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Friday, 3 May, 2024
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जम्मू कश्मीर प्रशासन ने अपनी छवि सुधारने के लिए बनाई ‘3एस’ योजना

जम्मू कश्मीर प्रशासन ने ‘3एस’ योजना तैयार की है. इसके केंद्र में महिलाएं होंगी, जो शांति स्थापना और सामाजिक बदलावों का वाहक बन सकेंगी.

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श्रीनगर: जम्मू कश्मीर प्रशासन को अपनी छवि सुधारने की ज़रूरत महसूस हो रही है. चुनाव से महीनों दूर खड़ा राज्य पिछले साल जून में राज्यपाल शासन के अधीन आ गया था और दिसंबर से वहां राष्ट्रपति शासन जारी है. राज्य प्रशासन प्रभावशाली महिला रोल मॉडलों के सहारे अपनी छवि सुधारना चाहता है, जो कि शांति स्थापना में भी मददगार साबित हो सकेंगी. इससे संबंधित नई पहल को ‘3एस’ नाम दिया गया है.

‘3एस’ का मतलब कौशल विकास (स्किल डेवलेपमेंट), स्वयं सहायता समूहों (सेल्फ हेल्प ग्रुप्स) और खेलों (स्पोर्ट्स) से है. अधिकारियों का मानना है कि इनकी सहायता से कश्मीर की छवि में सकारात्मक बदलाव आ सकता है, और ये ‘शांति-स्थापना’ एवं कश्मीर में सामाजिक बदलाव लाने में भूमिका निभा सकते हैं.

राज्य प्रशासन की योजना गैर-सरकारी संगठनों की सहायता से महिलाओं तक पहुंचने और उनसे सीधा संवाद करने की है. महिलाओं को आजीविका के विभिन्न कौशलों में प्रशिक्षित किया जाएगा और खुद का व्यवसाय शुरू करने के लिए उन्हें लघु ऋण की सहूलियत दी जाएगी.

जम्मू कश्मीर के राज्यपाल सत्यपाल मलिक के वरिष्ठ सुरक्षा सलाहकार के. विजय कुमार ने इस बारे में दिप्रिंट को बताया कि राज्यपाल, राज्य के मुख्य सचिव और राज्य प्रशासन के सलाहकार इस पहल पर निरंतर काम कर रहे हैं.


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कुमार ने कहा, ‘3एस’ अभी पूरी तरह तैयार या संचालित नहीं है, पर पिछले महीने भर के दौरान इस पर विचार-विमर्श हुआ है.’ उन्होंने कहा कि ‘3एस’ के लिए बजटीय आवंटन की प्रक्रिया अंतिम चरण में है और शीघ्र ही इस कार्यक्रम को लागू किया जा सकेगा.

महिलाओं की ‘शक्ति’

राज्य के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि नई पहल से राज्य की अर्थव्यवस्था में महिलाओं की भागीदारी बढ़ सकेगी, और यह उन्हें अवरोधक राजनीति से दूर ले जाने में मददगार साबित होगी. लाभांवित होने वाली महिलाएं दूसरों को भी इससे जुड़ने के लिए प्रेरित कर सकेंगी.

एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने कहा कि परिवारों और घरों के भीतर महिलाओं की ‘शक्ति’ का अच्छे उद्देश्यों के लिए इस्तेमाल हो सकेगा. अधिकारी के अनुसार इस ‘शक्ति’ का सबसे बढ़िया उदाहरण है चरमपंथी गुटों से जुड़ने वाले अनेक युवाओं का घर लौटने की अपनी माताओं की अपील पर हथियारों का त्याग करना.

श्रीनगर स्थित सेना की 15वीं कोर के कमान अधिकारी (जीओसी) ले. जन. के.जे.एस. ढिल्लन उन अधिकारियों में से है जिन्होंने कश्मीर की माताओं से खुली अपील की थी कि वे ये सुनिश्चित करें कि उनके बेटे चरमपंथी गुटों में शामिल नहीं हों.

‘स्वागत योग्य कदम’

राजनीतिक प्रेक्षकों ने ही नहीं बल्कि नेशनल कांफ्रेंस के रियाज़ बदर जैसे नेताओं ने भी ‘3एस’ का ये कहते हुए स्वागत किया है कि सिर्फ हिंसा पर काबू के प्रयासों तक सीमित न रहते हुए राज्य प्रशासन का स्थानीय अर्थव्यवस्था को विकसित करने की भी कोशिश करना एक अच्छा कदम है.

बदर का सुझाव है कि प्रशासन को शॉल बुनाई और कढ़ाई जैसे पारंपरिक कला और शिल्प को भी बढ़ावा देना चाहिए.


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राज्य की पीडीपी-भाजपा सरकार गिरने के बाद पिछले साल जून में आयोग से इस्तीफा देने वाली मजहूर ने कहा, ‘बहुत से काम कागज़ों पर होते हैं और किसी को पता नहीं चलता है कि जिन महिलाओं को फायदा पहुंचाने की बात थी आखिर उनका क्या हुआ.’

मजहूर ने महिला आयोग के प्रमुख के पद पर प्रशासन द्वारा अभी तक उनकी जगह किसी और को नियुक्त नहीं किए जाने का उल्लेख करते हुए कहा, ‘सिर्फ सतही बदलावों से महिला सशक्तीकरण नहीं होता है. महिलाओं को सबल बनाने के लिए संपूर्णता में प्रयास करने की ज़रूरत होती है, जिसमें संस्थाओं को मज़बूत करने का काम भी सम्मिलित होता है.’

‘3एस’ को लेकर संदेह

पर जम्मू कश्मीर के मौजूदा अत्यधिक राजनीतिक माहौल के मद्देनज़र कुल लोगों को ‘3एस’ योजना पर कुछ ज़्यादा ही संदेह है.

कश्मीर सेंटर फॉर सोशल एंड डेवलेपमेंटल स्टडीज़ की प्रमुख हमीदा नईम नई पहल को ‘राजनीति से प्रेरित’ बताती हैं.


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उन्होंने कहा, ‘समस्या ये है कि राज्य या केंद्र का हर कदम राजनीति से प्रेरित और नकारात्मक होता है, भले ही उसे ‘3एस’ जैसा सकारात्मक नाम दिया गया हो.’

हमीदा नईम कहती हैं, ‘राज्य प्रशासन की पहलकदमियों में खेलों का इस्तेमाल लंबे समय से किया जाता रहा है. कश्मीर के गैर-सरकारी संगठनों के बारे में भी यही बात कही जा सकती है, जिन्होंने राज्य में केंद्र के कागज़ी शेर की तरह काम किया है. उनका उद्देश्य लोगों को अपने से जोड़ना भर ही नहीं, बल्कि ये सुनिश्चित करना होता है कि लोग अपने अधिकारों के आंदोलन से दूर हट सकें.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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