scorecardresearch
Thursday, 25 April, 2024
होमदेशCRPF कर्मियों में आत्महत्या की घटनाएं 2016 से 55% बढ़ीं, सरकार ने ‘निजी समस्याओं’ को जिम्मेदार बताया

CRPF कर्मियों में आत्महत्या की घटनाएं 2016 से 55% बढ़ीं, सरकार ने ‘निजी समस्याओं’ को जिम्मेदार बताया

2020 में सीआरपीएफ में आत्महत्या के 55 मामले सामने आए हैं. इनमें से 13 घटनाएं जम्मू-कश्मीर, 7 पूर्वोत्तर, 10 नक्सलवाद प्रभावित क्षेत्रों में और 15 देश के अन्य हिस्सों में हुईं.

Text Size:

नई दिल्ली: दिप्रिंट को मिले डाटा के मुताबिक पिछले पांच वर्षों में केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) के जवानों के बीच आत्महत्या की घटनाएं 55 प्रतिशत बढ़ी हैं.

2020 में 17 नवंबर तक सीआरपीएफ में आत्महत्या के 45 मामले सामने आए है, जिसमें इस सप्ताह के शुरू में कश्मीर में सोपोर के वाडोदरा क्षेत्र में अपनी सर्विस राइफल से गोली मारकर आत्महत्या करने वाला जवान भी शामिल है.

केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल (सीएपीएफ) के मामले देखने वाले गृह मंत्रालय (एमएचए) के आंकड़ों के अनुसार, 2016 में सीआरपीएफ में आत्महत्या की 29 घटनाएं सामने आई थी. 2017, 2018 और 2019 में यह संख्या क्रमशः 38, 36 और 42 रही.

2020 में आत्महत्या की 45 घटनाओं में से 13 जम्मू-कश्मीर, सात पूर्वोत्तर, 10 वामपंथी चरमपंथ (एलडब्लूई) प्रभावित क्षेत्रों में और 15 देश के अन्य हिस्सों में हुई हैं.

अच्छी पत्रकारिता मायने रखती है, संकटकाल में तो और भी अधिक

दिप्रिंट आपके लिए ले कर आता है कहानियां जो आपको पढ़नी चाहिए, वो भी वहां से जहां वे हो रही हैं

हम इसे तभी जारी रख सकते हैं अगर आप हमारी रिपोर्टिंग, लेखन और तस्वीरों के लिए हमारा सहयोग करें.

अभी सब्सक्राइब करें

आधिकारिक तौर पर सरकार ने ‘व्यक्तिगत और घरेलू समस्याओं’ को आत्महत्या के पीछे मुख्य कारण के तौर पर चिह्नित किया है.

2018 में तत्कालीन गृह राज्य मंत्री किरण रिजिजू ने केंद्रीय सशस्त्र अर्धसैनिक बलों में आत्महत्या की घटनाओं पर संसद में एक सवाल का जवाब देते हुए कहा था, ‘आमतौर पर आत्महत्या का कारण व्यक्तिगत और घरेलू समस्याएं, जैसे वैवाहिक कलह, निजी दुश्मनी, मानसिक बीमारी आदि होती हैं.’

दिप्रिंट से बातचीत में एक सीआरपीएफ अधिकारी ने इससे सहमति जताई. उन्होंने कहा, ‘ज्यादातर कारण व्यक्तिगत होते हैं. वैवाहिक कलह आदि के कारण तनाव का स्तर बहुत ज्यादा होता है. इन दिनों सोशल मीडिया की वजह से भी समस्याएं काफी बढ़ गई हैं.’ अधिकारी ने आगे कहा, ‘घर पर जो कुछ भी होता है उसकी खबर जवान को तुरंत ही लग जाती है. लेकिन वह घर जा नहीं सकता. ऐसे में तनाव और बेबसी बढ़ जाती है. पहले 24×7 घंटे इस तरह भटकाव नहीं होता था.’

दिप्रिंट ने टेक्स्ट संदेशों के माध्यम से सीआरपीएफ के प्रवक्ता एम. दिनाकरन से संपर्क किया और आत्महत्याओं पर टिप्पणी चाही, लेकिन उनकी तरफ से कोई जवाब नहीं आया.


यह भी पढ़ें: सरकार चाहती है कि IAS, IPS अधिकारी जनता से अच्छे से पेश आएं, ‘दोस्ताना व्यवहार’ के लिए दी जाएगी ट्रेनिंग


‘बेहद तनाव वाला काम’

सीआरपीएफ से जुड़े पूर्व अधिकारियों का कहना है कि सुरक्षा बल के कर्मी बेहद कठिन परिस्थितियों में काम करते हैं लेकिन उनके मानसिक स्वास्थ्य पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया जाता.

सीआरपीएफ महानिरीक्षक के पद से सेवानिवृत्त एस.एस. संधू ने कहा, ‘सीआरपीएफ में तनाव का स्तर सेना की तुलना में बहुत ज्यादा है. फिर भी सेना के पास तो एक पूर्ण निदेशालय है जो मानसिक स्वास्थ्य से जुड़े कारणों का विश्लेषण करता है, रिसर्च करता है और जवानों की काउंसलिंग करता है, लेकिन सीआरपीएफ या किसी भी अन्य केंद्रीय बल के लिए ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है’

उन्होंने बताया, ‘जब मैं ट्रेनिंग डिवीजन में था तब मैंने सेना की तर्ज पर सीआरपीएफ के लिए भी एक संस्था बनाने का प्रस्ताव रखा था, लेकिन इस प्रस्ताव की अहमियत को समझा नहीं गया.’

संधू ने कामकाजी परिस्थितियों के बारे में बताते हुए कहा कि सीआरपीएफ जवानों को थोड़े-बहुत प्रशिक्षण या तैयारियों के साथ ही देश के किसी भी हिस्से में भेज दिया जाता है.

उन्होंने कहा, ‘मौसम और सुरक्षा की स्थिति एकदम अलग-अलग होने के अलावा उचित आवास और छुट्टियों जैसी मूलभूत सुविधाओं का अभाव इन अधिकारियों में तनाव बढ़ाने का कारण बन जाता है.’

माना जाता है कि अलग-अगल जगह तैनाती वाले कर्मियों का तनाव बढ़ने में छुट्टी की कमी एक बड़ा कारण होती है. ऑपरेशनल लिहाज से सक्रिय जम्मू-कश्मीर और नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में कमांडिंग ऑफिसर (सीओ) की रैंक तक के सीआरपीएफ कर्मी अभी एक साल में 60 दिनों की अर्जित छुट्टी (ईएल) और 15 दिनों के आकस्मिक अवकाश (सीएल) के हकदार हैं. इसकी तुलना में सेना के जवानों को हर साल 28 दिन की आकस्मिक छुट्टी मिलती है, जबकि अर्जित छुट्टियां समान होती हैं.

तनाव का सबसे बड़ा कारण बनी छुट्टियों की समस्या को सुलझाने के बाबत गृहमंत्री अमित शाह ने पिछले वर्ष कहा कि सरकार सभी केंद्रीय अर्द्धसैनिक बलों के जवानों के लिए 100 दिन की छुट्टी सुनिश्चित करने के प्रस्ताव पर काम कर रही है.

शाह ने कहा था, ‘मुझे नहीं पता कि हम इसे पूरी तरह कब लागू कर पाएंगे. लेकिन हम एक ऐसी व्यवस्था बनाने की कोशिश कर रहे हैं, जहां हमारे जवानों को साल में कम से कम 100 दिन की छुट्टी मिले…हमारा मानना है कि अगर हमारे जवान देश की रक्षा कर रहे हैं, तो यह सरकार का कर्तव्य है कि वह उनकी देखभाल करे और उनके परिवारों की भी सुरक्षा करे.’

हालांकि, घोषणा के लगभग एक वर्ष बाद भी अभी तक प्रस्ताव पर अमल का इंतजार है.

इसके अलावा, सरकार ने पिछले साल कर्मियों में मानसिक बीमारी के संकेत और शुरुआती लक्षणों का पता लगाने के उद्देश्य से 15 दिन के अनिवार्य मेंटल हेल्थ ओरिएंटेशन कोर्स संबंधी दिशानिर्देशों का एक सेट भी जारी किया था.

2018 में संसद में अपने जवाब के दौरान रिजिजू ने आत्महत्या की दर नीचे लाने के लिए ‘तनाव घटाने’ में योग का सहारा लेने का प्रस्ताव भी रखा था.

जवानों के मानसिक स्वास्थ्य पर नजर रखने के लिए उठाए गए कदमों के बारे में जानकारी देते हुए ऊपर उद्धृत सीआरपीएफ अधिकारी ने कहा, ‘एक बडी सिस्टम भी है, जिसे लागू किया गया है. इसमें दो जवानों को एक-दूसरे के साथ मुद्दों को साझा करना होता है और यदि अवसाद का कोई संकेत दिखता है तो ‘दोस्त’ की तरफ से इसकी सूचना कमांडरों को देनी होती है.’

उन्होंने बताया, ‘समय-समय पर काउंसलिंग भी होती है, खासकर जब वे अपने घरों से लौटते हैं.’

हालांकि, कश्मीर में तैनात एक अधिकारी ने कहा, ‘जब आप कोई ठोस कदम नहीं उठाते, इस तरह की कवायदें निरर्थक हैं. उदाहरण के तौर पर सेना में जवानों के कल्याण के मुद्दों को देखने के लिए एक समर्पित निदेशालय है. एक सचिव स्तर का अधिकारी भी होता है जो सेवानिवृत्त जवानों के कल्याण के मामले देखता है. लेकिन केंद्रीय अर्द्धसैनिक बलों में एक बार जब आप सेवानिवृत्त हो जाते हैं तो आपको बहुत कम मदद मिलती है. ये सभी चीजें तनाव बढ़ाने की वजह होती हैं.’

लेकिन हर कोई इसे विशेष तौर पर सीआरपीएफ की ही समस्या होने के तौर पर नहीं देखता. आईजी स्तर के सेवानिवृत्त सीआरपीएफ अधिकारी जोगिंदर सिंह कहते हैं, ‘आत्महत्या पूरे समाज की समस्या है, इसे किसी भी बल या संगठन तक सीमित करना गलत है… अगर कोई सैनिक के रूप में काम कर रहा है तो वह स्कूल शिक्षक या बैंक कर्मचारी जैसे जीवन की उम्मीद नहीं कर सकता.’

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


यह भी पढ़ें: MHA ने जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में IAS-IPS की भारी कमी का हवाला दिया, जल्द चाहता है अधिकारियों की तैनाती


 

share & View comments