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Tuesday, 17 December, 2024
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भारत का जी-20 एजेंडा समावेशी, महत्वाकांक्षी, कार्रवाई उन्मुख और निर्णायक होगा : प्रधानमंत्री मोदी

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नयी दिल्ली, एक दिसंबर (भाषा) भारत के बृहस्पतिवार को जी-20 की अपनी अध्यक्षता शुरू करने के मौके पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा कि वह “एक पृथ्वी, एक परिवार, एक भविष्य” के विषय से प्रेरित होकर एकता को बढ़ावा देने के लिए काम करेगा और आतंक, जलवायु परिवर्तन, महामारी को सबसे बड़ी चुनौतियों के तौर पर सूचीबद्ध करेगा जिनका एक साथ मिलकर बेहतर तरीके से मुकाबला किया जा सकता है।

उन्होंने कहा कि भारत की जी-20 प्राथमिकताओं को न केवल हमारे जी-20 भागीदारों, बल्कि दुनिया के दक्षिणी हिस्से के हमारे साथी देशों के परामर्श से आकार दिया जाएगा, जिनकी आवाज अक्सर अनसुनी कर दी जाती है।

उन्होंने कहा कि भारत का जी-20 एजेंडा समावेशी, महत्वाकांक्षी, कार्रवाई उन्मुख और निर्णायक होगा।

उन्होंने विभिन्न अखबारों और उनकी वेबसाइट पर डाले गए एक लेख में कहा, “आइए हम भारत की जी-20 अध्यक्षता को राहतकारी, सद्भाव और उम्मीद भरी पहल के साथ जुड़ें। आइए हम मानव-केंद्रित वैश्वीकरण के एक नए प्रतिमान को आकार देने के लिए मिलकर काम करें।”

प्रधानमंत्री ने ट्वीट की एक श्रृंखला में कहा कि देश टिकाऊ जीवन शैली को प्रोत्साहित करने, भोजन, उर्वरकों और चिकित्सा उत्पादों की वैश्विक आपूर्ति को गैर-राजनीतिकरण करने पर काम करने के लिए तत्पर है।

उन्होंने कहा, “मेरा दृढ़ विश्वास है कि अभी और आगे बढ़ने तथा समग्र रूप से मानवता को लाभान्वित करने के लिए एक मौलिक मानसिकता के बदलाव को उत्प्रेरित करने का सबसे अच्छा समय है।”

प्रधानमंत्री ने कहा कि ‘किसी का फायदा, किसी का नुकसान’ (जीरो-सम) वाली पुरानी मानसिकता में फंसे रहने का समय चला गया है, जिसके कारण आभाव और संघर्ष दोनों देखने को मिले थे।

उन्होंने कहा, “यह हमारी आध्यात्मिक परंपराओं से प्रेरित होने का समय है जो एकता की वकालत करती हैं और वैश्विक चुनौतियों को हल करने के लिए मिलकर काम करती हैं।”

भारतीय कूटनीति के लिहाज से अहम मील का पत्थर मानी जा रही जी-20 की अध्यक्षता पर अपने विचार साझा करते हुए लेख में उन्होंने लिखा, “भारत ने इस महत्वपूर्ण पद को ग्रहण किया है और मैं खुद से पूछता हूं – क्या जी-20 अब भी आगे बढ़ सकता है? क्या हम मानवता के कल्याण के लिए मानसिकता में मौलिक बदलाव को उत्प्रेरित कर सकते हैं? मुझे विश्वास है कि हम कर सकते हैं।”

उन्होंने कहा, “ हमारी परिस्थितियां ही हमारी मानसिकता को आकार देती हैं। पूरे इतिहास के दौरान, मानवता अभाव में रही। हम सीमित संसाधनों के लिए लड़े, क्योंकि हमारा अस्तित्व दूसरों को उन संसाधनों से वंचित कर देने पर निर्भर था। विभिन्न विचारों, विचारधाराओं और पहचानों के बीच, टकराव और प्रतिस्पर्धा आदर्श बन गए।”

उन्होंने कहा, “दुर्भाग्य से, हम आज भी उसी शून्य-योग की मानसिकता में अटके हुए हैं। हम इसे तब देखते हैं जब विभिन्न देश क्षेत्र या संसाधनों के लिए आपस में लड़ते हैं। हम इसे तब देखते हैं जब आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति को हथियार बनाया जाता है। हम इसे तब देखते हैं जब कुछ लोगों द्वारा टीकों की जमाखोरी की जाती है, भले ही अरबों लोग बीमारियों से असुरक्षित हों।”

प्रधानमंत्री ने कहा कि कुछ लोग यह तर्क दे सकते हैं कि टकराव और लालच मानवीय स्वभाव है। उन्होंने कहा कि वह इससे असहमत हैं। उन्होंने पूछा कि अगर मनुष्य स्वाभाविक रूप से स्वार्थी है, तो हम सभी में मूलभूत एकात्मता की हिमायत करने वाली इतनी सारी आध्यात्मिक परंपराओं के स्थायी आकर्षण को कैसे समझा जाए?

मोदी ने कहा, “भारत में प्रचलित ऐसी ही एक परंपरा है जो सभी जीवित प्राणियों और यहां तक कि निर्जीव चीजों को भी एक समान ही पांच मूल तत्वों – पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश के पंचतत्व से बना हुआ मानती है। इन तत्वों का सामंजस्य – हमारे भीतर और हमारे बीच भी- हमारे भौतिक, सामाजिक और पर्यावरणीय कल्याण के लिए आवश्यक है। ”

उन्होंने कहा, “भारत की जी-20 की अध्यक्षता दुनिया में एकता की इस सार्वभौमिक भावना को बढ़ावा देने की ओर काम करेगी। इसलिए हमारा मुख्य विषय – ‘एक पृथ्वी, एक परिवार, एक भविष्य’ है।”

उन्होंने कहा कि आज हमारे पास दुनिया के सभी लोगों की बुनियादी जरूरतों को पूरा करने के लिए पर्याप्त उत्पादन करने के साधन हैं। उन्होंने कहा, “आज, हमें अपने अस्तित्व के लिए लड़ने की जरूरत नहीं है – हमारे युग को युद्ध का युग होने की जरूरत नहीं है। ऐसा बिलकुल नहीं होना चाहिए।”

मोदी ने कहा कि सौभाग्य से, आज की जो तकनीक है वह हमें व्यापक पैमाने पर मानवता की समस्याओं का समाधान करने का साधन भी प्रदान करती है। मोदी ने कहा कि भारत इस सकल विश्व का सूक्ष्म जगत है जहां विश्व की आबादी का छठवां हिस्सा रहता है और जहां भाषाओं, धर्मों, रीति-रिवाजों और आस्थाओं की विशाल विविधता है।

प्रधानमंत्री ने कहा कि “लोकतंत्र की जननी” के रूप में भारत की राष्ट्रीय सहमति किसी फरमान से नहीं, बल्कि करोड़ों स्वतंत्र आवाजों को एक सुरीले स्वर में मिला कर बनाई गई है।

उन्होंने कहा कि आज, भारत सबसे तेजी से बढ़ती बड़ी अर्थव्यवस्था है। हमारे प्रतिभाशाली युवाओं की रचनात्मक प्रतिभा का पोषण करते हुए, हमारा “नागरिक-केंद्रित शासन मॉडल” एकदम हाशिए पर पड़े नागरिकों का भी ख्याल रखता है।

भाषा प्रशांत नरेश

नरेश

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

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