scorecardresearch
Friday, 1 November, 2024
होमदेशइस्लामिक स्टेट और ज़ाकिर मूसा के संगठन के बीच वर्चस्व की लड़ाई टेलीग्राम पर

इस्लामिक स्टेट और ज़ाकिर मूसा के संगठन के बीच वर्चस्व की लड़ाई टेलीग्राम पर

इस्लामिक स्टेट जम्मू कश्मीर और ज़ाकिर मूसा का अंसार ग़ज़वर-उल-हिंद, दोनों ही कश्मीर में शरिया लागू करने का आह्वान करते हैं, पर ज़मीन पर दोनों की मौजूदगी नहीं के बराबर है.

Text Size:

श्रीनगर: चरमपंथी कमांडर ज़ाकिर मूसा के करीब तीन हफ्ते पहले मारे जाने के बाद से सोशल मीडिया प्लेटफार्म टेलीग्राम पर अल-क़ायदा से संबद्ध अंसार ग़ज़वत-उल-हिंद (एजीएच) और इस्लामिक स्टेट जम्मू कश्मीर (आईएसजेके) के समर्थकों के बीच कलह बढ़ता दिख रहा है.

आईएसजेके समर्थक अब मूसा के आरंभ किए एजीएच के समर्थकों पर तालिबान से जुड़ने का आरोप लगा रहे हैं. और ये सब मैसेजिंग एप टेलीग्राम पर चैटिंग में हो रहा है जहां, जानकारों के अनुसा, अंतर्कलह की बातें सतह पर आ चुकी हैं.

मामला 11 जून को गंभीर हो गया, जब खुद को आईएसजेके का ‘गैर-आधिकारिक मीडिया’ बताने वाले अहलू-तौहीद मीडिया ने एक बयान जारी कर कहा कि ‘इस्लामिक स्टेट का तालिबान से संबद्ध एजीएच से कोई सरोकार नहीं है.’

दिप्रिंट के सामने आए संदेशों के अनुसार तौहीद मीडिया का बयान ज़ाहिर तौर पर ‘कतिपय मीडिया संस्थानों के एजीएच और आईएसजेके को परस्पर मिलाने के प्रयासों’ की प्रतिक्रिया में आया है.

बयान के अनुसार, दक्षिण कश्मीर के सोपियां में इसी सप्ताह दो चरमपंथियों के मारे जाने के बाद मीडिया के कुछ हिस्सों में उनके एजीएच से जुड़े होने की खबरें आई थीं.


यह भी पढ़ें: जम्मू कश्मीर प्रशासन ने अपनी छवि सुधारने के लिए बनाई ‘3एस’ योजना


जम्मू कश्मीर पुलिस के एक सूत्र के अनुसार इन चरमपंथी संगठनों से अभी दर्जन भर से ज़्यादा लोग नहीं जुड़े हैं. इन संगठनों के नाम अभी तक कोई बड़ा हमला नहीं है और यहां सुरक्षा से जुड़े अधिकारी इन्हें निम्न स्तर का खतरा मानते हैं.

मूसा की मौत के बाद

हथियारबंद चरमपंथियों की वास्तविक संख्या बहुत कम होने के कारण, एजीएच और आईएसजेके के बीच सोशल मीडिया पर जारी खींचतान के असल हिंसा में बदलने की आशंका नहीं है.

पर संभव है इससे कश्मीर में चरमपंथी संगठनों की दिशा पर असर पड़े, जहां विगत में युवाओं को प्रभावित करने के लिए ग्लोबल जिहाद का आह्वान किया जाता रहा है.

दोनों ही संगठन कश्मीर में शरिया लागू करने की मांग करते हैं. ये संगठित ज़मीनी ढांचे के बजाय काफी हद तक प्रचार पर निर्भर करते हैं. हालांकि पाकिस्तान समर्थित चरमपंथी संगठनों का ज़्यादा असर है, पर सुरक्षा मामलों के जानकारों के अनुसार आईएस जैसे संगठन दुनिया भर में अकेले अपने दम पर हमला करने वालों को प्रेरित करने पर ज़्यादा ध्यान देते हैं.

अहलू-तौहीद मीडिया ने एक बयान में कहा है आईएसजेके और एजीएच को एक ही संगठन बताने के प्रयास किए जा रहे हैं. बयान में गत दिसंबर में एजीएच के छह चरमपंथियों के मारे जाने का उल्लेख करते हुए कहा गया है कि मीडिया ने मारे गए लोगों को आईएसजेके सदस्य करार दिया था.

एक आईएसजेके समर्थक टेलीग्राम अकाउंट पर जारी बयान में कहा गया, ‘आज हम स्पष्ट करना चाहते हैं कि आईसिस का तालिबान से संबद्ध एजीएच से कोई वास्ता नहीं है. इस्लामिक स्टेट इन कश्मीर के पूर्व प्रवक्ता ने उन्हें (एजीएच) एक ही झंडे के नीचे संघर्ष के लिए आमंत्रित किया था, पर उन्होंने तालिबान के राष्ट्रवादी आंदोलन में अपनी निष्ठा व्यक्त की जिसका कि इस्लामिक स्टेट विरोध करता है. इस कारण दोनों संगठनों के मिलकर कार्रवाई करने की संभावना और कम हो गई है.’


यह भी पढ़ें: कश्मीर -गृहमंत्री के रूप में भाजपा के रणनीतिकार अमित शाह की सबसे बड़ी चुनौती


टेलीग्राम के विभिन्न चैनलों पर अंतर्कलह दक्षिण कश्मीर में एक मुठभेड़ में 23 मई को मूसा के मारे जाने के बाद शुरू हुई. एजीएच प्रमुख के रूप में हमीद लेलहारी ने मूसा की जगह ली है. आईएसजेके के प्रमुख इशफाक अहमद सोफ़ी के मई में मारे जाने के बाद से इस संगठन का कोई प्रमुख नहीं है.

कथित तौर पर आईएसजेके समर्थक एक अकाउंट से गत सप्ताह भेजे गए एक संदेश में कश्मीर में जिहाद के प्रति एजीएच की प्रतिबद्धता तक पर सवाल उठाए गए हैं.

संदेश में कहा गया है, ‘बहुत से लोग शरिया के लिए संघर्ष करने के नारे देते हैं, यदि ऐसा है तो अल्ला उनकी मदद करें, और उन्हें एवं हमें सही राह दिखाएं, पर भाइयों हमें एक बार फिर फैसला करना होगा जोकि साफ दिख रहा है. याद रखें, हम मर चुके लोगों की बात नहीं करेंगे क्योंकि उनका हिसाब हो चुका है, पर हम वर्तमान की बात करते हैं.’

अन्य संदेशों में एजीएच को ‘आईसिस से निपटने के लिए’ गठित किए जाने और उसके तालिबान से संबंधित होने का आरोप लगाया गया है ‘जो कि सीरिया में लोगों को मार रहे रूस से वार्ता कर रहा है.’

आईएस के ‘दीवानों’ के लिए संदेश

एजीएच के ‘फॉलोअर्स’ ने जवाब में कई संदेश भेजे. एक संदेश में कहा गया है, ‘टेलीग्राम पर मौजूद कुछ दीवाने कह रहे हैं कि एजीएच का गठन कश्मीर में आईसिस के प्रचार से निपटने के लिए किया गया है, इससे ज़ाहिर होता है कि उन्हें ये मालूम नहीं है कि आईसिस के तथाकथित कश्मीर प्रांत की घोषणा होने से बहुत पहले ही एजीएच का गठन हो चुका था, उस समय तक आईएसजेके के अमीर का नाम भी सामने नहीं आया था.’

संदेश में आगे सवालिया लहजे में कहा गया है, ‘और सबसे अहम, एजीएच भला उस चीज़ से क्यों निपटेगा जिसका कि अस्तित्व ही नहीं है.’

जम्मू कश्मीर पुलिस और सेना के सूत्रों ने कहा कि वे इन संगठनों के बीच ‘झगड़े’ की वजह सुनिश्चित नहीं कर पाए हैं, पर उन्होंने साथ ही ये भी कहा कि इन दोनों संगठनों के बीच अतीत में कोई दुश्मनी नहीं देखी गई थी.

सेना के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, ‘दोनों संगठन (आईएसजेके और एजीएच) चूंकि कश्मीर को भारत से अलग कर पाकिस्तान में मिलाने के विचार से सहमति नहीं रखते, इसलिए अक्सर वे यहां के पाकिस्तान समर्थित गुटों के निशाने पर रहते हैं.’

सेना के अधिकारी ने आगे बताया, ‘उनके बीच कोई गठजोड़ नहीं था, पर उनके बीच कोई दुश्मनी भी नहीं थी. ये नई बात है.’

एक सुरक्षा सूत्र ने कहा कि अपने सदस्यों की घटती संख्या के कारण आईएसजेके की विवशता है कि वह अन्य चरमपंथी गुटों को कमतर बता कर, और इस्लाम एवं जिहाद के प्रति अपनी अटूट प्रतिबद्धता को जाहिर कर नए सिरे से अपनी उपस्थिति दर्ज कराए.

एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने कहा, ‘ये एक वैश्विक परिघटना है. आईसिस या उनसे प्रेरित संगठन दूसरों को अपने से कम सच्चा मुसलमान मानते हैं. संभव है यहां भी यही चल रहा हो, पर किसी निष्कर्ष पर पहुंचना अभी जल्दबाज़ी होगी.’

हालांकि, अधिकारी ने साथ ही ये भी कहा कि आईएसजेके अभी आरंभिक अवस्था में है और इसके विस्तार की गुंजाइश नहीं के बराबर है.

सोफ़ी के पिछले महीने मारे जाने के बाद, घाटी में तैनात आतंकवाद निरोधक इकाइयों के अनुसार वहां इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक़ एंड सीरिया (आईसिस या आईएस) प्रेरित एक ही हथियारबंद चरमपंथी था. पुलिस के एक सूत्र ने बताया कि पिछले एक महीने के दौरान चार युवक आईएसजेके में शामिल हुए हैं. इसी तरह एजीएच में, इसके उभार के दौरान भी, चरमपंथियों की संख्या दहाई में नहीं पहुंची थी.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

share & View comments