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Tuesday, 23 April, 2024
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दुनिया की आबादी पिछले 12 सालों में करीब एक अरब बढ़ी, डेटा बताते है 5% तो अकेले UP-बिहार में बढ़ी

इन दोनों राज्यों में करीब 35.4 करोड़ लोग रहते हैं और यह आंकड़ा दुनिया के तीसरे सबसे अधिक आबादी वाले देश अमेरिका से ज्यादा है. दोनों राज्यों में कुल प्रजनन दर (टीएफआर) भी उच्च स्तर पर है.

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नई दिल्ली: संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष (यूएनपीएफ) के आंकड़े बताते है कि पिछले 12 सालों में दुनिया की आबादी करीब 1 अरब बढ़कर गत मंगलवार को 8 अरब के आंकड़े के पार पहुंच गई. और इस दौरान आबादी बढ़ाने में सबसे अधिक योगदान भारत का रहा है.

संयुक्त राष्ट्र के आंकड़ों पर गहराई से नजर डालें तो पता चलता है कि भारत की आबादी 2010-2021 के बीच 170 मिलियन (यानी 17 करोड़) से कुछ अधिक बढ़ी जो कि दुनिया में पिछले 12 सालों में बढ़ी 1 बिलियन आबादी का लगभग 17 प्रतिशत है. भारत के अगले साल तक चीन को पीछे छोड़कर दुनिया का सबसे अधिक आबादी वाला देश बन जाने की उम्मीद है.

डेटा यह भी दर्शाता है कि भारत में आबादी बढ़ाने में सबसे अधिक हिस्सेदारी दो राज्यों उत्तर प्रदेश और बिहार की रही. दुनियाभर में बढ़ी एक अरब की आबादी में से पांच फीसदी तो अकेले इन्हीं दो राज्यों में बढ़ी है.

अन्य देश जनसंख्या वृद्धि के मामले में भारत से मीलों पीछे हैं, चीन दूसरे स्थान पर (8 करोड़) है, फिर उसके बाद नाइजीरिया (5.2 करोड़), पाकिस्तान (3.7 करोड़) और इथियोपिया (3.08 करोड़) का नंबर आता है.

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उत्तर प्रदेश और बिहार का योगदान

गंगा के मैदानी इलाकों में स्थित उत्तर प्रदेश और बिहार देश के सबसे अधिक आबादी वाले राज्यों में शामिल हैं. इन दोनों राज्यों में कुल मिलाकर करीब 35.4 करोड़ लोग रहते हैं, और यह आंकड़ा दुनिया के तीसरे सबसे अधिक आबादी वाले देश अमेरिका की कुल जनसंख्या से कहीं ज्यादा है.

हालांकि, यूएनपीएफ राज्य-वार डेटा जारी नहीं करता है, लेकिन 2021 के लिए भारत सरकार के जनसंख्या अनुमानों ने तुलना करना संभव बना दिया, भले ही इसमें एक वर्ष (2010) को छोड़ दिया गया हो.

2020 में स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय की तरफ से जारी जनसंख्या अनुमानों के मुताबिक, भारत में 2011-2021 के बीच करीब 15 करोड़ (150 मिलियन) से थोड़ा अधिक आबादी बढ़ी यानी हर वर्ष औसतन 1.5 करोड़ लोग बढ़े.

उत्तर प्रदेश की आबादी 2011 में 19.98 करोड़ से बढ़कर 2021 में 23.09 करोड़ और बिहार की 10.4 करोड़ से बढ़कर 12.3 करोड़ हो जाने का अनुमान है. दोनों राज्यों को मिलाकर देखे तो पिछले एक दशक में करीब 5 करोड़ आबादी बढ़ी है, जो दुनियाभर में लगभग इसी अवधि में बढ़ी एक बिलियन (100 करोड़) आबादी का लगभग 5 प्रतिशत है.

इन दो राज्यों के अलावा, महाराष्ट्र में 1.21 करोड़, मध्य प्रदेश ने 1.19 करोड़ और राजस्थान ने 1.07 करोड़ लोग बढ़े, जो आंकड़ा दुनिया के सबसे नए 100 करोड़ क्लब का लगभग 3 प्रतिशत है.

दक्षिण भारत के पांच राज्यों कर्नाटक, तमिलनाडु, केरल, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना और केंद्र शासित प्रदेश पुडुचेरी में कुल मिलाकर केवल 2.38 करोड़ आबादी बढ़ी है जो दुनिया के सबसे नए वन बिलियन क्लब का 3 प्रतिशत भी नहीं है.

यह जनसंख्या वृद्धि सीधे तौर पर इन राज्यों की प्रजनन दर से जुड़ी है. कुल प्रजनन दर (टीएफआर) का मतलब है कि किसी महिला के अपने प्रजनन वर्षों के दौरान औसतन कितने बच्चों को जन्म देने की संभावना है. जनगणना के आधार पर स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुमानों के मुताबिक, भारत में टीएफआर का आंकड़ा औसतन 2 है यानी हर महिला के दो बच्चों को जन्म देने का अनुमान है.

टीएफआर बिहार (2.92), उत्तर प्रदेश (2.3), मध्य प्रदेश (2.3), राजस्थान (2.2) में दो बच्चों से अधिक है लेकिन दक्षिणी भारतीय राज्यों में कम है जैसे तमिलनाडु, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में यह आंकड़ा क्रमश: 1.54, कर्नाटक में 1.64 और केरल में 1.79 है.


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गरीब बढ़ रहे, अमीर घट रहे

संयुक्त राष्ट्र के आंकड़ों से यह भी पता चलता है कि दुनिया की आबादी में सबसे नई वृद्धि ‘सबसे कम विकसित देशों’ में ज्यादा रही है, जहां लोगों की आय एक साल में औसतन 1,018 डॉलर (82,416.17 रुपये) भी नहीं है और जो आर्थिक और पर्यावरणीय खतरों को लेकर संवेदनशील की श्रेणी में भी आते हैं.

इन देशों में 2010-2021 के बीच करीब 89 करोड़ लोग बढ़े. इसके विपरीत उच्च आय वाले देशों—जहां एक व्यक्ति प्रति वर्ष औसतन 12,615 डॉलर (10.22 लाख रुपये) से अधिक कमाता है—में आबादी केवल 6.73 करोड़ बढ़ी है.

यह उन देशों में दिखाई दे रहा है जहां 2021 की तुलना में 2010 में अधिक लोग रहते थे.

जापान की आबादी में 32 लाख, यूक्रेन की आबादी में 20 लाख, सीरिया और रोमानिया की आबादी में 10 लाख की कमी आई है. बुल्गारिया, मोल्दोवा, ग्रीस, बोस्निया और हर्जेगोविना और प्यूर्टो रिको में कुल आबादी 5 लाख से ज्यादा घटी है.

अमीर देशों में उम्र बढ़ने के कारण जनसंख्या घट रही है. अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) की एक रिपोर्ट के मुताबिक, आने वाले 40 वर्षों (2020 से शुरू होकर) में जापान में पॉपुलेशन लॉस मलेशिया की मौजूदा जनसंख्या के लगभग बराबर हो जाएगा.

(अनुवाद: रावी द्विवेदी)

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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