नई दिल्ली: अपने पक्ष में 48 वोटों के साथ हेमंत सोरेन सरकार ने सोमवार को झारखंड की 81-सदस्यीय विधानसभा में विश्वास मत जीत लिया. झारखंड मुक्ति मोर्चा की अगुवाई वाले गठबंधन की एकजुट रहने की क्षमता का प्रदर्शन करते हुए, उन तीन विधायकों को छोड़कर जो पश्चिम बंगाल में थे, जेएमएम के सभी 29 विधायकों, जिनमें स्पीकर और कांग्रेस के 15 विधायक शामिल नहीं थे, और चार अन्य ने, जिनमें राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) का एक अकेला विधायक भी था, सत्तारूढ़ गठबंधन के पक्ष में वोट दिया.
जेएमएम के रणनीतिकारों ने दिप्रिंट को बताया कि विश्वास मत हासिल करने का मक़सद अगले छह महीने में सरकार को सत्ताधारी गठबंधन के विधायकों के संभावित दलबदल से सुरक्षित करना था.
झारखंड विधानसभा के नियम 141 (6) के अनुसार, अगर सत्र में कोई प्रस्ताव (इस मामले में विश्वास प्रस्ताव) पेश किया गया है, तो उसी सत्र में इसी तरह का दूसरा प्रस्ताव फिर से नहीं रखा जा सकता. इसके अलावा, संविधान के अनुच्छेद 174 में स्पष्ट किया गया है कि राज्य विधानसभाओं की दो बैठकों के बीच 6 महीने से अधिक का अंतराल नहीं होना चाहिए.
विधानसभा नियमों के अनुसार, नया सत्र तब तक नहीं बुलाया जा सकता, जब तक पिछला सत्र स्थगित (बिना चर्चा के ख़त्म) नहीं कर दिया जाता. इसके अलावा, कोई नया सत्र तभी बुलाया जा सकता है, जबकि मंत्री परिषद इस आशय की सिफारिश राज्यपाल को भेजती हैं.
जेएमएम सूत्रों ने बताया कि सोमवार के फ्लोर टेस्ट के बाद, स्पीकर रबींद्र नाथ महतो ने सदन को अनिश्चित काल के लिए स्थगित कर दिया.
झारखंड विधानसभा के एक वरिष्ठ अधिकारी ने, जो अपना नाम नहीं बताना चाहते थे, दिप्रिंट को बताया कि पांचवीं विधानसभा का 9वां सत्र समाप्त नहीं किया गया है.
अधिकारी ने कहा, ‘नियम ये है कि एक बार सत्र स्थगित हो जाए, तो संसदीय कार्य मंत्री फाइल को कैबिनेट के पास भेजता है, जो उसे मंज़ूरी देकर राज्यपाल के पास भेज देती है. राज्यपाल फिर सत्र को स्थगित कर देता है. लेकिन सरकार के पास विकल्प है कि वो 6 महीने तक मामले को राज्यपाल के पास भेजे जाने से रोक सकती है’.
कांग्रेस विधायक दल के नेता और सोरेन सरकार में ग्रामीण विकास मंत्री आलमगीर आलम ने कहा कि अगले 6 महीने तक जेएमएम की अगुवाई वाले गठबंधन के खिलाफ दूसरा विश्वास प्रस्ताव पेश नहीं किया जा सकता, जब तक कि मौजूदा सत्र स्थगित नहीं कर दिया जाता.
आलम ने फोन पर दिप्रिंट से कहा, ‘इससे सुनिश्चित हो जाएगा कि बीजेपी के अस्थिरता पैदा करने की कोशिशों के बावजूद, अगले छह महीने तक सरकार सुचारू रूप से चलेगी’.
लेकिन, इसमें एक पेच है- संवैधानिक विशेषज्ञों के अनुसार, जेएमएम नेता जिस 6 महीने की सुरक्षा पर भरोसा कर रहे हैं, वो नाकाफी हो सकती है.
पूर्व लोकसभा महासचिव पीडीटी आचारी के अनुसार, अगर गठबंधन विधायकों की एक बड़ी संख्या छह महीने से पहले गठबंधन को छोड़ देती है, और राज्यपाल को विश्वास हो जाता है कि सरकार अल्पमत में आ गई है, तो वो मुख्यमंत्री से असेम्बली सत्र बुलाकर बहुमत साबित करने के लिए कह सकता है.
आचारी ने कहा, ‘राज्यपाल को ख़ुद को संतुष्ट करना होगा कि मौजूदा सरकार अपना बहुमत गंवा चुकी है. एक बार वो संतुष्ट हो जाए तो फिर वो सीएम से सदन के पटल पर अपना बहुमत साबित करने के लिए कह सकता है, भले ही वो छह महीने से पहले हो जाए’.
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झारखंड असेम्बली में संख्या
झारखंड असेम्बली में 81 निर्वाचित और एक मनोनीत सदस्य होते हैं, जिससे सदन की कुल संख्या 82 हो जाती है- जिसमें बहुमत का आंकड़ा 42 है. राष्ट्रपति या राज्यसभा के चुनावों के विपरीत, मनोनीत सदस्य असेम्बली में रखे गए प्रस्तावों पर वोट दे सकता है.
सोमवार को हुए विश्वास मत में, जेएमएम के 29 विधायकों, कांग्रेस के 15, और आरजेडी, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) तथा मनोनीत सदस्य ग्लेन जोज़फ गेल्सटॉन के अलावा, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) के एक-एक विधायकों ने सोरेन सरकार के पक्ष में वोट दिया.
विश्वास मत राज्य में 25 अगस्त से चल रही राजनीतिक अनिश्चितता की पृष्ठभूमि में रखा गया, जब भारतीय निर्वाचन आयोग (ईसीआई) ने ‘लाभ के पद’ मामले में सोरेन को अयोग्य ठहराए जाने को लेकर, झारखंड राज्यपाल रमेश बैस को अपनी राय भेजी.
हालांकि, राज्यपाल ने अभी अपने निर्णय को सार्वजनिक नहीं किया है, लेकिन एक हफ्ते से अधिक समय से झारखंड सरकार अधर में लटकी हुई है.
देरी के बारे में राजभवन सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया कि अपना फैसला जनता के सामने रखने से पहले राज्यपाल क़ानूनी सलाह ले रहे हैं.
इस बीच, जेएमएम की अगुवाई वाला गठबंधन भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) पर एक लोकतांत्रिक ढंग से चुनी हुई सरकार को अस्थिर करने, और सत्तारूढ़ गठबंधन के विधायकों के ख़रीदने की कोशिश का आरोप लगा रहा है.
इस डर से कि बीजेपी झारखंड में एक ‘ऑपरेशन लोटस’ का प्रयास कर सकती है, 30 अगस्त को सोरेन अपने सत्तारूढ़ गठबंधन के मंत्रियों और तीन दर्जन से अधिक विधायकों को, कांग्रेस-शासित छत्तीसगढ़ लेकर चले गए.
सभी विधायक सोमवार को विश्वास मत में हिस्सा लेने के लिए रांची लौट आए.
‘फ्लोर टेस्ट से JMM को नैरेटिव गढ़ने में सहायता मिली’
सत्ताधारी गठबंधन के वरिष्ठ नेताओं का कहना था कि हालांकि सोरेन सरकार को, जिसे पहले से ही सदन में बहुमत हासिल है, कोई तत्काल ख़तरा नहीं था लेकिन विश्वास मत से जेएमएम के पक्ष में नैरेटिव गढ़ने में सहायता मिली है.
आलम ने कहा कि भले ही राज्यपाल एक विधायक के नाते सोरेन को अयोग्य ठहरा देते हैं, लेकिन उससे सरकार के अस्तित्व पर कोई असर नहीं पड़ेगा. आलम ने दिप्रिंट से कहा, ‘अगर वो (सोरेन) विधायक के तौर पर अयोग्य ठहरा दिए जाते हैं, तो भी वो छह महीने तक मुख्यमंत्री बने रह सकते हैं. लेकिन, सीएम बने रहने के लिए उन्हें छह महीने के भीतर उपचुनाव जीतकर आना पड़ेगा’.
एक वरिष्ठ जेएमएम नेता ने, जो नाम नहीं बताना चाहते थे, कहा कि सोमवार के फ्लोर टेस्ट से जेएमएम की अगुवाई वाली सरकार को एक नैरेटिव गढ़ने में सहायता मिली है. उन्होंने आगे कहा, ‘जनता के लिए हमारा संदेश स्पष्ट है. गड़बड़ी फैलाने की बीजेपी की कोशिश के बावजूद, सदन ने लोकतांत्रिक ढंग से चुनी गई एक सरकार में अपना विश्वास फिर से व्यक्त किया है’.
एक दूसरे जेएमएम नेता का कहना था कि राज्यपाल के सोरेन को एक निर्दिष्ट समय अवधि में चुनाव लड़ने से रोकने की स्थिति में भी सरकार सलामत रहेगी. उन्होंने कहा, ‘हमारे पास एक प्लान-बी तैयार है. हम हर संभावना का सामना करने के लिए तैयार हैं’.
सदन के पटल पर आक्रामक ढंग से बोलते हुए सोरेन ने बीजेपी पर आरोप लगाया कि चुनाव जीतने के लिए वो ‘गृह युद्ध का वातावरण’ तैयार कर रही है और ‘दंगों को हवा’ दे रही है. मुख्यमंत्री ने कहा, ‘वो (बीजेपी) गृह युद्ध का वातावरण पैदा करना चाहते हैं और चुनाव जीतने के लिए दंगे भड़काना चाहते हैं. जब तक हम यहां हैं तब तक उनके मंसूबे काम नहीं करेंगे. हम एक मुंहतोड़ राजनीतिक जवाब देंगे’.
सोरेन ने असम मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा पर भी तीन कांग्रेस विधायकों को ख़रीदने के प्रयास का आरोप लगाया, जिन्हें कोलकाता पुलिस ने 30 जुलाई को 50 लाख रुपए की नक़द राशि के साथ गिरफ्तार किया था. सेरोन ने कहा, ‘बंगाल में (कांग्रेस विधायकों की) ख़रीद के लिए असम सीएम हिमंता बिस्वा सरमा ज़िम्मेवार हैं’.
सीएम हेमंत सोरेन के खिलाफ ‘लाभ का पद’ मामले में, बीजेपी नेताओं ने राज्यपाल रमेश बैस के सामने एक याचिका दायर करके, इस आधार पर सोरेन को झारखंड मुक्ति मोर्चे के विधायक के नाते अयोग्य ठहराने की मांग की थी, कि 2021 में उन्होंने कथित रूप से स्वयं को खनन का एक पट्टा आवंटित कर दिया था, जब वो राज्य खनन विभाग के भी प्रमुख थे.
हालांकि, सोरेन ने संबंधित खनन पट्टे को सरेंडर कर दिया है, लेकिन राज्यपाल बैस ने इसी साल मामले को ईसी के पास भेज दिया और इस मामले पर उसकी राय मांगी. आयोग ने सोरेन को नोटिस जारी करते हुए उन पर लगाए गए आरोपों के बारे में जवाब तलब किया. नोटिस में कहा गया था कि पहली नज़र में आयोग ने पाया कि उनकी गतिविधियां लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम के अनुच्छेद 9ए का उल्लंघन थीं.
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