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Monday, 23 December, 2024
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बेरोज़गार शिक्षक, मुन्नाभाई चीटिंग माफिया: UP के ‘छोटा व्यापम’ घोटाला की ये है अंदर की बात

UP शिक्षक पात्रता परीक्षा घोटाला दिखाता है कि बेरोज़गार युवाओं की हताशा से, धोखाधड़ी सिंडिकेट्स से लेकर शिकारी कोचिंग संस्थानों तक, किस तरह एक पूरे उद्योग को ईंधन मिलता है.

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सुशील कुमार राय पिछले नवंबर बाराबंकी में अपने पिता के अंतिम संस्कार में शामिल नहीं हो सके, क्योंकि उसे अगले दिन प्रयागराज उर्फ इलाहबाद में, उत्तर प्रदेश शिक्षक पात्रता परीक्षा में बैठना था. लेकिन, एक पेपर लीक के कारण योगा आदित्यनाथ सरकार ने आख़िरी समय पर परीक्षा को रद्द कर दिया और 20 लाख से अधिक छात्रों की उम्मीदों पर पानी फिर गया.

गणित में ग्रेजुएट राय बिल्कुल बिखर गया. सरकारी अध्यापक की नौकरी की पात्रता के लिए, दो चरणों के इम्तिहानों में 2019 के बाद से, कई बार से देरी होती आ रही थी और राय जिसने दोनों योग्यता परीक्षाएं पास कर लीं थीं, लेकिन सिस्टम बैकलॉग की वजह कोई नौकरी नहीं पा सका था, उम्मीद कर रहा था कि उसकी बरसों की तैयारी आख़िरकार फलीभूत हो जाएगी.

राय ने, जो फिलहाल गुज़र-बसर के लिए मज़दूरी का काम कर रहा है, कहा, ‘सरकार ये भी सुनिश्चित नहीं कर सकती कि परीक्षाएं सुरक्षित तरीक़े से करा ली जाएं. मुन्नाभाइयों (उम्मीदवारों की जगह परीक्षा देने वाले किराए के जाली लोग) की समस्या तो पहले से ही थी और उस पर अब पर्चे भी लीक हो रहे हैं.’

जैसे-जैसे पेपर लीक की विस्तृत जानकारी बाहर आती गई, राज्य में बहुत से लोगों ने उसे यूपी का ‘छोटा व्यापम’ कहना शुरू कर दिया- जो मध्यप्रदेश में व्यवसायिक परीक्षा मंडल (व्यापम) की ओर से कराई जाने वाली सरकारी भर्ती परीक्षाओं में हुए एक व्यापक घोटाले की ओर इशारा था. पेपर लीक सिर्फ एक परीक्षा में गड़बड़ी हो जाने का मामला नहीं था, बल्कि ये अपराधिक गिरोहों, बड़े पैसे,और ढहते हुए रोज़गार क्षेत्र के धुंधले मेल का संकेत था, जो लाखों छात्रों को निराशा के गर्त में धकेल रहा है.

चुनावी सीज़न में, शिक्षक पात्रता परीक्षा (टेट) घोटाले ने, रेलवे भर्ती परीक्षा को लेकर हुए विरोध प्रदर्शनों के साथ मिलकर, सरकारी नौकरियों को एक बेहद गर्म मुद्दा बना दिया है, जिसमें समाजवादी पार्टी के अखिलेश यादव जैसे विपक्षी नेता, अदित्यनाथ सरकार पर आरोप लगा रहे हैं, कि उसने ‘शिक्षा और उससे जुड़े क्षेत्रों में भ्रष्टाचार’ को चलने दिया. बीजेपी सांसद वरुण गांधी ने भी सरकार के खिलाफ एक आलोचनात्मक रुख़ इख़्तियार करते हुए, दिसंबर में ट्वीट किया: ‘पहले तो कोई सरकारी नौकरियां नहीं हैं. अगर कोई अवसर आता है तो पर्चा लीक हो जाता है. अगर आप परीक्षा देते हैं, तो बरसों तक आपको परिणाम ही नहीं मिलते…’

इस बीच मुख्यमंत्री आदित्यनाथ ने तेज़ी के साथ ऐलान कर दिया कि उनकी सरकार दोषी पाए जाने वालों पर, गुण्डा एक्ट और राष्ट्रीय सुरक्षा कानून लगाएगी और सुनिश्चित करेगी कि अगली बार परीक्षाएं ‘निष्पक्ष और पारदर्शी’ ढंग से कराई जाएं. दिसंबर में सरकार ने ये भी ऐलान किया कि वो जल्द ही शिक्षकों के पदों में रिक्तियों को भरेगी. लेकिन, राय जैसे उम्मीदवारों के लिए ये वादे बहुत कम और बहुत देरी से आए थे.

उत्तर प्रदेश स्पेशल टास्क फोर्स (एसटीएफ) अधिकारियों, परीक्षा उम्मीदवारों, और यूपी के कुछ पूर्व घोटालेबाजों तक से बात करके, दिप्रिंट ने एक ऐसे पूरे उद्योग की तस्वीर तैयार की, जो बेरोज़गार युवकों की हताशा पर निर्भर करता है. इसमें न केवल घोटालेबाज़ों के सिंडिकेट और उनके प्रभावशाली संरक्षक, बल्कि सरकारी भर्ती परीक्षाओं के शिकारी कोचिंग संस्थान भी शामिल हैं. बहुत से मामलों में पूर्व उम्मीदवार ख़ुद भी- सॉल्वर यानी परीक्षा समाधानकर्त्ता बनकर- अपराध में शामिल हो जाते हैं और उस सिस्टम से पैसा बनाते हैं, जिसमें वो वैध रूप से दाख़िल नहीं हो पाए.

ये सड़न कितनी गहरी है, या कितनी ऊपर तक जाती है, ये अनुमान का विषय है, लेकिन चीटिंग सिंडिकेट के एक पूर्व सरग़ना के अनुसार, ‘ऊपर से नीचे तक हर किसी को सब कुछ पता है, और बहुत से लोग अप्रत्यक्ष रूप से इस रैकेट में शामिल हैं’.

‘UP का छोटा व्यापम’

यूपी टेट पर्चा लीक तब केंद्र में आया, जब उत्तर प्रदेश स्पेशल टास्क फोर्स (एसटीएफ) को एक गुप्त सूचना मिली और इम्तिहान के दिन 28 नवंबर की सुबह सवेरे, उसने 23 लोगों को गिरफ्तार कर लिया. सरकारी अधिकारी भी इसमें शामिल हो सकते हैं, इस संदेह की पुष्टि कुछ दिन के बाद हुई, जब पुलिस ने परीक्षा नियामक प्राधिकरण के सचिव, और यूपीटेट परीक्षा नियंत्रक संजय कुमार उपाध्याय को गिरफ्तार कर लिया.

केस की तुलना जल्द ही मध्य प्रदेश के व्यापम घोटाले से की जाने लगी, जो 2009 में पर्चा लीक की शिकायत के साथ ही सामने आया था, और 2013 में धमाके के साथ राष्ट्रीय सुर्ख़ियों में आ गया था, जब जांच के दौरान परीक्षा में धांधली के इस जटिल गोरखधंधे में, अधिकारियों और राजनेताओं की मिलीभगत का ख़ुलासा हुआ. वास्तव में यूपीटेट लीक के कथित ‘सरग़नाओं’ में से एक संतोष चौरसिया एमबीबीएस था, जो व्यापम घोटाले में भी एक अभियुक्त था.

व्यापम रैकेट की तरह यूपीटेट पर्चा लीक भी, एक कपटपूर्ण उद्यम का सिरा मात्र था, जिसमें सरकारी अधिकारी, सॉल्वर्स सिंडिकेट्स, और कोचिंग संस्थानों के बिचौलियों ने आपस में साठगांठ करके इच्छुक शिक्षकों से पैसा बनाया.

यूपी एसटीएफ ने अभी तक क़रीब तीन दर्जन संदिग्धों को गिरफ्तार किया है, जिनमें कथित मास्टरमाइंड संतोष चौरसिया भी शामिल है.

एक उच्च एसटीएफ अधिकारी ने कहा कि चौरसिया ने, जो 2006 से इसी तरह के अपराधों में जेल के अंदर बाहर होता रहा है, यूपीटेट पर्चा लीक की योजना तब बनाई, जब व्यापम घोटाला मामले में वो जेल में था.

एसटीएफ अधिकारी ने कहा, ‘पूछताछ के दौरान संतोष चौरसिया ने स्वीकार किया, कि उसने यूपीटेट क्वालिफाई करने की छात्रों की हताशा का फायदा उठाया. उसे मालूम था कि लाखों छात्र यूपी में सरकारी अध्यापक की नौकरी पाने का इंतज़ार कर रहे हैं, और रिक्तियां हमेशा कम रहती हैं. उसकी योजना प्रश्न पत्र को 5 से 15 लाख रुपए तक में छात्रों को बेंचने की थी’.

योजना को अमलीजामा पहनाने के लिए, अलग-अलग स्तरों पर सह-साजिशकर्ताओं का एक जटिल नेटवर्क तैयार करना होता है.

एसआईटी सूत्र ने बताया कि चौरसिया ने, फर्ज़ी परीक्षा पर्चे छापने के लिए आरएसएम फिनसर्व नाम से एक प्रिंटिंग कंपनी स्थापित करके इस सारे धंधे की नींव रखी, और उत्तर प्रदेश प्रांतीय सिविल सेवा (पीसीएस) के एक अधिकारी, परीक्षा नियंत्रक संजय कुमार को अपने साथ जोड़ लिया.

दिसंबर में, पुलिस ने आरएसएम फिनसर्व डायरेक्टर राय अनूप प्रसाद को गिरफ्तार कर लिया, जो बिहार बीजेपी विधायक रश्मि वर्मा का भाई है. इस मामले में आलोचनाओं का शिकार होने के बाद, पिछले महीने उन्होंने अपना इस्तीफा पेश कर दिया.

आरएसएम फिनसर्व की एक वेबसाइट है जिसमें वो ख़ुद को, ‘बढ़ते कौशल मूल्यांकन समाधान प्रदाता’ बताती है, और अपना पता नई दिल्ली के महंगे ग्रेटर कैलाश में बताती है. सूत्र ने कहा कि कंपनी स्पष्ट रूप से स्थायी घोटाले को अंजाम देने के लिए बनाई गई थी.

प्रतियोगी परीक्षा के प्रश्नपत्रों को छापने का ठेका लेने के लिए, सिक्योरिटी कोड्स को हैण्डल करने की क्षमता एक ज़रूरी शर्त होती है, लेकिन आरएसएम के मामले में स्पष्ट रूप से इस मानदंड को लागू नहीं किया गया. एसटीएफ अधिकारी ने कहा कि परीक्षा पर्चे छोड़िए, इस नक़ली एजेंसी के पास, किसी भी तरह की छपाई का अनुभव नहीं था और फिर भी वो यूपी सरकार से 13 करोड़ का वर्क ऑर्डर हासिल करने में कामयाब हो गई.

एसटीएफ सूत्र के अनुसार, आरएसएम फिनसर्व ने 23 लाख से अधिक प्रश्न पत्रों की छपाई का काम, चार प्रिंटिंग प्रेस को दे दिया जो दिल्ली, नोएडा, और कोलकाता में स्थित थीं. इन सबको छपाई और सॉल्वर्स के सिंडिकेट को पहुंच मुहैया कराने के लिए, 6-6 लाख रुपए अदा किए गए. एसटीएफ सूत्र ने कहा, ‘जांच चल रही है और अगर कोई दूसरे सरकारी अधिकारी इसमें शामिल पाए गए, तो उन्हें छोड़ा नहीं जाएगा’.

लेकिन यूपी सरकार इस बात पर ज़ोर दे रही है, कि ये सारा घोटाला गिरफ्तार परीक्षा नियंत्रक तक ही सीमित है.

बेसिक शिक्षा विभाग के प्रमुख सचिव दीपक कुमार ने कहा, ‘यूपी सरकार में किसी और का पर्चा लीक घोटाले से कोई लेना-देना नहीं है. हम सुनिश्चित करते हैं कि प्रक्रिया में कम से कम लोग शामिल हों, इसलिए जैसे ही टेंडर निकलता है सारी ज़िम्मेदारी परीक्षा नियंत्रक के ऊपर आ जाती है. इस मामले में ये संजय उपाध्याय थे, जिन्होंने एजेंसी का फैसला किया और टेंडर दिया’.


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मुन्नाभाई सिंडिकेट्स के लिए फलता-फूलता ‘बाज़ार’

यूपीटेट घोटाले का अस्ली केंद्र ऊंची क़ीमत वाले परीक्षा परचों के ‘बाज़ार’ में है और ये बाज़ार ही वो जगह है जहां असली पैसा बनाया जाना था.

एसआईटी के उच्च अधिकारी ने कहा, ‘यूपीटेट 2021 से कुछ महीने पहले ही चौरसिया यूपी आया था, और उसने स्थानीय लोगों का नेटवर्क तैयार किया जो ऐसे उम्मीदवारों की पहचान कर सकें, जो ज़्यादा से ज़्यादा पैसा अदा कर सकते हों’.

वाराणसी में बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में बेरोजगारी के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे छात्रों की फाइल फोटो | फोटो: एएनआई

लीक हुए पर्चों के संभावित ग्राहक, केवल छात्र ही नहीं बल्कि सॉल्वर सिंडिकेट्स भी थे, जो जानते थे कि अगर वो पहले से प्रश्न पत्रों से लैस होंगे तो अपने दाम बढ़ा सकते हैं. ऑपरेशन के इस हिस्से की प्रमुख शिकारगाह कोचिंग संस्थान थे, जिनमें से कुछ न केवल छात्रों को परीक्षाओं के लिए प्रशिक्षित करते हैं, बल्कि चीटिंग सेवाओं के लिए संभावित सॉल्वर्स, और ग्राहकों की भी पहचान करते हैं.

वास्तव में, परचे लीक हों या न हों, परीक्षा के सॉल्वर सिंडिकेट्स यूपी में ख़ूब फलते-फूलते हैं, और इनमें अकसर नाकाम लेकिन नौकरी के इच्छुक प्रतिभावान लोगों को रखा जाता है, जो ऐसे उम्मीदवारों के लिए परीक्षा लिखते हैं, जिनके पास पैसा तो होता है लेकिन वो शैक्षणिक दृष्टि से तैयार नहीं होते.

इस साल जनवरी में, जब परेशानी में घिरी यूपीटेट 2021 आख़िरकार आयोजित हुई, तो यूपी पुलिस ने कम से कम 80 सॉल्वर्स और नौ उम्मीदवारों को, चीट करने की कोशिश करते हुए गिरफ्तार किया.

ऐसी घटनाओं के बारे में छोटी छोटी ख़बरों की ज़मीनी हक़ीक़त को समझने के लिए, दिप्रिंट ने प्रयागराज का दौरा किया, जो सरकारी परीक्षाओं के लिए निजी कोचिंग संस्थानों का केंद्र है, और परीक्षा सॉल्वर्स का प्रजनन स्थल भी है.

कोई नौकरी नहीं, ‘ख़ाली पेट’, नज़र के सामने लाखों रुपए

32 वर्षीय कुमार राजन (बदला हुआ नाम) प्रयागराज के एक कोचिंग संस्थान में शिक्षक है. कुछ साल पहले वो भी एक यूपीटेट उम्मीदवार था, जो एक सरकारी अध्यापक की नौकरी के सपने देखता था, लेकिन बीएससी और बीएड डिग्रियों, और प्रवेश परीक्षा में ऊंचे अंकों के बावजूद वो नौकरी नहीं पा सका.

लेकिन उसकी वित्तीय स्थिति उस समय सुधरने लगी, जब उसने राज्य के कुछ सबसे बड़े सिंडिकेट्स के लिए, एक सॉल्वर के तौर पर छिपकर काम करना शुरू कर दिया. राजन ने बताया कि उसने पिछले साल इस तरह का काम करना बंद कर दिया था, लेकिन उससे पहले उसने कई उम्मीदवारों के लिए यूपीटेट लिखा था, जिन्हें लगता था कि वो उनके मुक़ाबले ज़्यादा अंक ला सकता था.

प्रयागराज में एक कोचिंग सेंटर | फोटो: तनुश्री पांडे / दिप्रिंट

पांच लोगों के परिवार का ख़र्च चलाने वाले राजन ने कहा, ‘हमें पीछे अपने घर का भी पेट पालना है, और सरकार नौकरियां मुहैया नहीं करा सकती, जिससे कि छात्रों को अपराधी न बनना पड़े’.

उसका कहना है कि वो हमेशा से एक अच्छा छात्र था, लेकिन तीन साल तक नौकरी न मिलने से वो बिल्कुल कगार पर पहुंच गया था. इसलिए, जब उस कोचिंग संस्थान के एक टीचर ने, जहां वो जाता था उसे ‘लाखों कमाने’ का एक अवसर दिया, तो उसने फौरन लपक लिया.

उसने बताया, ‘टीचर मुझे उन लोगों से मिलाने ले गया, जिन्होंने उससे कहा कि तुम बस दिन भर पढ़ते रहो, बाक़ी सब चीज़ों का हम ध्यान रखेंगे’. उसका एक और काम था कोचिंग सेंटर में ऐसे कमज़ोर छात्रों की ‘पहचान’ करना, जिन्हें देखकर लगता हो कि उन्हें किसी सॉल्वर की सेवाएं चाहिएं (और वो अदा कर सकते हों). उसने कहा, ‘हम बहुत सावधानी के साथ ये काम करते थे. 200 प्रतिशत निश्चित होने के बाद ही, हम किसी से संपर्क करते थे’.

दिप्रिंट ने राजीव शर्मा (बदला हुआ नाम) से भी मुलाक़ात की, जो एक समय सॉल्वर्स के एक प्रमुख सिंडिकेट का प्रमुख था. यूपी-एसटीएफ ने उसे 2018 और 2019 में दो बार, यूपी पुलिस परीक्षा और यूपीटेट में धोखाधड़ी में उसकी भूमिका के लिए गिरफ्तार किया है, लेकिन शर्मा का कहना है कि रिहा होने के बाद से वो इस सब से दूर रहा है. बड़े गर्व के साथ उसने बयान किया, कि किस तरह वो सिस्टम से खेलता था, जब तक पुलिस उस तक नहीं पहुंच गई.


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‘पूरे सिस्टम को सब कुछ पता है’

2007 में, राजीव शर्मा छत्तीसगढ़ में केंद्रीय रिज़र्व पुलिस बल में शामिल होने के लिए तैयार था, लेकिन आख़िरी मौक़े पर उसने फैसला किया, कि वो यूपी के रामपुर में अपने परिवार को नहीं छोड़ेगा, क्योंकि उसकी मां मरणासन्न रूप से बीमार थीं, और उसके किसान पिता जिनके पास तीन एकड़ ज़मीन थी, उन्हें मदद चाहिए थी. बीकॉम डिग्री से लैस शर्मा ने सोचा कि उसे आसानी से कोई नौकरी मिल जाएगी, लेकिन उसे केवल पेंटर का एक छोटा सा काम मिल पाया. उसने बताया, ‘मैं गधे की तरह काम करता था, और दिन भर में सिर्फ 100 रुपए कमा पाता था’. अगले दो वर्षों में उसने पेंटर का अपना काम जारी रखा, और कॉमर्स में पोस्ट ग्रेजुएट डिग्री भी हासिल कर ली, लेकिन बदले में उसे मिला एक भारी एजुकेशन लोन जिसकी अदाएगी करनी थी.

उसने कहा कि 2011 में उसके एक दोस्त ने सुझाव दिया, कि दूसरी अच्छी नौकरियां न होने की स्थिति में, वो परीक्षा सॉल्वर्स के तौर पर अच्छी कमाई कर सकते हैं. ‘हमने कुछ रिसर्च की और समझ में आया कि बहुत सारे छात्र जो विभिन्न सरकारी नौकरियों के लिए आवेदन करते हैं, उन्हें सफलता प्राप्त करना मुश्किल हो रहा था. इसलिए हमने सोचा क्यों न उनकी मदद की जाए, और कुछ पैसा भी बनाया जाए?’

शर्मा ने एक प्रॉक्सी के तौर पर अपनी पहली परीक्षा 2012 में लिखी. उसे इस काम के लिए 50,000 रुपए मिले, और ये भी पता चला कि ‘सिस्टम के बाहर-बाहर से निकलना काफी आसान था’. उस साल चार अलग अलग परीक्षाएं लिखीं, और कुल 3 लाख रुपए कमाए.

बिहार में नौकरी के इच्छुक उम्मीदवारों ने ‘त्रुटियों’ और रेलवे भर्ती प्रक्रिया में बदलाव का विरोध किया। | फोटो: निर्मल पोद्दार/ दिप्रिंट

शर्मा ने कहा कि 2016 तक उसने अपना काम बढ़ा लिया, और अपने साथ ‘मुन्नाभाई’ का काम करने के लिए 200 छात्र भर्ती कर लिए. ‘100 रुपए रोज़ से लेकर मैं कुछ लाख रुपए हर महीने कमा रहा था. आप बताईये क्या करते?’

शर्मा ने कहा कि इस काम में सफल होने का मतलब था समय के साथ बदलना. पहले आमतौर से उम्मीदवार के एडमिट कार्ड पर, प्रॉक्सी का फोटो चिपका देने भर से काम चल जाता था, लेकिन बायोमेट्रिक्स के आने से एक चुनौती खड़ी हो गई.

लेकिन, गैंग को एक वैकल्पिक हल मिल गया: उम्मीदवार के अंगूठे का निशान लेने के लिए, वो सीलेंट्स का इस्तेमाल करते थे, उसमें गोंद मिलाते थे, और फिर उसमें एक ऐसा ‘केमिकल शामिल करते थे, जो सिर्फ दिल्ली के चांदनी चौक में 10,000 रुपए का मिलता था’. इसका नतीजा होता था एक अदृश्य जिलेटिन कवर, जिसे प्रॉक्सी अपने अंगूठे पर लगा लेता था.

शर्मा ने कहा, ‘वो बिल्कुल हवा जैसा महीन था, और बायोमेट्रिक्स मशीन भी उसे नहीं पकड़ सकती थी. मेरे लड़के चार साल तक सैकड़ों परीक्षाओं में बैठे, जिनमें यूपीटेट, यूपी पुलिस, एसएससी (स्टाफ सलेक्शन कमीशन), रेलवे, एनटीपी (नेशनल थर्मल पावर कॉरपोरेशन) आदि शामिल हैं. चीट करने में छात्रों की मदद करने के लिए, कई बार गैंग ने स्पाई माइक्रोफोन्स और कान के आलों का भी सहारा लिया, जिन्हें उम्मीदवार के कानों में अंदर फिट किया जा सकता था.

शर्मा ने कहा कि विज्ञान के साथ प्रयोग करने के अलावा, एक ठोस नेटवर्क तैयार करना भी ज़रूरी था.

शर्मा ने आगे कहा, ‘हमारे तक़रीबन सभी बड़े कोचिंग केंद्रों के साथ संबंध थे, चाहे सरकारी हों या निजी. कोचिंग संस्थानों में हमारे सूत्र कमज़ोर छात्रों को हमारे पास भेजा करते थे. हमें अपने ज़्यादातर ग्राहक इसी तरह मिलते थे, हालांकि कुछ लोग इधर-उधर से सुनकर भी हमसे संपर्क करते थे’.

शर्मा ने कहा कि उनका काम सिर्फ यही नहीं था. उसने बताया, ‘हमारा मंत्रालयों और सरकारी विभागों में कुछ बड़ी मछलियों के साथ भी संपर्क था. अगर कोई ग्राहक अपनी जगह प्रॉक्सी का इस्तेमाल करने का जोखिम नहीं लेना चाहता था, तो वो लोग पैसे लेकर ग्राहक की सहायता के लिए, कभी कभी उनकी आंसर शीट्स को बदलने में हमारी मदद करते थे. ये ‘बड़ी मछलियां’ सुनिश्चित करती थीं, कि अगर कुछ गड़बड़ी हो जाएं तो हम पर आंच न आए. यही कारण है कि इतने सारे सॉल्वर सिंडिकेट्स, यूपी में अपना काम चला पा रहे हैं’. शर्मा ने दावा किया, ‘मेरे सॉल्वर्स 90 प्रतिशत इम्तिहान पास कर लेते थे’.

जब शर्मा से पूछा गया कि क्या वो ऐसी किसी एक ‘बड़ी मछली’ का नाम बता सकता है तो उसने मना कर दिया.

उसने थोड़ा रुक कर कहा, ‘मैं किसी का नाम नहीं लूंगा, क्योंकि अगर लूंगा भी तो उन्हें कभी छुआ नहीं जाएगा, लेकिन मैं बड़ी मुसीबत में फंस जाउंगा’.

‘आप बेहद भोले होंगे अगर आप ये समझते हैं, कि सरकारी पर्चे लीक हो जाते हैं, सॉल्वर्स सिंडिकेट अथॉरिटीज़ की नाक के नीचे काम करते हैं, और पूरे सिस्टम को इस सब की जानकारी नहीं होती’.

ग़रीब परिवारों के लिए नया ‘कोटा’ जाल

इसी फरवरी में सोमवार की एक ठंडी सुबह, 30 से 40 लोग प्रयागराज के लेबर चौक पर जमा हुए, ताकि उन्हें दिहाड़ी मज़दूरी का कोई काम मिल सके. उनमें कई ग्रेजुएट और पोस्टग्रेजुएट भी थे, और बहुतों को चिंता थी कि उनका अगला भोजन कहां से आएगा. न के बराबर सफेदपोश नौकरियां, और कोविड से रोज़गार की संभावनाओं पर पानी पड़ जाने से, उत्तर प्रदेश में डिग्री धारकों को छोटे-मोटे कामों के लिए हाथ पैर मारते देखना बहुत आम बात है.

लेकिन, फिर भी लाखों छात्र प्रयागराज आते रहते हैं, और जो भी थोड़ा बहुत पैसा उनके पास होता है, उसे शहर के सैकड़ों डिप्लोमा संस्थानों और कोचिंग अकादमियों में झोंक देते हैं.

यहां पर बहुत से संस्थान डिप्लोमा इन एलिमेंट्री एजुकेशन (डीईएलईडी) के लिए आवश्यक दो साल का कोर्स ऑफर करते हैं, जिसे पहले बेसिक ट्रेनिंग सर्टिफिकेट कहा जाता था, और छात्र के पास पहले से बीएड की डिग्री नहीं है, तो यूपीटेट में बैठने के लिए छात्रों को ये डिप्लोमा लेना ज़रूरी होता है.

UPTET के आकांक्षी पवनेश कुमार यादव प्रयागराज में अपने छोटे से कमरे में | फोटो: तनुश्री पांडे / दिप्रिंट

फिलहाल, राज्यभर में 3,400 से अधिक संस्थान हैं, जिनमें क़रीब 2.4 लाख सीटें हैं जहां टीचर ट्रेनिंग कोर्स कराया जाता है, जिनमें केवल 67 संस्थान सरकार चलाती है. सरकारी संस्थान दो साल के लिए क़रीब 42,000 रुपए लेते हैं, जबकि निजी प्रतिष्ठान उससे क़रीब दोगुनी रक़म वसूलते हैं.

पूरे यूपी में कोचिंग संस्थान कुकुरमुत्तों की तरह फैल गए हैं, लेकिन सबसे ज़्यादा प्रयागराज में हैं. इनमें से बहुत से संस्थान यूपीटेट और सुपर-टेट में बैठने वाले उम्मीदवारों के लिए क्लासेज़ चलाते हैं, जिसके लिए साल भर के 30,000 से 50,000 रुपए लिए जाते हैं.

जौनपुर के एक 32 वर्षीय युवक रमाकांत यादव ने कहा, ‘प्रयागराज दूसरा कोटा (राजस्थान में परीक्षा कोचिंग का केंद्र) बन गया है. पिछले पांच वर्षों से यहां निजी संस्थान और कोचिंग केंद्र फलफूल रहे हैं. ग़रीब परिवार अपना सबकुछ बेचकर अपने बच्चों को डिप्लोमा कोर्स करने के लिए यहां भेज देते हैं, ये सोचकर कि यूपीटेट पास करने के बाद उन्हें नौकरी मिल जाएगी, लेकिन उन्हें बिल्कुल भी अंदाज़ा नहीं होता कि ये सिर्फ एक जाल है. रमाकांत बरसों से अध्यापक की नौकरी के पात्र होने के लिए इंतज़ार कर रहा है, और अपने किराए और खाने का खर्च उठाने के लिए, होटलों में बर्तन धोने जैसे छोटे मोटे काम करता है.


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योग्य लेकिन बेरोज़गार शिक्षक, ख़ाली पद

सरकारी टीचर बनने की योग्यता हासिल करना एक विस्तारित और जटिल प्रक्रिया है.

टीचिंग डिप्लोमा और यूपीटेट योग्यता किसी काम की नहीं होती, जब तक कि सरकार रिक्त पदों की घोषणा नहीं करती, जिसके बाद एक और परीक्षा सुपर-टेट पास करनी होती है, जिसे आदित्यनाथ सरकार ने 2017 में शुरू किया था.

आख़िरी बार सुपर-टेट परीक्षा 2019 में कराई गई थी, जो 2018 में घोषित रिक्तियों के लिए थी. उसके बाद से कोई नई रिक्तियां घोषित नहीं की गई हैं.

राज्य के बेसिक शिक्षा विभाग के पास उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार, 2020 तक यूपी के प्राइमरी स्कूलों में शिक्षकों के 1.4 लाख से अधिक पद ख़ाली थे. एक ख़बर में हवाला दिए गए अधिकारियों के अनुसार, ये संख्या रिक्तियों की अधिकारिक संख्या 69,000 के अतिरिक्त थी, जो राज्य सरकार ने 2018 में घोषित कीं थीं.

लखनऊ में शिक्षक भर्ती में देरी पर दिसंबर 2021 का विरोध करते हुए छात्र | फोटो: ट्विटर/एएनआई

पिछले पांच वर्षों में विज्ञापित रिक्तियों के लिए भी, अध्यापकों की नियुक्तियां छिटपुट ही रही हैं. आदित्यनाथ सरकार ने 2018-2019 शैक्षणिक सत्र में, 68,500 रिक्तियों में से 46,319 पर शिक्षकों की भर्ती की, और 2018 में घोषित 69,000 रिक्तियों को 2021 के अंत तक दो अलग-अलग बैचों में भरा गया. इनमें से कुछ सीटों को लेकर क़ानूनी लड़ाई और छात्र प्रदर्शन भी हुए, लेकिन मई 2020 में सुप्रीम कोर्ट ने नियुक्तियों को हरी झंडी दे दी.

दिसंबर 2020 में, यूपी असेम्बली चुनावों से कुछ हफ्ते पहले ही, आदित्यनाथ सरकार ने सहायक शिक्षकों के लिए 17,000 रिक्तियों का ऐलान किया. लेकिन यूपी के लाखों उम्मीदवारों के लिए, ये बहुत कम और बहुत देरी का मामला साबित हो सकता है.

यूपी के एक शिक्षा शोधकर्त्ता दिवानाथ मिश्रा ने कहा, ‘इस सरकार ने 69,000 हज़ार शिक्षकों की रिक्तियों को भरने में इतने साल लगा दिए, जो उन्होंने 2018 में घोषित की थीं. तीन साल से कोई नई रिक्तियां नहीं खुली हैं. जिन उम्मीदवारों ने शिक्षकों के लिए योग्यता प्रात की वो लाखों में थे, जबकि सरकार द्वारा उपलब्ध कराई गई रिक्तियां हज़ारों में थीं’.

उनका कहना था कि स्कूलों में शिक्षकों की भारी कमी है, और इधर ‘आठ लाख से अधिक योग्य और पात्र शिक्षक, पिछले पांच वर्षों से सरकारी स्कूलों में नौकरी पाने के इंतज़ार में हैं’.

उत्तर प्रदेश में सिविक सोसाइटी इकाइयों के एक गठबंधन, स्टेट कलेक्टिव फॉर राइट टु एजुकेशन के संयोजक संजीव सिन्हा ने कहा, कि ये स्थिति राज्य में प्राइमरी शिक्षा के लिए कोई अच्छा शगुन नहीं है.

सिन्हा ने कहा, ‘बहुत दुखद है कि राज्य सरकार ने पिछले तीन वर्षों में कोई रिक्तियां नहीं खोली हैं. बहुत से स्कूलों में क्लास 6 से 8 तक, सिर्फ दो या तीन शिक्षक हैं जो सभी विषय पढ़ाते हैं. आधे विषयों का तो उन्हें ज्ञान ही नहीं होता. इससे हमारे सरकारी स्कूलों की गुणवत्ता तबाह हो रही है’.

सिन्हा ने इस विरोधाभासी स्थिति पर भी निराशा जताई, कि शिक्षकों और अध्यापन से जुड़ी नौकरियों की मांग, कभी आपूर्ति से पूरी नहीं हो सकी.

सिन्हा ने कहा, ‘यूपीटेट के लिए बेसिक शिक्षा में जो डिप्लोमा (डीईएलईडी) चाहिए होता है, उसकी सीटों की संख्या में भारी इज़ाफा हुआ है. लाखों की संख्या में छात्र दाख़िला ले रहे हैं…लेकिन उन्हें कभी नौकरी नहीं मिल पाती, क्योंकि नौकरियां हैं ही नहीं’.

इसलिए सुशील राय जैसे बहुत से उम्मीदवार, जिन्होंने कई बार परीक्षा पास की है, हमेशा अनिश्तितता की स्थिति में रहते हैं, और उम्मीद लगाए रहते हैं कि इस बार क़िस्मत उनपर मेहरबान होगी, भले ही फिलहाल गुज़र-बसर के लिए, वो महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) के अंतर्गत काम कर रहे हों.

राय ने कहा, ‘मुझे ग्रेजुएट बनाने और कोचिंग तथा यूपीटेट की पढ़ाई के लिए, मेरी मां ने अपना आख़िरी गहना तक बेंच दिया…लेकिन सब कुछ कर लेने और यूपीटेट तथा सुपर-टेट पास करने के बाद भी मेरे पास कोई नौकरी नहीं है’. पिछले साल नवंबर में प्रश्नपत्र लीक होने के बाद वो बहुत परेशान हो गया था, लेकिन उसने फिर से यूपीटेट दिया है.

एक और यूपीटेट उम्मीदवार पवनेश कुमार भी, नवंबर में परीक्षा देने जा रहा था, लेकिन इस बार वो इसके लिए नहीं बैठा. राजनीति शास्त्र स्नातक जो जौनपुर के एक ग़रीब किसान परिवार से आता है, उसने कहा कि उसे अकसर ख़ुदकुशी का ख़याल आता है. उसने कहा, ‘बेरोज़गारी की वजह से जितने भी छात्र मरते हैं, उसके लिए सरकार ज़िम्मेवार होगी…वो लाखों लोगों के जीवन से खेल रहे हैं’.

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