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Sunday, 22 December, 2024
होमदेशअनुसूचित जाति कल्याण के लिए 50,000 करोड़ या कुल राशि का 20% भी 4 साल में खर्च नहीं कर पाई मोदी सरकार

अनुसूचित जाति कल्याण के लिए 50,000 करोड़ या कुल राशि का 20% भी 4 साल में खर्च नहीं कर पाई मोदी सरकार

पिछले चार साल में 2017-18 से 2020-21 तक डीएपीएससी के तहत कुल 2,59,977.40 करोड़ रुपये या करीब 2.6 लाख करोड़ रुपये आवंटित किए गए.

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नई दिल्ली: 2017-18 से लेकर 2020-21 के बीच अनुसूचित जातियों (एससी) के कल्याण के लिए आवंटित कुल धनराशि का लगभग 20 प्रतिशत (लगभग 50,000 करोड़ रुपये) कई केंद्रीय मंत्रालयों/विभागों द्वारा अप्रयुक्त रह गया यानी कि बिना उपयोग किए ही छोड़ दिया गया. दिप्रिंट को इस बात की जानकारी मिली.

सूत्रों के मुताबिक इसकी वजह से मोदी सरकार ने आवंटन के संबंध में बदलाव के प्रस्ताव रखा है, जिसके तहत मंत्रालयों/विभागों में एक समान वितरण के बजाय उच्च प्राथमिकता वाले क्षेत्रों में निवेश किए जाने पर जोर दिया जाएगा और लाभार्थियों को 50,000 रुपये तक का नकद हस्तांतरण किया जाता है.

अप्रयुक्त धनराशि का मामला और आवंटन के लिए नए सिस्टम वाले सरकार के प्रस्ताव का मुद्दा इस महीने की शुरुआत में अनुसूचित जाति के लिए विकास कार्य योजना (डीएपीएससी) 2019-20 की समीक्षा बैठक में उठा.

डीएपीएससी सरकार की एक पहल है जिसके तहत अनुसूचित जातियों (एससी) के उत्थान के उद्देश्य से विभिन्न मंत्रालयों/विभागों की योजनाओं के लिए धन आवंटित किया जाता है.

पिछले चार साल में 2017-18 से 2020-21 तक डीएपीएससी के तहत कुल 2,59,977.40 करोड़ रुपये या करीब 2.6 लाख करोड़ रुपये आवंटित किए गए.

वरिष्ठ सरकारी अधिकारियों के अनुसार, ‘इस अवधि में कुल आठ मंत्रालय/विभाग के पास इस अप्रयुक्त धनराशि का 80 फीसदी हिस्सा है. इनमें कृषि विभाग, स्कूली शिक्षा एवं साक्षरता विभाग, और श्रम एवं रोजगार मंत्रालय इत्यादि शामिल हैं.’

अधिकारियों ने कहा कि फ्रेमवर्क में बदलाव का प्रस्ताव केंद्रीय सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय द्वारा दिया गया और इसे ‘पीएम-सोशल इन्क्लूजन मिशन (सिम)’ के रूप में प्रस्तुत किया गया. पीएम-सिम के तहत यह सुझाव दिया गया है कि एससी के लिए 40 प्रतिशत फंड उच्च प्राथमिकता वाले क्षेत्रों में निवेश किया जाए और 60 सशर्त नकद हस्तांतरण के माध्यम से दिया जाए.

सूत्रों के मुताबिक इस प्रस्ताव को सबसे पहले सरकार के थिंक टैंक नीति आयोग ने पेश किया था. इसे अभी मंजूरी दी जानी बाकी है.

‘प्रस्तावित पीएम-सिम एक सशर्त कैश ट्रांसफर स्कीम है. इसके जरिए एक करोड़ गरीब अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति परिवारों को लाभ मिलेगा.’ एक अधिकारी ने कहा, ‘प्रत्यक्ष लाभ का हस्तांतरण तीन महीने में एक बार यानी कि तिमाही आधार पर उनके जनधन खातों में किया जाएगा.

इसके जरिए एक परिवार को अधिकतम 50,000 रुपये प्रति वर्ष की राशि मिल सकती है. नकद हस्तांतरण परिवार के भविष्य को बेहतर बनाने के लिए दिया जाएगा.

सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय के सचिव आर सुब्रह्मण्यम ने टिप्पणी करते हुए कहा कि सरकार इस बात को लेकर गंभीर है कि अनुसूचित जाति के लिए विभिन्न मंत्रालयों को आवंटित धन का पूरा उपयोग किया जाए और बेहतर परिणाम प्राप्त किए जाएं.


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अनुसूचित जाति कल्याण के लिए विशेष आवंटन

अनुसूचित जाति के कल्याण के लिए अलग धन आवंटन की अवधारणा छठी पंचवर्षीय योजना में शुरू की गई थी और इसे 1980 से लागू किया गया. सूत्रों ने कहा कि 1985 में केंद्र सरकार द्वारा जिम्मेदारी लेने के पहले इसके कार्यान्वयन का नेतृत्व राज्य सरकारों द्वारा किया जा रहा था.

हालांकि, नीति आयोग के पूर्ववर्ती योजना आयोग की एक रिपोर्ट के मुताबिक केंद्र सरकार द्वारा इसे लागू किए जाने की गति काफी धीमी थी.

अपनी रिपोर्ट में योजना आयोग ने कहा था, ‘वर्ष 2009 में किए गए एक समीक्षा के मुताबिक केवल 17 केंद्रीय मंत्रालयों ने ही इसे लागू किया था. बड़े पैमाने पर काल्पनिक आवंटन किए गए थे जबकि प्राथमिकता वाले क्षेत्रों पर काफी कम ध्यान दिया गया था.’

2017 में नीति आयोग की एक रिपोर्ट में बजट की योजनाओं के अलावा एससी, एसटी के लिए विशेष आवंटन को जारी रखने की आवश्यकता पर जोर दिया गया था. इसके बाद योजना आयोग द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले एससी उप-योजना शब्द को डीएपीएससी में बदल दिया गया .

रिपोर्ट में कहा गया कि डीएपीएससी का उद्देश्य अनुसूचित जाति के लोगों के बीच गरीबी और बेरोजगारी में तेजी से कमी लाना और उत्पादक परिसंपत्तियों के सृजन के साथ-साथ आजीविका के अन्य साधनों का विकास करना है ताकि विकास के लाभ में उनकी बराबर की सहभागिता सुनिश्चित की जा सके.

हालांकि, अधिकारियों का कहना है कि डीएपीएससी का कार्यान्वयन उम्मीदों पर खरा नहीं उतरा.


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‘काम का अत्यधिक विस्तार’

अधिकारियों ने समीक्षा बैठक में विचार-विमर्श का हवाला देते हुए कहा कि वर्ष 2017-18 से 2020-21 के बीच आवंटित धनराशि में से 49,722.18 करोड़ रुपये विभिन्न मंत्रालयों/विभागों द्वारा वापस कर दिए गए.

सूत्रों ने बताया कि पिछले साल सबसे अधिक राशि वापस की गई जो कि कुल आवंटित धनराशि का 41 फीसदी था.

लेकिन अप्रयुक्त धनराशि के 20 प्रतिशत के लिए आठ मंत्रालयों/विभागों – कृषि विभाग, स्कूली शिक्षा और साक्षरता विभाग, श्रम एवं रोजगार मंत्रालय, पेयजल एवं स्वच्छता मंत्रालय, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग, पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय, सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग और ऊर्जा मंत्रालय जिम्मेदार हैं.

इतना ही नहीं, ऐसा पाया गया कि 10 विभागों को आवंटित 1.33 लाख करोड़ रुपये से अनुसूचित जाति को सीधे-सीधे फायदा नहीं हुआ.

एक अन्य अधिकारी ने बताया, ‘अनुसूचित जातियों के लिए कोई विशिष्ट योजनाएं भी नहीं थीं और लाभार्थियों का कोई डेटाबेस भी नहीं रखा गया था. एक औपचारिक तरीके से इसका लेखा-जोखा रखा गया था और 10 प्रमुख विभागों ने काल्पनिक तरीके से आवंटन किया था.’

इन विभागों में स्कूली शिक्षा एवं साक्षरता विभाग, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग, पेयजल एवं स्वच्छता विभाग, महिला एवं बाल विकास विभाग, और उच्च शिक्षा विभाग शामिल हैं.

वर्तमान में जारी व्यवस्था की ओर इशारा करते हुए बैठक में कहा गया कि आवंटन की मौजूदा प्रक्रिया काफी विस्तृत है और प्राथमिकता वाले क्षेत्रों पर कोई विशेष जोर नहीं है.

मीटिंग में हुई चर्चा का ज़िक्र करते हुए एक अन्य अधिकारी ने कहा, ‘इसके लिए आजीविका, शिक्षा, स्वास्थ्य, पोषण, पेयजल और आवास पर अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है. अनुचित उपयोग और बड़े पैमाने पर औपचारिक लेखांकन व काल्पनिक तरीके से किया गया आवंटन बेहतर परिणाम लाने में सक्षम नहीं होगा. बुनियादी ढांचे से संबंधित मंत्रालय अनुसूचित जाति के लिए विशिष्ट योजनाएं शुरू करने में असमर्थ हैं और इससे आए परिणामों की भी कोई निगरानी नहीं की जाती.

सूत्रों की मानें तो केंद्रीय वित्त मंत्रालय ने बुनियादी ढांचे से संबंधित मंत्रालयों से डीएपीएससी को हटाने का सुझाव भी दिया है. इसमें बताया गया है कि अगर किसी मंत्रालय को छोड़ दिया गया है तो नीति आयोग अध्ययन करेगा.

इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.


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