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Sunday, 22 December, 2024
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ड्रग रैकेट्स के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए नार्कोटिक्स कानून में बदलाव चाहती है कर्नाटक सरकार

कर्नाटक सरकार कानूनी विशेषज्ञों की सलाह लेकर नार्कोटिक्स ड्रग्स साइकोट्रॉपिक सब्सटेंस एक्ट 1985 की कमियों को दूर करने की कोशिश कर रही है जिसमें अभियुक्त तकनीकी आधार पर छूट जाता है.

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बेंगलुरू: कर्नाटक सरकार नार्कोटिक्स ड्रग्स साइकोट्रॉपिक सब्सटेंस (एनडीपीएस) एक्ट को और शक्तिशाली बनाना चाहती है. चूंकि पुलिस ड्रग रैकेट्स के खिलाफ एक भारी अभियान चला रही है.

इस उद्देश्य के लिए राज्य सरकार, नेशनल लॉ स्कूल ऑफ इंडिया यूनिवर्सिटी (एनएलएसआईयू) की सीनियर फैकल्टी से विचार विमर्श कर रही है.

डेकन हेराल्ड को दिए एक इंटरव्यू में राज्य के गृह मंत्री बासवराज बोम्मई ने कहा, ‘हम भरसक कोशिश करेंगे कि जो लोग भी इस ड्रग रैकेट में लिप्त हैं उन्हें बेनकाब किया जाए. हम इस डार्क वेब को तोड़ने में कामयाब हो गए हैं, हमने फैसला किया है कि न सिर्फ ग्राहकों पर बल्कि इन रैकेट्स के सरगना, अंतर्राष्ट्रीय ड्रग सप्लायर्स और उनके संपर्कों पर भी कड़ी कार्रवाई की जाएगी’.

पिछले हफ्ते के शुरू में बोम्मई ने मीडिया को बताया कि उन्होंने कुछ प्रोफेसर्स से बात की है जो एनडीपीएस कानून के विशेषज्ञ हैं और उन्होंने कहा है कि कानून को मज़बूत करने की ज़रूरत है.

उनकी टिप्पणी उस समय आई जब पुलिस ने अदाकारा संजना गलरानी और रागिनी द्विवेदी को गिरफ्तार किया और एक कथित ड्रग रैकेट की जांच कर रही है जो माना जा रहा है कि कन्नड़ फिल्म इंडस्ट्री में चल रहा है. जांच में कर्नाटक के पूर्व मंत्री जीवराज अल्वा के बेटे का नाम भी सामने आया है और उसके साथ ही सिलेब्रिटी पार्टियां आयोजित करने वाले एक व्यक्ति का नाम भी आ रहा है.


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कानून में समस्याएं

राज्य के गृह विभाग में इस मुद्दे पर काम करने वाले आधिकारियों ने दिप्रिंट को बताया कि एनडीपीएस भले ही एक केंद्रीय कानून है लेकिन राज्य सरकार ऐसे नियम बना सकती है जो इसके अधिकार क्षेत्र में लागू होंगे. और जिनसे ये और कड़े हो जाएंगे और राज्यों के लिए इन अवैध गतिविधियों को रोकना आसान हो जाएगा.

दिप्रिंट से बात करते हुए कर्नाटक के पूर्व पुलिस महानिदेशक एसटी सुरेश ने कहा कि एनडीपीएस एक्ट पहले ही काफी विकट है, चूंकि इसमें ड्रग के उपभोक्ताओं, सप्लायर्स, व्यापारियों, तस्करों और उसे रखने वालों में भेद किया गया है.

लेकिन उन्होंने कहा कि समस्या तब खड़ी होती है जब कानून को लागू करने और प्रक्रिया के प्रोटोकोल की बात आती है.

रमेश ने कहा, ‘एक (समस्या) तो ये है कि पुलिस एनसीबी (नार्कोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो) और आबकारी विभाग जैसी एजेंसियों को प्रवर्तन में और अधिक सक्रिय होने की ज़रूरत है…एजेंसियां ड्रग के इन लिंक्स की पहचान करने में ढिलाई बरतती हैं जबकि उन्हें ज़्यादा सक्रिय होना चाहिए’.

उन्होंने कहा कि दूसरा मसला ड्रग्स के वर्गीकरण का है. स्टैंडर्ड ड्रग्स के लिए दर्ज ‘प्रमाणित संदर्भ मानक’, डिज़ाइनर ड्रग्स से मेल नहीं खाते.

उन्होंने कहा, ‘टेस्टिंग के प्रोटोकोल्स अलग-अलग हैं और लैबोरेट्रीज़ के सामने चुनौती होती है कि ज़ब्त किया गया पदार्थ वर्जित है कि नहीं, ये साबित करने के लिए उन्हें प्रयत्न त्रुटि विधि से गुज़रना पड़ता है’.

एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने दिप्रिंट से कहा कि वकीलों ने मौजूदा कानून में कमियां ढूंढ ली हैं और वो अपने मुवक्किलों को पीड़ित बताकर ज़मानत पर रिहा करा लेते हैं या फिर ‘तकनीकी आधार’ पर उन्हें पूरी तरह बरी करा लेते हैं.

मौजूदा कानून किस तरह काम करता है, इसे समझाते हुए सुप्रीम कोर्ट के एक सीनियर वकील ने कहा कि अभियुक्त के पास कई विकल्प होते हैं, जैसे कि सबूत जुटाने में वो प्रक्रियात्मक त्रुटियों को देख सकता है और अपराध की जगह मौजूद होने और अपराध की वास्तविक जानकारी होने में भेद कर सकता है.


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पिछले हफ्तों में पुलिस कार्रवाइयां

पिछले कुछ हफ्तों में पुलिस ने ड्रग डीलर्स की सिलसिलेवार गिरफ्तारियां की हैं. 17 सितंबर को चित्रदुर्ग ज़िले में गांजे की खेती का पर्दाफाश करते हुए पुलिस ने 9,872 किलोग्राम गांजा ज़ब्त किया.

उससे कुछ दिन पहले राज्य की केंद्रीय क्राइम ब्रांच ने विक्रम खिलेरी नाम के एक ड्रग विक्रेता को, ‘ब्राउन शुगर’ बेचने के आरोप में गिरफ्तार किया था जो कर्नाटक और तमिलनाडु में लो ग्रेड हेरोइन मानी जाती है. खिलेरी अपने उत्पाद को ‘साईबाबा का प्रसाद’ कहता था.

9 सितंबर को एक अभियुक्त ने पुलिस को उत्तरी कर्नाटक के कलबुर्गी ज़िले में एक फार्महाउस का पता दिया जहां 1.2 टन गांजा रखा हुआ था. उसी हफ्ते बेंगलुरू में 250 किलोग्राम गांजा और दूसरी सिंथेटिक ड्रग्स ज़ब्त की गईं.

अतिरिक्त आयुक्त (पूर्व) एस मुरुगन ने दिप्रिंट को बताया कि केवल सितंबर के दूसरे हफ्ते में कुल 28 लोग गिरफ्तार किए गए और 1.4 करोड़ रुपए के मूल्य की 14 बरामदगियां की गईं. इन बरामदगियों में एलएसडी, कोकेन, एमडीएमए गोलियां और दूसरी नार्कोटिक ड्रग्स शामिल थीं जो बिटकॉयंस का इस्तेमाल कर डार्क वेब के ज़रिए खरीदी गईं थीं. गिरफ्तार लोगों में 11 ड्रग डीलर्स शामिल थे.

रैकेट की और अधिक डिटेल्स सामने आने के बाद कर्नाटक के मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा ने सभी ज़िलों के उप-आयुक्तों को ये सुनिश्चित करने का निर्देश दिया है कि किसी भी डीलर या उपभोक्ता को छोड़ा न जाए. राज्य में ड्रग समस्या के मौजूदा आकार के लिए उन्होंने पिछली सरकारों को ज़िम्मेदार ठहराया और कहा कि वो इस खतरे को कम करने में विफल रहीं.

येदियुरप्पा ने कहा था, ‘पिछली सरकारों ने इस रैकेट की तरफ से आंखें मूंदी हुई थीं जो पिछले एक दशक से भी ज़्यादा से चल रहा है’.

2019 में येदियुरप्पा की बीजेपी सरकार के सत्ता में आने से पहले एक साल से कम समय के लिए एचडी कुमारास्वामी की अगुवाई वाली जेडी (एस)-कांग्रेस सरकार सत्ता में थी. उससे पहले राज्य में कांग्रेस के सिद्धारमैया का एक पूरा कार्यकाल था.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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