scorecardresearch
Friday, 22 November, 2024
होमदेशमॉक ड्रिल, स्टैंडबाय पर मशीनें — सिल्क्यारा सुरंग के बाहर हर किसी को है अपनों से मिलने का इंतज़ार

मॉक ड्रिल, स्टैंडबाय पर मशीनें — सिल्क्यारा सुरंग के बाहर हर किसी को है अपनों से मिलने का इंतज़ार

अमेरिका से आई ऑगर मशीन के खराब होने से पहले 24 मीटर मलबे में ड्रिलिंग का काम पूरा हो चुका था, लेकिन अब दूसरी मशीन शनिवार को इंदौर से पहुंचेगी, जो मज़दूर अपने साथियों की तरह फंसने से बच पाए, वो इंतज़ार के सिवाए कुछ नहीं कर सकते.

Text Size:

उत्तरकाशी: झारखंड के एक कॉन्ट्रैक्ट मज़दूर सुमित की रविवार सुबह निर्माणाधीन सिल्कयारा सुरंग में रात की शिफ्ट लगभग पूरी हो चुकी थी, तभी उनकी आंखों के सामने सुरंग का एक हिस्सा ढह गया. उन्होंने मलबा गिरते और ढांचे को खिसकते हुए सामने से देखा, जिसमें उनके 40 सहकर्मी बीते शनिवार से फंसे हुए हैं. वो केवल इसलिए बच पाए क्योंकि वो उनसे कुछ कदम आगे चल रहे थे.

उन्होंने दिप्रिंट को बताया, “गिरने से पहले सुरंग में ग्रूविंग का काम चल रहा था और ऑपरेटर भी मौजूद था. सुरंग में धुलाई का काम चल रहा था और तभी दो कदम बढ़ा और देखा कि मिट्टी गिर गई.”

12 नवंबर की सुबह लगभग 5 बजे, उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले में निर्माणाधीन सिल्कयारा सुरंग का 30 मीटर का हिस्सा ढह गया. तब से, फंसे हुए मज़दूरों को बचाने की कोशिशें लगातार जारी हैं, लेकिन एक के बाद एक रुकावटें सामने आ रही हैं. अमेरिका से मंगवाई गई एक विशेष ऑगर मशीन (मिट्टी में छेद करने वाली मशीन) जिसे मंगलवार को पहली मशीन के खराब होने के बाद दिल्ली से हवाई मार्ग से लाया गया था, का उपयोग फंसे हुए लोगों के लिए रास्ता बनाने के लिए किया जा रहा था, लेकिन वह भी शुक्रवार को खराब हो गई.

बीते छह दिन से ज़िंदगी और मौत की जंग लड़ रहे मजदूरों के साथी, परिवार वाले अब, उत्सुकता से इंदौर से विमान द्वारा लाई जा रहे दूसरी मशीन के आने के इंतज़ार में बाहर खड़े हुए सुरंग की तरफ मायूसी से देख रहे हैं.

राष्ट्रीय राजमार्ग और अवसंरचना विकास कारपोरेशन लिमिटेड (NHIDCL) के निदेशक (ए एंड एफ) अंशु मनीष खाल्खो ने मीडिया से कहा, “इंदौर से हवाई मार्ग से लाई जाने वाली मशीन का उपयोग करके शनिवार सुबह काम फिर से शुरू होने की उम्मीद है. हालांकि, मशीन कब तक आएगी इस बारे में अभी कुछ बताया नहीं गया है.”

शुक्रवार दोपहर तक, रात भर के ऑपरेशन के बाद 24 मीटर मलबे को भेद दिया गया था, जिससे सुरंग के भीतर 2 से 2.5 किलोमीटर के बफर जोन में छह दिनों से फंसे मज़दूरों में जल्द ही बाहर निकलने की उम्मीद जगी थी.

Rescue ops underway at under-construction Silkyara tunnel | Suraj Singh Bisht | ThePrint
निर्माणाधीन सिल्क्यारा सुरंग में बचाव अभियान जारी | सूरज सिंह बिष्ट/दिप्रिंट

मीडिया ब्रीफिंग के दौरान खाल्खो ने कहा कि सुरंग में अभी लगभग 24-25 मीटर तक भेदे जाने का काम बाकी है.

उन्होंने कहा, “सुरंग में 45 से 60 मीटर तक मलबा जमा हो गया है, जहां ड्रिलिंग कार्य चल रहा है.”

खाल्खो ने यह भी दावा किया कि डीजल से चलने के कारण ड्रिलिंग मशीन की गति भी धीमी है. उन्होंने कहा कि बीच-बीच में ड्रिलिंग को रोकना भी पड़ता है क्योंकि भारी मशीन में कंपन होने से मलबा गिरने का खतरा हो सकता है. इसलिए एक घंटे में केवल एक मीटर तक ही ड्रिलिंग की जा रही है.

खाल्खो ने कहा, ‘‘हम एक रणनीति से काम कर रहे हैं लेकिन यह सुनिश्चित करना होगा कि बीच में कुछ गलत न हो जाए.’’

NHIDCL के निदेशक (ए एंड एफ) अंशु मनीष खाल्को | सूरज सिंह बिष्ट/दिप्रिंट
NHIDCL के निदेशक (ए एंड एफ) अंशु मनीष खाल्खो | सूरज सिंह बिष्ट/दिप्रिंट

योजना यह है कि ड्रिलिंग के जरिए मलबे में रास्ता बनाते हुए उसमें 900 मिमी के छह मीटर लंबे पाइप को एक के बाद एक इस तरह डाला जाएगा कि मलबे के एक ओर से दूसरी ओर तक एक ‘वैकल्पिक सुरंग’ बन जाए और मज़दूर उसके जरिए से रेंगते हुए बाहर आ पाएं. हालांकि, दूसरा विकल्प यह भी है कि पहियों वाला एक स्ट्रेचर बनाया गया है, जिससे सात मिनट के अंदर सभी मजदूरों को बाहर निकाले जाने की योजना है.

गुरुवार तक, मज़दूरों को निकालने के लिए अस्थायी सुरंग के लिए चार पाइप बिछाए जा चुके थे. दिप्रिंट ने जब शुक्रवार को स्थल का दौरा किया तो पांचवें को बिछाने की प्रक्रिया चल रही थी.

राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल (एनडीआरएफ) ने मज़दूरों के रेस्क्यू ऑपरेशन पर एक मॉक ड्रिल गुरुवार शाम को की थी और एक ड्रिल शुक्रवार दोपहर को की गई.

अधिकारियों ने बताया कि सुरंग में फंसे मज़दूरों को लगातार खाने-पीने के लिए तीन इंच के एक पाइप से ड्राइ फ्रूट्स, ऑक्सीजन, पानी, दवाइयां आदि पहुंचाई जा रही हैं.

वॉकी-टॉकी के जरिए से बीच-बीच में अंदर फंसे मज़दूरों से बातचीत हो पा रही है, लेकिन परिजनों के चेहरों पर मायूसी साफ झलक रही है, उन्हें प्रशासन से बहुत सारी शिकायतें हैं, लेकिन उम्मीद भी हैं.

NHIDCL की ओर से सुरंग बना रही नवयुग इंजीनियरिंग लिमिटेड के जनसंपर्क अधिकारी जीएल नाथ ने शुक्रवार को मीडिया से कहा, ‘‘सभी श्रमिक ठीक हैं. ऑगर मशीन भी ठीक से काम कर रही है और सभी को जल्द से जल्द बाहर निकाल लिया जाएगा.’’

Labourers sitting near site of under-construction tunnel | Suraj Singh Bisht | ThePrint
निर्माणाधीन सुरंग स्थल के पास बैठे मजदूर | सूरज सिंह बिष्ट/दिप्रिंट

राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल (एनडीआरएफ), राज्य आपदा प्रतिक्रिया बल (एसडीआरएफ), भारत-तिब्बत सीमा पुलिस (आईटीबीपी) और सीमा सड़क संगठन (बीआरओ) के 160 कर्मियों की एक टीम दिन-रात काम कर रही है.

ड्रिलिंग ऑपरेशन में शुरुआत में चुनौतियों का सामना करना पड़ा, जिसमें पहले ऑगर मशीन का खराब होना और भूस्खलन शामिल था, लेकिन बचाव की कोशिशों को जारी रखने के लिए अमेरिकी ऑगर मशीन को तैनात किया गया था.

करीब 12 हजार करोड़ रुपये की लागत वाली महत्वाकांक्षी चारधाम ‘ऑलवेदर’ सड़क परियोजना के तहत निर्माणाधीन सिल्क्यारा सुरंग (या सिल्क्यारा-बरकोट सुरंग) की ओर के मुहाने से 270 मीटर अंदर एक हिस्सा रविवार सुबह ढह गया था जिसके बाद से उसमें फंसे 40 श्रमिकों को निकालने की कोशिश की जा रही है. इस सुरंग के नॉर्थ पॉर्टल का काम लगभग पूरा हो चुका है और साउथ पोर्टल से केवल 500 मीटर का काम बाकी है.

बता दें कि साढ़े चार किलोमीटर लंबी सिलक्यारा सुरंग भी चारधाम परियोजना का हिस्सा है, जिसे उत्तरकाशी से यमुनोत्री के रास्ते को लगभग 25 किलोमीटर तक कम करने के उद्देश्य से बनाया जा रहा है, जिससे वहां तक पहुंचने में एक से डेढ़ घंटे का कम समय लगेगा.


यह भी पढ़ें: हिंदी TV न्यूज़ के पास सुरंग हादसे के लिए समय नहीं है, उन्हें बस गाज़ा और अयोध्या की खबरें दिखानी हैं


‘हमने सभी से बाहर आने को कहा…’

सुरंग के निर्माण में जुटे 20 से 35 वर्ष की आयु के 40 मज़दूरों में से 15 झारखंड से हैं. टीम का नेतृत्व कर रहे जेएपी-आईटी (झारखंड एजेंसी फॉर प्रमोशन ऑफ इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी) के सीईओ भुवनेश प्रताप सिंह ने कहा कि राज्य के सभी श्रमिक सुरक्षित हैं और उन्हें एयरलिफ्ट कर विमान से झारखंड वापस लाया जाएगा. बाकी बिहार, उत्तर प्रदेश, असम और ओडिशा से हैं. उनमें से कुछ पिछले चार साल से साइट पर काम कर रहे हैं, जबकि कुछ केवल दो हफ्ते पहले यहां आए हैं.

सुमित उन लोगों में से हैं जो झारखंड से उत्तराखंड आए थे. वो तीन महीने से साइट पर हैं. जिस ठेकेदार से उन्हें सुरंग पर काम करने के लिए रखा था, उसने पांच अन्य लोगों को भी भेजा था – जिनमें से दो असम से और तीन अन्य झारखंड से हैं. ये सभी सुरंग के भीतर फंसे लोगों में से हैं. सुमित ने अपने दोस्त विजय से बात की थी और उन्होंने बताया कि वो ठीक हैं.

झारखंड के रामगढ़ के 20-वर्षीय ओम कुमार सबसे पहले मलबे और कीचड़ को गिरते हुए देखने वालों में से थे.

उन्होंने दिप्रिंट को बताया, “हमने सभी से वहां से हटने के लिए कहा था, लेकिन वो वहीं बैठकर मिट्टी को देख रहे थे और हमसे जाने के लिए कह दिया. इसलिए, हम आगे चलने लगे और अचानक बहुत सारे पत्थर और मिट्टी नीचे गिर गई.’’

Labourers inside their quarters | Suraj Singh Bisht | ThePrint
अपने क्वार्टर्स के अंदर बैठे मज़दूर | सूरज सिंह बिष्ट/दिप्रिंट

एक अन्य मज़दूर, 30-वर्षीय सुजीत कुमार, जो प्रयागराज से हैं, भगवान के आभारी हैं कि घटना वाले दिन वो छुट्टी पर थे. हालांकि, अपने सहकर्मियों के लिए उनकी परेशानी उनके चेहरे पर साफ झलक रही थी. वह घटना के दिन से हर दिन साइट पर मौजूद हैं, उन्हें दोस्तों के शीघ्र बाहर निकाले जाने की उम्मीद है.

इस बीच, मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने गुरुवार को कहा कि उत्तराखंड में बन रही सभी सुरंगों की समीक्षा की जाएगी.

उन्होंने कहा, ‘‘सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय के तहत आने वाली एनएचआईडीसीएल सुरंग की निगरानी कर रही थी. हमें ऐसी सुरंगें चाहिए और उनमें से कई निर्माणाधीन हैं, जहां भी ऐसी सुरंगें बनाई जा रही हैं, हम उनकी समीक्षा करेंगे.’’

उत्तरकाशी के मुख्य चिकित्सा अधिकारी आरसीएस पंवार ने कहा कि सुरंग के पास एक छह बिस्तरों का अस्थाई क्लिनिक तैयार कर लिया गया है. इसके अलावा 10 एम्बुलेंस, प्राथमिक उपचार सभी तैयारियां कर ली गई हैं.

NDRF personnel at tunnel site | Suraj Singh Bisht | ThePrint
सुरंग स्थल पर एनडीआरएफ कर्मी | सूरज सिंह बिष्ट/दिप्रिंट


यह भी पढ़ें: बजट, स्टाफ और दवाईयों की कमी — दिल्ली सरकार के वेटनरी अस्पतालों की है जर्जर हालत


‘हिमालय स्थिर नहीं’

सुरंग ढहने के बाद भूवैज्ञानिकों ने चारधाम राजमार्ग पर चल रही परियोजनाओं पर सवाल उठाना शुरू कर दिया है.

हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर वाई-पी सुंद्रियाल ने इस घटना को पूरी तरह से लापरवाही बताते हुए हिमालयी राज्य में संसाधनों के ठीक से इस्तेमाल किए जाने की बात पर जोर दिया और कहा कि ‘‘हिमालय स्टेबल नहीं है, वो पल-पल उठ रहा है’’.

उन्होंने दिप्रिंट को बताया, “सुरंग निर्माण में ग्राउंड पेनेट्रेटिंग रडार (जीपीआर) की अनुपस्थिति, इमरजेंसी एक्जिट की कमी और 2-3 फीट के अंतराल पर स्टील पाइप या बार की अनुपस्थिति घटना के मुख्य कारणों में से थे.” ऐसे मामलों में जवाबदेही की कमी है.

दिप्रिंट ने टिप्पणी के लिए एनएचआईडीसीएल के दफ्तर का दौरा किया था, उनसे जवाब आने के बाद इस रिपोर्ट को अपडेट कर दिया जाएगा.

Workers' accommodation | Suraj Singh Bisht | ThePrint
मज़दूरों के घर जाने वाला रास्ता | सूरज सिंह बिष्ट/दिप्रिंट

सुंद्रियाल ने हिमालयी राज्य में संसाधनों का “वैज्ञानिक तरीके से उपयोग” करने की आवश्यकता पर जोर दिया.

कुछ साल पहले की एक रिपोर्ट का हवाला देते हुए जिसमें कहा गया था कि माउंट एवरेस्ट की ऊंचाई “86 सेमी बढ़ गई है”, उन्होंने कहा: “हिमालय स्थिर नहीं है, वो हर पल बढ़ रहा है और इसलिए हिमालयी संसाधनों का वैज्ञानिक रूप से उपयोग किया जाना चाहिए.”

(इस ग्राउंड रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


यह भी पढ़ें: जलवायु परिवर्तन के कारण ‘सबसे अधिक असुरक्षित’ हुई हैं कृषि क्षेत्र में काम करने वाली भारतीय महिलाएं


 

share & View comments