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Friday, 22 November, 2024
होमदेशवो 10 अधिकारी जो कश्मीर के हालात को पटरी पर ला रहे हैं

वो 10 अधिकारी जो कश्मीर के हालात को पटरी पर ला रहे हैं

पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार से लेकर सेना के लेफ्टिनेंट जनरल और आईएएस और आईपीएस अधिकारी, ये वे लोग हैं जिन्हें जम्मू-कश्मीर की विशेष स्थिति के दर्जे को ख़त्म करने के बाद शांति बनाए रखने का काम सौंपा गया था.

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नई दिल्ली: नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा संविधान की धारा 370 और अनुच्छेद 35 ए को निरस्त करने के बाद सभी विभागों के अधिकारियों का एक समूह यह सुनिश्चित करने की कोशिश कर रहा है कि बिना किसी हिंसा से कश्मीर घाटी में स्थिति सामान्य हो जाए. इसमें सुरक्षा बल, खुफिया विभाग, स्थानीय पुलिस, केंद्र सरकार और राज्य प्रशासन के अधिकारी शामिल हैं.

हालांकि, संचार को आंशिक रूप से बहाल कर दिया गया है और 15 दिनों के बाद घाटी में स्कूल फिर से खुल गए हैं. दिप्रिंट जम्मू और कश्मीर में मामले की स्थिति को संभालने वाले प्रमुख लोगों को सूचीबद्ध कर रहा है.

राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल

राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल को सरकार के निर्णय के क्रियान्वयन का काम सौंपा गया है और सुरक्षा स्थिति पर उनका पूरा नियंत्रण है. गृहमंत्री अमित शाह द्वारा 5 अगस्त को राज्यसभा में धारा 370 को ख़त्म करने के बाद वह 11 दिनों के लिए घाटी में तैनात थे, यह कश्मीर में एक एनएसए द्वारा बिताया सबसे लंबा समय है.

गृह मंत्रालय के सूत्रों के अनुसार, डोभाल की भूमिका न केवल कश्मीर में ज़मीनी स्थिति का जायज़ा लेने की थी, बल्कि सेना और अर्धसैनिक बलों सहित एजेंसियों के बीच बेहतर समन्वय सुनिश्चित भी करना था.

गृह मंत्रालय के अधिकारी ने कहा, ‘एनएसए कश्मीर में ख़राब स्थिति को देखते हुए चले गए थे उन्होंने कहा कि वह न केवल कश्मीर में दैनिक सुरक्षा स्थिति का जायज़ा ले रहे थे, बल्कि संवेदनशील क्षेत्रों का दौरा कर लोगों, अर्धसैनिक बलों और स्थानीय पुलिसकर्मियों से बात भी कर रहे थे. हालांकि, वह केंद्र और जम्मू-कश्मीर के बीच एक महत्वपूर्ण कड़ी थे.’


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जम्मू एंड कश्मीर के राज्यपाल सत्यपाल मलिक के साथ एनएसए प्रमुख अजित डोभाल, प्रवीण जैन | दिप्रिंट

मुख्य सचिव बीवीआर सुब्रमण्यम

गृह मंत्रालय के अधिकारी ने बताया, ‘जम्मू और कश्मीर के मुख्य सचिव बीवीआर सुब्रह्मण्यम एक प्रमुख अधिकारी हैं, जो केंद्र के साथ समन्वय में काम कर रहे हैं, ताकि प्रभावी आतंकवाद पर रणनीति तैयार की जा सके और घाटी में बिना हिंसा के सामान्य स्थिति बहाल की जा सके.’

सुब्रह्मण्यम प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) में भी थे और छत्तीसगढ़ के गृह सचिव भी रह चुके हैं. उन्होंने मनमोहन सिंह के साथ-साथ नरेंद्र मोदी के पीएमओ में भी काम किया है और उन्हें एक परफेक्‍शनिस्‍ट के रूप में देखा जाता है.

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जम्मू और कश्मीर के प्रमुख सचिव बीवीआर सुब्रमण्यम | एएनआई

जून 2018 में पीडीपी के साथ गठबंधन सरकार से बाहर निकाले जाने के तुरंत बाद उन्हें जम्मू और कश्मीर में प्रतिनियुक्ति पर भेजा गया था और राज्य में राज्यपाल शासन लागू किया गया था. पदभार संभालने के ठीक बाद उन्हें अमरनाथ यात्रा के लिए सुरक्षा व्यवस्था की देखरेख करने की ज़िम्मेदारी सौंपी गई.

डोभाल के बेहद करीबी सहयोगी सुब्रह्मण्यम ने मुख्य सचिव के रूप में घाटी की स्थिति के बारे में पिछले कुछ हफ्तों से लगातार प्रेस कॉन्फ्रेंस कर रहे हैं और उन्होंने संचार की बहाली पर भी अपडेट प्रदान किया है.

शुक्रवार को उन्होंने संवाददाताओं से कहा कि ‘घाटी में चरणबद्ध और व्यवस्थित तरीके से सामान्य स्थिति में लौटेगी’

उन्होंने कहा, ‘कश्मीर में जल्द से जल्द सामान्य स्थिति की वापसी को सुनिश्चित करते हुए कि आतंकवादी ताकतों को अतीत की तरह कहर बरपाने ​​का कोई मौका नहीं दिया जायेगा.’

वह धारा 370 और 35 ए के निरस्त होने के बाद घाटी में राजनेताओं और अन्य हाई प्रोफाइल व्यक्तियों के हिरासत की समीक्षा करने वालों में भी शामिल हैं.

के विजय कुमार, सत्यपाल मालिक के सलाहकार

जम्मू और कश्मीर के राज्यपाल सत्यपाल मलिक के सलाहकार के. विजय कुमार कश्मीर में जमीनी सुरक्षा स्थिति और सामान्य भावना का ‘आकलन’ करने और अर्धसैनिक और राज्य पुलिस अधिकारियों के बीच समन्वय के प्रभारी हैं.

ऐसा कहा जाता है कि तमिलनाडु कैडर के 1975 बैच के आईपीएस अधिकारी के. विजय कुमार ने सत्यपाल मालिक की मदद की और अनुच्छेद 370 और 35 ए को रद्द करने के लिए मोदी सरकार के फैसले को प्रभावी ढंग से लागू करने में मदद की है.

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के विजय कुमार | एएनआई ट्विटर

सेवानिवृत्त आईपीएस अधिकारी ने 1998 से 2001 के बीच घाटी में सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) के महानिरीक्षक के रूप में कार्य किया है. मलिक के सलाहकार के रूप में नियुक्त होने से पहले वह केंद्रीय गृहमंत्री के वरिष्ठ सुरक्षा सलाहकार थे. वह केंद्र के आंतरिक सुरक्षा सलाहकार के रूप में छत्तीसगढ़ में भी तैनात थे.

कुमार 2010 और 2012 के बीच केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) के महानिदेशक थे, जिसके बाद वह सेवा से सेवानिवृत्त हुए. 2004 में उन्होंने चंदन तस्कर और दस्यु वीरप्पन को मारने के लिए तमिलनाडु पुलिस की स्पेशल टास्क फोर्स का नेतृत्व किया, जिसने ‘ऑपरेशन कोकून’ चलाया. सेवानिवृत्ति के बाद, के कुमार ने ऑपरेशन के अपने अनुभवों के आधार पर वीरप्पन: चेसिंग द ब्रिगंड नामक एक किताब भी लिखी. कुमार 1985 से 1990 तक प्रधानमंत्री राजीव गांधी के साथ कार्यरत विशेष सुरक्षा समूह (एसपीजी) का भी हिस्सा थे.

सेना के दो लेफ्टिनेंट जनरल

5वीं कोर के 48 वें कोर कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल कंवलजीत सिंह ढिल्लों, जो कश्मीर में नियंत्रण रेखा (एलओसी) का प्रबंधन करते हैं और घाटी में प्रमुख अभियानों का नेतृत्व करते हैं, ने इस कठिन परिस्थिति में रणनीति बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है.

जम्मू-कश्मीर प्रशासन के एक अधिकारी के अनुसार 1988 से अब तक जम्मू-कश्मीर में ढिल्लों का पांचवा कार्यकाल हैं, वह अमरनाथ यात्रा के लिए सुरक्षा के प्रभारी थे और घुसपैठ को कम करने के लिए नियंत्रण रेखा को प्रभावी ढंग से सील करने पर भी काम किया है.

15 कोर कमांडर के रूप में पदभार संभालने से पहले, ढिल्लों परिप्रेक्ष्य योजना(सेना का टिंक टैंक) के महानिदेशक थे. उन्होंने राष्ट्रीय राइफल्स और चिनार कोर के ब्रिगेडियर जनरल स्टाफ के सेक्टर कमांडर के रूप में भी काम किया.

एक अधिकारी ने कहा, ‘इस साल फरवरी से ढिल्लों के कार्यकाल के दौरान, एलओसी से घुसपैठ में प्रभावी रूप से 43 प्रतिशत की कमी आई है, साथ ही घाटी में हिंसा की घटनाएं सबसे कम हुईं हैं.

ढिल्लों के साथ उत्तरी कमान के प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल रणबीर सिंह हैं, जो जम्मू और कश्मीर के परिचालन क्षेत्र की देखभाल करते हैं. अतीत में रणबीर सिंह ने न केवल एक पहाड़ी ब्रिगेड और एक बख्तरबंद डिवीज़न की कमान संभाली है, बल्कि सूडान में एक संयुक्त राष्ट्र शांति सेना के कार्य पर मुख्य परिचालन अधिकारी भी रहे हैं. उन्होंने सैन्य संचालन महानिदेशक ( डीजीएमओ) के रूप में भी काम किया है और सेना स्टाफ के उप-प्रमुख भी थे.

सिंह जब डीजीएमओ थे तब उन्होंने 2016 के सर्जिकल स्ट्राइक के दौरान मुख्य भूमिका निभाई थी. केंद्र सरकार के साथ समन्वय में काम करने वाले ढिल्लों और रणबीर सिंह ने सुरक्षा स्थिति की समीक्षा करने और हाल के आतंकवाद-रोधी अभियानों का जायज़ा लेने के लिए 12 अगस्त को घाटी का दौरा किया था.

इस यात्रा के दौरान रणबीर सिंह ने आने वाली सुरक्षा चुनौतियों के लिए पूरी तरह तैयार होने की आवश्यकता पर जोर दिया गया और ‘सभी सुरक्षा बलों के बीच तालमेल’ की सराहना भी की.


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कश्मीर में अकेली महिला आईपीएस अधिकारी

पीडी नित्या 2016 जम्मू और कश्मीर कैडर की अकेली महिला अधिकारी हैं, जिनकी कश्मीर घाटी में पोस्टिंग है.

उन्हें डल झील, राम मुंशी बाग, गुप्कर रोड और श्रीनगर में राज्यपाल के निवास के आसपास लगभग 50 किमी के क्षेत्र की सुरक्षा की ज़िम्मेदारी दी गई है. यह वह जगह है जहां अधिकांश राजनेताओं और सिविल सेवकों और अन्य वीआईपी लोगों को हिरासत में रखा गया है.

पीडी नित्या जो कि तमिलनाडु से हैं, एक प्रशिक्षित रासायनिक इंजीनियर हैं और उन्होंने सिविल सेवा में शामिल होने से पहले एक सीमेंट कंपनी में प्रबंधक के रूप में काम किया है.

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आईपीएस ऑफिसर पीडी नित्या | प्रवीण जैन, दिप्रिंट

बाहर जाने वाले संदेश को करते हैं कंट्रोल

1995 बैच के आईएएस अधिकारी रोहित कंसल जम्मू-कश्मीर सरकार के प्रमुख सचिव और प्रवक्ता हैं. वह घाटी से कौन से संदेश बाहर जाएंगे यह तय करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. चाहे वह कानून और व्यवस्था की स्थिति पर आधिकारिक टिप्पणी देने की बात हो या विरोध और हिंसा की घटनाओं पर सरकार का रूख हो या संचार को बहाल करने का फैसले हो.

गृह मंत्रालय के एक अधिकारी ने कहा, ‘वह आधिकारिक प्रवक्ता हैं और उन्हें घाटी की स्थिति की सही जानकारी मीडिया तक पहुंचाने का काम सौंपा गया है. प्रमुख सचिव के रूप में वह प्रमुख प्रशासनिक मुद्दों पर सरकार के साथ मिलकर काम करते हैं.

इसी तरह की ज़िम्मेदारियों के साथ घाटी में प्रमुख एक महिला आईएएस अधिकारी सैयद सेहरिश असगर हैं. सरकार के अपना फैसला घोषित किए जाने से कुछ दिन पहले ही असगर को श्रीनगर में जम्मू-कश्मीर प्रशासन में सूचना निदेशक के तौर पर नियुक्त किया गया था.

सिविल सेवा परीक्षा से पहले असगर प्रैक्टिसिंग डॉक्टर थीं. उन्होंने बडगाम के डिप्टी कमिश्नर के रूप में भी काम किया है, जबकि उनके पति सैयद आबिद रशीद शाह पुलवामा के डीसी के रूप में तैनात हैं.

जम्मू-कश्मीर प्रशासन के एक अधिकारी ने कहा, ‘उन्हें सूचना के निदेशक का पद दिया गया है और स्थानीय लोगों के साथ जुड़ने और उन्हें सरकारी योजनाओं और परियोजनाओं के बारे में और इससे उन्हें कैसे लाभ होगा, इसके बारे में जानकारी देना है.वह घाटी में बेहतर स्वास्थ्य व्यवस्था के लिए डॉक्टरों के साथ भी काम कर रही हैं.

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प्रमुख सचिव रोहित कंसल (बीच में) के साथ एडीजी एसजेएम गिलानी | प्रवीण जैन, दिप्रिंट

पुलिस प्रमुख

1987 बैच के आईपीएस अधिकारी दिलबाग सिंह जम्मू और कश्मीर पुलिस के प्रमुख हैं और घाटी में कानून और व्यवस्था बनाए रखने वालों में एक महत्वपूर्ण शख्स हैं.

उनकी नौकरी का सबसे अहम काम आतंकवाद रोधी इकाई को मज़बूत करना और आतंकवादियों को खाड़ी में ही बनाये रखने के लिए दबाव रखना है. एनडीटीवी की एक रिपोर्ट में पुलिस प्रमुख के रूप में सिंह ने कहा था, यह सुनिश्चित करना उनका फर्ज था कि मुट्ठी भर आतंकवादी, जो मुख्य रूप से पाकिस्तान से हैं, वे जम्मू-कश्मीर में लोगों को गुमराह न कर पाएं.

हमारी आतंकरोधी इकाई खाड़ी में आतंकवादियों पर दबाव बना कर रखती है और निश्चित तौर पर हम ये करने में सक्षम हैं.

उन्होंने कहा, ‘हमारी आतंकवाद रोधी इकाई इन आतंकवादियों को खाड़ी में रखने के लिए दबाव बना रही है और निश्चित तौर पर हम ऐसा करने में सक्षम हैं.’ उन्होंने जोड़ा कि सुरक्षा बल राज्य में शांति बनाए रखने के लिए दोतरफा रणनीति का पालन कर रहे हैं.

सिंह को अफवाहों के बीच अपने कर्मियों का मनोबल बढ़ाने का काम भी सौंपा गया है कि वे जल्द ही बिना अस्त्र के हो जाएं.गृह मंत्रालय के अधिकारी ने कहा, ‘उन्हें यह सुनिश्चित करने की ज़िम्मेदारी दी गई है कि जम्मू-कश्मीर पुलिस कर्मी भ्रम मुक्त रहें और निरस्त्र होने पर अफवाहों पर विश्वास न करें. इस दौरान सुरक्षा बलों के भरोसे को बनाए रखना बेहद ज़रूरी है.


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जम्मू और कश्मीर चीफ दिलबाग सिंह (बीच में) प्रमुख सचिव बीवीआर सुब्रमण्यम और जुल्फिकार हसन के साथ | प्रवीण जैन, दिप्रिंट

तकनीक से वाकिफ ज़िला प्रशासक

विकास आयुक्त शाहिद इकबाल चौधरी ज़िला प्रशासन के मामलों से को देखते है. 2009 बैच के आईएएस अधिकारी चौधरी राजौरी के नियंत्रण रेखा के पास रेहान गांव से हैं और जम्मू क्षेत्र के पहले मुस्लिम आईएएस अधिकारी हैं. वह एक पशु चिकित्सा सर्जन थे, जिन्होंने शेर-ए-कश्मीर यूनिवर्सिटी ऑफ़ एग्रीकल्चरल साइंसेज से बैचलर ऑफ़ वेटरनरी साइंसेज की डिग्री हासिल की है.

यह उनका नेतृत्व ही था जिसकी वजह से राज्य का पहला ग्रामीण बीपीओ और कॉल सेंटर शुरू किया गया था, जिसका उद्देश्य सूचना प्रौद्योगिकी के विभिन्न नौकरी वाले क्षेत्रों में शिक्षित युवाओं को पूर्ण प्रशिक्षण प्रदान करना था. इसे फरवरी में बांदीपोरा जिले में खोला गया था.

घाटी में अपनी ताजा भूमिका के तहत चौधरी कश्मीरी युवाओं के लिए नौकरियों के सृजन के लिए कश्मीर में एक आईटी सेक्टर विकसित करने पर काम कर रहे हैं.

2017 में चौधरी ने अपने ब्लॉग में लिखा था कि जम्मू और कश्मीर की खराब औद्योगिक विकास के लिए धारा 370 को दोष नहीं दिया जाना चाहिए.

उन्होंने लिखा है, ‘राज्य के कुछ हिस्सों में अस्थिर हालात और मीडिया के एक हिस्से में इसके बढ़ा-चढ़ाकर पेश किए जाने से और कई अन्य कारक हैं जिनकी वजह से राज्य में निवेश निराशाजनक हैं. यह संविधान के किसी विशेष अनुच्छेद की वजह से नहीं है. कच्चे माल और भौगोलिक बाधाएं दोनों बड़े निवेश (एसआईसी) संभावनाओं को घटा रहे हैं जिससे स्थानीय लोगों का नुकसान हो रहा है.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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