नई दिल्ली: हिंदूवादी नेता कालीचरण महाराज द्वारा रायपुर में आयोजित एक धार्मिक सम्मेलन के दौरान महात्मा गांधी के खिलाफ कथित तौर पर अपमानजनक टिप्पणी करने, कानपुर में व्यवसायी पीयूष जैन के आवास पर छापे और पांच राज्यों में प्रस्तावित विधानसभा चुनाव से जुड़ी खबरें इस हफ्ते उर्दू मीडिया की सुर्खियों में रहीं.
दिप्रिंट आपके लिए एक राउंड-अप लेकर आया है कि प्रमुख उर्दू अखबारों में अपने पहले पन्नों पर किन खबरों को तरजीह दी और इन पर उनका संपादकीय रुख क्या रहा.
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धर्म संसद
28 दिसंबर को तीन उर्दू समाचार पत्रों, इंकलाब, सियासत और रोजनामा राष्ट्रीय सहारा ने छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में आयोजित धर्म संसद के दौरान हिंदूवादी नेता कालीचरण महाराज द्वारा कथित तौर पर महात्मा गांधी के बारे में अपमानजनक टिप्पणी करने की खबर को अपने पहले पन्ने पर सुर्खियों में रखा. इस घटना के वीडियो में कालीचरण गांधी को गाली देते और उनके हत्यारे नाथूराम गोडसे की प्रशंसा करते दिख रहे हैं.
29 दिसंबर को सियासत ने लिखा कि प्राथमिकी दर्ज होने के बावजूद कालीचरण महाराज कथित तौर पर खुद को गांधी विरोधी कहते रहे और राष्ट्रपिता के खिलाफ की गई टिप्पणियों को वापस नहीं लिया.
30 दिसंबर को इंकलाब और रोजनामा दोनों ने रायपुर की धर्म संसद के साथ-साथ उत्तराखंड में एक और धार्मिक आयोजन में कथित हेट स्पीच के मामले में राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग की तरफ से संज्ञान लिए जाने की खबर को पहले पन्ने पर छापा.
उसी दिन, रोजनामा और इंकलाब ने भी लेख प्रकाशित किए जिसमें अभिनेता नसीरुद्दीन शाह के हवाले से कहा गया था कि मुस्लिम नरसंहार का आह्वान करने वाले दरअसल देश में गृहयुद्ध का आह्वान कर रहे हैं.
31 दिसंबर को सियासत में छत्तीसगढ़ पुलिस द्वारा कालीचरण को गिरफ्तार किए जाने की खबर पहले पन्ने की सुर्खी बनी. उसी दिन इंकलाब में प्रकाशित एक संपादकीय में सवाल किया गया कि रायपुर धर्म संसद में अल्पसंख्यकों पर निशाना साधे जाने की योजना से केंद्र और राज्य की खुफिया एजेंसियां अनजान कैसे थीं. रोजनामा में प्रकाशित एक संपादकीय में इस बात पर अचरज जताया गया कि आखिर सम्मेलन की अनुमति क्यों दी गई थी.
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पीयूष जैन छापेमारी कांड
केंद्रीय अप्रत्यक्ष कर और सीमा शुल्क बोर्ड (सीबीआईसी) द्वारा व्यवसायी पीयूष जैन के कानपुर स्थित आवास पर छापेमारी और कथित तौर पर 150 करोड़ रुपये नकद की बरामदगी की खबर को कई उर्दू दैनिक समाचार पत्रों ने पहले पन्ने पर प्रमुखता से छापा. अखबारों ने इस मामले में केंद्र और यूपी दोनों की भाजपा सरकार की आलोचना भी की.
रोजनामा ने 29 दिसंबर को अपने संपादकीय में आरोप लगाया कि मोदी सरकार का यह दावा पूरी तरह झूठा है कि नोटबंदी से काला धन बाहर निकालने में मदद मिली. अखबार ने यह दावा भी किया कि नोटबंदी का उन लोगों पर कोई असर नहीं पड़ा जो अवैध ढंग से धन जमा करते हैं, बल्कि इसने गरीब और छोटे कारोबारियों को ही मुश्किल में डाला है.
संपादकीय में कहा गया कि यूपी की योगी आदित्यनाथ सरकार इस छापे को सफल बता रही है लेकिन सवाल यह है कि सरकार को उसका पता लगाने में इतना समय क्यों लगा. इसमें यह आरोप भी लगाया गया कि मोदी सरकार को ‘मुस्लिम परिवार के फ्रिज में रखे भोजन’ (कथित तौर पर गोमांस खाने और रखने के लिए मुसलमानों को निशाना बनाने के संदर्भ में) के बारे में तो पता था लेकिन जैन द्वारा जमा किए जा रहे काले धन की जानकारी नहीं थी.
अखबार ने छापे को राजनीतिक रंग देने के लिए भी यूपी के मुख्यमंत्री की आलोचना की, जिन्होंने आरोप लगाया था कि जैन समाजवादी पार्टी के करीबी थे.
30 दिसंबर को प्रकाशित अपने एक संपादकीय में इंकलाब ने दावा किया कि यद्यपि पीएम मोदी ने नारा दिया था कि ‘ना खाऊंगा ना खाने दूंगा ’ लेकिन भाजपा काला धन रखने वाले लोगों के खिलाफ कार्रवाई करने में नाकाम रही है.
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2022 के विधानसभा चुनाव पर चुनाव आयोग का फैसला
28 दिसंबर को रोजनामा, इंकलाब और सियासत ने 2022 में पांच राज्यों में विधानसभा चुनावों से पहले भारत के चुनाव आयोग और स्वास्थ्य मंत्रालय के बीच एक बैठक की खबर पहले पन्ने पर छापी.
रोजनामा ने लिखा कि ओमीक्रॉन वैरिएंट को लेकर आशंकाओं के बावजूद पांच राज्यों उत्तर प्रदेश, पंजाब, मणिपुर, गोवा और उत्तराखंड में चुनाव टाले जाने की कोई तत्काल योजना नहीं है. बल्कि चुनाव आयोग ने स्वास्थ्य मंत्रालय से टीकाकरण में तेजी लाने को कहा है, जिसे चुनाव तय समय पर ही कराने के संकेत के तौर पर देखा जा रहा है.
अखबार ने अधिकारियों के हवाले से यह भी छापा कि अगर चुनाव स्थगित होते हैं तो ऐसी स्थिति उत्पन्न हो जाएगी जिसमें राज्यों में राष्ट्रपति शासन लगाने की जरूरत पड़ेगी. यही नहीं सारी तैयारियां भी नए सिरे से करनी होंगी.
सियासत ने भी एक लेख प्रकाशित किया जिसमें कहा गया कि चुनाव आयोग और स्वास्थ्य मंत्रालय की अगली बैठक में इन राज्यों में चुनाव स्थगित करने पर फैसला लिया जा सकता है.
31 दिसंबर को रोजनामा, सियासत और इंकलाब ने चुनाव आयुक्त सुशील चंद्रा की तरफ से विधानसभा चुनाव समय पर ही कराने के ऐलान की खबर को अपनी सुर्खियों में रखा. आयोग की एक टीम द्वारा उत्तर प्रदेश की तीन दिवसीय यात्रा पूरी किए जाने के बाद यह घोषणा की गई थी.
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चंडीगढ़ में आम आदमी पार्टी की जीत
28 दिसंबर को सियासत और रोजनामा ने चंडीगढ़ नगर निगम चुनाव में आम आदमी पार्टी की जीत की खबर को अपने पहले पेज पर प्रमुखता से छापा. रोजनामा ने जहां आप की जीत को भाजपा के लिए एक बड़ा झटका बताया, वहीं सियासत ने लिखा कि नगरपालिका चुनाव के नतीजे पंजाब विधानसभा चुनावों में एक बड़े संभावित बदलाव का संकेत हो सकते हैं.
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बाकी दुनिया का घटनाक्रम
29 दिसंबर को इंकलाब, रोजनामा और सियासत ने खबर दी कि इजरायली लड़ाकू विमानों ने मंगलवार तड़के सीरिया के तटीय शहर लताकिया के बंदरगाह पर मिसाइलें दागी थीं, हालांकि इसमें किसी के हताहत होने की सूचना नहीं है.
उसी दिन, इंकलाब ने दक्षिण अफ्रीकी मानवाधिकार और रंगभेद विरोधी कार्यकर्ता आर्कबिशप डेसमंड टूटू को याद करते हुए एक संपादकीय छापा. इसमें यह भी बताया गया कि टूटू फिलिस्तीन में इजरायल के कब्जे और आक्रामकता के खिलाफ थे.
30 दिसंबर को रोजनामा और इंकलाब ने फिलिस्तीनी राष्ट्रपति महमूद अब्बास की इजरायल यात्रा की रिपोर्ट को प्रमुखता से प्रकाशित किया.
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