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Sunday, 22 December, 2024
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भारत-नेपाल वार्ता की जल्द संभावना नहीं, तेज़ी से नक़्शा बदलने में लगा काठमांडू

नेपाल एक नए राजनीतिक नक़्शे को लेकर, अपने संविधान में बदलाव की प्रक्रिया तेज़ कर रहा है, और 9 जून को संशोधन को अपनाने को तैयार है.

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नई दिल्ली: दिप्रिंट को पता चला है, कि भारत और नेपाल के बीच निकट भविष्य में, विदेश सचिव- स्तर की बातचीत की संभावना नज़र नहीं आ रही, क्योंकि काठमांडु अपने नए राजनीतिक नक़्शे को लेकर, अपने संविधान में संशोधन की प्रक्रिया में तेज़ी लाने पर अड़ा हुआ है.

सूत्रों के अनुसार, अपने नए विवादास्पद राजनीतिक नक़्शे को समर्थन देने के लिए, कोपी शर्मा ओली सरकार की ओर से संविधान संशोधन विधेयक पेश किए जाने के बाद, पिछले सात दिनों से, दोनों पक्षों के बीच कूटनीतिक माध्यमों से बातचीत चल रही है. विधेयक में संविधान के पूरक अंश-3 को बदलने की बात की गई है, जिससे नेपाल के राष्ट्रीय प्रतीक में, नए नक़्शे को दर्शाया जा सके.

लेकिन, नई दिल्ली के उकसाने के बाद भी, काठमांडु ने इस मामले को टालने से इंकार कर दिया है, और सूत्रों के मुताबिक़, संविधान में संशोधन के लिए, एक छोटा रास्ता अख़्तियार कर रहा है.


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पहचान छिपाने की शर्त पर एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, ‘ऐसा लगता है कि वो अब इस विषय पर और बात नहीं करना चाहते…वो इस पर आगे बढ़ना चाहते हैं…ऐसी कार्रवाईयों से वो भारत को बातचीत के लिए मजबूर नहीं कर सकते, जो आपसी रिश्तों के लिए हानिकारक हों. वार्ताएं इस तरह नहीं की जातीं, भले ही उन्हें लगता हो कि भारत प्रस्ताव पर बैठा हुआ है.’

ओली सरकार के सूत्रों के मुताबिक़, नेपाल 9 जून को संशोधन को अपनाने के लिए बिल्कुल तैयार है.

नेपाल ने लम्बी प्रक्रिया को स्थगित करने का फैसला किया है, और संसद के ऊपरी सदन में भी, प्रक्रिया को तेज़ करके, संशोधन को अंतिम रूप देने का मन बना लिया है. सूत्रों के मुताबिक़, मुख्य विपक्षी दल, नेपाली कांग्रेस (एनसी) भी इस क़दम को समर्थन देने पर सहमत हो गई है.

माना जा रहा है कि ओली सरकार, पीएम की अपनी नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी (एनसीपी) के अंदरूनी राजनीतिक दबाव की वजह से, ऐसा ‘कठोर क़दम’ उठा रही है, जबकि नई दिल्ली को लगता है कि वो मधेश पर आधारित पार्टियों को साथ लेकर, एक राष्ट्रीय सहमति बनाने पर ज़ोर देते हुए, इस प्रक्रिया में देरी ला सकते थे.

संविधान में संशोधन और नए नक़्शे का समर्थन जुटाने के लिए, दो-तिहाई बहुमत की ज़रूरत होगी. नेपाल की 275-सदस्यीय प्रतिनिधि सभा (निचले सदन) में, एनसीपी के पास 174 सीटें, और एनसी के पास 63 सीटें हैं. ऐसे में, अगर मधेश पर आधारित पार्टियां बिल को समर्थन नहीं भी देतीं, तब भी प्रस्ताव पारित हो सकता है.

‘बातचीत के लिए माहौल अनुकूल नहीं’

सूत्रों के मुताबिक़, नेपाल की सत्ताधारी पार्टी के कई वरिष्ठ प्रतिनिधि, वहां तैनात भारत के राजदूत विनय मोहन क्वात्रा से मिलते रहे हैं, लेकिन नई दिल्ली का मानना है कि जब तक ओली सरकार इस प्रक्रिया को ‘धीमा नहीं करती’, तब तक बातचीत के लिए अनुकूल माहौल बन पाना संभव नहीं होगा.

नेपाल में भारत के पूर्व राजदूत रंजीत राय ने दिप्रिंट को बताया, ‘मौजूदा हालात में, बातचीत मुश्किल है और जब संशोधन पारित हो जाएगा, जैसी कि संभावना है, तो नज़रिए और सख़्त हो जाएंगे.’

उन्होंने आगे कहा, ‘भारत के गहरे संदेहों के बावजूद, ओली सरकार संशोधन को तेज़ी से पारित करना चाहती है. अगर वो बातचीत को लेकर गंभीर हैं, तो उन्हें इस प्रक्रिया को टाल देना चाहिए था. मुझे लगता है कि वो एक मज़बूत स्थिति में आकर बात करना चाहते हैं, जिसमें हमारे पास कोई चारा न रह जाए. भारत के लिए इसे मंज़ूर करना बहुत मुश्किल है.’

नेपाल कई वर्षों से भारत से कालापानी सीमा विवाद को हल करने का अनुरोध करता आ रहा है लेकिन ओली सरकार संशोधन के अपने काम में तेज़ी तब लाई, जब नई दिल्ली ने जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा ख़त्म करके, नवम्बर 2019 में एक नया राजनीतिक नक़्शा जारी किया.

क्वात्रा को पिछले महीने एक राजनयिक नोट दिया गया, जिसमें काठमांडू ने भारत द्वारा मानसरोवर तक बनाई गई सड़क पर एतराज़ बताया था, जो लिपुलेख से होकर जाती है.


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नेपाल ने ये क़दम भारत के उस बयान के बावजूद उठाया, जिसमें कहा गया था कि वैश्विक महामारी के दब जाने के बाद, वो नेपाल के साथ विदेश सचिव-स्तर की वार्ता करेगा.

दोनों देशों के विदेश सचिवों के बीच, वर्चुअल बातचीत का नेपाल का अनुरोध भारत ने ठुकरा दिया.

20 मई को नेपाल ने आधिकारिक रूप से एक नया नक़्शा जारी किया, जिसमें लिम्पियाधूरा, लिपुलेख और कालापानी के विवादास्पद क्षेत्रों को उसकी सीमाओं के अंदर दिखाया गया है. भारत ने ये कहकर इसे मंज़ूर करने से इंकार कर दिया है, कि वो नेपाल के इलाक़े के ‘बनावटी इज़ाफ़े’ को स्वीकार नहीं करेगा.

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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