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Saturday, 20 April, 2024
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कुछ जज आलसी होते हैं, फैसले में वर्षों लगाते हैं और कॉलेजियम कार्रवाई नहीं करता: SC के रिटायर्ड जज चेलमेश्वर

जस्टिस जे चेलमेश्वर कोच्चि के केरल हाईकोर्ट ऑडिटोरियम में सेमिनार में बोल रहे थे. उन्होंने कॉलेजियम की कार्यवाही को रिकॉर्ड करने की जरूरत और न्यायपालिका की स्वतंत्रता के महत्व पर भी बात की.

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नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस जे. चेलमेश्वर ने मंगलवार को कुछ जजों को “आलसी” होने और फैसला लिखने में सालों लगा देने को लेकर फटकार लगाते हुए कहा कि उनके खिलाफ इस तरह के आरोप लगाए जाने के बावजूद कॉलेजियम अक्सर उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं करता है.

उन्होंने कहा, ‘कॉलेजियम के सामने कुछ आरोप आते हैं लेकिन आमतौर पर कुछ नहीं किया जाता है. आरोप गंभीर हैं तो कार्रवाई होनी चाहिए. सामान्य समाधान सिर्फ जजों का ट्रांसफर करना है . कुछ जज आलसी होते हैं और निर्णय लिखने में सालों-साल लग जाते हैं. कुछ जज अक्षम हैं, बार और बेंच ने जज के इस बयान को लिखा है. उन्होंने कहा “अब अगर मैं कुछ भी कहता हूं तो कल मुझे यह कहते हुए ट्रोल किया जाएगा कि वह सेवानिवृत्त होने के बाद यह सब क्यों कह रहे हैं लेकिन यह मेरा भाग्य है. लेकिन हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने एक हाई कोर्ट के दो फैसलों को वापस भेज दिया क्योंकि वह समझ नहीं पाया कि उसके फैसलों में क्या कहा गया है.”

चेलमेश्वर भारतीय अभिभाषक परिषद की केरल हाई कोर्ट इकाई द्वारा आयोजित कोच्चि के केरल एचसी सभागार में एक संगोष्ठी में ‘क्या कॉलेजियम संविधान के लिए एलियन हैं?’ पर बोल रहे थे.

कॉलेजियम की कार्यवाही रिकॉर्ड करने के बारे में जज ने कहा, ‘मैं बहुत विवादास्पद रहा जब मैंने कहा कि कृपया कम से कम रिकॉर्ड में रखें कि आप जज को अस्वीकार, स्वीकार या स्थानांतरित क्यों कर रहे हैं. सच यह है कि कुछ भी रिकॉर्ड नहीं किया गया है….

कॉलेजियम प्रणाली पर बोलते हुए, जज ने इस तर्क का उल्लेख किया कि संविधान के टेक्स्ट में “कॉलेजियम” शब्द नहीं है. उन्होंने फिर सवाल किया, “मेरे दोस्त, जो सभी वकील हैं, क्या संविधान में ऐसा कुछ है जो प्रेस की स्वतंत्रता कहता है? अगर इस तर्क को स्वीकार कर लिया जाए तो प्रेस की आजादी समेत ऐसी तमाम चीजें जा सकती हैं.’

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‘अदालत के गलियारों में सालों से इंतजार कर रहे आम आदमी के बारे में कोई बात नहीं करता’

संगोष्ठी में बोलते हुए, चेलमेश्वर ने न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर जोर दिया और यह किसी भी लोकतंत्र के अस्तित्व के लिए एक आवश्यक तत्व है. “जरा सोचिए कि इसके अलावा क्या होता. कल्पना कीजिए कि एक पुलिसकर्मी क्या कर सकता है. ऐसा नहीं है कि वे बुरे हैं, लेकिन उनके पास शक्ति है और वे खुद के लिए एक कानून बन सकते हैं.’

उन्होंने यह भी कहा कि “सरकारें हमेशा कम से कम एक कार्यपालिका के अनुकूल न्यायपालिका को प्राथमिकता देती हैं,” LiveLaw के अनुसार.

राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (एनजेएसी) मामले में अपने असहमतिपूर्ण फैसले में, चेलमेश्वर ने उच्चतम संवैधानिक न्यायालयों में न्यायाधीशों की नियुक्ति के तरीके में गोपनीयता और पारदर्शिता की कमी की आलोचना की थी. उन्होंने कॉलेजियम की बैठकों में तब तक भाग लेने से भी इनकार कर दिया जब तक कि उनमें ट्रांसपेरेंसी का कुछ रिकॉर्ड नहीं बना लिया गया.

हालांकि, उन्होंने अब स्पष्ट किया, “मेरे फैसले में मैंने कभी नहीं कहा कि चयन कार्यपालिका को सौंप दें. मैं इसके खतरों को जानता हूं.”

उन्होंने अपना भाषण यह कहते हुए समाप्त किया, “कोई भी आम आदमी के बारे में बात नहीं कर रहा है जो वर्षों से अदालत के गलियारों में इंतजार कर रहा है या व्यवस्था में सुधार कैसे किया जाए. यह एक ऐसी चीज है जिस पर हमें ध्यान देने की जरूरत है. अपने बच्चों की खातिर सही निर्णय लें. बस मुझे यही कहना है.”

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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