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Friday, 29 March, 2024
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कोविड-19 पर निगरानी के लिए भारत में आरोग्य सेतु समेत कम-से-कम 19 एप्स का इस्तेमाल हो रहा है

पूरे भारत में सरकारें लोगों से कोविड-19 रोकने के लिए विकसित मोबाइल एप्स डाउनलोड करने के लिए कह रही हैं. इनको लेकर डेटा प्राइवेसी से जुड़ी चिंताएं सामने आई हैं क्योंकि कई एप्स यूज़र्स की गतिविधियों पर निरंतर नज़र रखते हैं.

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नई दिल्ली: ‘भारत सरकार कोविड-19 से लड़ाई में आरोग्य सेतु एप के उपयोग की अनुशंसा करती है.’ लगभग हर किसी ने इस संदेश से मिलते-जुलते संदेश देखे होंगे. आईटी मंत्रालय द्वारा निर्मित एप को खूब प्रचारित किया जा रहा है – टेक्स्ट मैसेज द्वारा, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की चर्चाओं में या व्हाट्सएप के फॉरवर्ड संदेशों के ज़रिए.

आरोग्य सेतु एक ऐसा एप है जो कोविड-19 पॉजिटिव पाए गए किसी रोगी के पास आने पर यूज़र को सतर्क करता है, और साथ ही संक्रमण से बचने के तरीके भी सुझाता है.

यह एप मुख्यतया जीपीएस, ब्लूटूथ और यूज़र के फोन नंबर के ज़रिए उपलब्ध सूचनाओं के आधार पर निर्धारित करता है कि यूज़र कहां-कहां गया होगा. इस जानकारी का फिर भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) के पॉजिटिव मामलों के डेटाबेस से मिलान किया जाता है. इस लोकेशन डेटा से कोई मैचिंग होने पर यूज़र को प्रॉम्प्ट के ज़रिए सूचित किया जाता है.

इस एप को 2 अप्रैल को लॉन्च किए जाने के बाद से गूगल प्ले स्टोर पर एक करोड़ से अधिक बार डाउनलोड किया जा चुका है.

लेकिन आरोग्य सेतु अपनी तरह का अकेला एप नहीं है. भारत में इस समय कोरोनावायरस से जुड़े कम-से-कम 19 एप प्रचलित हैं जिन्हें करीब एक करोड़ यूज़र्स इस्तेमाल कर रहे हैं.

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एप्स का व्यवसाय

ऐसे वक्त जबकि उद्योग-धंधे ठप पड़े हैं और अर्थव्यवस्था पर मंदी का खतरा मंडरा रहा है, इनेफु जैसी कंपनियों ने महामारी से जुड़ी तकनीकी सेवाओं का बाज़ार ढूंढ निकाला है.

ऐसे अधिकांश एप्स केंद्र सरकार और विभिन्न राज्य सरकारों द्वारा कोविड-19 के प्रसार पर नज़र रखने और उससे निपटने के लिए इस्तेमाल किए जा रहे हैं.

वर्षों से आईटी के ग्रेजुएटों की फौज तैयार कर रहे देश में एप बनाना कोई चुनौती भरा काम नहीं है. कोरोना ट्रैकिंग एप बना चुके दिल्ली स्थित इनेफु लैब्स के सह-संस्थापक तरुण विग के अनुसार ऐसे किसी एप की डिज़ाइनिंग में करीब 15 दिन लगते हैं और फिर लगभग 10 दिन उसके परीक्षण में.


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नागरिकता संशोधन कानून के विरोध के दौरान हिंसा में लिप्त लोगों की पहचान के लिए दिल्ली पुलिस ने इनेफु निर्मित चेहरों की पहचान वाले सॉफ्टवेयर का उपयोग किया था.

बुल्गारिया की कंपनी साइबॉर्ग सिस्टम्स एंड सॉल्यूशंस के ज़रिए इनेफु का एप बिक्री के लिए अमेरिका, ब्रिटेन, यूएई, बहरीन, कीनिया, नाइजीरिया, तुर्की और स्पेन में उपलब्ध है. इन देशों में से अमेरिका, स्पेन और ब्रिटेन कोरोनावायरस संक्रमण के मामलों की दृष्टि से दुनिया के अग्रणी देश हैं.

केरल में इस्तेमाल हो रहे एप्स

केरल में कोविड-19 के हॉटस्पॉट कासरगोड जिले में पुलिस क्वारेंटाइन किए गए लोगों पर नज़र रखने के लिए इनेफु के अनमेज़ एप का इस्तेमाल कर रही है.

कासरगोड पुलिस इसे ‘कोविड सेफ्टी एप’ कहती है और 25 मार्च से ही वो क्वारेंटाइन किए गए करीब 20,000 लोगों पर नज़र रखने के लिए इसका इस्तेमाल कर रही है. क्वारेंटाइन किए गए लोगों ने इस एप को डाउनलोड किया है.

यह एप यूज़र्स के लोकेशन डेटा को कासरगोड पुलिस द्वारा स्थापित सर्वरों को भेजता है. कोच्चि के पुलिस कमिश्नर विजय सखारे के अनुसार एप की मदद से क्वारेंटाइन प्रावधानों का उल्लंघन करने वाले 3,000 लोगों को पकड़ा जा चुका है. इनमें से 200 को गिरफ्तार किया गया है. घर में क्वारेंटाइन किए गए लोगों को निर्धारित ऐहतियातों का पालन नहीं करने पर सरकारी क्वारेंटाइन केंद्रों में स्थानांतरित कर दिया जाता है.

विग के अनुसार केरल के अलावा दो अन्य राज्यों की कानून प्रवर्तन एजेंसियां भी एप का परीक्षण कर रही हैं.

सखारे ने कहा कि पुलिस के लिए सबसे बड़ी चुनौती लोगों से लॉकडाउन के नियमों का पालन कराने की थी और इस कारण पुलिस को लॉकडाउन को ‘बेरहमी से’ लागू करना पड़ा.

उन्होंने कहा, ‘जब लॉकडाउन शुरू हुआ, तो लोग उसका पालन करने के लिए तैयार नहीं थे.’ हालांकि, उनके अनुसार जागरूकता फैलने के बाद ये समस्या कम हो गई.

स्वास्थ्य संबंधी नवीनतम जानकारी देने के लिए केरल सरकार ‘जीओके डायरेक्ट – केरल’ एप का इस्तेमाल कर रही है जिसे कोझ़ीकोड़ की कंपनी क्यूकॉपी ने तैयार किया है.

क्वारेंटाइन पर नज़र

आईटी मंत्रालय ने ‘कोविड-19 फीडबैक’ नामक एप लॉन्च किया है जिसका उपयोग यूज़र्स के उपचार या चिकित्सा परीक्षणों की जानकारी जुटाने के लिए सर्वे के साधन के तौर पर किया जा रहा है. इससे सरकार को टेस्टिंग और उपचार प्रक्रियाओं को बेहतर बनाने के क्षेत्रों की पहचान में मदद मिलती है.

इसी तरह सर्वे ऑफ इंडिया ने सहयोग नाम एप विकसित किया है जो संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आए लोगों का पता लगाने (कॉन्टैक्ट-ट्रेसिंग), जागरूकता पैदा करने और बीमारी के आत्म-आकलन के लक्ष्यों के संदर्भ में आरोग्य सेतु के पूरक का काम करता है.

सहयोग एप राज्य स्तर पर डेटा एकत्रित कर उसे जियो-टैग करता है ताकि डेटाबेस का आकार बढ़ने पर सर्वे ऑफ इंडिया उसका विश्लेषण कर सके. इस प्रक्रिया का उद्देश्य है सरकार के प्रतिक्रियात्मक प्रयासों को बेहतर बनाने में मदद करना.

छत्तीसगढ़ में जिलों के बीच और आंतरिक आवागमन के वास्ते वाहनों के ई-पास जारी करने की प्रक्रिया सुचारू बनाने के लिए सरकार ‘सीजी कोविड-19’ एप का इस्तेमाल कर रही है. गूगल प्ले से इसे 50,000 से अधिक बार डाउनलोड किया जा चुका है.

कर्नाटक के राजस्व विभाग ने ‘क्वारेंटाइन वॉच’ नामक एप विकसित किया है जिसे अपने घरों में ही क्वारेंटाइन किए गए लोगों के लिए डाउनलोड करना अनिवार्य है. इसके ज़रिए वे बहुत सारी सूचनाएं साझा करते हैं जिनमें 10 बजे रात से 7 बजे सुबह की अवधि के बाहर हर घंटे अपनी सेल्फी अपलोड करना शामिल है. इस एप को गूगल प्ले पर 10,000 से अधिक बार डाउनलोड किया जा चुका है.

इसी तरह में गुजरात में सूरत नगर निगम ने अपने घरों में क्वारेंटाइन किए गए लोगों के लिए ‘एसएमसी कोविड-19’ एप रिलीज किया है. इस एप में भी सेल्फी अपलोड करने की व्यवस्था की गई है. यूजर्स के लिए अपने लोकेशन की जानकारी साझा करने के लिए हर घंटे एप के एक बटन को टच करना भी अनिवार्य है.

महाराष्ट्र में क्वारेंटाइन किए गए लोगों पर नज़र रखने और कॉन्टैक्ट-ट्रेसिंग संबंधी डेटा एकत्रित करने के लिए सरकार ‘महाकवच’ नामक एप का इस्तेमाल कर रही है.

सिर्फ ट्रैकिंग ही नहीं

कर्नाटक स्टेट रिमोट सेंसिंग एप्लिकेशंस सेंटर ने ‘कोरोना वॉच’ नामक एप विकसित किया है जो इस पर पंजीकृत मरीजों की लोकेशन और यात्रा संबंधी ब्यौरों को दिखलाता है. इस एप को 1,00,000 से अधिक बार डाउनलोड किया जा चुक है.

घरों में क्वारेंटाइन किए गए लोगों की निगरानी के लिए हिमाचल प्रदेश ‘कोरोना मुक्त हिमाचल’ नामक एप का इस्तेमाल कर रहा है.

इसी तरह तमिलनाडु सरकार यूज़र का लोकेशन डेटा जुटाने के लिए ‘कोविड-19 क्वारेंटाइन मॉनिटर तमिलनाडु’ एप का इस्तेमाल करती है. इससे चेन्नई की एक निजी कंपनी पिक्सॉन एआई सॉल्यूशंस ने तैयार किया है.


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साथ ही, डेक्कन हेराल्ड की एक रिपोर्ट के अनुसार, 21 मार्च को तमिलनाडु के स्वास्थ्य मंत्री सी विजय भास्कर ने क्वारेंटाइन किए गए लोगों को सलाह देने के वास्ते डॉक्टरों के लिए एक एप रिलीज़ किया. एप को सत्तारूढ़ एआईएडीएमके के सदस्य कोवई सत्यन की अगुआई वाली एक टीम ने विकसित किया है.

तमिलनाडु में क्वारेंटाइन किए गए लोगों पर नज़र रखने के लिए को-बडी नामक एप का भी इस्तेमाल किया जा रहा है जो फेशियल रिकॉग्निशन तकनीक पर आधारित है. इस एप के ज़रिए यूज़र अनिवार्य वस्तुएं भी मंगवा सकता है और आपात संदेश भेज सकता है.

तेलंगाना के आईटी एवं उद्योग मंत्री केटी रामाराव ने 11 अप्रैल को अमेज़न वेब सर्विसेज़, सिस्को सिस्टम्स तथा हैदराबाद की स्थानीय कंपनी क्वांटेला के सहयोग से विकसित एप ‘टी कोविट 19’ को जारी किया. एप राज्य में संक्रमण के सक्रिय मामलों की नवीनतम जानकारी देता है.

ओडिशा में लोग सरकार द्वारा संचालित एप ‘कोविड-19 ओडिशा’ से कोरोनावायरस के बारे में सूचनाएं और सोशल डिस्टेंसिंग नियमों के उल्लंघन के मामलों की जानकारी पा सकते हैं.

पंजाब की अमरिंदर सिंह सरकार राज्य में संक्रमण से संबंधित आंकड़े और निर्देश उपलब्ध कराने के लिए ‘कोवा पंजाब’ एप का उपयोग कर रही है.

संक्रमण के मामलों की ट्रैकिंग करने वाले एप्स के अलावा एक एप संक्रमण का आत्म-आकलन करने के लिए भी है. इस एप को बनाने वाली कंपनी इनोवेसर ने इसे गोवा और पुडुचेरी सरकारों के लिए कस्टमाइज किया है.

‘महामारी विशेषज्ञों की सहभागिता नहीं होने की समस्या’

आरोग्य सेतु में इसके यूज़र को लोकेशन डेटा साझा करने की अनुमति देनी होती है, साथ ही अपना नाम, लिंग, पेशा और गत 30 दिनों में की गई विदेश यात्रा की जानकारी भी उपलब्ध करानी होती है. जोकि डिजिटल अधिकारों के लिए काम करने वाली दिल्ली की संस्था सॉफ्टवेयर फ्रीडम लॉ सेंटर के अनुसार ‘संवेनशील निजी डेटा के अत्यधिक संग्रह और इस्तेमाल’ का एक उदाहरण है.

इन सूचनाओं के साथ ही एप में ये जानकारी भी मांगी जाती है कि यूज़र धूम्रपान करता है या नहीं और उसका मौजूदा स्वास्थ्य कैसा है.

दिल्ली की ही एक अन्य संस्था इंटरनेट फ्रीडम फाउंडेशन (आईएफएफ), जो डिजिटल युग में निजता के मौलिक अधिकार के संरक्षण के लिए काम करती है, का कहना है कि इस तरह के एप्स ‘सामूहिक निगरानी को संस्थागत रूप देने’ का काम करते हैं.

आईएफएफ के एक ब्लॉग लेख में कहा गया है, ‘कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग तकनीक के रूप में पेश किए जा रहे अधिकतर एप्स अक्सर आवाजाही पर नियंत्रण और लॉकडाउन लागू करने की प्रणालियों में तब्दील हो जाते हैं.’ हालांकि सरकार ने इस बारे में चिंताओं को दूर करने की कोशिश की है.

आईटी मंत्रालय के प्रवक्ता राजीव जैन ने दिप्रिंट को बताया, ‘निजता को लेकर चिंता की कोई बात नहीं है. आरोग्य सेतु के ज़रिए संग्रहित डेटा का सिर्फ कोविड-19 के खिलाफ उठाए जाने वाले कदमों के लिए ही इस्तेमाल होता है. इस एप से निगरानी का काम नहीं लिया जाता है और ये सिर्फ कोविड मरीजों को ट्रैक करने के काम आता है.’


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एप के लॉन्च के अवसर पर आईटी मंत्रालय के बयान में कहा गया था, ‘एप के डिजाइन में निजता को शीर्ष प्राथमिकता दी गई है. एप द्वारा एकत्रित डेटा को अत्याधुनिक तकनीक के ज़रिए इनक्रिप्ट किया जाता है और चिकित्सकीय कार्यों के लिए आवश्यक होने तक यह फोन में ही सुरक्षित रहता है.’

पीआईबी के एक ट्वीट के अनुसार उसने ‘फैक्ट चेक’ करने पर निजता संबंधी चिंताओं को ‘बेबुनियाद’ पाया है. उसके अनुसार, ‘एप यूज़र की लोकेशन और डेटा को किसी संवेदनशील निजी सूचना से नहीं जोड़ता है. साथ ही, यह यूज़र के लिए हैकिंग का खतरा भी नहीं पैदा करता है.’

इस बीच स्वतंत्र डेटा रिसर्चर श्रीनिवार कोडाली ने कहा है कि महामारी विरोधी प्रयासों के तहत एप के इस्तेमाल में भले ही कोई नुकसान नहीं है, पर इन तकनीकी पहलकदमियों में या इन एप्स के विकास में महामारी विशेषज्ञों की भागीदारी नहीं होना निश्चय ही एक समस्या है.

उन्होंने कहा, ‘मुझे हैरानी होती है कि सरकारों (राज्य और केंद्र) के पास एप्स पर खर्च करने के लिए तो पर्याप्त संसाधन हैं, लेकिन पीपीई और स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी बनी हुई है.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए क्लिक करें)

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