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Friday, 3 May, 2024
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मणिपुर में कुकी समुदाय के मेडिकल स्टूडेंट्स ने मजबूरन छोड़ी पढ़ाई, घाटी के कॉलेजों में लौटने से भी डर

हिंसा से बचने के बाद मणिपुर में कई एमबीबीएस छात्र अब कक्षाओं में शामिल होने या एग्जाम देने में असमर्थ हैं. उन्होंने दूसरे कॉलेजों में शिफ्ट होने की मांग की है.

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नई दिल्ली: “मुझे बस इतना याद है कि मैं वार्डों में छिपा हुआ था, हेल्पलाइन नंबरों पर बेतहाशा फोन कॉल कर रहा था, लेकिन कोई जवाब नहीं मिल रहा था. मैं खुशनसीब था कि मेरी मौत नहीं हुई.”

इंफाल में जवाहरलाल नेहरू इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (जेएनआईएमएस) की 23-वर्षीय मेडिकल छात्रा हन्ना सिमटे ने 4 मई को परिसर में भीड़ के हमले से बचने के बारे में बात करते हुए कांपते हुए उक्त बातें बताईं.

उन्होंने कहा, “हमारे वार्डन ने हमें स्टोर रूम में छिपने के लिए कहा क्योंकि भीड़ हॉस्टल तक पहुंच गई थी और छात्रों की आईडी चैक कर रही थी.” उन्होंने बताया कि सेना के कैंप में ले जाने से पहले वे 12 घंटे तक छुपी रहीं, जहां से वे मणिपुर से भागकर गुरुग्राम चली गईं.

सिमटे उन दर्जनों मेडिकल छात्रों में से हैं, जो 3 मई से मणिपुर में फैली कुकी-मैतेई जातीय हिंसा से विस्थापित हुए हैं.

मणिपुर के सभी कॉलेजों ने गर्मियों की छुट्टियों के साथ आए एक संक्षिप्त अंतराल के बाद 5 जून को कक्षाएं फिर से शुरू कर दीं. हालांकि, जो लोग विस्थापित हो गए हैं — कुछ ने अभी पढ़ाई शुरू की है, जबकि कुछ इसे पूरा करने से कुछ ही सप्ताह दूर हैं — वापस लौटने से डर रहे हैं और अब खुद को ज़रूरी लेकचर्स और परीक्षाओं से वंचित पा रहे हैं.

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छात्रों ने दिप्रिंट को बताया कि शुरुआत में ऑनलाइन कक्षाओं की सुविधा नहीं थी, लेकिन फर्ज़ी खबरों पर अंकुश लगाने के लिए इंटरनेट बंद होने से इस पहल पर असर पड़ा. उन्होंने कहा, भले ही ऑनलाइन कक्षाएं जारी रखी गईं, लेकिन फिजिकल कक्षाओं के मुकाबले इससे बहुत कम मदद मिलेगी.

मणिपुर में तीन प्रमुख मेडिकल कॉलेज – जेएनआईएमएस, रीजनल इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (आरआईएमएस) और शिजा एकेडमी ऑफ हेल्थ साइंसेज (निजी) — सभी इंफाल में स्थित हैं, जो मैतेई बहुल घाटी जिला है. परिणामस्वरूप, फैकल्टी सदस्यों और स्थानीय अधिकारियों के अनुसार, कुकी मेडिकल छात्रों को स्थिति का खामियाजा भुगतना पड़ रहा है.

उन्होंने कहा, जबकि आदिवासी बहुल पहाड़ी जिले चूड़ाचांदपुर में इसी नाम का सरकारी मेडिकल कॉलेज है, यह इस साल ही खोला गया है और इसमें अन्य की तुलना में मुट्ठी भर छात्र हैं. मैतेई के दो छात्रों ने भी दिप्रिंट को बताया कि वे अब सामान्य रूप से कक्षाओं में भाग ले रहे हैं.

मणिपुर विश्वविद्यालय से संबद्ध सभी तीन सरकारी कॉलेज, निजी संस्थान की तरह, मई के अंत से परीक्षा आयोजित कर रहे हैं.

कुकी छात्र संगठनों ने कहा कि उन्होंने विस्थापित छात्रों के मुद्दे को कॉलेज अधिकारियों और संबंधित संस्थानों के निदेशकों के सामने उठाने की कोशिश की, लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला. पहले दिन जेएनआईएमएस में केवल 20 छात्रों ने क्लास अटेंड की. उन्होंने कहा, कि कुकी समुदाय से कोई मौजूद नहीं था.

दिप्रिंट से बात करते हुए, दिल्ली और एनसीआर में कुकी छात्र संगठन के अध्यक्ष खैतिनथांग हाओकिप ने कहा कि अब पूरे मणिपुर में कॉलेज खोलना छात्रों के लिए हानिकारक है. हाओकिप ने कहा, इस तरह की कार्रवाइयां “केवल चीज़ों के सामान्य होने का आभास देती हैं.”

उन्होंने कहा, “एक छात्र संगठन होने के नाते, प्रभावित लोग हमसे संपर्क करते हैं और केंद्रीय एजेंसियों को छात्रों को स्थानांतरित करने के लिए मनाने के लिए लगातार प्रयास करते रहे हैं.” लेकिन, “बहुत कुछ नहीं किया गया है.”

टिप्पणी के लिए संपर्क किए जाने पर इंफाल के चीफ मेडिकल अधिकारी (सीएमओ) डॉ वनलकुंगी ने स्थिति को स्वीकार किया, लेकिन असहायता व्यक्त की. उन्होंने कहा कि ऑनलाइन कक्षाएं एक ऑप्शन है, लेकिन “इस बिंदु पर दूसरा ऑप्शन मुश्किल है”.

मणिपुर में हिंसा की वर्तमान स्थिति 3 मई को भड़की, क्योंकि मैतेई लोगों की अनुसूचित जनजाति (एसटी) दर्जे की मांग ने कई मुद्दों पर जातीय तनाव बढ़ा दिया. जबकि मणिपुर के घाटी जिले मुख्य रूप से मैतेई लोगों का घर हैं, पहाड़ियों पर जनजातियों, मुख्य रूप से कुकी और नागाओं का वर्चस्व है.

पिछले दो महीनों में, 100 से अधिक लोग मारे गए हैं, कम से कम 300 घायल हुए हैं, और 50,000 लोग विस्थापित हुए हैं.


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‘कोई मदद उपलब्ध नहीं’

छात्रों और फैकल्टी के सदस्यों ने कहा कि 3 और 4 मई के बीच कॉलेज कैंपस में डर का माहौल है.

जेएनआईएमएस के एक वरिष्ठ रेजिडेंट डॉक्टर डॉ. हेगिन तांगदीम ने याद किया कि कैसे छात्रों को कैंपस से निकाला गया था.

उन्होंने कहा, जहां एक वाहन 4 मई को शाम 5 बजे के आसपास 30 छात्रों को निकटतम सेना के कैंप में ले जाने में कामयाब रहा, वहीं दूसरे की किस्मत इतनी अच्छी नहीं थी.

डॉ. तांगदीम ने बताया कि छात्रों की तलाशी ली गई और उन्हें कॉलेज से कुछ किलोमीटर दूर कार से बाहर निकाला गया. उन्होंने कहा, उनमें से कुछ वापस कॉलेज की ओर भाग गए और अस्पताल के वार्डों में छिप गए.

पुलिस मूकदर्शक बनी हुई थी, उन्होंने याद करते हुए कहा कि कैसे छात्र रात 12:30 बजे के आसपास आई एक एम्बुलेंस की ओर “उन्मत्त होकर भागे”.

उन्होंने आगे कहा, “कोई मदद उपलब्ध नहीं थी…भीड़ से बचाने के लिए हमने उन्हें वाहनों में छिपा दिया, जिसके बाद अधिकांश कुकी कैंपस से चले गए.”

तांगदिम के अनुसार, जेएनआईएमएस में भी लगभग 1,000-1,300 छात्र हैं, जैसे कि आरआईएमएस और शिजा एकेडमी ऑफ हेल्थ साइंसेज में हैं. उन्होंने कहा कि वर्तमान में लगभग 128 कुकी मेडिकल छात्र विस्थापित हुए हैं.

जेएनआईएमएस में विभाग के एक प्रमुख ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि “कक्षा में केवल कुछ छात्र, ज्यादातर मैतेई मौजूद हैं.”

दिप्रिंट से बात करते हुए, जेएनआईएमएस में तीसरे वर्ष के मैतेई छात्र, 23-वर्षीय बिनिसन ने कहा, “कक्षाएं चल रही हैं. मैं इस वक्त हॉस्टल में हूं. पहले कर्फ्यू था, लेकिन अब उसे हटा दिया गया है. कोई भी प्रभावित नहीं है.”

शिजा में एमबीबीएस द्वितीय वर्ष की छात्रा ने कहा कि वे तीन मई की आधी रात को केवल अपने प्रमाणपत्र लेकर अपने परिवार के साथ चूड़ाचांदपुर से भाग गई थीं. कुछ दिनों के बाद वे गुवाहाटी, असम की ओर चली गईं.

जानकारी मिली है कि कुकी समुदाय के नौ छात्र जिन्होंने अपनी मेडिकल टेस्टिंग पूरी कर ली है, वे भी अपनी परीक्षा नहीं दे सके. रिम्स में अंतिम वर्ष की कुकी छात्रा ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, उन्हें 25 मई को हॉस्टल में लौटने के लिए कहा गया था, ताकि वे अपनी परीक्षा में बैठ सकें और कॉलेज प्रशासन ने उन्हें सुरक्षा का आश्वासन भी दिया था.

अपनी चिंताओं के बावजूद, वे रिम्स पहुंची, लेकिन कथित तौर पर उन्हें वापस लौटने के लिए मजबूर होना पड़ा क्योंकि उन्हें लगभग एक दिन तक बिना भोजन के रहना पड़ा क्योंकि हॉस्टल के रसोइये भाग गए थे. वापस लौटते समय चूड़ाचांदपुर के निकट मोइरांग कस्बे में भीड़ ने उन पर कथित तौर पर हमला कर दिया. उन्होंने कहा, सेना उन्हें बचाने के लिए ठीक समय पर पहुंच गई.

उन्होंने कहा, “मुझे दोबारा वापस जाने से डर लग रहा है. मैं भीड़ का दृश्य अपने दिमाग से नहीं निकाल पा रही हूं. अगर चीज़ें सामान्य भी हो गईं, तो भी मुझे नहीं लगता कि मैं फिर कभी कैंपस में वापस जाऊंगी.”

एक अभिभावक ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि वह चाहते हैं कि उनके बच्चों को दूसरे कॉलेज में शिफ्ट कर दिया जाए, भले ही झड़पें कम हो जाएं.

उन्होंने कहा, “यह थोड़ा अनुचित है कि इतना कुछ होने के बाद भी कॉलेज अधिकारियों को इसकी कोई परवाह नहीं है. मैंने कभी नहीं सोचा था कि हम अपनी ज़िंदगी में ऐसा कुछ भी देंखेंगे. मुझमें अपनी बेटी को यह बताने का साहस नहीं है कि हम शायद वापस नहीं लौटेंगे. मुझे उसकी ज़िंदगी को लेकर डर है और भावनात्मक उथल-पुथल कभी-कभी मुझ पर भारी पड़ जाती है.”

विस्थापित छात्र अधिकारियों के पास पहुंच रहे हैं और उनसे स्थानांतरण की मांग कर रहे हैं ताकि उनकी पढ़ाई फिर से शुरू हो सके. चिकित्सा शिक्षा नियामक राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (एनएमसी) ने 12 जून को एक नोटिस जारी किया कि चूड़ाचांदपुर मेडिकल कॉलेज के प्रथम वर्ष के छात्रों को जेएनआईएमएस में भी कक्षाओं में भाग लेने की अनुमति दी जाए.

एस्तेर ने कहा, “एनएमसी का कहना है कि यह दृष्टिकोण सीएम द्वारा सुझाया गया था, लेकिन रिम्स और शिजा के छात्रों के बारे में क्या? दो महीने हो गए हैं, हम कक्षाओं में पिछड़ रहे हैं.” एस्तेर भी कॉलेज अधिकारियों को भेजे गए अपने मेल के जवाब का इंतज़ार कर रही हैं.

उन्होंने कहा, “दो हफ्ते बीत गए हैं और मुझे जवाब नहीं मिला है.” किताबों या कक्षाओं के बिना, वे नहीं जानती कि उनका भविष्य क्या है.

वेबसाइटों पर दिए गए नंबरों के आधार पर दिप्रिंट ने शिजा और रिम्स के अधिकारियों से संपर्क किया, लेकिन इस रिपोर्ट के प्रकाशित किए जाने तक वहां से कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली थी.

(संपादन: फाल्गुनी शर्मा)

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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