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शुक्रवार, 9 मई, 2025
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मोदी सरकार की गौ कल्याण एजेंसी 4 साल से बिना अध्यक्ष के, 500 करोड़ रुपये पड़े हैं बेकार

प्रधानमंत्री की पसंदीदा परियोजना राष्ट्रीय कामधेनु आयोग का गठन 2019 में किया गया था, लेकिन ‘सरकार की रुचि की कमी’ के कारण इसका अध्यक्ष नहीं है और धन का उपयोग नहीं हो पाया है. राज्यों में भी गौ कल्याण निकायों की कमी है.

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नई दिल्ली: पिछले साल जनवरी में, लोकसभा चुनावों से पहले, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की दिल्ली स्थित आवास पर मकर संक्रांति के मौके पर गायों को दुलारते और चारा खिलाते हुए, यानी “गौ सेवा” करते हुए तस्वीरें वायरल हुई थीं.

राम मंदिर के नए प्राण प्रतिष्ठा समारोह से ठीक पहले इन तस्वीरों के वायरल होने को प्रतीकात्मक रूप में देखा गया, जो हिंदू समुदाय द्वारा पूजनीय ‘गौ माता’ के प्रति मोदी के सॉफ्ट इमेज और प्रेम को दर्शाती हैं.

एक बार फिर, पिछले साल सितंबर में, पीएम ने अपने एक्स हैंडल पर ‘दीपज्योति’ नाम की एक नवजात बछिया को चूमते और दुलारते हुए तस्वीरें साझा कीं.

गायों के प्रति पीएम का यह स्नेह उनकी सरकार की गायों की भलाई को लेकर चिंता के अनुरूप था, जिसके तहत 2019 में राष्ट्रीय कामधेनु आयोग (आरकेए) का गठन किया गया था—गायों और उनके वंश की संरक्षण, सुरक्षा और विकास के लिए एक सलाहकार निकाय के रूप में.

उस साल के आम चुनावों से पहले पशुपालन मंत्रालय के तहत बनाए गए इस आयोग में पिछले कुछ वर्षों से न तो अध्यक्ष नियुक्त हुए हैं और न ही सदस्य, और इसके लिए निर्धारित ₹500 करोड़ के बजट को “छुआ तक नहीं गया.”

मंत्रालय के एक अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया, “सरकार की रुचि की कमी के कारण नियुक्तियां नहीं हो सकीं.”

आयोग के अंतिम अध्यक्ष वल्लभभाई कथीरिया थे, जो राजकोट के पूर्व सांसद और गुजरात गौ सेवा एवं गौचार विकास बोर्ड के अध्यक्ष रहे. उन्होंने फरवरी 2021 में अपना कार्यकाल पूरा होने तक यह पद संभाला.

कथीरिया ने 2019 में दिप्रिंट को बताया था कि आयोग का मकसद गौशालाओं को मदद देना था—जैसे कि नई तकनीक, पैसों की सहायता या लोन की सुविधा. इससे वे गायों की देखभाल अच्छी तरह कर सकें और गाय से जुड़े सामान बाजार में बेच सकें. योजना ये भी थी कि हर गांव के घर में कम से कम एक गाय हो.

कथीरिया के पद छोड़ने के बाद यह उम्मीद की जा रही थी कि देसी नस्ल की गायों को बढ़ावा देने और गांवों में गाय-आधारित अर्थव्यवस्था के लिए नीति तैयार करने की इस महत्वपूर्ण सांस्कृतिक और हिंदुत्व परियोजना के लिए एक और अध्यक्ष नियुक्त किया जाएगा. आरकेए राष्ट्रीय गोकुल मिशन का भी हिस्सा है। इस मिशन का मकसद गाय और भैंस का दूध देने की क्षमता और उनकी उत्पादकता को बेहतर बनाना है.

मंत्रालय के एक अधिकारी ने बताया, “पशुपालन विभाग के अधिकारियों को एक और पावर सेंटर नहीं चाहिए था और प्रधानमंत्री कार्यालय की ओर से भी नई नियुक्ति के लिए कोई दबाव नहीं था. इससे ध्यान की कमी झलकती है. जब कथीरिया की नियुक्ति हुई थी, तब भी उन्हें कई महीनों तक कार्यालय और स्टाफ नहीं मिला, जबकि आयोग के लिए ₹500 करोड़ का बजट आवंटित किया गया था.”

उन्होंने आगे कहा, “कई अन्य (राज्य) आयोगों में भी सरकार अपने ही लोगों को नियुक्त करने के लिए समय नहीं देती. वे बड़े मुद्दों में व्यस्त रहते हैं, इसलिए गौ आयोगों में अध्यक्ष और सदस्य सालों तक नियुक्त नहीं किए जाते क्योंकि प्राथमिकताएं कुछ और होती हैं.”

कथीरिया ने दिप्रिंट से बुधवार को कहा, “मैं एक सिद्धांतवादी बीजेपी कार्यकर्ता के रूप में गौ सेवा कर रहा हूं. गुजरात में और फिर केंद्र में रहते हुए मैंने गायों और गौ-आधारित अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने का काम किया. जब पार्टी ने मुझे राजकोट लौटने को कहा, तो मैं वापस आया और अब भी गौ सेवा कर रहा हूं। मेरा कार्यकाल समाप्त होने के बाद क्या हुआ, मुझे जानकारी नहीं है.”

‘बुरा प्रचार’

इस साल फरवरी में संसद के बजट सत्र के दौरान एक सवाल के जवाब में केंद्रीय पशुपालन और मत्स्य मंत्री राजीव रंजन सिंह ने स्वीकार किया कि “(राष्ट्रीय कामधेनु आयोग) के अध्यक्ष का पद फरवरी 2022 से खाली है.” उन्होंने यह भी जानकारी दी कि मंत्रालय ने इससे संबंधित कोई योजना लागू नहीं की है और आयोग को आवंटित 500 करोड़ रुपये की राशि नहीं छुई गई है.

ठीक यही जवाब 2023 में भी दिया गया था. जब संसद में सवाल पूछा गया, तो मोदी सरकार ने जानकारी दी थी कि “कामधेनु आयोग बिना किसी नियुक्त अध्यक्ष के काम कर रहा है और आयोग ने 2019 से कोई योजना लागू नहीं की है.”

पहले उल्लेखित मंत्रालय के एक अधिकारी ने बताया कि “राष्ट्रीय गोकुल मिशन और एनिमल वेलफेयर बोर्ड पहले से ही मौजूद हैं.”

“गायों के लिए अलग आयोग बनाने के पीछे क्या सोच थी? यह कामों की पुनरावृत्ति थी, इसलिए सरकार ने पहले अध्यक्ष का कार्यकाल समाप्त होने के बाद नए अध्यक्ष की नियुक्ति पर ध्यान नहीं दिया और आयोग को एनिमल वेलफेयर बोर्ड से जोड़ दिया गया.”

मंत्रालय के एक दूसरे अधिकारी ने स्वीकार किया कि “पहले कार्यकाल में आयोग को मिली नकारात्मक पब्लिसिटी के बाद सरकार ने हाथ जला लिए, जब पूर्व अध्यक्ष ने ‘गोबर चिप’ की घोषणा की और एक ‘गौ विज्ञान परीक्षा’ का प्रस्ताव रखा, जिसे बाद में रद्द कर दिया गया.”

कथीरिया के समय में आयोग ने ‘स्वदेशी गाय विज्ञान’ परीक्षा की घोषणा की थी. भारी आलोचना के बाद, पशुपालन विभाग को यह परीक्षा रद्द करनी पड़ी और कहा गया कि आयोग को ऐसी कोई परीक्षा आयोजित करने का अधिकार नहीं है.

“ये मुद्दे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की छवि को प्रभावित करते हैं,” दूसरे अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया.

बीजेपी शासित राज्यों में गौ कल्याण नीतियां

सरकार की राष्ट्रीय कामधेनु आयोग (आरकेए) को लेकर बेरुखी भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के कई नेताओं द्वारा गायों के पक्ष में दिए गए सार्वजनिक बयानों से एकदम विपरीत है.

यहां तक कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी 2021 में उत्तर प्रदेश चुनावों से पहले वाराणसी में कहा था: “कुछ लोगों ने ऐसा माहौल बना दिया है कि गाय और गोवर्धन की बात करना कोई गुनाह हो गया है.”

समाजवादी पार्टी पर कटाक्ष करते हुए उन्होंने कहा था: “गाय (कल्याण) कुछ लोगों के लिए अपराध हो सकता है, लेकिन हमारे लिए गाय माता है, पूज्य है. जो लोग गाय और भैंस का मजाक उड़ाते हैं, वे भूल जाते हैं कि आठ करोड़ परिवारों की आजीविका पशुधन पर निर्भर है.”

कई बीजेपी-शासित राज्यों ने गाय कल्याण के लिए नीतियां लागू की हैं और वहां गौ सेवा आयोग काम कर रहे हैं, जबकि कई अन्य राज्य इसमें पीछे हैं.

पिछले साल विधानसभा चुनावों से पहले महाराष्ट्र सरकार ने देशी गाय को ‘राज्य माता गौमाता’ घोषित किया और गौशालाओं को सब्सिडी दी. इसे हिंदुत्व वोटों के संकलन की राजनीतिक रणनीति के रूप में देखा गया. 2023 में राज्य ने शेखर मुंदड़ा को महाराष्ट्र गौ सेवा आयोग का अध्यक्ष मंत्री स्तर पर नियुक्त किया.

अब कई राज्यों में गाय को ‘राज्य माता’ का दर्जा देने की मांग तेज हो रही है, जहां गौ सेवा आयोग या तो अस्तित्व में नहीं हैं या केवल कागजों पर चल रहे हैं.

प्रधानमंत्री मोदी के गृह राज्य गुजरात में गौ आयोग बिना अध्यक्ष के चल रहा है और पशुपालन विभाग के अधिकारी कार्य संभाल रहे हैं.

मध्य प्रदेश में पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने 2020 में देशी गायों को बढ़ावा देने के लिए ‘गौ कैबिनेट’ का गठन किया था, लेकिन दिसंबर 2023 से मोहन यादव के मुख्यमंत्री बनने के बाद से राज्य का गौ सेवा आयोग पुनर्गठित नहीं हुआ है.

इसी तरह राजस्थान में भजन लाल सरकार भी अब तक राज्य के गौ सेवा आयोग का पुनर्गठन नहीं कर पाई है. इसका पिछला अध्यक्ष कांग्रेस के मेघा लाल जैन थे.

गौ आयोग के एक पूर्व अध्यक्ष ने दिप्रिंट से कहा: “सरकार उन्हीं विभागों पर ध्यान देती है जो जनकल्याण से सीधे जुड़े होते हैं. गौ सेवा की याद केवल चुनावों से पहले या जब कार्यकर्ता दबाव डालते हैं, तब आती है.”

“समस्या यह है कि अफसरों की गाय सेवा, गौ अर्थव्यवस्था या हिंदुत्व के प्रचार को लेकर कोई जवाबदेही नहीं होती. केवल कोई राजनीतिक नेता ही जनता को जवाब देता है.”

एक राज्य जहां गौ सेवा आयोग पूरी तरह काम कर रहा है वह है हरियाणा, जहां आयोग के अध्यक्ष पिछले पांच साल से पद पर हैं.

हरियाणा गौ सेवा आयोग के अध्यक्ष सर्वन कुमार गर्ग ने दिप्रिंट को बताया कि जहां पार्टी कार्यकर्ता सतर्क रहते हैं, वे अधिकारियों पर गायों के विकास के लिए निर्धारित फंड खर्च कराने का दबाव बनाते हैं. लेकिन जहां कार्यकर्ता सतर्क नहीं होते, वहां फंड का इस्तेमाल नहीं होता.

उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने सितंबर 2024 में, संसदीय सीटों पर हार के तुरंत बाद, गौ सेवा आयोग का पुनर्गठन किया और श्याम बिहारी गुप्ता को अध्यक्ष, दो उपाध्यक्ष और तीन सदस्य नियुक्त किए. गुप्ता जैविक खेती, ड्रिप सिंचाई और राज्य में गेमिंग कार्यक्रम आयोजित करने के लिए जाने जाते हैं.

उत्तराखंड में पुष्कर सिंह धामी सरकार ने राजेंद्र अंतवाल को तीसरी बार गौ सेवा आयोग का अध्यक्ष नियुक्त किया. वे 2017 से इस पद पर हैं. उन्होंने कहा, “हमारा राज्य देशी गायों की रक्षा के लिए सही दिशा में काम कर रहा है, इसलिए मुझे नियुक्त किया गया और आयोग में 11 सदस्य हैं जो पशुपालन विभाग के साथ मिलकर काम करते हैं.”

छत्तीसगढ़ में, दिसंबर 2024 में विशेषर सिंह पटेल को गौ आयोग का अध्यक्ष नियुक्त किया गया, एक साल बाद जब भाजपा ने कांग्रेस से राज्य वापस छीना. पटेल भी गायों की रक्षा के लिए कार्य करने के लिए जाने जाते हैं.

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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