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Thursday, 2 May, 2024
होमदेशकश्मीर -गृहमंत्री के रूप में भाजपा के रणनीतिकार अमित शाह की सबसे बड़ी चुनौती

कश्मीर -गृहमंत्री के रूप में भाजपा के रणनीतिकार अमित शाह की सबसे बड़ी चुनौती

कश्मीर के लिए पिछले पांच वर्ष चुनौतीपूर्ण रहे हैं, जब पाकिस्तान के साथ रिश्ते दुष्कर रहे, आतंकवादियों की भर्ती में तेज़ी आई तथा हिंसक प्रदर्शनों एवं कर्फ्यू का दौर चला.

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श्रीनगर: 2014 से ही पार्टी की शानदार सफलताओं का श्रेय पा रहे भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के अध्यक्ष अमित शाह को एक माहिर रणनीतिकार के रूप में जाना जाता है.

नरेंद्र मोदी के नए मंत्रिमंडल में गृहमंत्री बनाए जाने के बाद शाह के रणनीतिक कौशल की अब तक की कठिनतम परीक्षा कश्मीर में होने की संभावना है, जो 1980 और 1990 के दशकों के उग्रवाद के बाद के सर्वाधिक अस्थिर दौर का सामना कर रहा है.

शाह के मंत्रालय का भार संभालने के ही दिन श्रीनगर में हुर्रियत नेता मीरवाइज़ उमर फारूक़ का गढ़ मानी जाने वाली जामिया मस्जिद के बाहर पाकिस्तानी आतंकवादी संगठन जैश-ए-मोहम्मद के झंडे लहराए गए.

कश्मीर घाटी की तमाम पार्टियों के बीच शाह के पूर्ववर्ती गृहमंत्री राजनाथ सिंह की छवि सबकी बात सुनने वाले उदारवादी नेता की थी. ये छवि उनके कार्यकाल के दौरान 2016 में शुरू हुए विरोध प्रदर्शनों और फिर हिज़बुल मुजाहिदी कमांडर बुरहान वानी को मार गिराए जाने के बावजूद थी.

सख्ती की राजनीति शाह की कार्यप्रणाली की बुनियाद मानी जाती है, और इसलिए घाटी में इस बात को लेकर बेचैनी है, और थोड़ी आशंका भी, कि दशकों से पाकिस्तान प्रायोजित उग्रवाद से पीड़ित कश्मीर घाटी के लिए वह किस तरह की नीति लेकर आएंगे.

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राज्य की उमर अब्दुलल्ला सरकार (2008-2014) में मंत्री रहे नेशनल कांफ्रेंस के वरिष्ठ नेता नासिर असलम वानी ने कहा कि शाह का कार्यकाल राजनाथ सिंह के कार्यकाल से किस कदर अलग रहेगा, इस बारे में अभी टिप्पणी करना जल्दबाज़ी होगी.

उन्होंने कहा, ‘राजनाथ अच्छे श्रोता थे, पर कश्मीर के हालात में सुधार संबंधी हमारे तमाम सुझावों के बावजूद ज़मीनी स्थिति में ज़्यादा बदलाव नहीं हुआ है.’

वानी ने कहा, ‘हमें लगता है कि शाह के कार्यकाल में कश्मीर की स्थिति में बदलाव आ सकता है, क्योंकि वह प्रधानमंत्री के करीबी हैं. प्रधानमंत्री के निर्देशों और आदेशों को सहजता से कार्यान्वित किया जा सकेगा.’

पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) के वरिष्ठ नेता नईम अख्तर ने इस विषय पर टिप्पणी करने से मना कर दिया. अख्तर महबूबा मुफ्ती के नेतृत्व वाली राज्य की पीडीपी-भाजपा सरकार (2016-2018) में मंत्री थे.

हालांकि, पीडीपी के अंदरूनी सूत्रों के अनुसार पार्टी प्रमुख महबूबा मुफ्ती का राजनाथ के साथ बेहतरीन कामकाज़ी संबंध रहा था, पर शाह के साथ उनका समीकरण भी प्रतिकूल नहीं है.

पीडीपी के एक वरिष्ठ नेता ने बताया कि पिछले नवंबर में, पार्टी की गठबंधन सरकार गिरने के पांच महीने बाद, दलबदल के संकट का सामना होने पर महबूबा ने सबसे पहले शाह से ही संपर्क किया था. ‘शाह ने उन्हें आश्वस्त किया था कि क्षेत्रीय पार्टियों को तोड़ना भाजपा के हित में नहीं होगा.’

पीडीपी के उक्त नेता ने कहा, ‘शीघ्र ही विधानसभा चुनाव होने हैं, देखते हैं क्या स्थिति रहती है.’


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मुश्किल दौर

कश्मीर के लिए पिछले पांच वर्ष चुनौतीपूर्ण रहे हैं. इस दौरान पाकिस्तान के साथ भारत के रिश्ते दुष्कर रहे, सोशल मीडिया के उभार से कश्मीर में आतंकवादियों की भर्ती में तेज़ी आई तथा हिंसक प्रदर्शनों एवं कर्फ्यू का दौर चला.

2016 में उरी में सेना के शिविर पर और इस साल सीआरपीएफ के काफिले पर हुए हमलों जैसे बड़े आतंकवादी हमलों ने स्थानीय निवासियों की शंकाओं को और बढ़ाने का काम किया है.

ऐसे मुश्किल दौर में ही राज्य को गहरी राजनीतिक अस्थिरता का भी सामना करना पड़ा. पहले तो परस्पर बिल्कुल भिन्न विचारधाराओं वाली दो पार्टियों ने हाथ मिलाया और फिर उनके संबंध टूट गए, जिसके फलस्वरूप करीब साल भर से राज्य में कोई निर्वाचित सरकार नहीं है.

नरेंद्र मोदी सरकार के दौर में कश्मीर और दिल्ली का फासला भी लगता है बढ़ गया, क्योंकि भाजपा जहां संविधान के अनुच्छेद 370 और 35ए का खुलकर विरोध करती है, वहीं स्थानीय निवासी इन प्रावधानों को बहुत अहम मानते हैं.

राजनाथ सिंह के कार्यकाल में शांति के लिए कई पहलकदमियां की गईं – जैसे कश्मीर के लिए विशेष प्रतिनिधि की नियुक्ति, पत्थरबाजों को क्षमादान, रमज़ान में संघर्षविराम – पर 2016 से आतंकवाद विरोधी अभियानों में तेज़ी लाने के लिए उन्हें आलोचनाओं का भी सामना करना पड़ा था.

दिप्रिंट से बातचीत में भारतीय सेना के सेवानिवृत लेफ्टिनेंट जनरल एच.एस. पनाग ने कहा कि कश्मीर के हालात के मद्देनज़र राजनीतिक समाधान की दरकार है, ना कि ‘सख़्ती’ दिखाने की.


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उन्होंने कहा, ‘पाकिस्तान अभी तक कश्मीर में उग्रवाद को जारी रखने में सक्षम रहा है और राज्य से मिल रहे आंकड़े भी यही साबित करते हैं.’

ले.जन. पनाग (से.नि.) ने कहा, ‘हम 2018 में सर्वाधिक संख्या में आतंकवादियों को मार गिराने में कामयाब रहे, पर सर्वाधिक आतंकवादियों की भर्ती भी 2018 में ही हुई. जहां तक पाकिस्तान की बात है, हम उसे आतंकवाद के प्रायोजन से बाज आने के लिए बाध्य नहीं कर पाए हैं, और हमने पुलवामा जैसी बड़ी घटनाओं के बाद ही जवाबी कदम उठाए हैं.’ उन्होंने इस दिशा में तकनीकी और सैन्य प्रगति की ज़रूरत पर ज़ोर दिया.

उन्होंने कहा, ‘यदि इन दो क्षेत्रों में बुनियादी बदलाव नहीं होते हैं, तो निकट भविष्य में कश्मीर की स्थिति में बदलाव नहीं आने वाला है. एक राजनीतिक दृष्टिकोण अपनाना होगा और कश्मीर के लोगों से वार्ता शुरू करनी होगी. सख्त रवैये से ज़्यादा कुछ हासिल नहीं होने वाला है.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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