को अच्छे दिनों, ख़ाससकर आर्थिक व सामाजिक सुरक्षा की याद दिलाते रहते हैं. सबसे बड़ी समस्या ये है कि लोगों को, एक ख़राब शादी को भी सामान्य करने के लिए तैयार किया गया होता है’.
होरा ने कहा कि ये सभी कारण ‘ग़लत रास्ते पर चलने वाले हैं’.
उन्होंने कहा, ‘जब आपकी शादी सहनीय होती है, तो बच्चों के लिए उसमें बने रहने से उनकी सहायता हो जाती है, लेकिन अगर पति-पत्नी लगातार लड़ते रहते हैं, या उनमें बहुत ज़्यादा विवाद रहता है, तो साथ रहने से शायद बच्चों को नुक़सान हो सकता है. इस बात पर ग़ौर करना बहुत ज़रूरी है, कि शादी और रिश्तों के बारे में आप बच्चों के सामने आप क्या मॉडल पेश करते हैं, और अपने आप से पूछिए कि क्या आप शादी के बारे में अच्छा संदेश दे रहे हैं’.
होरा ने आगे कहा कि दिलचस्प ये है कि युवा लोग सहायता लेने के मामले में ज़्यादा सक्रिय होते हैं, और ये केवल तब ही नहीं होता जब वो तलाक़ की कगार पर होते हैं.
उन्होंने कहा, ‘मैंने ऐसे युवा जोड़ों को शादी के दो-तीन साल बाद मेरे पास आते देखा है, जो राय लेना चाहते हैं कि क्या उनकी शादी में कोई संभावनाएं हैं. हम शादी से पहले भी काउंसलिंग करते हैं, जिसमें लोगों को एक दूसरे के बारे में सलाह दी जाती है, ताकि तलाक़ की संभावनाएं कम हो सकें, और ये लोग ख़राब शादियों में बने रहना नहीं चाहते’.
(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
यह भी पढ़ें: भारत में 2020 में हर दिन 31 बच्चों ने की आत्महत्या, कोविड के कारण बढ़ा मनोवैज्ञानिक दबाव