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Thursday, 25 April, 2024
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रांची में फंसे मंत्री, फाइलों का बढ़ा ढेर- गवर्नेंस को कैसे प्रभावित कर रहा है झारखंड का सियासी ड्रामा

मंत्रियों और सिविल सेवकों का कहना है कि सीएम सोरेन के खिलाफ ‘लाभ के पद’ के मामले और इस पूरे घटनाक्रम पर राज्यपाल की चुप्पी का असर सरकार के रोजमर्रा के कामकाज पर स्पष्ट तौर पर महसूस किया जा रहा है.

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रांची: झारखंड के राज्यपाल रमेश बैस ने इस पर फिलहाल चुप्पी साध रखी है कि क्या ‘लाभ के पद’ मामले को लेकर मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को बतौर विधायक अयोग्य घोषित करने पर कोई फैसला लिया गया है. दिप्रिंट को मिली जानकारी के मुताबिक, ऐसे में राज्य में चल रही राजनीतिक अनिश्चितता की स्थिति का शासन संबंधी कामकाज पर प्रतिकूल असर पड़ रहा है.

प्रमुख मंत्रालयों के कामकाज से संबंधित महत्वपूर्ण बैठकों के साथ-साथ रोजमर्रा के मुद्दों पर फैसले लंबित हैं. इसके अलावा, मंत्रियों के राज्य की राजधानी रांची छोड़ने की स्थिति में न होने से कई परियोजनाओं का उद्घाटन और आधारशिला रखने के कार्यक्रम भी स्थगित कर दिए गए हैं.

दिप्रिंट से बात करने वाले मंत्रियों और सिविल सेवकों का कहना है कि सोरेन के खिलाफ मामले का असर सरकार के सामान्य मामलों में तभी से महसूस किया जा रहा है जब 25 अगस्त को भारतीय निर्वाचन आयोग (ईसीआई) ने एक सीलबंद लिफाफे में अपनी राय बैस को भेज दी थी.

झारखंड के वित्त मंत्री रामेश्वर उरांव ने कहा, ‘निर्णय लेने की प्रक्रिया धीमी हो गई है. सरकार में सभी फाइलें मंजूरी के लिए मंत्रियों के पास भेजी जाती हैं. लेकिन मंत्री 25 अगस्त से नियमित रूप से अपने दफ्तर नहीं जा रहे हैं, ऐसे में फाइलों का ढेर लग गया है…उन पर समय से हस्ताक्षर नहीं हो पा रहे हैं. मंजूरी में देरी हो रही है.’

हालांकि, उरांव ने जोर देकर कहा कि सरकार का बुनियादी कामकाज अप्रभावित है. उन्होंने कहा, ‘सरकार में बहुत सारे काम हैं जो ऑटो-पायलट मोड में चलते रहते हैं. उदाहरण के तौर पर मंत्री की अनुपस्थिति के कारण राजस्व संग्रह किसी भी तरह प्रभावित नहीं होता है.’

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राज्य के ग्रामीण विकास मंत्री आलमगीर आलम कहते हैं कि शुरुआती तीन-चार दिन तो शासन संबंधी कामकाज प्रभावित रहे लेकिन अब चीजें पटरी पर आ रही हैं. उन्होंने कहा, ‘मुख्यमंत्री सोरेन ने गुरुवार को झारखंड के सभी 24 जिलों के उपविकास आयुक्तों के साथ एक समीक्षा बैठक की अध्यक्षता की, जहां ग्रामीण क्षेत्रों में 75 दिनों का काम सुनिश्चित करने सहित विभिन्न ग्रामीण विकास कार्यक्रमों पर चर्चा की गई.’

झारखंड के पेयजल और स्वच्छता मंत्री मिथिलेश कुमार ठाकुर ने कहा कि ‘स्पष्ट तौर पर’ दिख रहा है कि राजनीतिक अनिश्चितता के कारण प्रशासनिक और विकास कार्य दोनों ‘धीमे’ हो गए हैं.

उन्होंने आगे कहा, ‘26 और 27 अगस्त को मुझे एक बहुउद्देशीय टाउनहॉल का उद्घाटन करना था और अपने निर्वाचन क्षेत्र गढ़वा में कुछ सड़क परियोजनाओं की आधारशिला रखनी थी. लेकिन इसे स्थगित करना पड़ा क्योंकि हमें राजधानी नहीं छोड़ने का निर्देश दिया गया है.’

लेकिन जो लोग नौकरशाही का हिस्सा है, उनका कहना है कि ऊपरी तौर पर तो सरकार काम करती नजर आ रही है, सोरेन कार्यक्रमों को लॉन्च कर रहे हैं और कैबिनेट बैठकें कर रहे हैं लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि शासन को कोई झटका नहीं लगा है.

एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर दिप्रिंट को बताया, ‘मई से ही शासन संबंधी कार्यों में एक ठहराव बना हुआ है जब ‘लाभ के पद’ मामले में चुनाव आयोग की तरफ से मुख्यमंत्री को नोटिस भेजा गया था. लेकिन पिछले एक हफ्ते में यह बढ़ गया है.’

एक अन्य वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने बताया कि कैसे स्वास्थ्य विभाग के लिए कुछ चीजों की खरीद से संबंधित एक फाइल अटक गई. उन्होंने कहा, ‘मौजूदा स्थिति के कारण फाइल को मंजूरी में देरी हुई है. इसी तरह के उदाहरण अन्य मंत्रालयों में भी सामने आए हैं.’

दूसरे विभाग के एक सचिव ने कहा कि जिन फाइलों के लिए मंत्रियों की मंजूरी की जरूरत होती है, उनका लगभग सभी मंत्रालयों में ढेर लगता जा रहा है. उन्होंने कहा, ‘केवल महत्वपूर्ण फाइलों पर हस्ताक्षर किए जा रहे हैं. लेकिन सरकार में दिन-प्रतिदिन के सैकड़ों अन्य प्रशासनिक कार्यों के लिए भी मंजूरी की जरूरत पड़ती है. फाइलें लंबित होने से पूरी सरकार में निर्णय लेने की प्रक्रिया प्रभावित होती है.’


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‘लोकतांत्रिक ढंग से निर्वाचित सरकार को गिराने की कोशिश कर रही भाजपा’

सीएम हेमंत सोरेन के खिलाफ ‘लाभ के पद’ मामले में पूर्व मुख्यमंत्री रघुबर दास और भारतीय जनता पार्टी के अन्य नेताओं ने 11 फरवरी को राज्यपाल बैस के समक्ष एक याचिका दायर की थी.

याचिका में भाजपा नेताओं ने झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) के विधायक के तौर पर सोरेन को अयोग्य करार देने की मांग की थी, इसमें इस बात को आधार बनाया गया कि उन्होंने कथित तौर पर 2021 में अपनी खुद की कंपनी को खनन पट्टा आवंटित किया, जब वह राज्य में खनन विभाग का भी नेतृत्व कर रहे थे. सोरेन ने इसके बाद खनन पट्टे को सरेंडर कर दिया था.

बैस ने मामले को चुनाव आयोग के पास भेजा और अयोग्य करार देने के मसले पर उसकी राय मांगी.

चुनाव आयोग ने सोरेन को एक नोटिस में आरोपों का जवाब देने को कहा था, जिसमें कहा गया कि उसने सोरेन के कार्यों में जन प्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा-9ए का प्रथम दृष्टया उल्लंघन पाया है.

इस महीने के शुरू में, चुनाव आयोग ने सोरेन की अयोग्यता पर अपनी राय एक सीलबंद लिफाफे में बैस को भेज दी थी. इस मुद्दे पर राज्यपाल की चुप्पी ने झारखंड में झामुमो के नेतृत्व वाले गठबंधन की बेचैनी बढ़ा दी है.

मुख्यमंत्री सोरेन खुद को अयोग्य करार दिए जाने की स्थिति से निपटने की रणनीति बनाने के लिए सत्तारूढ़ गठबंधन के विधायकों के साथ चार से ज्यादा बैठकें कर चुके हैं. इस बीच, सोरेन और उनके मंत्रियों ने विधायकों के साथ नजदीकी जिले खूंटी की सैर का समय भी निकाला.

इस डर से कि विपक्षी दल भाजपा झारखंड में ‘ऑपरेशन लोटस’ की कोशिश कर सकती है, सोरेन ने चार मंत्रियों और सत्तारूढ़ गठबंधन के 49 विधायकों में से तीन दर्जन से अधिक को 30 अगस्त को कांग्रेस शासित राज्य छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर भेज दिया.

इसके बाद अब मंत्री रांची लौट आए हैं और यहां तक गुरुवार दोपहर सोरेन की अध्यक्षता में कैबिनेट की बैठक में भी शामिल हुए. इस बैठक में (मुख्यमंत्री कार्यालय से जारी एक प्रेस नोट के मुताबिक) 31 अगस्त से पूरे एक महीने के लिए एक चार्टर्ड विमान किराए पर लेने के प्रस्ताव को भी मंजूरी दी गई. वीआईपी और वीवीआईपी के राज्य से बाहर आधिकारिक दौरों के लिए इस्तेमाल होने वाले इस चार्टर्ड विमान पर किराये का खर्च 2.6 करोड़ रुपये होगा.

हालांकि, सोरेन सरकार के मंत्री जहां रांची लौट आए हैं, वहीं विधायक अभी भी रायपुर के एक रिसॉर्ट में डेरा डाले हुए हैं.

यह पूछे जाने पर कि इस गतिरोध के लिए किसे जिम्मेदार ठहराया जाए, झारखंड के मंत्री मिथिलेश कुमार ठाकुर ने ‘राज्यपाल की चुप्पी’ पर सवाल उठाए.

उन्होंने कहा, ‘भाजपा लोकतांत्रिक तरीके से चुनी गई सरकार को गिराने की पूरी कोशिश कर रही है.’

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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