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Monday, 23 December, 2024
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स्वतंत्रता के मामले में भारत का स्तर गिरा, वैश्विक रिपोर्ट में दिखाया गया ‘आंशिक स्वतंत्र’

यह रिपोर्ट अमेरिका स्थित गैर-लाभकारी संगठन फ्रीडम हाउस द्वारा प्रकाशित की गई है, जिसे अमेरिकी सरकार द्वारा वित्त पोषित किया जाता है और जो दुनिया भर में लोकतंत्र और राजनीतिक स्वतंत्रता के बारे में रिसर्च करता है.

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नई दिल्ली : फ्रीडम हाउस ने तमाम राजनीतिक अधिकारों और नागरिक स्वतंत्रता के आधार पर भारत को 100 में से 67 ‘ग्लोबल फ्रीडम स्कोर’ देते हुए दुनिया में स्वतंत्रता के पैमाने के लिए जारी की गई रिपोर्ट में अब ‘स्वतंत्र (फ्री)’ देशों के स्तर से नीचे खिसकाकर ‘आंशिक रूप से स्वतंत्र (पार्टली फ्री)’ देशों की कैटेगरी में कर दिया है.

रिपोर्ट में स्तर के नीचे गिरने का कारण मोदी सरकार के कई सालों के पैटर्न को देखते हुए ‘मुसलमानों को प्रभावित करने वाली हिंसा व भेदभावकारी राजनीति’ और ‘मीडिया, सिविल सोसाइटी, एकेडमिक्स व प्रदर्शनकारियों के खिलाफ कार्रवाई’ को बताया गया है. वर्ष 2018 में फ्रीडम स्कोर 75 से घटकर 2019 में 71 और 2020 में यह और भी ज्यादा घटकर 67 हो गया.

इस रिपोर्ट में कहा गया है कि नए नागरिकता कानून और कोविड-19 के आधिकारिक प्रतिक्रिया के बारे में चर्चा जैसे सरकार की आलोचना समझे जाने वाले भाषणों की प्रतिक्रिया में पत्रकारों, छात्रों व अन्य लोगों के खिलाफ ‘औपनिवेशिक-युग के देशद्रोह कानून’ और सूचना तकनीक अधिनियम के तहत आपराधिक आरोप दायर किए गए.

यह रिपोर्ट अमेरिका स्थित गैर-लाभकारी संगठन फ्रीडम हाउस द्वारा प्रकाशित की गई है, जिसे अमेरिकी सरकार द्वारा वित्त पोषित किया जाता है जो दुनिया भर में लोकतंत्र और राजनीतिक स्वतंत्रता के बारे में रिसर्च करता है.


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मुसलमानों के साथ ‘भेदभाव’

रिपोर्ट में कहा गया है कि लगभग 80 प्रतिशत हिंदू आबादी वाला भारत ‘औपचारिक रूप से धर्मनिरपेक्ष’ है, जिसमें संवैधानिक रूप से धार्मिक स्वतंत्रता की गारंटी है, लेकिन ‘कई हिंदू राष्ट्रवादी संगठन और कुछ मीडिया आउटलेट मुस्लिम विरोधी विचारों को बढ़ावा देते हैं, पीएम मोदी पर भी इसे बढ़ावा देने के आरोप लगते रहते हैं.

इसमें फरवरी 2020 के दिल्ली दंगों का भी ज़िक्र किया गया था, जहां ‘देश के नागरिकता कानून में भेदभावपूर्ण बदलावों के खिलाफ करीब हफ्ते भर चले प्रदर्शनों’ के बाद हुई हिंसा में कम से कम 53 लोग मारे गए जिसमें से ‘ज्यादातर मुसलमान‘ थे.

इसमें कहा गया है कि नागरिकता संशोधन अधिनियम को लागू करने और भारतीय नागरिकता पंजीकरण (एनआरसी) को लेकर सरकार की मंशा ने ‘मुस्लिम मतदाताओं को अवैध आप्रवासियों के रूप में प्रभावी ढंग से वर्गीकृत किए जाने’ का भय पैदा कर दिया.

रिपोर्ट में गायों को लेकर सतर्कता का भी उल्लेख किया गया है और कहा गया है कि ‘कथित गोकशी या गायों के साथ दुर्व्यवहार के संबंध में मुसलमानों और अन्य लोगों के खिलाफ हमले’ 2020 में जारी रहे.

इसमें कहा गया है कि सत्तारूढ़ पार्टी के सदस्यों द्वारा कोरोनावायरस महामारी के शुरुआती हफ्तों में इसके प्रसार के लिए मुसलमानों को दोषी ठहराया गया था जबकि पिछले साल सितंबर में बाबरी मस्जिद विध्वंस मामले में भाजपा के कई प्रमुख नेताओं को बरी करने को कर दिया गया था.


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संस्थाओं में स्वतंत्रता की कमी

रिपोर्ट में आरोप लगाया गया है कि भारत निर्वाचन आयोग और उच्चतम न्यायालय जैसी विभिन्न संस्थाओं की स्वतंत्रता पर भी सवालिया निशान लगाए गए. ‘पैनल का राष्ट्रीय चुनावों के समय और चरणों की संख्या और राजनेताओं के कैंपेन करने के तरीके व तकनीक का नियमन करने वाले आचार संहिता को सेलेक्टिव तरीके से लागू करने जैसे आरोप बीजेपी की और पक्षपातपूर्ण रवैये को दर्शाते हैं.’

सूचना के अधिकार कानून में संशोधन के बारे में बात करते हुए कहा कि सूचना आयुक्तों के वेतन और कार्यकाल को केंद्र सरकार के नियंत्रण में कर दिया गया, जिससे ‘आयुक्तों पर राजनीतिक दबाव महसूस करने की संभावना बढ़ गई.’ ‘इसमें आयोगों में पदों पर सत्ताधारी पार्टी के वफादारों को भरे जाने को लेकर भी चिंता ज़ाहिर की गई है.’

विशेष रूप से वर्ष 2019 के उस फैसले का ज़िक्र करते हुए जिसमें बाबरी मस्जिद ध्वंस वाले स्थल पर राम मंदिर के निर्माण की अनुमति दी गई थी सुप्रीम कोर्ट के कामकाज के बारे में रिपोर्ट में कहा गया है कि हाल के वर्षों में कई प्रमुख फैसले ‘भाजपा के अनुकूल रहे हैं.’

इसमें फरवरी में जस्टिस एस मुरलीधर के दिल्ली से पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट में तबादले और पूर्व मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की राज्यसभा में नियुक्ति पर भी टिप्पणी की गई है.


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मीडिया और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता

रिपोर्ट में कहा गया है कि ‘आलोचना करने वाली मीडिया की आवाज़ों’ को दबाने के लिए अधिकारियों ने सुरक्षा, मानहानि, राजद्रोह और घृणा फैलाने वाले कानूनों के साथ-साथ अदालत की अवमानना जैसे आरोपों का इस्तेमाल’ किया.
इसमें कहा गया है कि मोदी सरकार के समय में रिपोर्टिंग ‘कम उत्साहजनक’ हो गई है और देश-विरोधी समझे जाने वाली अभिव्यक्ति तो दबाने के लिए हिंदू नेशनलिस्ट कैंपेन बढ़ गए हैं.

रिपोर्ट में कहा गया है कि मीडिया आउटलेट्स पर अनुकूल रिपोर्टिंग करने के लिए दबाव डाला गया था. भारत के तमाम बड़े न्यूज़ पेपर के हेड की उपस्थिति में पिछले साल मार्च में एक वीडियो कॉन्फ्रेंस के दौरान पीएम मोदी ने मीडिया से कहा कि वे ‘निराशावाद, नकारात्मकता और अफवाहों को फैलने से रोकने में मदद करें. जिसे बहुत से लोगों ने कोविड-19 के प्रबंधन की आलोचना न करने की चेतावनी के तौर पर लिया.

इसमें यह भी दावा किया गया कि एकेडमिक स्वतंत्रता में भी गिरावट आई है और शिक्षाविदों, प्रोफेसरों और छात्रों को धमकाया जाता है. ‘शिक्षाविद भाजपा सरकार द्वारा संवेदनशील समझे जाने वाले विषय विशेष रूप से पाकिस्तान के साथ भारत के संबंधों और भारतीय कश्मीर में परिस्थितियों पर चर्चा नहीं करने के लिए दबाव महसूस करते हैं.

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