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Monday, 6 May, 2024
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हिंदी TV न्यूज़ के पास सुरंग हादसे के लिए समय नहीं है, उन्हें बस गाज़ा और अयोध्या की खबरें दिखानी हैं

किसी भी चैनल ने फंसे हुए मजदूरों के परिवारों का पता लगाने की कोशिश नहीं की. लेकिन देश न्यूज़़ और इंडिया वॉयस जैसे चैनलों के पास गाज़ा और इज़रायल में शोक संतप्त परिवारों के खूब फुटेज हैं.

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एक सुबह जब न्यूज़ और मीडिया विश्व कप सेमीफाइनल मैच में भारत की जीत के पागलपन से भरा होगा, तो आप उत्तराखंड में एक सुरंग में फंसे 40 लोगों के बारे में सोचिए.

और जब आप इस पर हैं, तो शायद आप यह समझा सकते हैं कि ऐसा क्यों है कि क्षेत्रीय हिंदी न्यूज़ चैनल – जिनके टारगेट ऑडियंस उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश और हरियाणा के लोग हैं – को इस दुखद घटना की केवल एक छोटी सी झलक दिखाई देती है, जबकि उन्हें गाज़ा से लेकर ‘कर्मयोगी मोदी’ तक, यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और अयोध्या की महिमा की ख़बरें भर-भर की दिखाई जाती हैं.

ऐसा कैसे है कि वे बार-बार इज़रायली सैनिकों को गाज़ा की सुरंगों को खोजते हुए दिखाते हैं लेकिन घर के इतने करीब के सुरंग को भूल जाते हैं?

हमें उम्मीद थी कि सभी न्यूज़ चैनल इन फंसे हुए लोगों की दुर्दशा पर अधिक ध्यान देंगे, लेकिन यह लगभग आपराधिक कार्य है कि नेटवर्क 10, न्यूज़ इंडिया, इंडिया डेली, हिंदी ख़बर जैसे चैनल दुर्घटनास्थल से ‘लाइव’ नहीं कर रहे हैं और बचाव कार्य पर कोई रिपोर्टिंग नहीं कर रहे हैं.

इस बीच, उनके एयरवेव्स उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी या योगी जी द्वारा किए जा रहे अच्छे कार्यों के विज्ञापनों से भरे हुए हैं. इसमें- खेलों के लिए एक घोषणा: ‘खेलेगा यूपी आगे बढ़ेगा यूपी’- जैसे विज्ञापन शामिल हैं.

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किसी भी चैनल ने फंसे हुए मजदूरों के चिंतित परिवारों का पता लगाने का प्रयास नहीं किया है. हालांकि, इसमें से कुछ ने बुधवार को उनके साथी मजदूरों द्वारा विरोध प्रदर्शन की सूचना दी, लेकिन उन्होंने बस इतना ही किया. इसकी तुलना में, देश न्यूज़, इंडिया वॉयस, प्राइम न्यूज़, हर ख़बर, ख़बर अभी तक (उनके बारे में कभी नहीं सुना है?) जैसे सभी चैनलों पर गाज़ा या इज़रायल में शोक संतप्त परिवारों के ढेर सारे फुटेज भरे-पड़े हैं.

गाज़ा से नोएडा

खैर, शायद यह इन चैनलों से बहुत अधिक पूछ रहा है, जिन्हें अक्सर पता नहीं चलता कि वे आ रहे हैं या जा रहे हैं. एक पल में वे गाज़ा के एक अस्पताल का वीडियो चला रहे होंगे जहां इज़रायली रक्षा बल का दावा है कि बंधकों को हमास ने बंधक बना रखा है, दूसरे पल, वे हिमाचल प्रदेश के हमीरपुर में पहुंच गए हैं जहां एक दुल्हन ने कथित तौर पर दहेज (प्राइम न्यूज़) की मांग के कारण जहर खा लिया था.

एक मिनट वे गाज़ा ‘पट्टी’ में होते हैं, जैसा कि वे इसे कहते हैं, अगले मिनट वे झारखंड में जंगली हाथियों का पीछा कर रहे होते हैं (न्यूज़ 11).

दूसरे, हम सुन रहे हैं कि समाजवादी पार्टी के स्वामी प्रसाद मौर्य ने देवी लक्ष्मी के हाथों पर कुछ गलत टिप्पणियां कीं और इसके बाद नोएडा में हिट एंड रन हुआ (न्यूज़़ इंडिया 1).

ये जंगली झूले आपको सभी चैनलों पर मिल जाएंगे. वे वास्तव में ‘ग्लोकल’ में विश्वास करते हैं – गाज़ा में युद्ध से लेकर ग्रेटर नोएडा (प्राइम न्यूज़) में दुर्घटनाओं तक.

दरअसल, स्थानीय अपराध और गाज़ा में युद्ध उनके पसंदीदा विषय हैं. दूर-दराज, अनजान जगहों पर होने वाले संघर्ष में ऐसा क्या है जो हिंदी न्यूज़ चैनलों को इतना आकर्षित करते हैं? हमने सोचा कि यह जुनून प्रमुख हिंदी न्यूज़ चैनलों तक ही सीमित है, लेकिन नहीं, ये सभी क्षेत्रीय हिंदी न्यूज़ चैनलों में भी समान रूप से उपस्थित है. हमें यह मान लेना चाहिए कि हिंदी पट्टी के दर्शक भी समान रूप से इसी से प्रभावित हैं, पहले यूक्रेन युद्ध और अब गाज़ा युद्ध.

अपराध कोई आसान चीज़ नहीं है: अपराध हर जगह बिकता है. क्षेत्रीय न्यूज़ स्थानीय अपराधों या दुर्घटनाओं से भरे हुए हैं – एक पुलिसकर्मी की ट्रैक्टर से कुचलकर हत्या (हिंदी ख़बर), हरियाणा में एक कार दुर्घटना (टोटल टीवी), बिउड़ा में हिट एंड रन (न्यूज़ इंडिया 1), यूपी में एक और पुलिसकर्मी की हत्या (हिंदी ख़बर), फिर वे जंगली हाथी भाग रहे थे (न्यूज़ 11) और ख़बर अभी तक पर रोहतक में अंबाला रोडवेज के एक कर्मचारी की हत्या – हां, यह न्यूज़ चैनल का नाम है.


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राजनीति के लिए समय नहीं

जब क्षेत्रीय चैनलों का काम यह सब खत्म हो जाता है, तभी वे राजनीति की ओर बढ़ते हैं. हालांकि, मुख्यमंत्रियों के भाषणों, टिप्पणियों या प्रेस कॉन्फ्रेंस को छोड़कर, उनके पास काफी कम पॉलिटिकल न्यूज़ होते हैं. राज्य-स्तरीय पॉलिटिकल गेम दुर्भाग्य से गायब रहता है- उदाहरण के लिए, हमें बताया गया था कि सीएम धामी बहुत जल्द समान नागरिक संहिता के लिए एक विधेयक पेश करने की योजना बना रहे हैं, लेकिन हमने इसको लेकर कोई खास ‘चर्चा’ नहीं सुनी (न्यूज़ इंडिया).

हालांकि, बहुत सारे चुनाव प्रचार भाषण हैं: छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, मध्य प्रदेश में यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ, मध्य प्रदेश में केंद्रीय मंत्री राजनाथ सिंह, दोनों राज्यों में कांग्रेस नेता राहुल गांधी और प्रियंका गांधी. चुनावों के बारे में जनता के साथ इंटरव्यू भी होते हैं, लेकिन आपको किसी भी चैनल पर रुझानों की अच्छी जानकारी नहीं मिल पाती है.

इन न्यूज़ चैनलों के अनुसार भीड़ को खुश करने वाली दूसरी चीज़ है, अयोध्या का राम मंदिर. इसके लिए प्रोमो थे (प्राइम न्यूज़), इस पर योगी की टिप्पणियों के अंश थे (नेटवर्क 10), इसके भव्य उद्घाटन पर विशेषताएं थीं: “इंतजार खत्म हुआ,” न्यूज़ इंडिया ने कहा और फिर एक लंबे फीचर में लॉन्च किया गया पीएम का अयोध्या से लंबा इतिहास है.

कवरेज की ‘खिचड़ी’

यह थोड़ी-सी खिचड़ी है, मानो जो कुछ भी उपलब्ध है सबकुछ प्रसारित कर दिया गया. प्रत्येक राज्य में विकास के बारे में बहुत कम ख़बरें हैं, बस छिटपुट चीजें हैं – उदाहरण के लिए, रांची में मुख्य चौराहे पर बहुत अधिक यातायात (न्यूज़ 11). आपको इन अवस्थाओं का अच्छा अंदाज़ा नहीं होता, वास्तव में आप बहुत कम सीखते हैं.

शायद ऐसा इसलिए है क्योंकि वित्तीय बाधाओं के कारण कवरेज सीमित है. स्मार्ट एंकर चैनल के परिसर में वैसे ही ऊपर-नीचे परेड करते हैं, जैसे वे अन्य हिंदी न्यूज़ चैनलों पर करते हैं, लेकिन रिपोर्टर कम और दूर-दूर दिखाई देते हैं – बागेश्वर की तुलना में गाज़ा को दिखाना सस्ता है.

यह हमें विज्ञापन की ओर ले आता है: राज्य सरकार के विज्ञापनों और कुछ अभियान प्रोमो के अलावा – ‘अबकी बार, बीजेपी सरकार’ अभी भी चल रहा है – कुछ वाणिज्यिक विज्ञापन इन चैनलों का समर्थन करते हैं. ‘लाड़-प्यार भरे प्रवास’ के लिए होटल बंसीवाला का एक स्टैंड-आउट टीवीसी देश टीवी पर है.

हर ख़बर जैसे चैनल जिनके हाथ में समय है वे इसे टैरो कार्ड रीडर और भविष्यवक्ता पर खर्च करते हैं. बाद वाले ने अपने करियर की संभावनाओं के बारे में पूछने वाले एक दुर्भाग्यशाली कॉलर को बताया कि उसे अच्छी नौकरी मिलने में तीन साल और लगेंगे.

(लेखिका का एक्स हैंडल @shailajabajpai है. व्यक्त किए गए विचार निजी हैं.)

(संपादन : ऋषभ राज)

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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