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Friday, 22 November, 2024
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‘INDIA शब्द गुलामी का प्रतीक’, विपक्षी दलों के गठबंधन ‘इंडिया’ पर हिंदू दक्षिणपंथी प्रेस ने क्या लिखा

हिंदुत्व समर्थक मीडिया ने पिछले कुछ हफ्तों में विभिन्न खबरों और सामयिक मुद्दों को कैसे कवर किया और उन पर क्या संपादकीय रुख अपनाया, इसी पर दिप्रिंट का राउंड-अप.

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नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा विपक्षी पार्टियों के गठबंधन का नाम INDIA होने पर निशाना साधने के बाद, आरएसएस का हिंदी मुखपत्र पांचजन्य ने भारत को बढ़ावा दिया और INDIA नाम के नकारात्मक ऐतिहासिक अर्थों की ओर इशारा किया. 

पांचजन्य के एक संपादकीय में बताया कि डच ईस्ट इंडिया कंपनी और डच वेस्ट इंडिया कंपनी जैसी संस्थाएं भी थी जिसके नाम में INDIA था. ये कंपनियां दास व्यापार में शामिल थीं.

पांचजन्य ने आगे दावा किया कि “भारत” के विपरीत, “इंडिया” के साथ देश की कोई भी सांस्कृतिक और राजनीतिक पहचान जुड़ी नहीं है.

संपादकीय में कहा गया है, “भारत एक सांस्कृतिक शब्द है, जो एकता, समानता और स्नेह का प्रतीक है. भारत वह है जिसे पश्चिम के आक्रमणकारियों ने अपनी अंधी आंखों से देखा था. जबकि इंडिया ने इसे लूटने, इस पर कब्जा करने और इसे विभाजित होते देखा.”

इसमें जोड़ा गया है, “वास्तव में पश्चिम में ‘इंडिया’ शब्द का अर्थ भौगोलिक भी नहीं है. डच ईस्ट इंडिया कंपनी और डच वेस्ट इंडिया कंपनी का इस्तेमाल खुलेआम दासों के व्यापार के लिए किया जाता था.”

आगे लिखा गया है, “संविधान सभा में भी देश का भौगोलिक नाम ‘भारत’ रखने पर काफी तीखी बहस हुई थी. लेकिन, संविधान सभा के सदस्यों ने पश्चिमी दृष्टिकोण लेते हुए संविधान में’इंडिया, दैट इज भारत’ लिखा.”

भारतीय राष्ट्रीय विकासात्मक समावेशी गठबंधन (INDIA) विपक्षी दलों का एक गठबंधन है जिसके तहत दो दर्जन से अधिक विपक्षी दलों ने भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) से मुकाबला करने के लिए हाथ मिलाया है.

इंडिया बनाम एनडीए बहस पर कटाक्ष करते हुए पांचजन्य ने विपक्षी गठबंधन पर “परिवार की रानी” सोनिया गांधी और “सुशासन बाबू” नीतीश कुमार पर हमला बोला.

पांचजन्य ने दावा किया कि विपक्षी गठबंधन ने “असंख्य घोटालों, नीतिगत गैरजिम्मेदारी, वैचारिक शून्यता और आतंकवाद के प्रति नरमी” के कारण यूपीए (संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन) नाम छोड़ दिया.

हिंदू राइट प्रेस द्वारा उठाए गए अन्य विषयों में मणिपुर में जातीय हिंसा, ईसाई मिशनरियों द्वारा संचालित कथित “योजनाएं”, “धर्मनिरपेक्ष राजनीति” के नुकसान और सीमा पार रोमांस पर पाकिस्तान को लेकर होने वाले खतरों के प्रति आगाह किया.

मणिपुर में 2024 से पहले ‘गलत सूचना’ का जमावरा

आरएसएस का अंग्रेजी मुखपत्र ऑर्गेनाइजर में इसके संपादक प्रफुल्ल केतकर ने अपने संपादकीय में मणिपुर में “दो महिलाओं को नग्न घुमाने के शर्मनाक वीडियो” के साथ-साथ राज्य में हिंसा की अन्य घटनाओं के बारे में लिखा.

उन्होंने लिखा, “हिंसा फैलाने के लिए महिला समूहों को ढाल के रूप में इस्तेमाल करना (जैसा कि सीएए विरोधी प्रदर्शनों में प्रदर्शित हुआ) और राजनीतिक बदला लेने के लिए महिलाओं पर हमला करना (जैसा कि विधानसभा चुनाव के बाद पश्चिम बंगाल के मामले में हुआ) एक नया ट्रेंड बन रहा है.”

मणिपुर हिंसा को औपनिवेशिक नीतियों से जोड़ते हुए, जिसे प्रकाशन ने पहले भी अपनाया है, उन्होंने कहा कि “निजी स्वार्थों के लिए गलत सूचना फैलाना” एक स्थायी मुद्दा बना हुआ है.

उन्होंने लिखा, “एक राष्ट्र के रूप में, हमें 2024 के लोकसभा चुनावों से पहले अधिक सतर्क रहने की जरूरत है, क्योंकि आने वाले महीनों में भारत में अस्थिरता, बदनामी लाने के लिए कई और भयावह योजनाएं तैयार हो रही होंगी.” 

मणिपुर में 3 मई से बहुसंख्यक मैतेई समुदाय, जो मुख्य रूप से हिंदू हैं और आदिवासी कुकी, जो मुख्य रूप से ईसाई धर्म का पालन करते हैं, के बीच संघर्ष छिड़ा हुआ है.

मणिपुर पर यूरोपीय संघ का प्रस्ताव ‘प्रचार’ था

12 जुलाई को यूरोपीय संघ के विधायी निकाय ने एक प्रस्ताव पारित कर भारत सरकार से मणिपुर में जातीय हिंसा पर रोक लगाने और धार्मिक अल्पसंख्यकों की रक्षा करने को कहा. भारतीय विदेश मंत्रालय ने इसपर तुरंत “हस्तक्षेप” करते हुए इसे “अस्वीकार्य” बताया था.

इंडियन एक्सप्रेस में लिखते हुए आरएसएस विचारक राम माधव ने भी ईयू के कदम की आलोचना की और इसे “प्रचार का हिस्सा” बताया.

उन्होंने लिखा, “प्रस्ताव पर चर्चा 15 मिनट भी नहीं चली. यूरोपीय संसद (एमईपी) के कुछ दक्षिणपंथी सदस्यों ने ईसाइयों और अन्य अल्पसंख्यकों के “उत्पीड़न” और हिंदू बहुसंख्यकवाद के बारे में अनर्गल आरोप लगाए.”

माधव के अनुसार, देश के भीतर और बाहर से “अनावश्यक हस्तक्षेप और प्रवचन” ने केवल इस मामले को बदतर बना दिया है बल्कि इसके कारण “जातीय संघर्षों के कारण लोगों के गहरे घावों” के “ठीक होने” में देरी हुई है.

माधव ने आगे लिखा कि मैतेई और कुकी, दोनों समुदाय के प्रतिनिधि दिल्ली में हैं और शांति के लिए सौहार्दपूर्ण रास्ता खोजने के लिए संबंधित अधिकारियों के साथ बातचीत चल रही है. 

उन्होंने इस पर भी आपत्ति जताई कि प्रमुख मैतेई समुदाय और अल्पसंख्यक कुकी आदिवासियों के बीच संघर्ष ईसाई विरोधी हिंसा का प्रतिनिधित्व करता है.

उन्होंने कहा, “यूरोपीय संसद और कुछ चर्च संगठनों ने इसे ईसाई विरोधी हिंसा के रूप में पेश करने की कोशिश की. लेकिन सबसे पहले जिन पूजा स्थलों पर हमला किया गया उनमें से एक हिंदू मंदिर था. कई चर्चों पर भी हमले हुए. लेकिन धर्म से अधिक हिंसा का मुख्य कारण जातीय पहचान है. जब भारत के साथ-साथ बाहर भी झूठी कहानियां चर्चा पर हावी हो जाती हैं, तो शांति और मेल-मिलाप मुश्किल हो जाता है.”


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मिशनरियों द्वारा ‘पोंजी स्कीम’

पांचजन्य की एक कवर स्टोरी में ईसाई मिशनरियों की कथित “पोंजी स्कीम” को उजागर करने का दावा किया गया है.

स्टोरी में लिखा गया है, “धर्मांतरण के लिए मिशनरियों के द्वारा कई समारोह आयोजित किए जाते हैं. इसके लिए धन इकट्ठा किया जाता है. लेकिन, पैसे की अगली किश्त के लिए धर्मांतरण कर चुके लोगों को और लोगों को जोड़ने के लिए कहा जाता है. यह पोंजी स्कीम इसी तरह चलती रहती है.” 

पोंजी स्कीम एक प्रकार का घोटाला है जिसमें निवेशकों को हाई रिटर्न का वादा किया जाता है, जिन्हें वास्तविक लाभ के बजाय नए निवेशकों के पैसे का उपयोग करके भुगतान किया जाता है.

रिपोर्ट में क्रिस होजेस नाम के एक अमेरिकी पादरी के कथित वीडियो का हवाला दिया गया है, जिसने कथित तौर पर घोषणा की थी कि भारत “धर्मांतरण के लिए एक बेहतर स्थान है” है और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रयासों के बावजूद उनका संगठन अपने लक्ष्य तक पहुंचने में सफल रहा है. “.

रिपोर्ट में दावा किया गया है कि होजेस का संगठन जिन मिशनरियों से जुड़ा है, वे पहले ही एक सप्ताह में एक लाख से अधिक हिंदुओं का धर्म परिवर्तन करा चुके हैं.

स्टोरी में आगे आरोप लगाया गया कि भारत में चर्च “भारत के विकास में बाधा डालने के लिए बहुराष्ट्रीय कंपनियों की साजिशों में सहायक के रूप में काम करता है”.

इसमें इन्फ्रा और अन्य परियोजनाओं के खिलाफ विरोध प्रदर्शनों का हवाला दिया गया, जिसमें आरोप लगाया गया कि इनके पीछे चर्च का हाथ था. जैसे कि पिछले साल केरल के विझिंजम इंटरनेशनल पोर्ट, अदानी समूह की परियोजना के खिलाफ फादर यूजीन एच परेरा के नेतृत्व में एक विरोध प्रदर्शन हुआ था.

इसमें आगे कहा गया है, “वास्तव में चर्च, जो खुद को भारत में अल्पसंख्यक होने का दावा करता है, के पास विश्व स्तर पर सबसे गहरा नेटवर्क और असीमित पैसा और राजनीतिक शक्ति है. इसका इंटरनेट और मीडिया पर पूरा नियंत्रण है. इसमें सरकारों और बाज़ारों को प्रभावित करने की शक्ति है. लेख में कहा गया है कि पश्चिमी देशों के ईसाई मिशनरी जहां भी गए हैं, उन्होंने वहां के सामाजिक-आर्थिक-राजनीतिक पारिस्थितिकी तंत्र को नष्ट कर दिया है.”

मुसलमानों के लिए बीजेपी के दो चेहरे?

दैनिक भास्कर में लिखते हुए दक्षिणपंथी लेखक मिन्हाज़ मर्चेंट ने दावा किया कि धर्मनिरपेक्ष राजनीति मुसलमानों पर नकारात्मक प्रभाव डालती है, जिसमें बीजेपी भी शामिल है.

मर्चेंट ने लिखा, “ये पार्टियां मुस्लिम वोटों को एक संपत्ति के रूप में देखती हैं, जिसका हर चुनाव में फायदा उठाया जा सकता है और चुनाव के बाद मुसलमानों को पहले की तरह ही उपेक्षित रखा जाता है. इसके लिए बीजेपी भी कम दोषी नहीं है. यह अपने 40 प्रतिशत वोट-शेयर को सुरक्षित करने के लिए ध्रुवीकरण को बढ़ावा देता है.”

उन्होंने लिखा, “प्रधानमंत्री खुद को घर में हिंदुत्व आइकन और विदेश में एक समावेशी वैश्विक नेता के रूप में पेश करते हैं. अपने दोनों कार्यकाल के दौरान नरेंद्र मोदी ने मध्य पूर्व और उत्तरी अफ्रीका के मुस्लिम देशों के साथ मेलजोल बढ़ाने के प्रयास किए हैं.”

उन्होंने बताया कि पीएम ने गणतंत्र दिवस समारोह के दौरान मिस्र के राष्ट्रपति को मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित किया और इस महीने अपनी भारत यात्रा पर आए मुस्लिम वर्ल्ड लीग के महासचिव डॉ. मुहम्मद बिन अब्दुल-करीम अल-इस्सा का राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल ने गर्मजोशी से स्वागत किया.

मर्चेंट ने लिखा, “यह पूछा जाना चाहिए कि क्या छद्म धर्मनिरपेक्षता ने मुसलमानों को अधिक नुकसान पहुंचाया है और उन्हें और अधिक अलग-थलग कर दिया है, जिससे वे आर्थिक रूप से हाशिए पर चले गए हैं? मुस्लिम समुदाय को प्रबुद्ध नेतृत्व की जरूरत है. यह धार्मिक नेताओं के हित में होगा कि मुसलमान गरीब और पिछड़े रहें, ताकि जब उनका उत्पीड़न हो तो उन्हें इसका एहसास हो.”

उन्होंने लिखा, “आज़ादी के बाद से, धर्मनिरपेक्ष राजनीति ने मुसलमानों की आर्थिक स्थिति में सुधार के लिए काफी कम प्रयास किया है. इसके बजाय, इसने मुसलमानों के बीच अलगाव की भावना पैदा की है. वे मुस्लिम मतदाताओं से उनकी पार्टी के लिए एकजुट होकर वोट करने के लिए कहते हैं, लेकिन यह नहीं पूछते कि उन्होंने उन्हें गरीबी से बाहर निकालने के लिए क्या किया.”

सीमा-सचिन की प्रेम कहानी

पाकिस्तानी महिला सीमा हैदर और उसके हिंदू प्रेमी सचिन के सीमा पार रोमांस पर पूर्व राज्यसभा सांसद बलबीर पुंज ने पंजाब केसरी में एक लंबी टिप्पणी लिखी.

पुंज ने दावा किया कि भले ही “अधिकांश पाकिस्तानी सीमा हैदर के खून के प्यासे हो गए हैं” लेकिन भारत के “स्वयं-घोषित धर्मनिरपेक्षतावादी इस मामले पर चुप हैं क्योंकि यह कहानी उनके एजेंडे में फिट नहीं बैठती है.” 

27 वर्षीय पाकिस्तानी नागरिक हैदर तब सुर्खियों में आई जब वह कथित तौर पर अपने चार बच्चों के साथ सचिन के साथ रहने के लिए नेपाल के रास्ते भारत में दाखिल हुई. सीमा ने मीडिया में दावा किया था कि सचिन के साथ उसे प्यार PUBG खेलने के दौरान हुआ था. 

समाचार रिपोर्ट्स के अनुसार, इस घटना के परिणामस्वरूप पाकिस्तान में हिंदू समुदाय को धमकियां दी जा रही हैं. वहां के हिंदुओं को धमकी दी जा रही है कि अगर सीमा हैदर वापस नहीं लौटी तो गंभीर परिणाम भुगतने होंगे. 

पुंज ने लिखा, “ऐसा इसलिए है क्योंकि सीमा एक हिंदू लड़के से प्यार करने के बाद न केवल भारत पहुंची, बल्कि अपनी इच्छा से हिंदू भी बन गई. इस्लामी मान्यताओं के अनुसार, सीमा का अपराध ‘शिर्क’ (अल्लाह के साथ दूसरे भगवान की पूजा) के तहत आता है, जिसमें केवल मौत की सज़ा मिलती है. पाकिस्तान में बचे हुए कुछ मंदिरों पर हमला करके और हिंदू बेटियों (ज्यादातर दलितों) के साथ बलात्कार की धमकी देकर सीमा पर रोष फैलाया जा रहा है.”

(संपादन: ऋषभ राज)

(इस ख़बर को अंग्रेज़ी में पढ़नें के लिए यहां क्लिक करें)


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