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Friday, 22 November, 2024
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क्यों मोदी सरकार राजकोषीय घाटे पर मजबूत स्थिति में है लेकिन कुछ राज्यों के सामने भारी चुनौती

केंद्र सरकार का राजकोषीय घाटा अप्रैल-जून तिमाही में पूरे साल के लक्ष्य के करीब 21 फीसदी तक पहुंच गया. लेकिन आगे चलकर कर संग्रह में उछाल के कारण बजटीय व्यय से अधिक के प्रबंधन में मदद मिल सकती है.

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नई दिल्ली: जून 2022 के अंत में लेखा महानियंत्रक (सीजीए) की तरफ से जारी ताजा आंकड़े बताते हैं कि अप्रैल-जून तिमाही में केंद्र सरकार का राजकोषीय घाटा पूरे साल के लक्ष्य के 21 फीसदी तक पहुंच गया है, जो अधिक पूंजीगत व्यय और अपेक्षाकृत कम राजस्व प्राप्तियों का नतीजा है. यद्यपि आरबीआई के सरप्लस ट्रांसफर में कमी से राजस्व वृद्धि कमजोर रही है लेकिन आगे चलकर कर संग्रह बढ़ने पर सरकार को अधिक बजटीय सब्सिडी व्यय और उत्पाद शुल्क में कटौती के कारण होने वाली राजस्व हानि की पूर्ति में मदद मिल सकती है. इसके अलावा, यदि कच्चे तेल और कमोडिटी की कीमतों में नरमी बनी रहती है, तो मुद्रास्फीति जोखिमों को घटाने पर सरकारी खर्च में कमी आनी चाहिए.

पहली तिमाही के आंकड़े बताते हैं कि समग्र आधार पर राज्यों की वित्तीय स्थिति पिछले कुछ वर्षों की इसी अवधि की तुलना में बेहतर दिखती है. हालांकि, कुछ राज्यों की वित्तीय स्थिति चिंता का कारण बनी हुई है.

उदाहरण के तौर पर, बिहार पहली तिमाही में कर राजस्व में कमी के साथ-साथ पूंजीगत व्यय में दबाव का सामना करता नजर आया है. बिहार सकल राज्य घरेलू उत्पाद (जीएसडीपी) के प्रतिशत के रूप में सबसे अधिक राजकोषीय घाटे वाला राज्य भी है.


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पहली तिमाही में सरकार के राजस्व और व्यय की स्थिति

गैर-कर राजस्व घटने के कारण पहली तिमाही में केंद्र सरकार के राजस्व में 5 प्रतिशत की कमजोर वृद्धि दर्ज की गई है. गैर-कर राजस्व का एक प्रमुख घटक भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की तरफ से सरकार को लाभांश भुगतान रहा है.

आरबीआई ने मार्च 2022 को समाप्त वित्तीय वर्ष के लिए सरकार को 30,307 करोड़ रुपये यानी काफी कम रकम ट्रांसफर करने को मंजूरी दी. पिछले साल, आरबीआई ने लाभांश के रूप में 99,000 करोड़ रुपये से अधिक का हस्तांतरण किया था.

Illustration: Ramandeep Kaur | ThePrint
चित्रण: रमनदीप कौर | दिप्रिंट

हालांकि, कर राजस्व एक उत्साहजनक तस्वीर पेश करता है क्योंकि उन्होंने पिछले वर्ष की समान तिमाही की तुलना में 22 प्रतिशत वृद्धि दर्ज की है. ये पूरे साल के बजटीय लक्ष्य का 26 फीसदी हिस्सा है. कर राजस्व की बात करें तो आयकर, निगम कर और माल और सेवा कर (जीएसटी) ने पिछले वर्ष की समान अवधि की तुलना में वृद्धि दर्ज की है, जबकि सीमा शुल्क और उत्पाद शुल्क से प्राप्तियां पिछले वर्ष की इसी तिमाही की तुलना में कम रही हैं. इस गिरावट के लिए पेट्रोल और डीजल पर उत्पाद शुल्क में कटौती और पाम तेल और कपास जैसी वस्तुओं पर सीमा शुल्क में कटौती को जिम्मेदार माना जा सकता है.

भारतीय जीवन बीमा निगम (एलआईसी) के विनिवेश से सरकार को 21,000 करोड़ रुपये मिले, उधारी को छोड़ पूंजीगत प्राप्तियां भी पिछले साल की तुलना में बेहतर रही हैं. इस वर्ष के लिए विनिवेश लक्ष्य 65,000 करोड़ रुपये है, जिसमें अप्रैल-जून तिमाही में सरकार लगभग 25,000 करोड़ रुपये जुटाने में सफल भी रही है.

सरकार की राजकोषीय स्थिति की बात करें तो पूंजीगत व्यय में तेज उछाल नजर आया है. निजी निवेश घटने वाले माहौल के बीच सरकार ने इस साल पूंजीगत व्यय पर 7.5 लाख करोड़ रुपये खर्च का बजट रखा है. पूरे साल के इस लक्ष्य में से सरकार ने पहली तिमाही में 1.75 लाख करोड़ रुपये खर्च कर चुकी है. यह पूरे वर्ष के लक्ष्य का 23 प्रतिशत है और पिछले वर्ष की इसी अवधि की तुलना में 57 प्रतिशत अधिक है. कुल व्यय के हिस्से के तौर पर पूंजीगत व्यय 18.5 प्रतिशत था जो पिछले कुछ वर्षों में सबसे अधिक है. पहली तिमाही में पूंजीगत व्यय का एक बड़ा हिस्सा सड़क और रेलवे जैसे बुनियादी ढांचा क्षेत्रों पर खर्च किया गया है.

राज्यों को पूंजीगत व्यय के लिए प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से सरकार ने पूंजीगत निवेश पर 50 सालों के लिए एक लाख करोड़ रुपये के ब्याज मुक्त ऋण का प्रस्ताव दिया है. इसने राज्यों को करोड़ों रुपये उधार देने के नियम निर्धारित किए हैं. इसमें 80,000 करोड़ केंद्रीय करों और शुल्कों में राज्य की हिस्सेदारी के मुताबिक मंजूर किए जाएंगे, शेष 20,000 करोड़ रुपये पीएम गति शक्ति और पीएम ग्राम सड़क योजना जैसी विशिष्ट योजनाओं के लिए होंगे. सरकार ने पूंजीगत व्यय ऋण के रूप में 20,000 करोड़ रुपये मंजूर किए हैं, ऐसे में आने वाली तिमाहियों में हस्तांतरण में तेजी आ सकती है, क्योंकि रकम जारी करने के नियम लागू हैं.


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राज्यों की क्या रही स्थिति?

भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (कैग) की तरफ से जारी 21 राज्यों के विश्लेषणात्मक आंकड़ों से पता चलता है कि ज्यादातर राज्यों ने कर राजस्व के मामले में अप्रैल-जून तिमाही में पिछले वर्षों की इसी तिमाही की तुलना में व्यापक तौर पर बेहतर प्रदर्शन किया है. राज्यों का कुल कर राजस्व पिछले साल के 3.2 लाख करोड़ रुपये की तुलना में 4.4 लाख करोड़ रुपये रहा, जिसमें राज्य उत्पाद शुल्क और राज्य वस्तु एवं सेवा कर में अच्छी वृद्धि दर्ज की गई है. केंद्र सरकार का पूंजीगत व्यय जहां 57 प्रतिशत बढ़ा है, वहीं राज्यों के पूंजीगत व्यय में पिछले वर्ष की इसी तिमाही की तुलना में मामूली गिरावट दर्ज की गई है. हालांकि, पूंजीगत व्यय के लिए राज्यों को कर्ज देने के नियम लागू रहने के साथ आने वाली तिमाहियों में राज्यों का पूंजीगत व्यय बढ़ने के आसार हैं.

आंकड़े दर्शाते हैं कि बिहार की कर प्राप्तियां पूरे साल के लक्ष्य का महज 10.4 फीसदी रही हैं. इसके उलट, गुजरात, कर्नाटक, महाराष्ट्र, उत्तराखंड, तेलंगाना और सिक्किम जैसे राज्य पहली तिमाही में अपने पूरे साल की कर प्राप्तियों का 23 प्रतिशत से अधिक जुटाने में सफल रहे हैं. इनमें से गुजरात, कर्नाटक, महाराष्ट्र और उत्तराखंड में पहली तिमाही में राजकोषीय अधिशेष (व्यय से अधिक राजस्व प्राप्ति) की स्थिति रही है. झारखंड, ओडिशा और उत्तर प्रदेश ऐसे अन्य राज्य हैं जो पहली तिमाही में राजकोषीय अधिशेष हासिल करने वाली स्थिति में रहे हैं.

Illustration: Ramandeep Kaur | ThePrint
चित्रण: रमनदीप कौर | दिप्रिंट

यद्यपि राज्यों के कर राजस्व में सुधार हुआ है, वहीं पहली तिमाही में कुछ प्रमुख राज्यों के पूंजीगत व्यय में तेज गिरावट दिखी है. तेलंगाना, पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड कुछ ऐसे बड़े राज्य हैं जहां पूंजीगत व्यय में तेज गिरावट नजर आई है.

(राधिका पांडेय नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक फाइनेंस एंड पॉलिसी में एक सलाहकार हैं. प्रमोद सिन्हा अभी नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक फाइनेंस एंड पॉलिसी (एनआईपीएफपी) में सलाहकार के तौर पर कार्यरत हैं.)

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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