रत्नाल: गुजरात के कच्छ जिले के रत्नाल गांव में एक हाईवे के किनारे दो एकड़ जमीन का एक बड़ा हिस्सा खाली पड़ा है. आस-पास नजर मारने पर कूड़े के कुछ टीले, कच्चे नमक का ढेर और हाल ही में खोदी गई कब्र नजर आएगी.
जमीन का यह टुकड़ा काफी कीमती है. स्थानीय निवासियों का अनुमान है कि इसकी कीमत करोड़ों में होगी. लेकिन जमीन के मालिक, रत्नाल गांव के सरपंच त्रिकम रामजी वरचंद ने गुजरात, राजस्थान और पंजाब के कुछ हिस्सों में फैले घातक लंपी वायरस से मरने वाली को दफनाने के लिए अपनी यह जमीन दी है.
ग्रामीण अपने मरे हुए मवेशियों पर नजर रख रहे हैं. रत्नाल में 1 अगस्त से अब तक 33 गायों की मौत हो चुकी है. शहरों में मवेशियों के सामूहिक दफन की तस्वीरों से आहत वरचंद ने जानवरों को सम्मानजनक विदाई देने के लिए अपनी जमीन उधार देने का फैसला किया.
रत्नाल के रहने वाले शंकर अहीर ने दिप्रिंट को बताया कि सरपंच के इस नेक नियत वाले भाव से लोग अभिभूत हैं. वह कहते हैं, ‘गायों को दफन करने के लिए अपनी सेवा देने के लिए कोई भी पैसा नहीं ले रहा है. जेसीबी ठेकेदार फ्री में पूरी खुदाई कर रहा है. कई टन कच्चा नमक श्रीराम साल्ट कंपनी ने दान में दिया है.’
लंपी त्वचा रोग एक ऐसी बीमारी है जो खून चूसने वाले कीड़ों की वजह से फैल रही है. अब तक लंपी स्किन डिजिज के लगभग 20,000 मामले पंजाब में दर्ज किए गए हैं और 424 मवेशियों की मौत हो गई है. वहीं हिमाचल प्रदेश में अब तक इस बीमारी से 40 जानवरों की मौत हो चुकी है. राजस्थान में भी यह बीमारी मवेशियों में तेजी से फैल रही है.
लंपी वायरस बीमारी के लक्षणों में बुखार, नाक बहना, दूध उत्पादन में कमी और संक्रमित जानवर की त्वचा पर गांठों की तरह दिखने वाले लंप शामिल हैं.
यहां पढ़ें: कच्छ में पशु चिकित्सकों की कमी के बीच लंपी स्किन डिसीज के खिलाफ लड़ाई में छात्रों ने मोर्चा संभाला
‘हम अपनी मां की तरह मवेशियों का सम्मान करते हैं’
गांधीधाम स्थित श्री राम साल्ट के सीईओ बाबूभाई हुम्बल ने दिप्रिंट को बताया कि उनकी कंपनी ने बीमारी के कारण मरने वाली गायों को दफनाने के लिए 150 टन से अधिक कच्चा नमक दान किया है.
उन्होंने दिप्रिंट से कहा,’हमने पिछले कुछ महीनों में 30 टन के कई ट्रक अंजार, भुज, चंद्रानी और चंदिया को भेजे हैं.’
स्थानीय निवासी रसिक अहीर ने कहा कि भुज में संक्रमित मवेशियों के शव खुले में सड़ने की तस्वीरों ने गांव वालों को काफी आहत किया है.
उन्होंने बताया, ‘जब एक गाय मर जाती है, तो हम उसे कुमकुम, एक लाल कपड़ा और कच्चे नमक के साथ विदा करते हैं. हमारे मवेशी परिवार की तरह हैं, हम उनका एक मां की तरह सम्मान करते हैं. हम अपने घरों में मवेशियों की पूरी देखभाल करते हैं. लेकिन संक्रमित जानवरों को एक सम्मानजनक विदाई मिले इसकी जिम्मेदारी भी हमारी ही है और हम इसका पूरा ध्यान रखते हैं.’
अपनी जमीन की कीमत के बारे में पूछे जाने पर, वरचंद ने इस सवाल को खारिज कर दिया: ‘ क्या यह मायने रखता है? मुझे यह संपत्ति अपने पूर्वजों से विरासत में मिली है, इसका सदुपयोग करना चाहिए. इन गायों को अंतिम संस्कार के लिए जगह चाहिए. वरना हम उन्हें कहां दफनाएंगे?’
शंकर ने बाद में कहा: ‘इस जमीन की कीमत करोड़ों में हो सकती है. कलयुग में ऐसा कौन करता है?’
(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)
यह भी पढ़ें: कॉमनवेल्थ गेम्स 2022 में भारत 22 गोल्ड सहित 61 पदकों के साथ चौथे स्थान पर रहा