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Wednesday, 11 December, 2024
होमदेश'हिंदू की दुकान', 'मैतेई क्लिनिक': इंफाल में हिंसा से डरे हुए दुकानदार पोस्टर लगाकर बता रहे अपनी जाति

‘हिंदू की दुकान’, ‘मैतेई क्लिनिक’: इंफाल में हिंसा से डरे हुए दुकानदार पोस्टर लगाकर बता रहे अपनी जाति

मैतेई कथित तौर पर घाटी में कुकी समुदाय की संपत्तियों को निशाना बना रहे हैं जहां आदिवासी अल्पसंख्यक रहते हैं. मणिपुर में हिंसा भड़कने के बाद से व्यवसाय को भारी नुकसान हो रहा है.

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इंफाल: ‘हिंदू की दुकान’, ‘मैतेई आई क्लिनिक’, ‘दुकन नंबर 1: नेपाली’ और ‘मुस्लिम फार्मेसी’ – इन शीर्षकों के साथ अस्थायी पोस्टर और प्रिंट-आउट अब इंफाल के न्यू चेकऑन में ज्यादातर दुकानों की दीवारों और शटर पर लगे हुए हैं. बाज़ार, मणिपुर में व्याप्त गहरे सांप्रदायिक तनाव को दिखाते करता है.

ये पोस्टर एक रक्षात्मक उपाय के रूप में उभरे हैं, जिसका उद्देश्य आदिवासी कुकी और बहुसंख्यक मैतेई समुदाय के बीच जातीय हिंसा के बीच दुकानों को भीड़ के लक्षित हमलों से बचाना है, जो पहली बार 3 मई को राज्य में भड़की थी.

यह आरोप लगाया गया है कि ज्यादातर मैतेई क्षेत्र में कुकी समुदाय की संपत्तियों की व्यवस्थित रूप से पहचान कर रहे हैं और उन्हें निशाना बना रहे हैं.

किराने की दुकान चलाने वाले मैतेई हेनरी गोनमेई ने शनिवार को दिप्रिंट को बताया, “ये पोस्टर यह दिखाने के लिए मार्कर हैं कि यह कुकी संपत्ति नहीं है. इस संपत्ति को देखकर उन्हें पता चल जाएगा कि यह किसी मैतेई की है और वे इसे नहीं छूएंगे. यह सिर्फ यह सुनिश्चित करने के लिए है कि दुकान या घर पर भीड़ द्वारा हमला नहीं किया जाए या उसे जला न दिया जाए.” उनकी दुकान के बाहर “मीतेई यम” लिखा हुआ एक पोस्टर भी है. यम का अर्थ है घर.

अधिकांश मैतेई लोग इंफाल घाटी में रहते हैं, जिसमें मणिपुर की केवल 10 प्रतिशत भूमि शामिल है, लेकिन यह प्रमुख स्कूलों, अस्पतालों, व्यापारिक केंद्रों और विश्वविद्यालयों के साथ सबसे विकसित क्षेत्र है. शेष 90 प्रतिशत भूमि, जहां कुकी और नागा निवास करते हैं, पहाड़ी जिलों के अंतर्गत आती है.

मणिपुर में जातीय हिंसा की लहर के परिणामस्वरूप घाटी में लूटपाट, आगजनी और घरों और व्यवसायों को पूरी तरह से नष्ट कर दिया गया है, जिनमें से ज्यादातर कुकी लोगों के बताए गए हैं.

डर इस कदर है कि लोग खुद को हमलों से बचाने के लिए अपने दरवाजे पर अपनी धार्मिक या जातीय संबद्धता प्रदर्शित करने के लिए मजबूर हैं.

न्यू चेकऑन मार्केट में जूते की दुकान चलाने वाले एक मुस्लिम लकी अली ने 4 मई को एक भीड़ द्वारा जला दी गई एक जली हुई दुकान की ओर इशारा करते हुए कहा, “चारों ओर देखें, देखें कि कैसे उन्होंने चुनिंदा रूप से कुकियों की दुकानों को जला दिया है.”

यह कहते हुए कि उनकी दुकान के बाहर एक पोस्टर लगाना ज़रूरी है, उन्होंने समझाया: “दो समुदाय, कुकी और मैतेई, एक-दूसरे से लड़ रहे हैं और हम बीच में फंस गए हैं. मुझे डर था कि मैतेई लोग मेरी दुकान भी जला देंगे, इसलिए मैंने यह पोस्टर लगाया.”

“मणिपुर में कुकी नार्को-आतंकवाद बंद करो”, “कुकी विदेशियों वापस जाओ”, “कुकी शरणार्थियों वापस जाओ” जैसे बड़े-बड़े बैनर घाटी में बाजारों, मुख्य जंक्शनों और यहां तक कि राजमार्गों पर भी लगाए गए हैं.

इंफाल में एक पोस्टर | फोटो: प्रवीण जैन/दिप्रिंट

इंफाल में, कुकियों को कॉलेजों और कार्यस्थलों में उनके आई-कार्ड के माध्यम से बाहर कर दिया गया और फिर उन्हें घातक पिटाई के अधीन किया गया और मरने के लिए छोड़ दिया गया. सुरक्षा प्रतिष्ठान के सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया कि तलहटी में पड़ने वाले गांवों से उन्हें खदेड़ दिया गया और उनके घरों को लूट लिया गया, जला दिया गया और नष्ट कर दिया गया.

सूत्रों ने कहा कि आदिवासी बहुल पहाड़ियों में रहने वाले मैतेईयों की एक छोटी आबादी भी घाटी में आ गई, उन्होंने कहा कि कुकियों ने उन्हें अपने घरों से बाहर निकाल दिया और उनके हाथों हिंसा का सामना करना पड़ा.

हिंसा शुरू हुए दो महीने हो गए हैं, लेकिन झड़पें लगातार जारी हैं. पुलिस आंकड़ों के अनुसार, हिंसा में अब तक 157 से अधिक लोगों की जान जा चुकी है और मणिपुर में 50,000 से अधिक लोग विस्थापित हुए हैं.

जबकि केंद्र सरकार ने सेना सहित हजारों अतिरिक्त सुरक्षा बलों को तैनात किया है, लेकिन वे हिंसा को रोकने में सक्षम नहीं हैं.


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‘हम इससे कैसे बचें?’

इंफाल घाटी में अधिकांश दुकानें बंद होने से क्षेत्र में व्यवसायों को बड़ा नुकसान हुआ है.

हालांकि, कुछ व्यवसायियों ने सावधानीपूर्वक शनिवार से सीमित घंटों के लिए ही सही, अपनी दुकानें फिर से खोलनी शुरू कर दी हैं.

बिहार के समस्तीपुर के चंदन कुमार, जो बाजार में एक भोजनालय में काम करते हैं, ने दिप्रिंट को बताया, “मैंने पिछले दो वर्षों में यहां जो कुछ भी कमाया, वह पिछले दो महीनों में खर्च हो गया है क्योंकि कोई काम नहीं था और कोई कमाई नहीं थी. अब मुझे शून्य से शुरुआत करनी होगी.”

बिहार के समस्तीपुर के चंदन कुमार | फोटो: प्रवीण जैन/दिप्रिंट

उन्होंने कहा, “मुझे सचमुच उम्मीद है कि सामान्य स्थिति जल्द ही बहाल हो जाएगी। इससे वास्तव में स्थानीय व्यवसायों को नुकसान हुआ है.”

लकी अली सहमति जताई. “मैंने आज दो महीने बाद अपनी दुकान खोली है लेकिन कोई ग्राहक नहीं है. हम छोटे दुकानदार इससे कैसे बचें?” उन्होंने पूछा.

अली ने कहा, हिंसा की बढ़ती घटनाओं के बीच, क्षेत्र के दुकानदार अनिश्चित भविष्य की ओर देख रहे हैं. “हमें यकीन नहीं है कि आने वाले महीनों में चीजें सामान्य हो जाएंगी. यह एक वास्तविक संकट है.”

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़नें के लिए यहां क्लिक करें)

(संपादन: अलमिना खातून)


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