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Friday, 29 March, 2024
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पेगासस जांच में आगे नहीं बढ़ेगा लोकुर पैनल, SC के ‘संयम की अपेक्षा’ जाहिर करने के बाद बंगाल ने कहा

बंगाल सरकार की ओर से जांच आयोग के गठन पर सुप्रीम कोर्ट ने नामंजूरी का इजहार किया है और कहा है कि इससे दूसरे मामलों पर असर पड़ेगा.

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नई दिल्ली: पश्चिम बंगाल सरकार ने बुधवार को सुप्रीम कोर्ट को आश्वस्त किया कि पेगासस हैकिंग विवाद की जांच के लिए जस्टिस एमबी लोकुर की अध्यक्षता में गठित दो-सदस्यीय जांच आयोग फिलहाल अपनी जांच के साथ आगे नहीं बढ़ेगा.

ये वादा सीनियर एडवोकेट अभिषेक मनु सिंघवी की ओर से मौखिक रूप से भारत के मुख्य न्यायाधीश एनवी रमन्ना की अगुवाई वाली बेंच के समक्ष किया गया, जिसने ऐसे समय में जांच आयोग के गठन पर अस्वीकृति का इजहार किया, जब शीर्ष अदालत याचिकाओं के एक बैच की सुनवाई कर रही थी, जिनमें कथित जासूसी कांड की कोर्ट की निगरानी में जांच कराए जाने की मांग की गई थी.

एनजीओ ग्लोबल विलेज फाउंडेशन पब्लिक चैरिटेबल ट्रस्ट की ओर से दायर एक जनहित याचिका (पीआईएल) पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने, जिसके सदस्य न्यायमूर्ति सूर्यकांत भी थे, सिंघवी से कहा, ‘अगर हम दूसरे मामले सुन रहे हैं, तो हम कुछ संयम की अपेक्षा करते हैं. इसका (जांच आयोग) कोर्ट में चल रहे दूसरे मामलों पर असर पड़ेगा’.

एनजीओ ने कमीशन को भंग किए जाने की मांग उठाई है.


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‘कुछ नहीं होगा’

एनजीओ की ओर से पेश होते हुए सीनियर एडवोकेट हरीश साल्वे और अधिवक्ता सौरभ मिश्रा, बेंच के इस सुझाव से सहमत थे कि पीआईएल को पेगासस की जांच से जुड़ी दूसरी याचिकाओं के साथ जोड़ दिया जाए. लेकिन उन्होंने बेंच से आग्रह किया कि जांच आयोग की कार्यवाही पर रोक लगा दी जाए.

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अपने जवाब में सिंघवी ने रोक लगाने के अनुरोध पर आपत्ति जताई लेकिन याचिकाओं को एक साथ जोड़ने का विरोध नहीं किया.

लेकिन बेंच ने उनसे कहा कि ‘पूर्ण निष्पक्षता’ के साथ, वो अपेक्षा करती है कि जब तक बेंच दूसरे मामले सुन रही है, तो राज्य इंतजार करेगा.

जब बेंच ने संकेत दिया कि पीआईएल को दूसरी लंबित याचिकाओं के साथ जोड़ने के अलावा, वो पैनल के कामकाज पर रोक लगा देगी, तो सिंघवी ने जजों से लिखित आदेश जारी न करने की विनती की क्योंकि ‘लॉर्डशिप के शब्दों से असर पड़ेगा.’

सिंघवी ने निवेदन किया, ‘अब से अगले हफ्ते तक कोई आसमान नहीं टूट पड़ेगा. कृपया कुछ मत कहें. मैं इस बात को आगे पहुंचा दूंगा’.

वरिष्ठ अधिवक्ता की दलील थी कि जांच आयोग एक वैधानिक आदेश पर आधारित था. उन्होंने दावा किया कि याचिकाकर्ता के बीजेपी के साथ संबंध थे.

पीआईएल के जवाब में वो राज्य सरकार के हलफनामे के कुछ हिस्से पढ़ने वाले थे कि बेंच ने उन्हें ये कहते हुए रोक दिया: ‘वो (एनजीओ) सही है या गलत, यहां पर ये मुद्दा नहीं है. मुद्दा ये है कि ये मामला (जांच आयोग) कुछ ऐसे दूसरे मामलों से जुड़ा है जो यहां लंबित हैं. हमारे द्वारा दिए गए आदेश के परिणाम देशव्यापी होंगे. हम बस ये चाहते हैं कि आप कुछ समय इंतजार कर लें’.

बेंच ने स्पष्ट किया कि यदि सिंघवी वादा करने को तैयार हों, तो बेंच कोई लिखित निर्देश जारी नहीं करेगी.

वरिष्ठ अधिवक्ता ने निवेदन किया कि वो जांच आयोग को कोर्ट की राय से अवगत करा देंगे और उन्होंने आश्वस्त किया कि जब तक कोर्ट पेगासस मामले पर याचिकाओं के बैच की सुनवाई नहीं करती, तब तक ‘कुछ नहीं होगा’.

सिंघवी ने बेंच से कहा, ‘मैं अनौपचारिक रूप से बता दूंगा’, जिस पर कोर्ट ने कहा: ‘हम आपसे यही करने के लिए तो कह रहे हैं. हम नहीं चाहते कि रोक लगाकर मामले को और उलझा दें’.

अपने संक्षिप्त निवेदन में साल्वे ने कुछ दूसरे मामलों में सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल की दलीलों का हवाला देते हुए कहा कि अगर जासूसी गैर-कानूनी है तो संविधान के तहत केंद्र सरकार को अधिकार है कि वो इसकी जांच करा सकती है.

वरिष्ठ पत्रकार एन राम की ओर से पेश होते हुए सिब्बल ने 17 अगस्त को कोर्ट से अनुरोध किया था कि वो केंद्र को ये स्पष्ट करने का निर्देश दे कि उसने पेगासस स्पाईवेयर का इस्तेमाल किया है या नहीं. साथ ही उन्होंने विवाद की जांच के लिए तकनीकी एक्सपर्ट्स की एक समिति गठित करने का सरकार का प्रस्ताव भी खारिज कर दिया था.


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‘मूक दर्शक नहीं रह सकते’

याचिका के अपने लिखित जवाब में पश्चिम बंगाल सरकार ने दो-सदस्यीय जांच आयोग गठित किए जाने को सुप्रीम कोर्ट के समक्ष न्यायोचित ठहराया और कहा कि ये कदम उठाना जरूरी था क्योंकि कथित जासूसी का संभावित रूप से निजता के मौलिक अधिकार और सार्वजनिक संस्थाओं की आज़ादी तथा लोकतंत्र के संरक्षण पर असर पड़ सकता था.

हलफनामे में कहा गया, ‘राज्य सरकार मूक दर्शक नहीं बनी रह सकती थी, खासकर ऐसे समय जब केंद्र सरकार इस विषय पर न सिर्फ अपना रुख साफ करने से बच रही थी बल्कि सनसनी फैलने के नाम पर उसने शुरू से ही आरोपों को खारिज कर दिया था’.

उसमें इस तर्क को भी खारिज किया गया कि आयोग का गठन मामले में एक समानांतर जांच का प्रयास था और उसका मकसद सुप्रीम कोर्ट की कार्यवाही से आगे निकलना था.

हलफनामे में कहा गया, ‘एक तथ्य खोजने वाली इकाई के नाते, आयोग इस माननीय अदालत के आदेशों से आगे नहीं जा सकता और न ही उन्हें हल्का कर सकता है. यही कारण है कि इसी माननीय अदालत के एक प्रसिद्ध रिटायर्ड जज और माननीय कलकत्ता हाई कोर्ट के एक प्रसिद्ध पूर्व मुख्य न्यायाधीश जांच आयोग का हिस्सा हैं, जिसे राज्य सरकार ने नियुक्त किया है.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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