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Friday, 22 November, 2024
होमदेश‘लापता छात्र’, बंगाल में मिड डे मील की ‘चूक’ पर केंद्र के पैनल की रिपोर्ट में क्या है

‘लापता छात्र’, बंगाल में मिड डे मील की ‘चूक’ पर केंद्र के पैनल की रिपोर्ट में क्या है

पैनल का कहना है कि सरकारी स्कूलों में नामांकित कई स्टूडेंट्स ‘निजी स्कूलों में पढ़ते हैं’. बंगाल को अब 2023-24 में योजना के तहत केंद्रीय सहायता के रूप में मांगी गई राशि से 180 करोड़ रुपये कम प्राप्त होंगे.

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नई दिल्ली: कागज़ों पर अधिक नामांकन के आंकड़े, लेकिन कई छात्र परीक्षाओं में भी नहीं आते हैं, जबकि अन्य निजी स्कूलों में पढ़ते हैं, दालों और सब्जियों की खरीद के लिए पैसा खर्च किया जा रहा है, फिर भी हर साल 50,000 मीट्रिक टन और चावल का उपयोग नहीं किया जाता है.

ये मिड डे मील योजना के कार्यान्वयन में कथित विसंगतियों में से हैं, जिसे कि केंद्र सरकार द्वारा गठित एक टीम ने पश्चिम बंगाल में पाया था, जिसे अब 2023-24 में योजना के तहत केंद्रीय सहायता के रूप में मांगी गई राशि से 180 करोड़ रुपये कम प्राप्त होंगे.

दिप्रिंट द्वारा देखी गई इसकी अंतिम रिपोर्ट में संयुक्त समीक्षा मिशन (जेआरएम), जिसमें शिक्षा मंत्रालय के साथ-साथ राज्य सरकार के अधिकारी शामिल थे, ने पाया है कि सरकारी स्कूलों में नामांकित कई छात्र “निजी स्कूलों में पढ़ रहे हैं” और “राज्य द्वारा दावा किए गए छात्रों की संख्या के अनुपात में” खाद्यान्नों का उपयोग नहीं किया गया है.

15 मई को केंद्र और राज्य के अधिकारियों की एक बैठक में पश्चिम बंगाल ने 2023-24 में 1,16,15,992 छात्रों को भोजन उपलब्ध कराने के लिए केंद्रीय सहायता के रूप में 1,446.73 करोड़ रुपये मांगे. हालांकि, केंद्र ने बताया कि जिला स्तर की रिपोर्ट बताती है कि 2022-23 में नामांकित छात्रों में से केवल 84 प्रतिशत (1,01,35,163) को ही योजना के तहत कवर किया गया था.

बैठक के आधिकारिक रिकॉर्ड के अनुसार, राज्य सरकार ने “स्वीकार किया कि छात्रों का दावा किया गया कवरेज (96 प्रतिशत) उच्च स्तर पर है” और यह “विभिन्न स्तरों पर रिपोर्ट किए गए आंकड़ों पर फिर से विचार करने के लिए” उपाय कर रहा है. इस प्रकार राज्य के 1,446.73 करोड़ रुपये की केंद्रीय सहायता के प्रस्ताव को 179.65 करोड़ रुपये घटाकर 1,267.08 करोड़ रुपये कर दिया गया है.

पश्चिम बंगाल को 2022-23 में योजना के तहत केंद्रीय सहायता में 1,446.73 करोड़ रुपये मिले थे.

जीबी पंत यूनिवर्सिटी ऑफ एग्रीकल्चर एंड टेक्नोलॉजी में खाद्य और पोषण विभाग की प्रोफेसर अनुराधा दत्ता के नेतृत्व में जेआरएम मुख्य रूप से दो मामलों में “गंभीर चूक” के आधार पर अपने निष्कर्ष पर पहुंचा.

सबसे पहले, इसने 29 जनवरी और 7 फरवरी के बीच अपनी यात्रा के दौरान पाया कि राज्य के इस दावे के विपरीत कि कक्षा I-VIII में नामांकित छात्रों में से लगभग 96 प्रतिशत योजना के तहत गर्म पका हुआ भोजन प्राप्त कर रहे थे, कई बच्चे प्राइवेट स्कूल में पढ़ाई कर रहे थे.

रिपोर्ट के मुताबिक, “टीम ने पाया कि लगभग जिन सभी स्कूलों का दौरा किया गया उनमें कुछ नामांकित छात्रों ने परीक्षा भी नहीं दी, कुछ मामलों में यह संख्या 30 छात्रों से अधिक थी. इस बारे में पूछे जाने पर, शिक्षकों ने बताया कि कई छात्र सरकारी स्कूलों में नामांकित हैं, हालांकि, वे प्राइवेट स्कूलों में पढ़ते हैं, जो कि एक बहुत ही गंभीर मुद्दा है और इसके लिए गहन विश्लेषण की आवश्यकता है.”

दूसरा, यह दिखाता है कि खाद्यान्न का उपयोग (पश्चिम बंगाल के मामले में चावल) और भौतिक लागत आनुपातिक नहीं है. सामग्री लागत – कक्षा I-V में छात्रों के लिए प्रति बच्चा 5.45 रुपये और कक्षा VI-VIII में छात्रों के लिए 8.17 रुपये – दाल, सब्जियां, तेल, मसालों और खाना पकाने के ईंधन की खरीद में जाता है.

रिपोर्ट में कहा गया है, “खाद्यान्न के कम उपयोग के विपरीत, सामग्री लागत का उपयोग हर साल लगभग 100 प्रतिशत होता है. यह यहां एक वास्तविक विरोधाभास दिखता है क्योंकि सामग्री की लागत का उपयोग और खाद्यान्नों का उपयोग कवर किए गए बच्चों की संख्या के साथ तालमेल बिठाता है, आदर्श रूप से इन दो घटकों का उपयोग मेल खाना चाहिए. हालांकि, जैसा कि आंकड़ों से स्पष्ट है, खाद्यान्नों के उपयोग और सामग्री की लागत के साथ-साथ बच्चों के कवरेज में एक गंभीर बेमेल है.”

संपर्क करने पर, पश्चिम बंगाल सरकार के एक अधिकारी ने कहा कि टीम में राज्य के प्रतिनिधि द्वारा रिपोर्ट पर हस्ताक्षर नहीं किए गए थे क्योंकि इसे अंतिम रूप देने से पहले उन्हें नहीं दिखाया गया था.

15 मई को जब केंद्र ने इस योजना के लिए आवंटन में 180 करोड़ रुपये की कटौती की, तो पश्चिम बंगाल के शिक्षा मंत्री ब्रत्य बसु ने ट्वीट किया था, “संयुक्त समीक्षा समिति की रिपोर्ट को लेकर बनाया गया प्रचार जानबूझकर राजनीतिक लाभ के लिए किया गया था”.

मिड डे मील योजना के तहत, जो आधिकारिक तौर पर राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में प्री-प्राइमरी कक्षाओं और कक्षा 1-8 में 12.21 करोड़ छात्रों को कवर करती है, खाद्यान्न की लागत पूरी तरह से केंद्र द्वारा वहन की जाती है. खाना पकाने की लागत सहित अन्य घटकों को केंद्र सरकार और राज्यों और विधानसभाओं वाले केंद्र शासित प्रदेशों के बीच 60:40 के अनुपात में और पूर्वोत्तर राज्यों, जम्मू और कश्मीर, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड के साथ 90:10 के अनुपात में बांटा गया है.

(संपादन: फाल्गुनी शर्मा)

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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